SAMZOTA APNE AAP SE YAA ZINDGI SE -part 1

           समझोता अपने आप से या ज़िंदगी से भाग -१ 

     सुमित और सुषमा की आज ही बड़ी धूम-धाम से शादी हुई थी, सुमीत की बड़ी हवेली थी, जो शादी के मौके पे फूलों और रौशनी से सजाई हुई थी। रात बहुत हो चुकी थी, सारी रीत-रस्मों को निपटाकर सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए। सुमित भी अपने कमरे में सोने के लिए जाता है। सुमितने कमरे का दरवाज़ा खोला। सुमीत का पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था। सुमीत के बिस्तर पे उसकी दुल्हन घूँघट में अपना मुँह छुपाए बैठी थी। 

     तो दोस्तों, समझ लो बस यही से शुरू होती है मेरी ये कहानी। एक लड़की जब शादी कर के अपने ससुराल आती है, तो वह अपने दिल में कई अरमान और कई सपने लेकर आती है। मगर क्या हर लड़की का सपना सच होता है ? क्या हर लड़की को अपने ससुराल में वह हक़ और वह इज़्जत मिलती है, जिसकी वह हक़दार है ? ये तो वह लड़की भी नहीं बता सकती है, कि अब आगे  उसके साथ क्या होनेवाला है ? तो अब हमारी इस दुल्हन के साथ क्या होनेवाला है ? ये जानने के लिए पढ़ते रहिए, मेरी ये कहानी।

          " समझोता अपने आप से या ज़िंदगी से। "

                                      अब आगे... 

        सुमीत पहले तो एक नज़र अपने कमरें को देखता फ़िर दूसरी नज़र अपने बिस्तर पे बैठी अपनी दुल्हन को। कुछ पल तो सुमीत बिस्तर के आगे खड़ा रहकर कुछ सोचता रहा, दूसरी तरफ घूँघट में बैठी दुल्हन के दिल की धड़कन बढ़ती चली। सुमीत दूसरे ही पल मूड के अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़ता है, अलमारी में से उसने पहले तो एक चिठ्ठी निकाली। जैसे सुमीत ने सब कुछ पहले से ही सोच के रखा था। चिठ्ठी को एक बार खोला, पढ़ा और मूड के फ़िर से दुल्हन की और बढ़ा। चिठ्ठी दुल्हन को देते हुए सुमितने कहा, ये चिठ्ठी मैंने तुम्हारे लिए लिखी है, जो आज मैं तुम से केहना चाहता हूँ। घूँघट में से दुल्हन थोड़ी और शरमाई और थोड़ी और गभराई भी, कि " ये क्या आज की रात ही प्यार की चिठ्ठी। " सोचते हुए दुल्हन ने घूँघट में से हाथ बाहर निकाला और सुमीत के हाथों से चिठ्ठी ले ली। दुल्हन को चिठ्ठी देकर सुमीत फ़िर से अलमारी की ओर जाता है, अलमारी में से अपने कपड़े, चद्दर और पिलो लेकर अंदर वाले दूसरे कमरे में चला जाता है। सुमीत के बैडरूम के अंदर भी एक दूसरा कमरा था, जहाँ किसी को भी जाने की इजाज़त नहीं थी। उस तरफ़ घूँघट में से दुल्हन ने सुमीत को अपने हाथ में चिठ्ठी देकर, अपने कपड़े लेकर उस तरफ़ दूसरे कमरें की ओर जाते हुए देखा। दुल्हन को ये सब बहुत अजीब लगा। सुमीत के दूसरे कमरे में जाने के बाद दुल्हन ने अपना घूँघट चेहरे से हटाया। दुल्हन ने सुमीत की दी हुई चिठ्ठी की ओर फ़िर से देखा, फ़िर दुल्हन चिठ्ठी खोल के पढ़ने लगी, जिस में लिखा था, कि। 

            मैं ये शादी तुम से कभी भी नहीं करना चाहता था, घरवालों के कहने पे मुझे तुम से ये शादी करनी पड़ी। मैं अपनी पहली पत्नी सुशीला से बहुत प्यार करता था, करता हूँ और करता रहूँगा। उसकी जगह मैं कभी भी किसी को नहीं दे सकता इसलिए इस कमरें के बाहर हम पति-पत्नी की तरह रहेंगे मगर इस कमरे में हम एक दूसरे के लिए अजनबी होंगे। मैं तुम्हें इस घर में जगह तो दूँगा मगर मेरे दिल में कभी नहीं दे सकता, इस बात के लिए मुझे माफ़ कर सको तो कर देना। तुम यहाँ आराम से रह सकती हो, तुम्हें यहाँ किसी बात की कोई तकलीफ नहीं होगी। ये मेरा वादा रहा। 

        चिठ्ठी पढ़ते ही दुल्हन जिसका नाम सुषमा था, उसके पैरो के नीचे से तो जैसे ज़मीन ही ख़िसक गई, उसके दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए। सुषमा ने सपने में भी ये नहीं सोचा था, कि आज सुहागरात वाले दिन ही उसे ये पता चलेगा, कि उसके पति की पहली शादी हो चुकी है और वे उसे बहुत प्यार करते है, सुषमा को इस बारे में बिलकुल कुछ भी पता नहीं था। चिठ्ठी पढ़कर वह उस कमरें की ओर देखती रही, जहाँ उसके पति थे, जिसे उसने अब तक एक नज़र गौर से देखा भी नहीं था। फ़िर सुषमा पूरे कमरे की सजावट को देखती रही, जिस बिस्तर पे वह बैठी थी, उस बिस्तर के सामने बड़ी अलमारी थी, अलमारी की बगल में बड़ा शीशा लगा हुआ था, जो कमरे के दो कोनो को जोड़ता हुआ क्रॉस शीशा था, जिस में वह खुद को बिस्तर पर बैठी हुई वही से दिखाई देती थी। दूसरी और बड़ा सा t.v था, t.v के नीचे टेबल पे कुछ फ्लावर पॉट सजा के रखे थे, उसी के बगल में एक दूसरा कमरा था, जहाँ सुषमा के पति सुमित थे। बिस्तर के बगल में एक छोटा टेबल था, उस पे पानी की बोतल, गिलास, दूध का गिलास, फ्रूट्स और कुछ ड्राई फ्रूट्स रखे हुए थे। सुषमा ने पानी का गिलास उठाकर पानी पिया, तब उसकी नज़र कमरें के ऊपर की दीवार की और गई, जहाँ बड़ा सा जुम्मर लगा हुआ था, जिसकी रोशनी पूरे कमरे को झगमागए रखी थी, बिस्तर के चारों ओर फूलों की माला लगी हुई थी, बिस्तर भी पूरा फूलों से सजाया गया था, फूलों की खुशबु से सारा कमरा महक रहा था। मगर अब सुषमा को इन सब चीज़ो से क्या ? अपने पति की मन की बात जानकर सुषमा मन ही मन अपनी किस्मत पे रोने लगी, उसकी आँखों के सामने जैसे अँधेरा छाने लगा। सुषमा चीख़-चीख़ कर अपने पति से सवाल करना चाहती थी, कि अगर वह उसे पसंद नहीं, तो शादी ही क्यों की ? मेरी ज़िंदगी मैं क्यों आए ? अगर अपनी  पत्नी से इतना ही प्यार है, तो उसके साथ क्यों नहीं रहते ? मुझ से दूसरी शादी क्यों की ? सुषमा के अंदर जैसे एक युद्ध चल रहा हो।  एक सैलाब जैसे फ़टनेवाला हो। मगर उस कमरें के भीतर दिल को चीर जानेवाली चुपी थी, सुषमा को एक पल के लिए लगा, कि अभी उस कमरें का दरवाज़ा खोल के अंदर चली जाऊ और पूछती हूँ, इस हवेली के मालिक से कि अगर शादी नहीं करनी  थी, मुझ से कोई रिश्ता ही नहीं रखना था, तो मुझ से शादी ही क्यों की ? मुझे यहाँ लेकर ही क्यों आए ? मगर सुषमा में इतनी हिम्मत ही नहीं थी, कि वह अपने पति से आज के आज कोई सवाल करे या कुछ पूछे ? आज उसके पास कहने को शायद सब कुछ था मगर जिसे अपना कह सके, वैसा कोई नहीं। कुछ ही देर में सुषमा की आँखों के सामने उसका बिता हुआ कल फ़िर से आने लगा, जिसे सुषमा सब कुछ भूल के एक नई ज़िंदगी शुरू करना चाहती थी। 

          सुषमा एक गरीब घर की मगर संस्कारी लड़की थी, उसकी एक छोटी बहन जो अभी पढ़ रही थी, उसका बड़ा भाई, जिसने अपनी पढाई अधूरी छोड़ दी, उसकी माँ जिसके पैरो में हर वक़्त दर्द रहता है, जिसके पैरों का ऑपरेशन करवाना है, उसका बाप, जो बाप कहलवाने के लायक नहीं, जो हर वक़्त दारू के नशे में रहता है, सुषमा की माँ बेचारी बच्चों का पेट पालने के लिए पूरा दिन दूसरों के घर के बर्तन और झाड़ू पोछा करती, रात को उसका शराबी पति घर आकर सुषमा की माँ से पैसे माँगता, सुषमा की माँ पैसा नहीं देती, तो उसका बाप उसे मारता, ये रोज़ का हो गया था। एक तरफ़ सुषमा को पढ़ने का शौक़ था, वह इसलिए पढ़ना चाहती थी, ताकि पढ़-लिख़कर वह अच्छी सी नौकरी कर सके और उसकी माँ का बोज कुछ कम हो, मगर जवान बेटी के माँ-बाप का बोज कभी कम हुआ है क्या ? लड़की जवान हुई नहीं और बस्ती में लोगों की गंदी नज़र सुषमा की भरी जवानी पे पड़ने लगी, आते-जाते बस्ती के नाकारा लड़के सुषमा को छेड़ते रहते, लेकिन उसी बस्ती में सुषमा का एक दोस्त भी था, जिसका नाम सुरेश था। सुरेश जो सुषमा को इन नाकारा लड़कों से हर बार बचाता था, तब सुषमा सुरेश का शुक्रियादा करती और वहां से चली जाती, सुरेश भी अपने माँ-बाप का एक लौटा बेटा था, वह भी पढाई करता था, ताकि अच्छी नौकरी मिलने पे वह सुषमा से शादी कर सके। हां, सुषमा और सुरेश अब एक-दूसरे से प्यार भी करने लगे थे। मगर सुषमा की एक शर्त थी, कि जब तक तुम्हें मतलब सुरेश को अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती, तब तक वह उस से शादी नहीं करेगी, क्योंकि उसे डर था, कि उसका पति भी उसके बाप की तरह शराबी और नाकारा ना हो। 

         तो दोस्तों, सुषमा और सुरेश पढ़े-लिखें थे और एक-दूसरे से प्यार भी करते थे, तो उन दोनों की शादी क्यों नहीं हुई ? और सुषमा की शादी सुमीत से क्यों हो गई ? क्या आप बता सकते हो दोस्तों, ऐसा क्यों और कैसे हुआ ? 

                           अब आगे क्रमशः। 



                                                               Bela...

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