ek tufan

                     एक तूफ़ान

          रीटा और रवि अपने बेटे अभय और बेटी रूपा के साथ बहुत ही खुशनुमा जिंदगी गुज़ार रहे थे, उनको अपनी जिंदगी से जैसे कोई शिकायत ही नहीं थी, कान्हा जी की कृपा से सब कुछ ठीक चल रहा था, भले ही घर थोड़ा छोटा था, रवि की महीने की कमाई इतनी थी, कि उससे बस सब का गुजारा चल जाता था, फिर भी सब बहुत खुश थे, सारे त्यौहार सब साथ मिलके मनाते थे। मगर पता नहीं, रीता के परिवार को ना जाने किस की नज़र लग गई, कि एक ही दिन में उनका हस्ता खेलता परिवार एक दम से जैसे चुप हो गया, अभय का कार एक्सीडेंट हो गया और उसने वहीं पर अपना दम तोड दिया, अचानक से एक तूफ़ान आया और जैसे अपने साथ सब कुछ लेकर चला गया । रीता के घर की सारी खुशियां भी उस तूफ़ान के साथ चली गई । अभय के जाने के बाद घर में जैसे एक सन्नाटा सा छा गया था, अपने ही घर में रवि, रीता और उसकी बेटी रूपा एक दूसरे से जैसे मुँह छिपाते थे, एक दूसरे को हिम्मत देने की भी किसी में हिम्मत नहीं थी, कुछ वक्त के बाद रूपा की शादी हो गई, अब घर में रवि और रीता रह गए, रवि तो रोज़ ऑफिस चला जाता था, ऐसे वक्त में घर खाने को दौड़ता था, रवि को अपने बच्चों से कुछ ज्यादा ही लगाव था, मगर उसने अपना दर्द अपने दिल के अंदर दबा रखा, पूछने पर भी कुछ कहते नहीं, अब रीता की उम्र 47 साल की और रवि 50 साल के हो चुके थे, अब इस उम्र में दूसरे बच्चे को लेकर अपनी ज़िंदगी में लाना, यह रीता को बहुत मुश्किल लग रहा था, मगर रवि ज़िद्द पर अड़े रहे, रवि की खुशी के लिए रीता ने IVF bhi करवाया, मगर उस से कोई फायदा ना हुआ, डॉक्टर ने कहा, कि उम्र के बढ़ जाने से शायद अब बच्चा होना मुश्किल है, इसलिए रीता ने तो यह बात स्वीकार कर ली, कि अब ज़िंदगी यूंही एक दूसरे के सहारे ही गुजारनी है, मगर रवि का मन नहीं माना, रवि को अंदर ही अंदर अकेलापन खाए जा रहा था, या कहूं तो अभय के चले जाने का दर्द उसे खाए जा रहा था, इसलिए शायद रवि का बर्ताव दिन ब दिन बदलने लगा, बात बात पर रीता पर गुस्सा करता, बात बात पर उसे भला बुरा भी सुनाया करता, अपने ऑफिस का गुस्सा भी कभी कभी रीता पर ही निकालता, रीता रविको समझने की, उसकी परेशानी समझने की कोशिश करती रहती, इसलिए चुप रहती, मगर कब तक वह सहती रहती, कभी कभी गुस्से में आकर रीता भी रवि को सुना देती, फिर रवि के ऑफिस जाने के बाद अकेले में रोया करती, बेटा सिर्फ रवि ने ही नहीं, उसने भी तो खोया था। मगर यह बात रवि कैसे समझे ? और तो और रवि को रीता के बिना चलता भी नहीं, वह रीता को नाही उसके मायके जाने देता और नाही किसी दोस्त के घर जाने देता, नाही उसे बाहर जाकर नौकरी करने की इजाज़त और नाही वह अपने मन का कुछ कर सकती, क्योंकि रवि को वह जब ऑफिस से घर आए तो उसे रीता उसके सामने ही चाहिए। कभी कभी रवि रीता की बहुत ज़्यादा परवाह करता, तो कभी उस से सीधे मुंह बात भी नहीं करता, कभी कभी रवि रात को रीता को गले लगाकर सो जाता, तो कभी मुंह पलटकर सो जाता, जैसे की उसके बगल में कोई है ही नहीं, जैसे की वह अकेला ही सो रहा हो। कभी रवि अपनी पत्नी रीता के लिए दवाई लाता तो कभी सब्जी, तो कभी अपने आप को एक कमरे में बंद कर देता और कहता, कि " कोई उसे परेशान न करे, वह नॉवेल पढ़ रहा है। " ऐसा लगता जैसे रवि के मन में एक बहुत बड़ा तूफान चल रहा हो, जैसे उस तूफान में वह खुद डूब रहा है और अपने साथ साथ अपनी पत्नी रीता को भी खींचे जा रहा है, शायद रवि को अब रीता के खोने का भी डर लग रहा है, उसने अपने बेटे को तो खो दिया, जो उसे अपनी जान से भी प्यारा था, मगर अब वह रीता को नहीं खोना चाहता, रवि कुछ भी कहता नहीं, लेकिन उसके बर्ताव से सब पता चलता है। कभी कभी रीता अपने पति रवि को हर तरफ़ से समझाने की कोशिश करती, मगर सब नाकाम। एक तरफ रीता को भी अब अकेलापन खाए जा रहा था और दूसरी तरफ़ रवि का अजीब बर्ताव, जो कभी कभी उसकी समझ के बाहर ही था। 
           तो दोस्तों, यह प्यार है या एकदूसरे को खोने का डर ? अब इस उम्र के पड़ाव में जब एक दूसरे के साथ की, एक दूसरे को समझने की ज़्यादा ज़रूरत होती है, तभी सब सूझबूझ जैसे की खो बैठे है, अब यह ज़िंदगी एक बोझ लगने लगी है, बस जिए जा रहे है, रीता अपने आपको तो जैसे तैसे संभाल रही है, मगर आख़िर कब तक ऐसा चलता रहेगा ? उसके अंदर भी तो एक तूफान चल रहा है, वह एक ना एक दिन जरूर फटेगा और  सब कुछ तबाह कर देगा। तो इस हालत में रीता को अब क्या करना चाहिए, क्या आप बता सकते है ? 

स्वरचित
सत्य घटना पर आधारित 
एक तूफ़ान 
Bela...
          

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