उम्मीद
रीता आज हस्ते-हस्ते रोने लगी, बात करते-करते उसका गला भर आया। मैं समझ गई, कि वह आज फ़िर से टूट के बिखर गई है, मगर हर बार की तरह वह बताएगी कुछ भी नहीं। इसलिए मैंने आज उससे कह दिया, कि " देखो रीता तुम जब बहुत हस्ती हो ना, तब मुझे पता चल जाता है, कि तुम अंदर से बहुत परेशान और दुःखी हो। मुझे पता है, कि तुम यह किसी को बताना नही चाहती, लेकिन तुम्हें मुझे कुछ भी बताने कि जरूरत ही नही है, तुम्हारी ये झूठी हँसी और तुम्हारी आँखें मुझे तुम्हारे दिल का हाल सुना जाती है और वैसे भी मैं तुम्हारे घर सिर्फ़ एक दिन के लिए ही आई हुँ और मुझे तुम्हारे पति रवि और तुम्हारी सासुमा का रवैया मुझे अच्छे से पता चल गया है, चाहे तुम जितना भी छिपा लो, मगर आँखें सच्चाई बयांँ कर ही देती है क्योंकि मैं तुम्हें अच्छे से जानती हूंँ, तुमने कभी अपने बारे में सोचा ही नहीं, हमेशां अपने अपनों के बारे में ही सोचती रहती हो।"
ऐसा सुनते ही रीता मेरे गले लगकर रोने लगी और कहने लगी, " क्या करू, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा, रवि सब के सामने बात-बात पर मेरा अपमान किया करते है, सुबह से लेकर शाम तक घर का सारा काम करने के बावजूद भी घर आकर यही कहते है, कि "पूरा दिन तुम घर में करती क्या हो, कुछ काम तो होता नहीं, बस बैठी रहती हो और फोन पर दोस्तों के साथ गप्पे लगाया करती हो। " उनको कहीं भी जाना हो तो मुझे उनके साथ जाना ही पड़ता है, मगर मैं अपनी सहेली के साथ कहीं नहीं जा सकती, नाहीं कोई किटी पार्टी, नाहीं कोई क्लब में जाना, अगर कभी मैं दोस्तोंए के साथ बाहर चली भी गई, तब मुँह पर कुछ नहीं कहते, लेकिन बाद में मौका मिलते ही ऐसी जली कटी सुनाते है, कि सुनकर लगता है, कि इस से अच्छा तो मैं कहीं नहीं जाती, घर पर ही रहती तो अच्छा होता और तो और रात को तो उनको साथ में सोना चाहिए ही, चाहे मेरी मर्जी हो या ना हो, मेरा बदन दर्द करे या फिर सिर दर्द करे, उनको उस से क्या ? उनके बगैर तो उनको चलता ही नही और सासुमा दिन भर झूले पर बैठकर ऑर्डर करती रहती है, खुद तो कुछ काम होता नहीं और मुझ में गलतियाँ निकालती रहती है, जब देखो तब सुनाती रहती है, कि " तुम्हारी माँ ने तुम्हें कुछ भी सिखाया नहीं ।" अब तुम ही बतलाओ अब इस में मेरी माँं की क्या गलती ? "
मैंने रीता से कहा, कि " अगर तुम से यह सब सहन नहीं होता तो तुम आवाज उठाओ, क्यों इतना दर्द सहती रहती हो ? अपने मायके में माँ को बताया या नहीं ? "
रीता ने कहा, " अरे नहीं, अब इस उम्र में उनको क्या परेशान करना, मेरा तो सब से लाडला मेरा बेटा था। मैं उस से सारी बातें किया करती थी, वह था, तो वह मेरी साइड लेता था, रवि और सासुमा के ताने से वहीं मुझे हर बार बचाता था, मेरे लिए तो वह कभी-कभी अपने पापा से भी लड़ पड़ता था, फ़िर मैं ही उसको चूप रहने को कहती थी, वह था तो जैसे एक हिम्मत बनी रहती थी, मगर उसकी मौत के बाद मैं एकदम से टूट गई हूँ, एक दम अकेली पड़ गई हूँ, सोचती हूँ, कि " उस दिन मैंने मेरे एक लौटे बेटे को कार में जाने ही क्यों दिया, अगर वह नहीं गया होता, तो उसका कार एक्सीडेंट नहीं हुआ होता और वह आज मेरे साथ होता, अब तो मुझे भी बस उसके पास जाने का इंतजार है, रोज मैं उसकी फोटो देखकर उसको यही कहती रहती हूँ, कि जाना ही था, तो तू अकेला क्यों चला गया, मुझे साथ लेकर क्यों नही गया ? लेकिन वह कोई जवाब नहीं देता, बस मुझे तस्वीर में से देखा करता है। "
मैंने रीता से कहा, " तो फ़िर कब तक ऐसा चलता रहेगा, तुम्हें भी खुश रहना का अधिकार है, तुम्हें भी तो अपने मन की करने का अधिकार है, तुम्हें भी तो दोस्तों के साथ बाहर जाने का अधिकार है, इतनी सारी पाबंदियां क्यों ? तुम्हारी जगह मैं होती, तो मैं तो यह सब सह नहीं पाती और तो और रात को ऐसे पति को तो मैं अपने पास भी ना आने दूँ, तुम उनके बारे में इतना सोचती हो, कि " बेटा जाने के बाद उनको भी इस बात का बहुत दुःख है और उसी वजह से वह चिढ़ से गए है, लेकिन तुमने भी तो अपना बेटा खोया है, उसका कुछ नही ? उसके जाने के बाद दूसरे बच्चे के लिए भी तुम दोनों ने बहुत कोशिश की, IVF भी करवाया, फ़िर भी उम्र के हिसाब से नहीं हुआ, तो उसमें तुम्हारी क्या गलती ? और इन सब चक्कर में तुम्हारे शरीर और मन पर कितना असर हुआ, उसका भी उनको अंदाजा तक नहीं। " HEADS OF YOU " ऐसी परिस्थिति में सिर्फ़ तुम ही उसे बर्दाश्त कर सकती हो, ओर कोई नहीं। मैं बहुत सालों बाद तुमसे मिलने आई, तुम्हारे साथ फोन पर कभी कबार बात होती रहती थी, तब भी तुमने मुझसे ठीक से बात नहीं की, तभी तुम्हारी आवाज से मुझे पता चल गया था, कि जरूर कुछ बड़ी बात होगी, इसीलिए बहाना बनाकर सारे काम छोड़कर मैं यहांँ तुमसे मिलने आई हूंँ, मगर आज यहांँ आकर सब कुछ जानने और देखने के बाद मैंने यह सोच लिया है, कि आज से तुम यहांँ नही रहोगी, मेरे साथ चलोगी, मेरे घर नहीं तो मेरे पड़ोस में एक फ्लैट खाली है, वहांँ रहोगी, खुद की मर्जी से जीओगी, अपने लिए कुछ करोगी, जो पसंद है वह काम करोगी, आज तक जो भी नही किया, वह सब तुम अब करोगी, अपने पैरों पर खड़ी रहोगी, रवि और अपने घर वालों को अकेला छोड़ दो, उनको अपनी मर्जी से जीने दो, तभी उनको आटे डाल का भाव पता चलेगा, तुम्हें किसी को कोई सफाई देने की जरूरत नहीं, तुम मेरे साथ चल रही हो, मैं सारा इंतजाम कर लूँगी, तुम्हें अब यहांँ रहने की कोई ज़रूरत नहीं हैं। "
रीता ने मुझे गले लगाकर कहा, " तुमने मेरे बारे में इतना सोचा, वहीं मेरे लिए बहुत है, अब इस उम्र में घर और पति को छोड़ना भी तो सही नहीं है, मेरी मांँ यह सुनकर जीते जी मर जाएगी और पापा का सिर शर्म के मारे झुक जाएगा, मैं उनको इस उम्र में और तकलीफ देना नहीं चाहती, वैसे भी बेटे के जाने के बाद मांँ को मेरी फिक्र लगी रहती है, रोज फोन कर के मेरा हाल पूछती है, मगर मैं हंसकर बात टाल देती हूं, अब मैंने सब मेरे कान्हा जी पर छोड़ दिया है, वह जैसा मुझ को रखेंगे, वैसे ही मैं रहुंँगी, दिन भर उनका ही नाम लिया करती हूंँ, जो भी कहना हो, अपने कान्हा जी को ही कहती हूंँ, इसलिए तुम मेरी फिक्र मत करो, मैं अपने आपको संँभाल लूंगी। "
रीता की बात सुनकर मेरी भी आँखें भर आई, घर जाते-जाते सारे रास्ते में मैं आज यही सोचती रही, कि आख़िर औरत अपने बारे में सोचना कब शुरू करेगी ? मेरा घर, मेरा बेटा, मेरा पति, मेरे सास ससुर, मेरी मां, मेरे पापा, मगर इन सब में वह खुद है कहांँ ? कहीं भी नहीं, औरत खो गई है अंधेरों में कहीं, या तो उसने खुद अपने आप को बंद कर दिया है इन्हीं अंधेरों में जहां से रौशनी आने की उम्मीद लगाए बैठी हुई है, कि काश किसी रोज़ तो घरवालों को उनकी कद्र होगी और रौशनी की किरण खिड़की में से सीधे उसके कमरे में ही आ जाएगी, लेकिन उनकी यह उम्मीद शायद ही किसी की सच होती है और उन्हींं अंधेरों में औरत एक दिन कहीं खो जाती है।
स्वरचित
सत्य घटना पर आधारित
उम्मीद
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