दिल हैं कि मानता नहीं

दिल हैं कि मानता नहीं 

बरसों बाद आज वहीं,
 कॉलेज की टपरी पर,
एक लड़का और एक लड़की,
को साथ में हाथों में हाथ रखकर,
 प्यार की कसमें खाते हुए देख,
इस दिल को फिर से वहीं बातें, 
वहीं कसमें याद आने लगे,

जब किसी ज़माने में,
 हाथों में हाथ रखकर,
हमने भी कभी साथ निभाने की,
 प्यार की कसमें खाई थी,
वह मौसम बदलते ही,
 हवा के झोंकों के साथ,
हवा में गुल गई, 
जैसे कि कभी थी ही नहीं।

ना जाने क्यों, 
आज भी इस टूटे दिल को
उसका इसी जगह इंतज़ार हैं, 
मैं जानती हूं, अब ऐसा हो नहीं सकता,
मगर क्या करे, यह " दिल हैं कि मानता नहीं, "

उसके इंतजार में आज भी,
जैसे यह पागल सी आँखें उसे ढूंढ रही हैं, 
             और
ये दिल कहता हैं, कि 
एक ना एक दिन तो तुम्हें,
मेरी याद ज़रूर सताएगी,
तेरे दिल के एक कोने में,
 आज भी मेरे लिए,
थोड़ी जगह तो जरूर होगी, 
जानती हूं, कि 
यह सच नहीं हो सकता, 
मगर फिर भी
 ये दिल हैं, कि मानता नहीं और 
तेरे आने की उम्मीद,
आज भी बनाए रखा हैं।

Bela...

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