कश्मकश
तो दोस्तों, कभी कभी एक अजीब सी उलझन या कहूँ तो एक कश्मश सी लगी रहती है इस दिल में। माना कि अभी तक तो मैं खूबसूरत हूँ, लेकिन सारी उम्र ये जवानी ऐसी तो नहीं रहेगी ना, दिन जैसे-जैसे गुजरते जा रहे है वैसे आँखों पर नंबर वाला चश्मा आ ही गया है, फ़िर कभी आईने में अपने आप को देखती हूँ, तो मेरे बाल भी अब कुछ-कुछ सफेद होने लगे है, चेहरे पर झुडियांँ आने लगी है, चाहे कितना भी फेशियल करवा लो, कितने भी क्रीम लगाओ, लेकिन उम्र तो उम्र का काम करता ही है। देखो ना, अब इन पैरों में पहले जैसी ताकत भी नही रही कि तुम्हारे साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल सकूंँ, कभी-कभी तुम जब मेरा हाथ छोड़ के आगे निकल जाते हो और मैं उस वक्त तुम्हारे पीछे रह जाती हूंँ, तब हर पल यही खयाल आता है, कि कहीं किसी रोज़ जिंदगी की राह पर चलते-चलते ऐसे ही तुम मेरा हाथ छोड़ तो नहीं दोगे ना? हर पल, हर लम्हा इसी कश्मकश के साथ गुजरता है, फिर अपने आप ही इस दिल को तसल्ली दे देती हूंँ , कि नहीं, तुम मेरे साथ थे और साथ रहोगे और इसीलिए आज भी मैं कोशिश कर रही हूंँ, तुम्हारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की।
स्वरचित
कश्मकश
Bela...
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