मेरी अम्मा
केरला के क़रीब कोची स्टेशन के एक प्लेटफार्म पर एक बुढ़िया औरत सिकुड़कर पड़ी हुई थी, उसकी लाठी उसकी बगल में पड़ी हुई नज़र आ रही थी, अक्सर उस प्लेटफार्म पर ट्रेन के आने से लोगों की भगदड़ मची रहती है, कई लोग तो ज़ल्दबाज़ी में उस बुढ़िया औरत के ऊपर से चढ़कर गुज़र जाते, तो कई लोग सँभल कर भी जाते, कई लोगों का पाव भी उस बुढ़िया के अंग पर लग जाता, लेकिन उस बुढ़िया को तो कुछ भी समझ नहीं, बिखरे हुए से बाल, फटे पुराने से कपड़े, उस बुढ़िया को देखने से तो लगता, कि जैसे कई दिनों से नहाई भी नहीं होगी, बेजान सी एक ही जगह पर बस यूंही पड़ी रहती, वह सिर्फ़ ढूंढ़ला ढूंढला सा देख पाती, उसे पल भर देखने से लगता, कि " वह ज़िंदा भी है या मर गई है, कौन जाने ?" ऐसी उस बुढ़िया की हालत थी। ट्रेन के जाने के बाद, थोड़ा सा भीड़ धक्का कम होने के बाद, एक पेपर की दुकान पर काम कर रहा एक लड़का, जो कब से उस बुढ़िया को देख रहा था, उस लड़के को उस बुढ़िया की हालत पर तरस आ गया और उस लड़के ने बुढ़िया को हल्के हाथ से खींच कर अपनी दूकान की ओर ले आया और एक बेंच पर बैठाते हुए बुढ़िया से कहता है, कि " अम्मा, यहाँ पर तुम आराम से बैठो।"
अम्मा शब्द सुनते ही बुढ़िया कुछ पल उस लड़के को बहुत ध्यान से देखती रही, थोड़ी देर बाद वह बुढ़िया फिर से आंखें मिंच कर वहींं पर सो गई। दोपहर में जब खाने का वक्त हुआ, तब वह लड़का जिसका नाम किशोर था, वह अम्मा के लिए खाना अपने साथ लेकर आया और उस बुढ़िया औरत से पूछा, " अम्मा, कुछ खाना खाओगे क्या ? " इस बात पर बुढ़िया ने लड़के को गले लगा लिया और दूसरे ही पल स्टीवन कर के जोर से चिल्लाई और मलयाली भाषा में चिल्लाने लगी, चिल्लाते चिल्लाते फिर से वह औरत थक कर आंख बंद कर के जैसे सो गई।
किशोर अब सोचने लगा, कि बात क्या हो सकती है ? इतना तो उसे समझ में आ गया था, कि बुढ़िया केरल की ही होगी और स्टीवन नामक लड़के को वह ढूंढ रही है। किशोर ने सोचा की ऐसा क्या किया जाए, जिस से इस बुढ़िया का थोड़ा बहुत दुःख कम हो जाए, सोचते हुए किशोर उस बुढ़िया को अपने साथ अपनी चाली में ले गया, फिर उसने उस बुढ़िया को जलपान करवाया और किशोर ने उस बुढ़िया की दिल से इतनी सेवा की, कि एक दो दिन में वह बुढ़िया में जैसे ताकत आ गई हो और अब वह अच्छे से देख भी सकती थी।
बुढ़िया ने किशोर से कहा, कि " तू तो मेरा स्टीवन है ही नहीं, तो फिर तू है कौन ? " किशोर ने फिर अपना नाम कहा और टूटी फूटी इंग्लिश में केहने लगा, कि " आपको समझ में आ रहा है ना अम्माजी " और उसने अपना सिर झुकाकर अम्माजी से आशीर्वाद लिया। फिर अम्मा ने अंग्रेजी शब्दों में कहा, कि " वह केरला से है और उसकी बातों से लगा, की वह काफी एजुकेटेड भी है और बात करते करते वह बुढ़िया औरत अपनी ज़िंदगी के १८ साल पीछे चली गई और कहने लगी, कि " स्टीवन जब ७ साल का था, तब उसके पिताजी ऑटोरिक्सो चलाते थे और एक दिन अचानक से उनका एक्सीडेंट हो गया और स्टीवन ने अपने पिताजी को हमेशा के लिए खो दिया और मैंने मेरे पति को भी खो दिया, लेकिन उस बुरे वक्त में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि मुझे अपने स्टीवन के लिए जीना था, उसके पिताजी के जाने के बाद में ही स्टीवन की हिम्मत बनी, स्टीवन को पढ़ाया, लिखाया, educate किया, उसे ज़िंदगी में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। लेकिन वो कहते है ना, कि " ज़िंदगी में हर दिन खुशी का नहीं होता।" वैसा ही कुछ हमारी ज़िंदगी में भी हुआ, स्टीवन ने एक दिन अपने दोस्तों के साथ बीच पर जाने की जिद्द की, मैंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, बहुत रोका, मगर स्टीवन उस वक्त नहीं रुका, केरला के कॉलम बीच पर अक्सर एक्सीडेंट होते रहते थे, इसी वजह से मैं उसे अपने दोस्तों के साथ जाने को मना कर रही थी, तभी स्टीवन और उसके दोस्तों के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, इतफ़ाक की बात तो यह है, कि स्टीवन के सभी दोस्तों की बॉडी मिल गई मगर स्टीवन का कुछ पता नहीं चला, उसके बाद से मैं अपने स्टीवन को इधर से उधर, दरबदर भटक कर ढूंढ रही हूँ, क्योंकिं कोई चाहे जो भी कहे मुझे ऐसा लगता है, कि मेरा बेटा स्टीवन आज भी ज़िंदा है और एक ना एक दिन वह मुझे ज़रूर मिल जाएगा।"
एक चर्च के father, जहाँ मैं अक्सर जाया करती थी, उस Father ने भी मुझे समझाने की बहुत कोशिश कि, फिर एक सुबह मैंने वकील को बुलाया और अपना घर और सब कुछ चर्च को देकर, वहाँ से भी चल निकली, मैंने अपना घर भी छोड़ दिया और मुझे कुछ भी पता ही नहीं की मुझे कहाँ जाना है और कहाँ नहीं ? मैं अपने बेटे को कहाँ और कैसे ढूंढू ? बस तब से मैं अपने स्टीवन को ढूंढने के लिए इधर से उधर भटकती रहती हूँ, क्योंकि मेरा दिल कहता है, कि एक ना एक दिन मेरा बेटा मुझे ज़रूर मिल ही जाएगा। "
उसके बाद मेरी अम्मा ने किशोर को देखते हुए कहा, कि " तू भी मेरा स्टीवन जैसा ही है, मगर फ़िर भी मेरी अम्मा कहते कहते रो पड़ी, कि मेरा स्टीवन मुझे ढूंढ के दो। "
असलियत में स्टीवन के साथ क्या हुआ था ? और उसके दोस्तों के साथ क्या हुआ था ? यह कोई नही जान पाया। लेकिन एक दिन समंदर किनारे एक लड़का बेहोश पड़ा हुआ था, वहाँ पर रहते मछुआरे ने उसे देखा और उसका इलाज करवाया, एक दो दिन में उस लड़के को होश आ गया, जब उस लड़के से पूछा गया, कि वह कहाँ से है ? और उसका नाम क्या है ? तब उसने बताया कि, "वह केरला से है, उसका नाम स्टीवन है और उसे अपनी माँ के पास वापस जाना है, अब स्टीवन वापस केरला आकर अपनी माँ को ढूंढ रहा है, स्टीवन अपने घर जाता है, लेकिन घर पर ताला लगा हुआ था, पड़ोसी को पूछा, तो उनको भी अम्मा के बारे में कुछ पता नहीं, उन्होंने सिर्फ़ इतना ही कहा, कि तुम्हारे जाने के बाद से तुम्हारी अम्मा तुझे ढूंढ रही थी, उसे इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, कि तू मर गया है, उसका भरोसा सच साबित हुआ, देख उसका स्टीवन आ भी गया, तेरे जाने के बाद अम्मा कुछ दिन उस चर्च मैं ही ज्यादा वक्त गुजारती थी, उसके बाद अचानक से वह कहाँ चली गई, कुछ पता नहीं। यह सुनते ही स्टीवन अपनी अम्मा को ढूंढते हुए चर्च के Father के पास जाता है, वहाँ उसे पता चलाता है, कि " उसकी माँ ने अपना घर चर्च को दे दिया और अपने स्टीवन को पागलों की तरह ढूंढ रही होगी। "
यह सुनते ही स्टीवन की आंखों में आंसू आ गए, स्टीवन को वह दिन याद आ गया, जब उसकी माँ ने उसे दोस्तों के साथ बीच पर जाने को मना किया था, कि शायद उस दिन मैंने अपनी अम्मा की बात मान ली होती तो, आज उसकी अम्मा उसके साथ होती और उसके दोस्त भी शायद ज़िंदा होते, मगर होनी को कौन टाल सकता है ?
अब स्टीवन की ज़िंदगी का एक ही मक़सद था, कुछ भी कर के अपनी मेरी अम्मा को ढूंढना। स्टीवन ने अपनी अम्मा को ढूंढने के लिए दिन रात एक कर दिए, हर गली, हर चौराहे पर वह गया, आते जाते सब लोगों को अपनी अम्मा की तसबीर दिखाकर पूछता रहता, कि " आपने मेरी अम्मा को कहीं पर देखा है ?" मगर हर रोज़ वह निराश हो जाता और फिर रात को थक हार कर घर वापस चला आता, चर्च के father ने स्टीवन की परेशानी समझते हुए उसे अपना घर वापस दे दिया और यह दिलासा दिया, कि उसकी अम्मा एक न एक दीन उसे ज़रूर मील जाएगी।
उस तरफ किशोर मेरी अम्मा को अपने साथ अपने घर लेकर गया और मेरी अम्मा का अपनी माँ की तरह अच्छे से ख़्याल रखने लगा, वह अपने घर में अकेला ही था, इसलिए अब किशोर मेरी अम्मा को ही अपनी माँ समझने लगा। एक दिन किशोर को अपनी पड़ोस में रहते दोस्त की शादी में जाना था, मगर वह अकेला जाना नही चाहता था, इसलिए उसने मेरी अम्मा को अपने साथ शादी में आने के लिए कहा, लेकिन पहले तो मेरी अम्मा ने बहुत मना किया, कि " उसे कहीं भी जाने का मन नहीं है, वैसे तुम बच्चों के बीच में मैं बुढ़िया क्या करूंगी, तू आराम से अपने दोस्त की शादी में जा और जल्दी लौट आना। " मगर किशोर ने अम्मा की एक न सुनी, किशोर जिद्द कर के अम्मा को अपने साथ शादी में लेकर ही गया।
और उस तरफ स्टीवन के जो नए दोस्त थे, उनको भी कहीं शादी में जाना था, उन्होंने भी स्टीवन की एक बात न सुनी और जिद्द कर के स्टीवन को अपने साथ शादी में लेकर ही गए।
इतफ़ाक से यह जगह वही थी, जहाँ पर किशोर भी अपनी मेरी अम्मा को साथ लेकर आया था, मगर दोनों को पता नहीं था, कि आज वह दोनों मिलने वाले है। स्टीवन की आंखें अब भी उस भीड़ में भी अपनी मेरी अम्मा को ही ढूंढ रही थी और उस तरफ मेरी अम्मा भी हर जवान लड़के में अपने खोए हुए बेटे को ढूंढ रही थी।
अम्मा एक कोने में कुर्सी पर बैठकर हर आते जाते को गौर से देखती रहती, शादी ख़तम होते ही किशोर अम्मा के पास आता है और उसे खाने के लिए चलने को कहता है, मेरी अम्मा ने खाने को मना करते हुए कहने लगी, कि उसे भूख नहीं है और उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही, तू जल्दी से खाना खा ले, फिर हम वापस घर चलते है, ना जाने क्यों मुझे बड़ी थकान सी मेहसूस हो रही है, " कहते कहते ही मेरी अम्मा की सास अचानक से फूलने लगी और वहीं कुर्सी पर बैठे बैठे ही अम्मा की आंखें बंद होने लगी, वह कुर्सी पर से गिरने ही वाली थी, कि किशोर ने उसे सँभाल लिया, अपने दोस्तों को मदद के लिए बुलाया, थोड़ी देर में वहां सब लोग इकट्ठा हो गए, भीड़ जमा होने लगी, यह जानने के लिए की क्या हुआ होगा ? स्टीवन भी इतफाक़ से उस वक्त वहीं पर था, इसलिए लोगों की भीड़ देखकर वह भी उस भीड़ की ओर जाता है, लोगों के बताने से उसको पता चलता है, कि " एक किशोर नाम के लड़के की माँ ज़रा बेहोश हो गई, डॉक्टर भी वहीं पर थे, तो वह उस बुढ़िया को देख रहे थे, " यह सुनकर स्टीवन को अपनी अम्मा फिर से याद आने लगी, और मन ही मन उसने pray किया, कि " वह जो भी औरत हो उसे जल्दी से ठीक कर दो। एक बेटा और माँ के अलग होने का दर्द क्या होता है, यह मैं अच्छे से जानता हूँ। "
डॉक्टर ने सब से कहा, कि " अम्मा को सास लेने में दिक्कत हो रही है, यहाँ से भिड़ कम करो और हवा आने दो, अम्मा का सिर्फ ब्लड प्रेशर हाई हो गया हैं और कुछ नहीं, थोड़ी देर में वह ठीक हो जाएगी। " डॉक्टर की बात सुनकर सारे जमा हुए लोग धीरे धीरे वहाँ से हटने लगा, स्टीवन भी वहाँ से जा ही रहा था, कि उसको एक बार ख्याल आया, कि वह औरत कौन हैं, एक बार देख तो लू, सोचते हुए स्टीवन उस औरत की ओर जाता हैं, अब भी किशोर अम्मा का हाथ पकड़े उसे सहला रहा था, वह अम्मा के चेहरे की और झुका हुआ था, इसलिए स्टीवन अम्मा का चेहरा ठीक से देख नहीं पाया और बिना चेहरा देखे ही स्टीवन घूम कर वापस जाने लगा, तभी अम्मा बेहोशी की हालत में स्टीवन स्टीवन कर के चिल्लाने लगी, आवाज सुनते ही स्टीवन वहीं पर रुक गया और पीछे मुड़ कर उस औरत की तरफ़ आगे बढ़ता हैं, जो अब भी स्टीवन कर के चिल्ला रही थी, स्टीवन ने अब बिना सोचे वहाँ पर बैठे किशोर को धीरे से धक्का दे दिया और सामने अपनी माँ को देखकर स्टीवन की आंखें भर आई, अम्मा और स्टीवन की खुशी का ठिकाना ही ना रहा, माँ और बेटे को साथ में देखकर किशोर की आंखें भी भर आई, किशोर ने मन ही मन भगवान से माँ और बेटे को मिलाने के लिए धन्यवाद किया।
अम्मा ने इशारे से किशोर को अपने पास बुलाकर कहा, कि " अच्छा हुआ, की आज तू मुझे जिद्द कर के यहाँ लेकर आया, वरना मेरा बेटा स्टीवन मुझे आज भी नही मिलता और आज से मेरे एक नहीं दो बेटे हैं, किशोर और स्टीवन। अब मुझे अपने बेटों से कोई अलग नहीं कर सकता।"
और अम्मा ने स्टीवन को किशोर के बारे में सब कुछ बतलाया, कि जब तुम नही थे, तब किशोर ने मेरा बहुत ख्याल रखा था और उसी की वजह से आज मैं तुम से फिर से मिल पाई हूँ। किशोर भी अम्मा और स्टीवन के गले लग गया। स्टीवन ने कहा, कि " हा माँ, मेरे दोस्त भी अगर मुझे जिद्द कर के यहाँ नहीं लेकर आए होते, तो आज भी मैं आप से नहीं मिल पाता, आज से हम सब साथ में रहेंगे और मैं अब तुझे छोड़कर कहीं नही जाऊंगा, तेरा हर कहा मानुगा।"
फिर मेरी अम्मा, स्टीवन और किशोर तीनों साथ में खुशी खुशी रहने लगे।
Bela...
Comments
Post a Comment