इम्तिहान भाग - १८
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रितेश के दोस्त हेमंत ने रितेश को आग से बचाया, हेमंत ही रितेश को अस्पताल ले गया, फ़िर रितेश को उसके घर भी ले गया, हेमंत ने रितेश की ममा को विलायत में क्या हुआ, वो सब बताया, अस्पताल में रितेश की शराब और नशा करने की आदत छूट गई, अब रितेश को रात को नींद आ जाती हैं, रितेश ने रिया का शुक्रियादा भी किया और अपनी हर गलती के लिए और उस के साथ बदतमीज़ी करने के लिए रिया से माफ़ी भी माँगी। अब आगे...
रितेश की ममा रितेश को फ़िर से ठीक होते हुए देख़ बहुत खुश थी, रितेश फ़िर से ऑफिस जाने लगा, अपना काम अच्छे से संभालने लगा, और रितेश पहले से भी अच्छे से अपने काम पर ध्यान देने लगा, मगर कभी-कभी बात करते-करते रितेश अचानक से घूम-शूम हो जाता, रिया रितेश को बीती बातें भूल जाने को समझाती रहती, एक दिन रितेश सुबह रिया के घर आया और रिया के बगल वाले कमरें में चला गया, उस वक़्त रिया घर से बाहर मॉर्निंग वॉक के लिए निकल गई थी, रितेश कई देर तक उस कमरें में बैठा रहा। एक घंटे बाद रिया वॉक कर के वापस घर आती हैं, रिया ने घर की एक बालकनी से धुँआ निकलता हुआ देखा, जिस बालकनी से धुँआ निकलता था, वह वही कमरें की बालकनी थी, जिस कमरें में रितेश ने अपनी पेंटिंग्स और कुछ ज़रूरी सामान रखा हुआ था, रिया को बाहर से देख़ के ऐसा लगा जैसे उस कमरें में आग लगी हो, रिया दौड़ती हुई, अपने घर के अंदर जाकर ऊपर उस कमरें की ओर जाती हैं, सच में उस कमरें में आग लगी हुई थी, रिया ने कमरें का दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, मगर दरवाज़ा नहीं खुला, दरवाज़ा शायद अंदर से ही बंद था, रिया को महसूस हुआ, कि ज़रूर रितेश इस कमरें के अंदर ही हैं, रिया ने ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया और रितेश को आवाज़ लगाती रही, तभी दरवाज़ा अपने आप खुल गया। कमरें में चारों और आग फ़ैली हुई थी, रितेश आग के बीच में डरा हुआ, सेहमा हुआ सा बैठा हुआ था, रितेश को उस वक़्त देख़ के रिया को ऐसा लगा, जैसे रितेश ने खुद ही वह आग लगाई हो और वह खुद भी उस आग में जल जाना चाहता हो, आग की लपटों से वह बच भी रहा था और जल भी रहा था, रिया की समझ में कुछ नहीं आया, ये सब कैसे हो गया ? क्योंकि रिया जब घर से निकली थी, तब तो इस कमरें का दरवाज़ा बंद ही था, शायद उसके जाने के बाद रितेश यहाँ आया और उसी ने... चलो छोड़ो, पहले रितेश को यहाँ से बाहर निकालना होगा, यह सोच रिया ने रितेश को फ़िर से आवाज़ लगानी शुरू कर दी, मगर जैसे रिया की आवाज़ रितेश के कानो तक नहीं पहुँच रही थी, ऐसे रितेश तो एक जगह वैसे ही बैठा रहा। रिया जैसे-तैसे कर के रितेश के करीब गई और उसे अपने कंधों के सहारे से उठाकर बाहर ले आई, फ़िर रिया पानी से कमरें की आग को बुझाने लगी। साथ में उसने रितेश के घर फ़ोन कर के उसके नौकरो को भी मदद के लिए बुला लिया था, तो वह भी आग बुझाने लगे। थोड़ी देर में आग बुझ गई, रिया ने वक़्त पर आकर सब सँभाल लिया, वरना आग की लपटों में आज रितेश भी आ जाता, मगर रितेश ने ऐसा क्यों किया ? ये समझ नहीं आया। रितेश अब भी एक तक उस कमरें की तरफ़ देखे जा रहा था। उसे कुछ भी होश नहीं था, रिया ने रितेश से बात करनी शुरू की।
रिया ने रितेश के चेहरे पर पानी डाला और उसके गालो पर धीरे से थपकी लगाते हुए रिया ने कहा, " रितेश-रितेश होश में आओ, तुम्हें क्या हुआ है ? यह आग कैसे लगी ? तुम ऐसे चुप क्यों हो ? कुछ तो कहो ?
रिया के सवाल सुनकर रितेश फ़िर से रो पड़ता हैं, अनजाने में रितेश रिया के गले लग जाता हैं और कहने लगता हैं, " मैं कभी वह हादसा नहीं भूल पाउँगा, जो पल, जो लम्हा, जिस यादों को मैं अपने अंदर छुपा के रखता था, उसी यादों को आज मैंने अपने ही हाथों जला दिया। आज शायद मेरे पापा मेरे साथ होते, अगर उस दिन वे विलायत मुझे छुड़ाने नहीं आए होते, तो उस आग की लपटों में मै जल गया होता, मेरे पापा बच जाते, मुझे उन से बहुत सी बातें करनी हैं, वह मुझे यूँ अकेला छोड़ के क्यों चले गए ? गलती मेरी थी और उसकी सजा मेरे पापा को मिली। मेरा मन करता हैं, मैं भी इसी आग में चला जाऊ, जहाँ मेरे पापा गए थे, शायद वह मुझे वही मिल जाए। कविता से तो मेरा रिश्ता सिर्फ़ तीन साल से ही था, मगर पापा के साथ तो मैं बचपन से था, अगर उन्होंने मुझे अनाथालय से नहीं लिया होता तो पता नहीं आज मैं क्या और कहाँ होता ? मेरी यह ज़िंदगी उन्हीं की देन हैं, मैं उन्हें अपनी ज़िंदगी के लिए शुक्रियादा करना चाहता हूँ, मैं उनके बिना नहीं, उनके साथ जीना चाहता हूँ। "
कहते-कहते रितेश वही रिया के हाथों में बेहोश हो जाता हैं। रिया ने नौकरों की मदद से रितेश को अपने कमरें में बिस्तर पर सुलाया, रितेश की बातें सुन रिया की आँखें भी भर आती हैं, रिया डॉ.नेहा को फ़ोन कर के पूछती हैं, कि रितेश ने आज अचानक ऐसा फ़िर से क्यों किया ? क्या उसने फ़िर से कहीं से नशा करना शुरू तो नहीं किया होगा ? डॉ.नेहा ने कहा, कि " मेरे ख़याल से ऐसा तो शायद नहीं हो सकता, मगर कई बार कई लोगों के साथ ऐसा होता है, कि वह अपनी बीती हुई ज़िंदगी को भूलाना चाहते तो हैं, मगर भुला नहीं पाते, वह बीती हुई ज़िंदगी उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाता हैं, जिस में से कई लोग बाहर निकल आते हैं तो कई लोग नहीं निकल पाते और मेरे ख़याल से उसी दर्द को भुलाने के लिए लोग अक्सर शराब और नशे का सहारा लेते हैं, जो उन्हें नहीं लेना चाहिए, मगर आप फ़िक्र मत कीजिए, मैंने जो दवाई दी हैं, उसे आप रितेश को अब भी देते रहना और ध्यान रखना की रितेश वह दवाई लेता हैं या नहीं ? वरना उसका ठीक होना बहुत मुश्किल हो जाएगा, अगर दूसरी बार रितेश ने ऐसा कुछ किया, तो आप उसे मेरे पास ले आना, मैं उस के साथ फ़िर से बात करुँगी। "
डॉ.नेहा की बात सुन रिया को अच्छा लगा, कि चलो कोई डरने की बात नहीं, इस वक़्त रितेश को आराम करने देती हूँ, बाद में उस से बात करुँगी, रिया यह सोचते हुए फ्रेश होकर नास्ता बनाने लगी, तभी रितेश फ़िर से ज़ोर-ज़ोर से नींद में पापा-पापा कहते हुए चिल्लाने लगा, रिया ने उसे नींद से जगाया, रितेश ने इधर-उधर हर तरफ़ देखा, जैसे उसे वह यहाँ कैसे आया, वह उसे पता ही ना हो। रिया ने रितेश को कहा, कि आज उसने क्या किया ? और उसके साथ कितना बड़ा हादसा हो सकता था। रिया की बात सुनकर रितेश ने ये स्वीकार किया, कि हां, मैंने ही उस कमरें में अपने यही हाथों से सब कुछ जला दिया, मुझे आज ये एहसास हुआ, कि वह सारी चीज़ें मेरे कोई काम की नहीं, पुरानी यादें सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे दर्द ही देती आई है और कुछ नहीं। मैं अब इन सब से दूर रहना चाहता हूँ, भूल जाना चाहता हूँ, कि मैंने कभी किसी से प्यार किया था, भूल जाना चाहता हूँ, कि कभी कोई मेरा दोस्त भी था, मगर मैं अपने पापा को नहीं भूल सकता, जिनकी ऊँगली पकड़ के मैंने चलना सीखा, हसना सीखा, ज़िंदगी जीना सीखा, मैं हर पल यह कोशिश करूँगा, कि मेरी वजह से ममा को अब कोई तकलीफ ना हो, उनकी आँखों में आँसू ना आए। "
रिया ने कहा, "तुम बिलकुल सही कह रहे हो, रितेश, मुझे लगता हैं, अब तुम समझदार हो गए हो, कितने दिनों से हम तुम्हें यही तो समझाने की कोशिश कर रहे हैं, तुम्हारे पापा तुम्हारे साथ थे और रहेंगे, मगर अब तुम्हें अपनी ममा का ख़याल रखना हैं, तुम्हें उनकी हिम्मत बनना हैं, रितेश ने कहा, हां, तुम सही कह रही हो, पापा के जाने के बाद मुझे ममा का साथ देना चाहिए था, मगर मैंने अपने आप को पापा के मौत का ज़िम्मेदार समझकर उसे ही रुला दिया, दिल के एक कोने में यह बात तो ज़रूर रह जाएगी, कि पापा की मौत मेरी वजह से ही हुई हैं, रिया ने कहा, तुम यह भी तो सोच सकते हो, कि अगर उस दिन तुम्हारे पापा की जगह तुम चले गए होते, तो क्या वह ये दुःख सेह सकते ? वह भी इतनी उम्र में ? क्या वे अपनी ही आँखों के सामने अपने ही बेटे को जलता हुआ देख सकते ? क्या वे ये हादसा बर्दास्त कर सकते ? क्या वे इस उम्र में अपने बेटे की मौत के बाद ज़्यादा जी सकते ? नहीं ना ! तो फ़िर यही समझो, कि भगवान् की यही मर्ज़ी होगी, कि तुम यहाँ रह कर उनका बिज़नेस सँभालो और अपनी ममा के साथ और पास रहो, उनका ख़याल रखो, जो सुख उन्होंने तुम्हें दिया, वही सुख अब उनको देने की अब तुम्हारी बारी हैं। "
रितेश ने कहा, " हां, तुम ठीक कह रही हो, अगर तुम यहाँ मेरे साथ नहीं होती, तो ना जाने मेरा क्या होता ? पता नहीं, मैं तुम्हारा यह एहसान कैसे चुकाऊँगा ? "
रिया ने हस्ते हुए कहा, "अपनी ममा के अच्छे बेटे बनकर। "
रितेश और रिया दोनों साथ में हँस पड़ते हैं, कुछ दिनों तक दोनों साथ में ऑफिस जाते हैं, रात को ममा के साथ वक़्त बिताते हैं, हसी-मज़ाक भी करते हैं, लेकिन रितेश की ममा की अब एक ख़्वाइश हैं, कि रितेश की शादी हो जाए, मगर रितेश को अब किसी लड़की पर भरोसा नहीं रहा, अब रितेश को अपनी ज़िंदगी में कोई लड़की नहीं चाहिए, बस इसी बात की रोज़ चर्चा होती रहती हैं, रितेश की ममा ने उसके लिए लड़की देखनी शुरू भी कर दी, मगर रितेश हर लड़की में कोई ना कोई कमी निकालकर मना कर देता, दिन बीतते गए, एक दिन अचानक से रितेश की ममा की तबियत बिगड़ जाती हैं, रितेश उन्हें अस्पताल लेकर जाता हैं, उनका अच्छे से अच्छा इलाज शुरू करवाता हैं, मगर अब वह भी थक चुकी थी, उस रात रितेश की ममा को अचानक साँस लेने में फ़िर से तकलीफ होने लगी, रिया और रितेश उस वक़्त दोनों साथ में वही थे, रितेश की ममा ने रितेश और रिया से ये वादा माँगा, कि " मेरे जाने के बाद तुम दोनों एक दूसरे से शादी कर लोगे, समझलो मेरी बस यही एक आख़री इच्छा हैं, जो तुम दोनों को अपना-अपना अतीत भुला के एक दूसरे के साथ एक नई ज़िंदगी शुरू करनी ही होगी।"
रिया ने कहा, कि " ये कैसे हो सकता हैं, आंटी जी ? आप तो जानते ही हो, कि मैं रितेश से ४ साल बड़ी हूँ और मैं और रितेश एक दूसरे के अच्छे दोस्त हैं, बस और कुछ नहीं और तो और ख़यालात भी तो एक दूसरे से बहुत अलग हैं, दोस्ती की बात और है और शादी की बात और। "
आंटी ने कहा, कि " उम्र मैं बड़ी हैं, तो क्या हुआ ? मुझे उस में कुछ गलत नहीं लगता, लोगों की परवाह मत करो, मेरे जाने के बाद अब तुम को ही मेरे रितेश को माँ और पत्नी का प्यार देना हैं, मुझे तुम्हारे आलावा और किसी पर भी भरोसा नहीं, मेरी बात मान जाओ और शादी के लिए हां कह दो, मेरे इस पगले बेटे को अपनाओगी ना ? मेरे जाने के बाद उस का ख़याल रखोगी ना ? "
रिया के पास इस वक़्त शादी से मना करने की ओर कोई वजह भी नहीं थी इसलिए रिया आंटी जी को इस वक़्त मना नहीं कर पाई, रितेश और रिया दोनों की मर्ज़ी ना होने पर भी दोनों ने ममा से वादा किया, कि " हम दोनों शादी कर लेंगे।"
इतना सुनते ही रितेश की ममा ने अपनी आँखें बंद कर दी, दोनों को लगा, कि जैसे ममा हम दोनों को एक करने के लिए ही अब तक रुके हुए थे, मगर उनसे किया वादा निभाना ही था, इसलिए रितेश और रिया ने कुछ दिनों बाद कोर्ट में शादी कर ली।
आख़िर में रितेश और रिया ने शादी तो कर ली, मगर अब भी वह दोनों एक दूसरे के दोस्त बनकर एक ही घर में रहते हैं, साथ में ऑफिस जाते हैं, साथ में काम करते हैं, दो इंसान जो एकदूसरे से बिलकुल अलग थे, वह आज एक साथ रहते हैं, रितेश की ममा जाते-जाते दोनों को एक तो कर गई, मगर क्या वह दोनों एक दूसरे का साथ निभा पाएँगे या नहीं ? एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में अपना पाएँगे या नहीं ?
तो दोस्तों, मेरे इस सवाल का जवाब ज़रूर दीजिएगा, कहानी पूरी होती हैं, ज़िंदगी नहीं, इस कहानी का अंत मैंने कुछ और भी सोचा था, क्या आप जानना चाहोगे, कि इस कहानी का दूसरा पहलु कैसा होगा ? और क्या होगा ? मुझे इंतज़ार रहेगा, आप सब के जवाब का।
Bela...
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