YE KAISA DARD DIYA PIYA TUNE MOHE

          #दर्द      
                         ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे ?

      मनोज ज़ोर से आवाज़ लगाता है, " माया, चलो भी अब, तुम्हें तैयार होने में कितनी देर लगती है ? शादी में मेरे सारे दोस्त पहुँच गए है और उन सब का फ़ोन आ रहा है, कि " तुम कब आओगें ? मेरे दोस्त की बारात भी वहांँ से निकल गई है और हम अब तक घर में ही है। "
      माया ने ऊपर के कमरें से आवाज़ लगाकर कहा, कि " हांँ, बस ५ मिनिट ओर। मुन्नी को दूध पीला दिया और दवाई भी पीला दी है, आज उसे थोड़ा बुखार लग रहा है और छोटे को होमवर्क भी करा दिया है, उन की स्कूल यूनिफार्म भी मैंने प्रेस कर दी है, मुन्नी अभी बस अब सो ही जाएगी, उसे अच्छे से सुलाकर ही हम जाएंगे, वार्ना मुझे अपने पास ना पाकर वह बहुत रोएगी। उसके बाद हम निकलते है। आप को तो पता ही है, कि मेरे बिना उसे नींद नहीं आती। मैं बस मुन्नी को सुलाकर अभी आई, तब तक तुम नीचे  t.v देखो। "
         माया की बात सुनकर मनोज बड़बड़ाता है, " इसका तो हर वक़्त यही बहाना रहता है, कहीं भी जाना हो तो मुन्नी को ये और मुन्ना का ये। मेरे बारे में तो कभी सोचती ही नहीं। वहांँ शादी में मेरे सब दोस्त मेरा इंतज़ार कर रहे है, और शादी में सब मज़ा कर रहे होंगे। चलो आज माया को अपने मुन्ना और मुन्नी को सँभालने दो, मैं अकेला ही शादी में चला जाता हूँ, वार्ना माया के इंतज़ार में वहाँ मेरा दोस्त घोड़ी पे चढ़कर शादी भी कर लेगा और मैं यहीं का यहीं रह जाऊंँगा। सब माया के बारे में पूछेंगे, तो सब को बता दूंँगा, कि मुन्नी और माया की तबियत ठीक नहीं है, इसलिए वे दोनों शादी में नहीं आ पाए, वैसे भी वहांँ माया किसी से कुछ खास बात तो करती नहीं, बस चुप चाप खड़े रहकर सब को देखती रहती है। " ऐसा सोचते हुए मनोज अकेले ही शादी में चला जाता है। 
        इस तरफ कुछ देर बाद माया अपनी मुन्नी को सुलाकर शादी में जाने के लिए अच्छे से तैयार होकर नीचे आती है, नीचे ड्राइंग रूम में t.v तो चल रहा था, मगर मनोज वहांँ नहीं थे, माया ने मनोज को आवाज़ लगाई, इधर-उधर, रसोई में, वाश-रूम में हर जगह देखा, मगर मनोज कहीं नहीं दिखे, फ़िर माया ने मनोज को कॉल किया, ये जानने के लिए, कि वो कहाँ है ? माया के तीन-चार कॉल का मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया। जब मनोज ने फ़ोन नहीं उठाया, तो माया मनोज के लिए परेशांन होने लगी। माया मन ही मन सोचने लगी, कि " क्या बात होगी, की मनोज यूँ अचानक से कहीं बिना बताए चले गए ? चाहे मनोज जैसे भी हो, उसने आज तक ऐसा तो कभी नहीं किया, मनोज आवाज़ लगाकर मुझे कह कर ही जाते, मगर आज ऐसे कैसे ? उन्हें कुछ हुआ तो नहीं ? मनोज ठीक तो होंगे ना ? " माया मनोज के बारे में सोचकर ऐसे ही जटपटाने लगी। 
        बस कुछ ही देर मनोज के ना दिखने से और उनका फ़ोन ना लगने से माया के मन में अजीब-अजीब ख्याल आने लगे। उस तरफ मनोज अकेले ही अपने दोस्त की शादी में चला गया और उसने दोस्तों से ये कहाँ की माया और मुन्नी दोनों की तबियत आज कुछ ठीक नहीं, इसलिए माया शादी में ना आ पाई और शादी में दोस्तों के साथ मस्ती करने लगा और अच्छे से शादी वाला मज़ेदार खाना भी खाया। 
        इस तरफ़ माया मनोज को लगातार फ़ोन लगा रही थी, तब मनोज ने माया को मैसेज किया, कि " मैं यहाँ अपने दोस्त की शादी में आ गया हूँ, अब बार-बार फ़ोन कर के मुझे परेशान मत करो, तुमने तैयार होने में बहुत देर कर दी, अब तुम मुन्नी के साथ ही सो जाओ, मैं रात को देर से आऊँगा। "
     मनोज का मैसेज पढ़ते ही माया की जान में जान आई, कि चलो मनोज ठीक तो है ! लेकिन दूसरे ही पल माया के दिल में ये ख्याल आया, कि " ऐसी भी क्या जल्दी जाने की, मैं अपने बच्चों की बजह से ही तो लेट हुई थी, क्या मनोज मेरा इतना भी इंतज़ार ना कर पाए ? क्या मुन्ना और मुन्नी सिर्फ और सिर्फ मेरे बच्चे है ? बच्चों की ज़िम्मेदारी सिर्फ मेरी ही ज़िम्मेदारी है ? क्या बच्चों की ओर उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं ? शादी से पहले तो कितनी बातें बनाते थे ! तू जिस गली ना हो, उस गली से हम गुज़रेंगे भी नहीं ? और भी ना जाने क्या क्या ? अब क्या हुआ ? तेरे सारे वादें जूठे। "
      सोचते हुए माया ऊपर अपने कमरें में जाकर अपने आप को आईने में देर तक, बस एक तक तकती ही रह गई। तभी माया के मोबाइल में फिर से मैसेज आया, उसने नोटिफिकेशन में देखा, तो मनोज ने अपने दोस्त के साथ की फोटो इंस्टाग्राम पे पोस्ट की थी, जिस में वह अपने दोस्तों के साथ बहुत ही खुश नज़र आ रहा था और इस तरफ माया का दिल दर्द से रो रहा था, क्योंकि ये आज की बात नहीं, मनोज को अब दर्द देने की आदत सी हो गई थी और माया की दर्द सहने की हिम्मत दिन-ब-दिन टूटती जा रही थी। आज माया की आँखों में अब नींद कहाँ ? माया पूरी रात अपने दोनों बच्चों को देखते हुए, मनोज का इंतज़ार करती रही, कि " आज तो मैं मनोज से पूछ के ही रहूंँगी, कि " बच्चों की तरफ उसकी कोई ज़िम्मदेरी है भी या नहीं ? वह मुझे यहाँ यूँ अकेले छोड़ कर कैसे जा सकते है ? " वैसे आज तक माया ने मनोज से नाहीं कोई सवाल किया और नाहीं कभी मनोज के साथ ऊँची आवाज़ में बात की। चाहे मनोज जितना भी गुस्सा हो या चिल्लाए। माया अपने अंदर कई सवालों की पोटली बनाए जा रही थी। इन्हीं सब कसमकस के बीच कब सुबह हो गई, माया को पता ही नहीं चला और 
        सुबह होते-होते माया के मोबाइल में मनोज का फ़िर से एक और मैसेज आया, जिस में लिखा था, कि " माया, मैं तुम से ठक गया हूँ, अब मुझे तुमसे डिवोर्स चाहिए।  "
    ऐसा मैसेज पढ़ते ही, माया के पैरो तले से ज़मीन ही खिसक गई। वह सोचने लगी " इतनी सी देरी के लिए इतनी बड़ी सज़ा ? या मैं इतनी बुरी हूँ ? या मैं सूंदर नहीं हूँ ? या मैंने अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई ? बच्चों से प्यार करना और उनकी देखरेख करना, उनको पढ़ाना-लिखाना, उनकी हर छोटे से छोटी ज़रूरत का ख्याल रखना, क्या ये मेरी गलती है ? या फिर आज तक मैं चुप रही और मैंने मनोज से अपने हक़ के लिए कभी कुछ नहीं माँगा, ना कहा, या ये मेरी गलती है ? डिवोर्स ? मुझ से ? आखिर क्यों ? " 
       डिवोर्स की बात ने माया को सब से बड़ा दर्द पहुंँचाया था। माया अपने बिस्तर से खड़ी होकर आईने के सामने खड़ी रहती है, अब तक माया ने अपने कपडे भी नहीं बदले थे, जो उसने शादी में जाने के लिए पहने हुए थे। माया की आँखो के सामने उसका गुज़रा हुआ पल आने लगता है, कुछ साल पहले 
      जैसे, कि " माया के पापा माया को समझा रहे थे, कि " बेटा, पहले अपनी पढाई पूरी कर दो, बाद में आराम से शादी के बारे में सोचेंगे, तेरे लिए तेरी मनपसंद के लड़कों की मैं लाइन लगा दूंँगा। हाँ, मगर मनोज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। "
    मगर उस वक़्त मायाने अपने पापा की बात को नज़रअंदाज़ किया और मायाने मनोज के साथ भाग के चुपके से शादी कर ली। माया के पापा ने ऐसा सोचा भी नहीं था, कि उसकी बेटी ऐसा करेगी। इस तरफ पहले-पहले तो सब ठीक रहा, मगर बाद में मनोज पे और माया पे ज़िम्मेदारी बढ़ने लगी। माया घर के कामो में और बच्चे सँभालने में व्यस्त रहने लगी और मनोज को फ़िर से अपना दिल बहलाने के लिए लड़की की जरूरत पड़ने लगी, मनोज देर रात तक अपनी गर्ल फ्रेंड से फ़ोन पे बातें करता, माया दरवाज़े के पीछे छुप के सब सुन लिया करती, मगर मनोज से कभी इस बार में सवाल न कर पाई, बात और बढ़ने लगी, अब तो वह रात को घर से चला जाता और सुबह आता, या तो कभी-कभी सुबह जल्दी निकल जाता और रात को देर से आता। मनोज का माया पे जैसे ध्यान ही नहीं, कि " माया घर में क्या कर रही है और कैसी होगी ? " माया बार-बार मनोज को फ़ोन किया करती मगर तब भी मनोज माया के १० कॉल में से एक कॉल का ही जवाब देता और इस बीच अगर कभी बच्चें कोई गलती करे तो भी मनोज माया को ही सुनाता, " आखिर आज तक तूने बच्चों को सिखाया ही क्या है ? पूरा दिन तुम आखिर घर में करती ही क्या हो ? मुफ़त की रोटियांँ ही तो तोड़ती हो और तो और तुम्हारे लाड-प्यार में दोनों बच्चें बिगड़ गए है, देखो, कैसे सब के सामने शैतानी करते रहते है और अब तो मेरे सामने मुँह पे जवाब भी देना सिख गए है, ये सब तुमने ही तो सिखाया है ना, दोनों को ?" माया ग़म में डूबी रह जाती, कि क्या सच में इस में भी मेरी ही गलती है ? मैंने बच्चों को कुछ नहीं सिखाया ? और माया हर बार की तरह चुप रह जाती, उसके पास मनोज के सवाल का उस वक़्त कोई जवाब नहीं होता था। "
            माया की पढाई भी इस प्यार के चक्कर में अधूरी रह गई। माया पहले से ही बहुत शांत स्वाभाव की थी, उसने किसी से झगड़ा करना या किसी से ऊँची आवाज़ में बात करना सीखा ही नहीं था, छोटी-छोटी बात पे मनोज गुस्सा हो जाता, तब भी माया चुप रह जाती। ऐसी और भी कई बातें जो माया के दिल को दर्द पहुँचाती रही। 
           लेकिन आज तो माया का दिल एक दम से टूट ही गया, उसके इतनी कोशिश के बावजूद भी मनोज उस से दूर ही रहता। माया के अंदर  जैसे युद्ध चल रहा था, इतने सालो में उसने मनोज के लिए क्या कुछ नहीं किया ? एक के बाद एक सब याद आने लगा, जो दर्द माया ने इतने साल सहा। 
           मैंने तो सोचा था,
"तेरे साथ चलते-चलते ज़िंदगी की राह आसान हो जाएगी। " मैंने तो तुम से बिना किसी शर्त बेपनाह प्यार किया, मगर " ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे। " अभी तो माया का दर्द कम भी नहीं हुआ था, कि मनोज ने आज तो बदतमीज़ी की सारी हदे पार कर दी। आज तो मनोज अपने साथ एक लड़की को घर लेकर आया और माया और बच्चों के सामने ही उसी के बिस्तर पे बैठ जाता है, माया उसी वक़्त अपने दोनों बच्चों को लेकर अपना सामान लिए घर छोड़कर अपने पापा के घर चली जाती है। 
       माया ने अपने पापा के घर का दरवाज़ा खटखटाया। माया के पापा ने दरवाज़ा खोला, सामने दो बच्चों और सामन के साथ अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर माया के पापा ने अंदाज़ा लगा लिया, कि माया सच में तकलीफ में है, इसलिए उन्होंने माया को घर के अंदर आने दिया।                         माया ने अपने पापा के पैर पकड़ लिए और कहाँ, " पापा, मुझे माफ़ कर दो, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई है, आप सच ही कहते थे, कि मनोज अच्छा लड़का नहीं है, लेकिन मैं उस वक़्त उसके प्यार में अंधी हो गई थी, जो आप के लाख समझाने पर भी मैं नहीं मानी, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिए, पापा। 
     माया के पापा ने अपनी बेटी माया को गले से लगा लिया और कहा, " पहले तो तुम रोना बंद करो, तुम्हें पता है, ना कि मैं तुम्हारी आँखों में आंँसू नहीं देख सकता, इसी बात पे कई बार तुम्हारी माँ से भी झगड़ा हो जाता था। और रही माफ़ करने की बात, तो माफ़ तो मैंने तुम्हें कब का कर दिया था, मगर तुम उसके बाद कभी आई ही नहीं और नाही हमें मिलने की तुमने कभी कोशिश की। तो हमने सोचा, तुम मनोज के साथ खुश होगी। मगर इतने साल बाद आज अचानक क्या हुआ ? "
        माया ने कहा, " क्या कुछ नहीं हुआ ? आप को मैं अपनी तकलीफ नहीं बताना चाहती थी और कहती भी तो क्या मुँह लेकर, मैंने आपकी मर्ज़ी के खिलाफ जो शादी की थी।  तो मैंने सोचा, कि जो भी करना है, अब बस मुझे ही करना है, इसलिए मैंने मनोज को समझाने और सुधारने की अपनी और से बहुत कोशिश की, मग़र अब बस, अब पानी सर से ऊपर पहुँच गया है, अब उसकी बदतमीज़ी मैं और नहीं सेह सकती। इसलिए आप के पास चली आई और जाती भी तो कहाँ ? आप दोनों के अलावा मेरा इस दुनिया में है ही कौन ? बस कुछ ही दिन पापा, उसके बाद में अपने और अपने बच्चों के लिए रहने का इंतेज़ाम कर ही लूँगी। "
      माया के पापा ने कहा, " ऐसा क्यों कहती हो ? ये अब भी तुम्हारा अपना ही तो घर है। बहुत अच्छा किया बेटी, जो तू यहाँ चली आई। आखिर हम तुम्हारे माँ-बाप है और माँ-बाप अपने बच्चों का साथ कभी नहीं छोड़ते, माँ-बाप का दिल बहुत बड़ा होता है, वह किसी भी हाल में अपने बच्चों को माफ़ कर ही देते है। अब तुम्हें फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं, तुम अब से हमारे साथ ही रहोगी और रही बात तुम्हारे और मनोज के रिश्तें की तो जहाँ तक मैं तुम्हें जानता हूँ, वहांँ तक तुम ऐसी कोई गलती कर ही नहीं सकती, जिस से की मनोज गुस्सा हो, गलती ज़रूर उसी नालायक़ की ही होगी।  
       माया के पापा ने माया को अपनी पढाई पूरी करने को कहा, डिस्टन्स लर्निंग से माया ने अपनी पढाई पूरी कर ली। उसे अब अच्छी जॉब भी मिल गई, माया की माँ बच्चों का ख्याल रख लेती। उस दरमियाँ माया के पापा ने मनोज  को माया को डिवोर्स देने की नोटिस भेज दी, मगर वह डिवोर्स देने के लिए इतनी जल्दी नहीं माना, क्योंकी दो बच्चों के साथ डिवोर्स देने में माया के पापा ने उससे बच्चों की पढाई के पैसे और माया का खर्चा उठाने को कहा, तब मनोज डर गया और माया को फ़ोन कर के परेशान करने लगा, माया से अपनी गलती की माफ़ी भी माँगने लगा, मगर माया के पापा को पता था, कि ये सब वह पैसे बचाने के लिए कर रहा है, इसलिए इस बार माया के पापा ने माया को समझा दिया, कि मनोज सुधरने वालों में से नहीं है, उसे सुधरना होता तो वह कब का सुधर गया होता, अब तुम ही सोच लो, कि अब तुम्हें क्या करना है, फ़िर से उसी के साथ रहना है, या अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीना है ? " आज भी जैसा तुम चाहोगी, वैसा ही होगा। 
       इस बार अब माया को अपने पापा की बात सच लगी, इसलिए वह अपने फैसले पे लगी रही। देर से ही सही लेकिन आख़िर मनोज को डिवोर्स पेपर्स पे दस्तख़त करने ही पड़े, वह भी माया की सारी शर्त मानते हुए। 
        वैसे तो माया पहले से ही बहुत सुंदर, सुशील और संस्कारी लड़की थी, इसलिए आज भी उस के लिए अच्छे रिश्तें आते रहे, लेकिन अब माया का भरोसा प्यार से उठ चूका था, इसलिए उसने अपनी बाकि की ज़िंदगी अपने बच्चों की परवरिश करने में और अपने माँ-पापा की सेवा में गुज़ारना पसंद किया।  
    अब मनोज माया की ज़िंदगी से पूरी तरह चला गया था, मगर फ़िर भी अकेले में माया को अक्सर अपना बिता हुआ पल ना चाहने पर भी आँखों के सामने आ ही जाता और कुछ आँसू आँखों से पानी की तरह बह जाते। वो कहते है ना, कि " हर एक की ज़िंदगी में कुछ बातें ऐसी होती है, जिसे वह भूलना चाहे तो भी भुला नहीं पाते। "
       
       तो दोस्तों, ये सिर्फ एक माया की कहानी नहीं है, आज भी दुनिया में कई ऐसी औरतें है, जो शायद ऐसे दर्द से हर रोज़ गुज़रती है। हर दर्द सेहती ही, चुप रहती है, अपने घर वालों की हांँ में हाँ मिलाती रहती है, चाहने पर भी कुछ कह नहीं पाती। अपना अपमान उसे पल-पल याद आता रहता है, मगर फ़िर भी बच्चों और परिवार वाले और माँ-बाप की बजह से वह चुप रह जाती है। हर ग़म हर दर्द सेह जाती है। मगर आखिर कब तक ? 
 
स्व-रचित 
एवम 
मौलिक कहानी 
#दर्द 
Bela... 

          


 












Comments