JLI-KATI SUNANA

              #जली-कटी सुनाना          

         राजीव और रज्जो, जिसकी अभी-अभी ही शादी हुई थी, राजीव की पत्नी का नाम रज्जो था। रज्जो मिडल क्लास परिवार की लड़की थी और राजीव भी। लेकिन रज्जो के नखरे और तेवर ऐसे थे, जैसे की किसी बड़े घर की बेटी हो और बड़े घर की बहु। राजीव बैंक का मैनेजर था, इसलिए उस पे काम का बोझ ज़्यादा ही रहता था, रज्जो ने अपने नखरें और तेवर में आकर ज़्यादा पढाई नहीं की, लेकिन दिखने में वह बहुत ही सुंदर थी, एक ही बार में किसी का भी दिल उस पे आ जाए। राजीव के buzy सिडुअल की बजह से वह उसे ज़्यादा वक़्त नहीं दे पाता था, इसलिए रज्जो उसे बार-बार जली कटी सुना दिया करती, कि मेरे साथ अच्छा नहीं लगता था, तो शादी ही क्यों की ? दोनों ने वैसे तो लव merriage किया था, लेकिन शादी के बाद पता चला, कि  दोनों के ज़िंदगी जीने का तरीका, रेहन-सेहन एकदूसरे से बिलकुल अलग है, लेकिन अब क्या हो सकता है, जहाँ तक हो सके, साथ रहना होगा, एक दूसरे को बर्दास्त करना होगा, क्योंकि दोनों ने शादी घर से भाग के की थी. इसलिए वापस घर भी नहीं जा सकते। राजीव भी गुस्से में आकर रज्जो को जली कटी सुना दिया करता। हर बार बात बढ़ के एक दूसरे के माँ-बाप पे आ जाती, तब झगड़ा और बढ़ जाता, हमें सब सुनाई देता, तब मैं और मेरे पति हम उन दोनों को अलग करते, मैं रज्जो को समजाकर अपने कमरें में ले आती और उसे समझाने की कोशिश करती, मगर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता, उसे हर बात में गलती अपनी नहीं, लेकिन राजीव की ही दिखती, फिर रो पड़ती। मेरे पति राजीव को समझा देते। तो एक-दो दिन थोड़ी शांति रहती, उसके बाद फिर से वही एक दूसरे को  जली कटी सुनाना शुरू हो जाता। 

     अब तो हम भी उन दोनों से परेशान हो गए थे। हम उनकी मदद इसलिए करना चाहते थे, क्योंकि वह दोनों हमारे ही घर में भाड़े से ऊपर के माले पे रहते थे। मेरे पति राइटर है, इसलिए उन्हें लिखते और किताब पढ़ते वक़्त बहुत डिस्टर्ब होता था, उनको लिखते वक़्त शांति का माहौल चाहिए और राजीव और रज्जो का भोला सा चेहरा देख हम ने दोनों के साथ ५ साल का एग्रीमेंट करा दिया था। अभी तो उनको आए ६ महीने ही हुए थे।  राजीव वैसे वक़्त पे पैसा दे देता था, इसलिए हम चला लेते थे। 

     फिर मैंने और मेरे पति ने दोनों को ठीक करने की तरकीब सोची। हम दोनों ने भी उनकी तरह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाके लड़ाई करना शुरू कर दिया, कुछ दिन ऐसा चलता रहा, फिर एक दिन राजीव और रज्जो हमारे घर आए, हम को समझाने, कि ऐसे झगड़ा ना किया करे। तब हम ने उनको बताया, कि अगर आपको हमारा यूँ झगड़ा करना पसंद नहीं, आप से बर्दास्त नहीं होता, आप को परेशानी होती है, तो हमें भी आपका यूँ झगड़ा करना पसंद नहीं, एक दूसरे से मिल-जुलकर रहा करो, ज़िंदगी ऐसे नहीं जी जाती। बात-बात पर बच्चों की तरह झगड़ना और अपने ही परिवार वालों के बारे में खरी-खोटी सुनाना, ये क्या सही है ? और जब घर से भाग के शादी की तब ये सब सोचना चाहिए था ना ? अब साथ रहना ही है, तो प्लीज एक दूसरे को जली-कटी सुनाना बंद करो और शांति से रहो और हमें भी रहने दो, वार्ना हम आप को घर से निकाल देंगे। 

        तब जाके राजीव और रज्जो की समझ में थोड़ी बात आई और वैसे भी जिस घर में वह दोनों भाड़े पर रहते थे, उस से अच्छा और सस्ता घर अभी तुरंत मिल पाना मुश्किल भी था। इसलिए अब दोनों ने एक दूसरे को जली-कटी सुनाना और झगड़ा करना बंद कर दिया, हां.. कभी कबार हो जाता है, लेकिन झगड़ा अब पहले की तरह लम्बा नहीं चलता और जल्दी से ख़तम हो जाता है और बड़ी ऊँची आवाज़ में झगड़ा नहीं करते। 

          तो दोस्तों, कई बार बात समझाकर नहीं बल्कि कर के दिखाने पर बात समझ में आती है, कि आप के ऐसे बर्ताव से दूसरों को कितनी तकलीफ होती है और ऐसी आदत भी अच्छी नहीं, हर इंसान एक सा नहीं होता, इसलिए कुछ लोग अपनी आदत से ही मजबूर होते है, उनको ऐसी ज़िंदगी जीने की आदत हो जाती है और ऐसे ही शायद ज़िंदगी जीने का मज़ा भी आता है। 

 स्व-रचित 

#जली-कटी सुनाना 

Bela...  

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