इम्तिहान PART - 19

                       इम्तिहान भाग - १९ 

             तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि अस्पताल से आने के बाद रितेश अब कुछ हद तक ठीक हो गया लगता था, मगर रितेश के दिल को अब भी एक बात खाए जा रही थी, कि उसके पापा की मौत उसी की वजह से हुई हैं, चाहे वह अपने दिल को जितना भी समजाए मगर उस हादसे को भुला पाना रितेश के लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा था, एक दिन सुबह रितेश ने अपनी पुरानी सारी यादों को मिटा देना चाहा, रितेश ने खुद अपने हाथों से उस कमरें में रखी हर चीज़ को जला दिया, जिस से वह आज तक जुड़ा हुआ था, जिस यादों को उसने अपने अंदर आज तक सहेज के रखा हुआ था, मगर उस बीच वह खुद भी यह भूल गया, कि अगर वह उस कमरें से बाहर नहीं निकला, तो वह खुद भी उस आग में जल कर मर जाता, रितेश उस आग को ऐसे महसूस कर रहा था, जैसे उस के पापा ने कभी महसूस किया होगा, लेकिन रिया ने वक़त पर आकर रितेश को उस आग से बाहर निकाला और उसे समझाया, कि जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ, अब नई ज़िंदगी शुरू करो, अपने पापा के सपने को पूरा करो, रितेश को उस आग में अपना सब कुछ जला देने के कुछ दिन बाद उसे अच्छा महसूस हुआ, वह अब खुश भी रहने लगा, मगर रितेश की ममा ज़िद्द पकडे थी, कि बस तुम शादी कर लो, एक दिन रितेश की ममा ने रितेश और रिया से शादी करने का वादा लिया और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली, उनकी आख़री खवाइश पूरी करने के लिए रितेश और रिया ने कुछ दिनों बाद शादी कर ली। अब आगे... 

                              दो इंसान 

             या कहूँ तो पति-पत्नी  

        दोनों की सोच अलग, दोनों के ज़िंदगी जीने का तरीका अलग, दोनों की पसंद-नापसंद अलग, दोनों के ज़िंदगी जीने के मायने अलग, फ़िर भी एक ही छत के नीचे एक साथ जी रहे हैं, कितनी अजीब बात हैं ना ! 

        हाँ दोस्तों, अब यह कहानी कुछ अलग ही मोड़ लेने वाली हैं, आप सोच रहे होंगे वो कैसे ? तो वो ऐसे, कि वैसे तो रितेश और रिया अब दोस्त बन चुके थे, यह बात तो आप सब जानते ही हैं, मगर दोस्ती में और प्यार में बहुत फ़र्क होता हैं, दोस्ती में हम किसी बंधन में नहीं रहते, मगर शादी के बाद हम एक बंधन में बंध जाते हैं, दोस्ती में कोई रिश्ता मैटर नहीं करता, मगर शादी के बाद एक रिश्ता जुड़ जाता हैं, एक इंसान का दूसरे इंसान से। जहाँ तक मेरा तजुर्बा हैं, आप अपने दोस्तों को दोस्ती में कुछ भी कहो, उसके साथ कैसा भी बर्ताव करो, सब कुछ चलता हैं, आप कभी अपने दोस्त से रूठ जाओ, अपने दोस्त से लड़ो, झगड़ो, हसी-मज़ाक करो, बातें करो ना करो, उस से मिलो ना मिलो, उसे मनाओ या ना मनाओ, वह खुद मान ही जाता हैं, कुछ भी चलता हैं, मगर शादी के बाद ऐसा नहीं चलता। दोनों पति-पत्नी का ईगो हर्ट होता हैं, खासकर पत्नी को अपना मान-सम्म्मान और पति को भी अपना मान-सम्मान बहुत प्यारा होता हैं, शादी के बाद सिर्फ दो इंसान ही नहीं बलकि दो परिवार भी मिल जाते हैं, किसी एक के बुरे बर्ताव का असर दूसरे पर भी होता ही हैं, वैसे ही एक के परिवार का बर्ताव किसी दूसरे परिवार पर भी पड़ता हैं, कहने को तो सब कहते हैं ठीक हैं, मिल-जुलकर रहते हैं, हसी-ख़ुशी रहते हैं, मगर सच में क्या  ऐसा होता हैं ? बाहर से खुश दिखने वाले लोग अंदर से उनका दिल कितना टुटा हुआ होता हैं, वह तो वे खुद ही जानते हैं। किसी दो इंसान के बीच गुस्सा आ जाता हैं, तो किसी दो इंसान के बीच उनका अहंकार टकराता हैं, फ़िर समज़दार पति-पत्नी अपने-अपने गुस्से और अहंकार को अपने अंदर ही दबाकर रखते हैं और हँसी-ख़ुशी एक दूजे संग ज़िंदगी बिताते हैं या तो फ़िर खुश होने का दिखावा करते हैं, वैसे भी इस दुनिया में कोई परफेक्ट तो हैं, ही नहीं। ना हम और नाही कोई और। इसलिए हम उस परफेक्ट के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर जो हैं, उसी को परफेक्ट मान कर उसे स्वीकार करे उसी में समजदारी हैं, वरना ज़िंदगी भर उस परफेक्ट को ढूँढने के चक्कर में अपने ही मन को दुखी करते रहते हैं और कभी-कभी अपनों का दिल भी दुखाते हैं। ये तो बात हुई सब की ज़िंदगी की, लेकिन अब हम बात करेंगे, रितेश और रिया की। जिसकी अभी-अभी शादी हुई हैं, जो शादी वह करना ही नहीं चाहते थे, जिस शादी के बंधन में वे दोनों बंधना नहीं चाहते थे, मगर वक़्त ने दो अलग इंसान को आख़िर एक कर ही दिया। अब आगे...    

          शादी के बाद अब रिया रितेश के घर रहने आ गई, रिया ने अपने घर फ़ोन कर के सब को बता दिया, कि " रितेश की ममा की आख़री ख़्वाइश यही थी, कि हम दोनों शादी कर के साथ में रहे। रितेश को अपनी ममा के जाने का भी बहुत दुःख था, इसलिए वह कोई तामझाम करना चाहता नहीं था, तो हम ने कोर्ट में जाके रजिस्टर्ड मैरिज कर लिया, लेकिन रितेश ने कहा हैं, कि " कुछ समय बाद वह आप सब को यहाँ बुलाएगा, या फ़िर हम खुद आप सब से मिलने आ जाएँगे। " वैसे रिया को भी शाद्दी में ज़्यादा तामझाम पसंद नहीं था, इसलिए वह भी कोर्ट merriage  के लिए तैयार हो गई। पहले तो शादी के पहले ही दिन से दोनों एक दूसरे से कुछ ज़्यादा ही शर्माने लगे, एक तो दोनों ने एक दूसरे से शादी के बारे में इतने दिनों से कभी कुछ सोचा ही नहीं था और यह सब कुछ इतनी जल्दी हुआ, कि दोनों को इस बारे में कुछ ज़्यादा सोचने का मौका भी नहीं मिला। रितेश और रिया ने प्यार किसी ओर से किया और शादी किसी ओर से हुई। रितेश और रिया दोनों ने ही शादी ना करने का फैसला कुछ साल पहले ही लिया था, मगर अब तो शादी हो गई, जिसे निभानी भी होगी। 

          जब तक रिया घर से बाहर आ नहीं जाती, तब तक रितेश जल्दी से सुबह १० बजे अपनी कार में बैठ लगातार कार के हॉर्न बजाता रहता, रिया जितनी भी जल्दी करे, मगर उसे किसी ना किसी वज़ह से घर से निकलने में देरी हो ही जाती, ऊपर से रितेश के लगातार हॉर्न बजाने की वज़ह से वह रोज़ कुछ ना कुछ ऑफिस के लिए ले जाना भूल जाती, रिया भागति हुई रितेश की कार की ओर आती है और रितेश से कहती हैं, " मैं आ ही तो रही थी ना, तुम्हें इतने हॉर्न बजाने की ज़रूरत नहीं हैं, तुम्हें कितनी बार कहा हैं, कि अगर जाने की इतनी ही जल्दी हो, तो तुम अकेले ही चले जाया करो, मैं बाद में आ जाउंगी। " 

        रितेश ने रिया को चिढ़ाते हुए कहा, " मेरी समझ में ये आज तक नहीं आया, कि लड़कियों को तैयार होने में इतनी देर क्यों लग जाती हैं ? पता नहीं, आईने के सामने खड़ी रहकर वह क्या सोचती रहती हैं ? "

       रिया ने पलटकर कहा, " मैं-मैं ? मैं आईने के सामने खड़ी रह कर अपने आप को देखा करती हूँ ? सोचती रहती हूँ ? मैं रोज़ तैयार होने में देरी करती हूँ ? "

      रितेश ने कहा, " नहीं, नहीं, मैं भला तुम्हें कैसे कुछ कह सकता हूँ,  वह तो मैं किसी और लड़कियों की बात कर रहा हूँ। तुम्हारी तो बात ही कुछ और हैं, तुम तो रोज़ सुबह वक़्त पर उठ जाती हो, योगा करती हो, वॉक के लिए गार्डन जाती हो, ब्रेक फ़ास्ट में भी सिर्फ़ कॉर्नफ़्लेक्स खाती हो, लंच में  सलाद और डिनर में सूप या खिचड़ी। तुम्हारे साथ कोई और ज़्यादा दिन रहेगा तो वो भूखा ही मर जाएगा, वैसे तुम्हें सच में कभी भूख लगती नहीं ? क्या तुम्हें कभी चटपटा खाने का मन नहीं करता ? 

        रिया ने कहा, " चटपटा खाने का मेरा भी मन करता हैं ना ! मगर क्या करू, जब से तुम से शादी की हैं, तुम्हारी चटपटी बातें सुनकर ही मेरा पेट भर जाता हैं, फ़िर कुछ भी खाने को मन ही नहीं करता।" 

      ऐसी नौक-जौंक दोनों के बीच दिन भर लगी रहती हैं, सुबह रिया जल्दी उठती हैं, इस तरफ़ रिया के तैयार होने तक रितेश सोता ही रहता हैं, फ़िर १० ही मिनट में ऑफिस जाने के लिए रेडी हो जाता हैं, रिया पूरा कमरा ठीक करती हैं, हर चीज़ उसकी जगह पर रखती हैं, रितेश हर चीज़ को अपनी आदत अनुसार इधर-उधर कर देता हैं, रिया इस वजह से रितेश पे बहुत चिढ़ती हैं, रिया सुबह पूजा भी करती हैं, रितेश सुबह से बड़ी आवाज़ में अंग्रेजी गाने शुरू कर देता हैं, सुबह रिया नास्ते में कॉर्नफ़्लेक्स खाती हैं, तो रितेश को नास्ते में समोसे और कचोरी, आलू के पराठे, या सैंडविच चाहिए, कार में दोनों साथ में ही ऑफिस जाते हैं, रितेश कार चलाते वक़्त कार बहुत तेज़ चलाता हैं और साथ में अंग्रेजी म्यूजिक भी ज़ोरो की आवाज़ से लगा देता हैं, रिया आवाज़ कम करती हैं, रितेश आवाज़ बढ़ा दता हैं। देखते- ही देखते ऑफिस आ जाता हैं, रिया कार से बाहर निकलकर दरवाज़ा बंद करे उस से पहले रितेश कार की चाबी ड्राइवर को देके चला भी जाता हैं, रिया भागते हुए उसके पीछे जाती हैं, क्योंकि उसका कोट और फाइल रिया के पास ही होता हैं, ऑफिस मीटिंग में हर बार रितेश आने में देर कर देता हैं, रिया वक़्त से पहले ही पहुँच जाती हैं, रिया की रखी चीज़ ऑफिस में भी अपनी जगह होती है और रितेश को उसकी कोई चीज़ जल्दी मिलती नहीं, फ़िर कोई ज़रूरी फाइल ना मिलने पर सब पे गुस्सा करता रहता हैं। शाम को घर लौटते ही रितेश सोफे पर अपनी फाइल, अपना शूट, अपने शूज और मौज़े सब इधर-उधर फ़ेंकता रहता हैं, वह खुद सोफे पर पैर फैलाए " आज तो मैं बहुत थक गया हूँ। " कहते हुए बैठ जाता हैं, रितेश के नौकर आकर रितेश की हर चीज़ ठिकाने लगा देते हैं, घर पे आते ही यह चाहिए, वह चाहिए उसकी माँगे शुरू हो जाती हैं। रिया घर आकर सब से पहले मुँह-हाथ धोकर फ्रेश हो जाती हैं, फ़िर सब नौकरो से पूछती हैं, आज क्या किया, क्या नहीं ? रितेश गपागप खाना खा लेता हैं, मगर रिया आराम से खाना खाती हैं, जब तक रिया खाना खाती हैं, तब तक रितेश खाना खा कर अपना वायोलिन बजाता रहता हैं, उसके बाद रिया अपना चश्मा लगाकर बुक्स पढ़ती हैं और रितेश अंग्रेजी मूवी देखता हैं, रिया को उस t.v के तेज़ आवाज़ से बहुत डिस्टर्ब होता हैं, मगर रितेश उसकी नहीं सुनता, वह अपने मन की ही करता हैं, फ़िर तंग आकर रिया दूसरे कमरें में अपनी बुक्स लेकर चली जाती हैं। रिया बुक्स पढ़ते-पढ़ते सो जाती हैं और रितेश मूवी देखते-देखते सो जाता हैं। कभी मन किया तो खाने पर बाहर भी चले जाते हैं, मगर बाहर से हर बार झगड़ कर ही वापस आते हैं, रिया को  सिंपल खाना पसंद हैं, रितेश को तीखा और चटपटा चाहिए, जो रिया कभी-कभी उसे खाने नहीं देती, कहकर की " ये सेहद के लिए ठीक नहीं हैं। "

        रितेश सोचता हैं,  "है भगवान्, तुमने औरत बनाई ही क्यों ? पूरा दिन, ये मत करो, वह मत करो, यहाँ मत जाओ, वहां मत जाओ, ऐसे बैठो, वैसे नहाओ, वैसे बातें करो, उफ़... ज़िंदगी जीने के कितने सारे रूल्स है इन लड़कियों के। क्या लक्ष्मी, पार्वती और सीता मैया भी आप को इतना सताते है क्या ? इस से अच्छा तो मैं कुंवारा ही भला था। "

        रिया रितेश की फरियाद सुन लेती हैं और कहती हैं, " हां, जो भी मर्द अपना काम ठीक से ना करे तो उस मर्द को ठीक करने के लिए ही भगवान् ने औरत बनाई और तुम्हारे जैसो के पास भेज दी, ताकि तुम्हारे जैसो का जीवन सवर जाए, अब ख़ुश, अब तुम्हारी दवाई का वक़्त भी हो गया हैं, दवाई पिलो। " 

         रितेश कहता हैं, " दवाई हैं, या ज़हर, मुझे नहीं पीना, ऐसा करो, मेरी जगह तुम पीओ, बहुत ही कड़वी दवाई हैं, बिलकुल तुम्हारे जैसी " 

        और रितेश अपने चहरे पर चद्दर ओठ के सोने का नाटक करता हैं, लेकिन रिया उसे दवाई पीला कर ही रहती हैं, कहती है, " जब शराब पीते थे, तब वह तुम्हारे लिए सेहद जैसी मीठी थी और अब दवाई कड़वी लगती हैं, बहुत खूब, " कहते हुए रिया रितेश के मुँह में दवाई दाल देती हैं, रितेश मुँह कड़वा कर दवाई पी लेता हैं, रिया मन ही मन रितेश का बिगड़ा हुआ चेहरा देख़कर मुस्कुराती हैं,  और कहती हैं, अच्छे बच्चे ज़िद्द नहीं करते।" बस ऐसे ही दोनों एक दूसरे से अलग हैं, मगर साथ हैं, खुश हैं।  

       बस ऐसे ही रितेश और रिया की ज़िंदगी चल रही थी, कुछ महीने ऐसे ही बीत गए। रितेश ने अब पेंटिंग्स बनानी फ़िर से शुरू कर दी थी, कभी वह अपने ममा-पापा की तस्वीर बनाता तो कभी-कभी रिया की, मगर रिया की तस्वीर वह जानबूजकर बिगाड़ देता, रिया को चिढ़ाने के लिए, किसी तस्वीर में उसकी नाक लम्बी कर देता, किसी में उसके बाल सफ़ेद कर देता, किसी में उसकी आँखें एक दम छोटी कर देता, तो किसी तस्वीर में एकदम बड़ी, रिया तस्वीर देख कर सच में बहुत चिढ़ जाती, रिया रितेश को मारने के लिए उसके पीछे-पीछे भागती, फ़िर दोनों थक के बैठ जाते, हस्ते-हस्ते रिया के पेट में दर्द होने लगता, तब रितेश उसको कहता, कि " ठीक से खाना नहीं खाओगे, तो ऐसा ही होगा। " 

        रिया फ़िर से उस पर चिढ़ जाती हैं, रितेश और रिया हर वक़्त बिलकुल छोटे-बच्चों की तरह लड़ते-झगड़ते रहते थे, अब तो दोनों को एकदूसरे की जैसे आदत सी हो गई थी। 

         एक दिन ऐसे ही घर में रितेश और रिया दोनों एक दूसरे के पीछे भाग रहे थे, तभी रितेश का पैर सीढ़ियों से फिसल जाता हैं, वह बहुत बुरी तरह सीढ़ियों से फिसल जाता हैं, रितेश के सिर पे गहरी चौट लग जाती हैं, उसके हाथ और पैर में भी चौट लग जाती हैं, रिया एक दम से गभरा जाती हैं, वह रितेश की मदद के लिए आती हैं, नौकरो के साथ मिलकर रिया रितेश को अपने कमरे तक लेके जाती हैं, रितेश के माथे से खून भी बह रहा था, जो अब तक बंद नहीं हुआ था।  रिया ने डॉक्टर को फ़ोन कर दिया था और डॉक्टर आ गए थे, डॉक्टर ने रितेश के माथे पे पट्टी की, उसके सिर पे २ स्टिचिस भी आए थे, रितेश के हाथ और पैर में भी जहाँ उसे छोटी सी चोट लगी थी, वहाँ भी डॉक्टर ने पट्टी लगाई और कहा कि, " रितेश के सिर पर बहुत गहरी चौट लगी हुई हैं, उन्हें आराम की सखत ज़रूरत हैं, मैं कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ, उस से इनको दर्द में आराम मिलेगा। "

         कहते हुए डॉक्टर चले जाते हैं, डॉक्टर के जाने के बाद रिया रोते हुए फीर से रितेश को ही सुनाने लगती हैं, मैंने कितनी बार कहा, कि "  ऐसे मुझे बार-बार चिढ़ाया मत करो, मुझे गुस्सा आ जाता हैं, मगर तुम मेरी सुनते कहा हो ? अब देखा ना, क्या हो गया ? कितनी चौट लगी है तुम्हें ! पता नहीं कब ठीक होंगे तुम ? अब आराम ही करो, अब यहाँ से उठने की भी तुमको इजाज़त नहीं हैं, समझे ? "

        रितेश ने कहा, " ऐसी भी कोई बड़ी चौट नहीं लगी, तुम ख़ामख़ा परेशान हो जाती हो, मैं बिलकुल ठीक हूँ। ये डॉक्टर ने आके सारी पट्टी इधर-उधर लगा दी, चलता फिरता अस्पताल बना दिया मुझे। ( पत्तियां निकालते हुए ) " 

       रिया ने उसे रोकते हुए कहा, " रहने दो रितेश, तुम्हें मेरी कसम हैं, जब तक तुम ठीक नहीं होंगे, तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ आराम ही करना हैं, रितेश आगे कहने जाता हैं, मगर..." 

       रिया तुरंत ही रितेश के होठों पर अपना हाथ रख उसे चुप करा देती हैं और कहती हैं, " अब बस एकदम चुप, इसके आगे मुझे कुछ नहीं सुनना, तुम आराम करो, ये दवाई पीओ और सो जाओ।" 

       रितेश ने मुँह बनाते हुए कहा, " फ़िर से दवाई ? " 

      रिया ने ज़बरदस्ती छोटे बच्चे की तरह रितेश को ज़िद्द कर के दवाई पीला ही दी। 

       रितेश को आराम की ज़रूरत थी, मगर रिया को काम की, अब कुछ दिनों के लिए रिया का काम दो गुना हो गया, ऑफिस को संभालना, रितेश को घर पे संभालना, मगर रिया सब कुछ मैनेज कर ही लेती, ऑफिस से फ़ोन कर के बार-बार घर पर नौकरों से बात कर के रितेश का हाल-चाल क्या हैं, पूछ लेती और उसे वक़्त पर दवाई भी पीला देती, क्योंकि रिया को पता था, कि इस मामले में रितेश बहुत ही लापरवाह था, रितेश हर बार दवाई न पीने का बहाना ढूंँढ़ता रहता। रिया ने रितेश की बहुत अच्छे से देख-भाल की, कुछ ही दिनों में रितेश ठीक भी हो गया। रितेश को भी अब रिया पर प्यार आने लगा, दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे, जैसे की दोनों एक दूसरे की आदत बन गए थे, दिन भर रितेश रिया ये,  रिया वो, कहते थकता नहीं था और रिया भी दिन भर रितेश ये मत करो, रितेश वो मत करो, कहते थकती नहीं थी। दोनों एकदूसरे से ऐसे घुल-मिल गए थे, जैसे दूध में शक्कर। मतलब अब रितेश और रिया हमेशा-हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं, यही हैं इनकी अनोखे प्यार की अनोखी कहानी, थोड़ी सी खट्टी, तो थोड़ी सी मीठी।   

       तो दोस्तों, रितेश और रिया दोनों एक दूसरे से अलग ही सही, मगर दोनों अब एकदूसरे के बिना रह भी नहीं सकते, दोनों बार-बार लड़ते हैं, झगड़ते हैं, फ़िर, फ़िर से एक भी हो जाते हैं, वक़्त रहते हर ज़ख़्म भर ही जाता है, बस यही हैं, मेरी इस कहानी का प्यारा सा अंत। लेकिन हां, दोस्तों, कहानी ख़तम हुई हैं, ज़िंदगी नहीं, रितेश और रिया की ज़िंदगी सही मायने में तो अब शुरू हुई हैं, मेरी भगवान् से यही प्रार्थना हैं, कि दोनों की ज़िंदगी में कभी कोई तूफ़ान ना आए, दोनों मिल जुलकर ऐसे ही हस्ते-खेलते रहे, अब कभी दोनों एकदूसरे से ना बिछड़े।  

                       समाप्त।

                      

 

                                                                                                                                                   Bela... 

                   

     

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