जैसे को तैसा
मर्यादा एक बहुत बड़ा शब्द है, जो बचपन से हर लड़की को सिखाया जाता है, धीरे से बोलो, धीरे से हँसो, बड़ों का मान-सम्मान करो, घर का सारा काम सीखो और भी बहुत कुछ लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है और वह लड़की बिना किसी सवाल किए इन सब बातों का, इन सब रीती-रिवाज़ो को अपने जीवन का हिस्सा मान लेती है और वह मर्यादा के बंधन में बचपन से ही बंध जाती है। बचपन से ही हर लड़की अपना जीवन इन्हीं मर्यादा के मुताबिक जीना सिख लेती है। फिर उस लड़की की जब शादी हो जाती है, तब वह लड़की शादी के बाद भी उसके माँ-बाप ने जो सिखाया उसी के मुताबिक अपने ससुराल में सब का मन जित लेती है। पराए घर और लोगों को कुछ ही दिनों में अपना बना लेती है। अपना पूरा जीवन अपने पति और परिवार की सेवा में समर्पित कर देती है, अब वह लड़की, लड़की न रह कर एक औरत बन जाती है। मगर इतना कुछ करने के बाद भी उसे मिलता क्या है ? सिर्फ और सिर्फ धोखा ?
मेरी कहानी की शीला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, शादी के बाद उसने अपना जीवन, अपने पति, सास-ससुर और बच्चों के नाम कर दिया था। किसी भी मर्यादा का वह उल्लंघन नहीं करती, अपना पत्नी धर्म वह अच्छे से निभा रही थी और उसे अपने पति पे भी पूरा भरोसा था, लेकिन उसका पति किसी और औरत के चक्कर में था, शीला को जब पता चला तो, उसका दिल टूट गया, तब शीलाने अपने आप से पूछा, " क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में ? या मुझ में ? "
मगर शीला को अपने सवाल का कोई जवाब नहीं मिला। मन ही मन बस वह अपने आप को कोसती रही, अपने आप को ही इस बात के लिए ज़िम्मेदार ठहराने लगी, कि उसकी ही गलती होगी, जो उसका पति उसे छोड़ के किसी और औरत से प्यार करने लगा, उसी के प्यार में कोई कमी रह गई होगी, या तो मैं ही उन्हें ठीक से समझ नहीं पाई, या मैं ही उन्हें अपना वक़्त नहीं दे पाई, जब भी वह मुझ से कुछ कहते मैं कोई ना कोई बहाना बनाकर उनकी बात टाल दिया करती, मेरा ध्यान अपने पति से ज़्यादा अपने बच्चों और परिवार वालों पर ज़्यादा रहता था, मैंने उनकी कही बातों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया, ऐसा सोचते हुए वह अपने आप को ही इस बात के लिए ज़िम्मेदार ठहराने लगी थी।
शीला जैसे वक़्त के हाथों मजबूर थी, वो अब करे भी तो क्या ? उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, वह मन ही मन बस अपने आप को ही इस बात के लिए दोषी ठहरा रही थी। उसी की लापरवाही और गैरज़िम्मेदारी की बजह से आज उसके पति उस से दूर हो गए थे। शीला को अपने पति के बारे में सब कुछ पता होने के बावजूद भी वह अपने बच्चों और परिवार वालों की खातिर चुप रही। उसने किसी से कुछ भी नहीं कहा।
कुछ दिनों बाद वेकेशन में शीला बच्चों के साथ अपने मायके कुछ दिनों के लिए रहने चली गई थी, तब वहांँ शीला से मिलने उसकी बचपन की सहेली मेघा उस से मिलने आई, दोनों ने पुरे दिन बातें की, बहुत दिनों के बाद आज शीला खुल के हँस पाई, लेकिन उसकी ये झूठी हँसी, उसकी दोस्त मेघा के सामने ज़्यादा देर तक नहीं छुप पाई, मेघा को पता चल गया, कि शीला अब भी मुझ से कुछ छिपा रही है, ज़्यादा पूछने पर शीला ने अपने पति के बारे में मेघा को सब कुछ बता दिया। मेघा ने शीला को पहले तो समझाया, कि इन सब में गलती तुम्हारी ही है, तुम ने ही अपने पति पे ध्यान कम दिया, पूरा दिन काम, काम और काम। अपनी हालत देखो, क्या बना ली है तुमने ? मसाले की दुकान से आई हो ऐसा लगता है, तुम्हें भी थोड़ा घर में बन-ठन के रहना चाहिए। लेकिन जो हुआ सो हो गया, अब आगे की सोचते हैं, सुमित भाई साहेब को भी इतनी अच्छी बीवी को धोखा देने का कोई हक़ नहीं बनता। तुम कुछ बोलती नहीं हो, इसका मतलब ये नहीं, की उनकी मर्ज़ी में जो आए वो करे। अब मैं जैसा बोलूँ वैसा तू करती जा। मैं तुम्हें ऐसे दुखी नहीं देख सकती, सुमित भाई साहब जैसे मर्द को रास्ते पे लाना मुझे अच्छे से आता है, कहते हुए मेघाने अपना प्लान शीला को बताया।
पहले तो शीला मेघा की बात से राज़ी नहीं हुई, फ़िर मेघा ने उसे समझाया, अगर अपने पति को अपना बनाना है, तो मेरी बात मानो, मैं जैसा कहुँ बस तुम वैसे ही करती जाओ। तब, मेघा शीला की बात मान गई। बच्चों के वेकेशन की छुट्टी के बाद शीला वापिस अपने घर जाती है और शीला बिलकुल वैसा ही करती जाती है, जैसा उसकी दोस्त मेघा ने बताया था, शीला अब अपने काम से ज़्यादा सजने-सँवरने में ज़्यादा ध्यान देती थी, बार-बार अपने मोबाइल पर किसी के साथ बातें करती रहती, पूछने पर कहती, मेरी दोस्त ही है, उसी से बातें करती हूँ, बच्चों पर भी ध्यान कम देने लगी, सुमित का टिफ़िन भी वक़्त पर नहीं बनाती, सुबह भी देर से उठती, सुमित के कपड़े प्रेस किए हुए ना मिलते सुमित की कोई भी चीज़ उसे अब नहीं मिलती, पूरा कमरा बिखरा पड़ा रहता और शीला अपने नाखूनों को नेल पालिश लगाया करती, हर वक़्त सोशल मीडिया पर अपने फोटो अपडेट किया करती, कभी अपनी फोटो तो कभी रील्स बनाके सोशल मीडिया पर अपडेट करती रहती, सीधे मुँह बात भी नहीं करती थी, अगर कुछ पूछे या कहे तो हर बात का उलट-पुल्टा ही जवाब दे देती, अब तो हफ्ते में तीन दिन अपने दोस्त के साथ बाहर जाने लगी, बच्चे और घरवाले भी शीला से अब परेशान हो गए थे, सुमित भी अब तो उसकी ऐसी आदतों से तंग आ गया था। एक बार शीला ने अपनी दोस्त के साथ मॉल में शॉपिंग के लिए जा रही हूँ, ऐसा कहा था और सुमित ने शीला को किसी लड़के से बातें करते, खिलखिला कर हँसते हुए देख लिया, आज तो सुमीत का गुस्सा सातवें आसमान पे था, उस वक़्त सुमित अपने ऑफिस के काम से क्लायंट के साथ मीटिंग कर रहा था, तो उसने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर जाते ही सुमित ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, " शीला... शीला... कहाँ गई थी, तुम आज ? आजकल तुम कितनी बदचलन हो गई हो ? तुम में किसी की भी शर्म नहीं है, नाहीं किसी का डर, शॉपिंग के बहाने ना जाने किस-किस के साथ घूमती रहती हो ? मेरा तो छोड़ो बच्चों का भी ज़रा सा ख्याल नहीं है तुम्हें, क्या असर पड़ेगा, बच्चों पे, ये कभी सोचा भी है तुमने ? "
शीला ने आराम से जवाब दिया," अपनी दोस्त के साथ शॉपिंग करने, उस में इतना चिल्लाने की क्या बात है ? "
सुमीत ने अपने मोबाइल में किसी लड़के के साथ उसकी फोटो दिखाते हुए कहा, " अच्छा....तो ये कौन है ? तुम या तुम्हारा भूत ? ये लड़का कौन है और तुम आज कल इसके साथ कर क्या रही हो ? हम से झूठ क्यों बोला, की अपनी सहेली के साथ जा रही हो ? कहाँ गए तुम्हारे सारे संस्कार और मर्यादा ? कहाँ है मेरी शीला ? जो किसी के आगे देखने में भी शर्मा जाती थी, वह आज मेरे सामने जवाब देने लगी है, तुम पहले ऐसी तो नहीं थी, मैंने जिस शीला से शादी की थी, वह तुम तो नहीं हो। मेरी समझ में ये नहीं आ रहा, कि आखिर तुम इतनी बदल क्यों गई हो ? "
तब जाके शीला ने कहा, कि तुम भी तो ऐसे नहीं थे, नैना के साथ तुम भी तो मॉल में घूमते रहते थे, तब मैंने तो कुछ नहीं कहा... घर पर कहते थे, की मीटिंग में जा रहा हूँ, और रात को खाने को कहो, तो भूख नहीं है, क्योंकि नैना के साथ आपका डिनर हो जाता था और मैं यहाँ आपका मनपसंद खाना बनाकर भूखे पेट आपका इंतज़ार किया करती, एक बार भी आपने सच नहीं कहा, कि दोस्त के साथ खाना खाकर आया हूँ, क्यों ? दूसरे दिन आपके शर्ट की जेब से फाइव स्टार होटल्स के बिल मिल जाते थे, तो कभी मोबाइल पे आधी रात को छुप-छुप के मैसेज करना, तो कभी बालकनी में जाके बातें करना, तो कभी आपके शर्ट पर लिपस्टिक के निशान, तो कभी कपड़े भी बदल जाया करते थे, सुबह नीला शर्ट पहन कर ऑफिस के लिए निकलते, तो शाम को लाल शर्ट पहन कर घर आते, पूछने पर कहते, कि नया लिया है, क्या मेरी समझ में कुछ नहीं आता ? क्योंकि वह शर्ट जिस कंपनी का होता है, ऐसे महँगे कपड़े आप कभी नहीं खरीदते, क्योंकि महँगे कपड़े खरीदने की आपकी हैसियत ही नहीं है। फिर भी में चूप रहती, मुझे तब लगता की, गलती मेरी ही होगी, कई दिनों तक मैं अपने आप को कोसती रही। अकेले में रोती रही, मगर अब बस, अब नहीं, अगर मेरे होते हुए आप किसी और से प्रेम कर सकते है, तो मैं क्यों नहीं ? मैं अपने आप को कमरे में बंद क्यों करू ? क्या मेरा मन नहीं है ?
अगर आप मुझे किसी और के साथ देख नहीं सकते, तो भला सोचिए, मैं कैसे आपको किसी और के साथ देख सकती ? मुझे भी ये सब नहीं करना था, मगर क्या करती मजबूर थी, मैं चाहती तो उसी वक़्त आपको छोड़ देती। जब मैंने आपको नैना के गले मिलते देखा, मगर तब भी मैं अपने बच्चों की वजह से चुप रह गई, मगर आखिर कब तक ? अब मेरा दम घुटने लगा है।
आखिर कब तक आप हमारा इस्माल करते रहेंगे, घर में आप को एक संस्कारी बहु चाहिए, जो मर्यादा में रहे और जो घर का सारा काम करे और दिल बहलाने के लिए बाहर एक और लड़की... मगर हम, हमारा क्या ? हम औरत कहाँ जाए, हमारे पैर परिवार, बच्चे, समाज और संस्कार के नाम पर बांध दिए जाते हैं, औरत घर में ही अच्छी, बाहर जाए तो बेरहम और बदचलन... ये कैसा न्याय है आप सब का ? मेरी तो समझ में नहीं आ रहा, आज हम से दिल भर गया तो कोई और सही और अगर उस से भी दिल भर गया तो कोई और सही... कहते हुए शीला अपने आप ही ताली बजाने लगी और कुछ आँसू शीला की पलकों में ही छिप गए।
सुमीत तो आज शीला का एक और नया रूप देखता ही रह गया, शीला की बातें सुनकर सुमीत को अपनी गलती का एहसास होने लगा, सुमीत ने शीला से माफ़ी माँगी और आगे से ऐसा कभी नहीं करेगा, ऐसा सुमीत ने शीला से वादा करते हुए कहा, कि " बस तुम पहले की तरह मेरी वाली शीला बन जाओ, तुम जो थी, जैसी भी थी, अच्छी थी। "
अब की बार मुझे छोड़ा या मेरे अलावा किसी और लड़की के सामने देखा भी तो, मुझ से बुरा कोई नहीं होगा, कहते हुए शीला सुमीत को गले लगा लेती है।
तो दोस्तों, आख़िर शीला ने अपने पति का साथ ना छोड़कर वह अपने हक़ के लिए लड़ी, भटके हुए अपने पति को उसकी गलती का एहसास कराया, क्या शीला ने सही किया ? या उसे अपने पति को छोड़ देना चाहिए था ? आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा।
स्व-रचित
#जैसे को तैसा
Bela...
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