इम्तिहान भाग - 5
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रूही और रिया रूद्र को बैंगलोर जाने के लिए मना ही लेते हैं, रूद्र जाते-जाते रिया को रूही का अच्छे से ख्याल रखने को कह कर चला जाता है। कुछ दिन बाद रात को रूही को अचानक से दर्द शुरू हो जाता हैं, वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगती हैं, रिया उसके साथ ही थी, वह रूही को अस्पताल ले जाती हैं, वहां रूही दो बच्चे को जन्म देती हैं, एक लड़का और एक लड़की। बच्चें की खबर सुनकर रुद्र की माँ और रिया दोनों ख़ुशी के मारे गले मिलकर रोने लगते हैं। रिया और माँ रूही के कमरे में जाते है, तभी रिया के फ़ोन पर रूद्र का वीडियो कॉल आता हैं । अब आगे...
रूही की डिलीवरी के वक़्त रिया इतनी परेशान थी, कि उसे रूद्र को फ़ोन करने के बारे में भी ख्याल नहीं आया था, अब रिया की ही बारी थी, रूद्र को उसके जीवन की सब से बड़ी खुश-ख़बरी सुनाने की। रिया ने वीडियो कॉल उठाया।
रिया ने कहा, कि " बताओ रूद्र, हम आज सुबह-सुबह कहाँ हैं ? "
( रूद्र को थोड़ा परेशान करते हुए )
रूद्र ने कहा, " क्या, हुआ ? तुम शायद अस्पताल में हो ना ? सब ठीक तो है ना ? रूही कहाँ है ? कैसी है ? मेरी उस से बात कराओ ना ? "
रिया ने कहा, " इतने सारे सवाल एक साथ ? इतनी भी क्या जल्दी हैं ? आराम से। ( रूद्र को चिढ़ाते हुए ) अच्छा पहले ये बताओ, तुम्हें लड़का चाहिए या लड़की ? "
रूद्र ने कहा, " देखो, ऐसी पहेलियाँ मत खेलो, मेरे साथ, सच सच बताओ, क्या हुआ ? सब ठीक तो हैं ना ?"
( कहते-कहते रूद्र की आँखें भर आती है। )
रिया ने कहा, " अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें रूही से और तुम्हारे दोनों बच्चो से मिलवाती हूँ। "
( उस तरफ रूद्र के दिल की धड़कन भी ये सुनकर तेज़ हो रही थी, वह वीडियो कॉल में भी ये सुनकर रो पड़ता है। रिया कैमरा रूही की और ले जाती है। )
रूही ने कहा, " देखो रूद्र, मैं ठीक हूँ, तुम कैसे हो ? "
( आँखों में आँसु के साथ )
( दोस्तों, ये पल ही ऐसा होता हैं, हमारे ना चाहने पर भी आँखों से आँसू निकल ही आते हैं । ये ऐसा खूबसूरत पल हैं, जिस में हमारी पूरी ज़िंदगी की ख़ुशी भी मायने नहीं रखती, इस से ज़्यादा खूबसूरत पल एक माँ- बाप के लिए और कोई हो ही नहीं सकता। )अब आगे...
रूद्र ने कहा, " मैं तो ठीक ही हूँ। मुझे क्या होना है। मगर तुम कैसी हो ? हमारा बच्चा कैसा है ? क्या हुआ ? काश... मैं इस वक़्त तुम्हारे पास होता, इस पल का इंतज़ार मुझे कई महीनो से था और आज मैं ही तुम से इतनी दूर हूँ। "
रूही ने कहा, " कोई बात नहीं, तुम वापस आ ही जाओगे ना ? दूर से ही सही, हम एकदूसरे को देखकर एकदूसरे से बातें भी तो कर रहे है ना ! क्या तुम हमारे बच्चो से मिलना नहीं चाहोगे ?"
रूद्र ने कहा, " हां, हां ज़रूर। कहाँ है वो ? मुझे देखना है उनको, इस पल का तो मुझे कब से इंतजार था। "
रिया ने कहा, " नहीं, नहीं, ऐसे नहीं, जब तुम यहाँ आओगे, तभी तुमको मिलवाएंगे, तुम्हारे बच्चो से। तब तक के लिए इंतज़ार करो। ये तो अच्छा है, कि मैंने तुम्हारी बात रूही से तो करवाई, वरना...) ( रूद्र को चिढ़ाते हुए )
रूद्र ने कहा, "रिया की बच्ची, तेरी खबर तो में घर आकर लेता हूँ, मैं तुझे छोडूंगा नहीं।) ( हस्ते हुए )
तभी बच्चे की रोने की आवाज़ आती हैं।
रूद्र ने कहा, " देखो, वह रो रहा है, मैंने उसकी आवाज़ सुनी, अब दिखा भी दो यार, प्लीज... प्लीज... प्लीज... "
रिया मोबाइल बच्चों की ओर ले जाते हुए
रिया ने कहा, " अच्छा बाबा, अच्छा, दिखा देती हूँ। "
दोनों बच्चो को देखकर रूद्र की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता, वह जहाँ पर खड़ा था, वहीं पर नाचने-गाने लगता है, " साला मैं तो बाप बन गया, साला मैं तो बाप बन गया। " रूद्र को ऐसे नाचते देख रूही और रिया भी हँसने लगते है। रूद्र की माँ भी ख़ुशी के मारे दोनों बच्चों की और रूही की बलैयां लेते हुए उनकी नज़र भी उतार रही थी।
( कितना खूबसूरत ये पल है, शायद हम इस पल को अपनी आँखो में बसा सकते। दिल कहता है, इस पल में जो ख़ुशी है, वह ख़ुशी सारी उम्र के लिए हमारे पास ठहेर जाए, ये पल, दो पल के लिए यहीं पर रुक जाए, कुछ पल, और इस पल को, इस लम्हें को जी ले। ) अब आगे...
अपने छोटे-छोटे, प्यारे-प्यारे दोनों बच्चों को देखकर रूद्र की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। दूसरे ही पल अपने एक बच्चे को काँच की पेटी में देख रूद्र थोड़ा सा परेशान हो गया। उसने रूही से पूछा, " अरे रूही, वह हमारे एक बच्चे को यूँ काँच की पेटी में बंद कर के क्यों रखा है ? वह ठीक तो है ना ? डॉक्टर ने क्या कहा ? और वह रो भी ज़्यादा रहा है ? प्लीज डॉक्टर को बुलाओ और उस से पूछो, कि इसे कोई तकलीफ तो नहीं ना ? "
रूही ने रुद्र को समझाते हुए कहा, कि " अरे, इतने सारे सवाल, वह भी एक साथ ? तुम भी ना ! तुम फिक्र मत करो, डॉक्टर ने सब देख लिया है। वह तो इसे साँस लेने में थोड़ी तक़लीफ़ हो रही थी, इसलिए ऐसे रखा है। लेकिन अब ठीक है। "
रूद्र ने कहा, कि " मैं ऐसा करता हूँ, कि कल सुबह की या आज रात की फ्लाइट पकड़ के सीधा तुम्हारे पास आ जाता हूँ। बाकि सब देखा जाएगा, वैसे भी मेरा काम अब ख़तम होने ही वाला है, मैं बॉस से बात कर लेता हूँ। रिया भी वहां अकेली हैं, कैसे इतना सब कुछ संभालेगी ?
रूही ने कहा, " अरे, बाबा ! इतनी फ़िक्र मत करो, यहाँ सब कुछ ठीक हैं, मैंने अपनी मम्मी और भाभी को भी कुछ दिन के लिए यहाँ बुला लिया हैं, तो सब कुछ मैनेज हो जाएगा, तुम बस अपने काम पर ध्यान दो, तुम्हारा काम जैसे ख़तम हो चले आना, ऐसे अपना प्रोजेक्ट कोई अधूरा छोड़ता हैं क्या ? अगर तुम्हारी जगह मैं होती, तो ऐसा कभी नहीं करती, यहाँ सब लोग हैं, मेरी और बच्चों की देख-ऱेख के लिए, रिया भी तो हैं मेरे साथ, उसके होते हुए मुझे क्या कुछ हो सकता हैं ? मैं जानती हूँ, रिया खुद टूट के बिखर जाएगी मगर मुझे और मेरे बच्चों को कुछ नहीं होने देगी, तुम तो जानते ही हो ना उसे, वैसे रिया ने भी ऑफिस से कुछ दिनों की छुट्टी ले रखी हैं, तो सब हो ही जाएगा, अब तुम फ़ोन रखो, मैं बहुत ठक गई हूँ, मुझे थोड़ा आराम करना हैं।"
रूद्र ने कहा, " अच्छा ठीक हैं, अब तुम आराम करो, मैं रिया से बात कर लूँगा, मेरा भी मीटिंग में जाने का वक़्त हो गया हैं, मैं भी निकलता हूँ, मीटिंग के बाद फ़िर से फ़ोन करता हूँ। Do take very good care of yours. by.. "
( कहते हुए रूद्र फ़ोन ऱख देता हैं, रूद्र मीटिंग में जाने के लिए निकलता हैं, मगर उसका मन तो अब भी रूही और अपने दोनों बच्चो के इर्द-गिर्द ही घूम रहा होता हैं। उस तरफ़ रिया ने अस्पताल और घर का सारा काम सँभाल लिया था, मतलब कि अस्पताल के सारे पेपर वर्क, रिया और बच्चों की दवाई से लेकर खाने के इंतेज़ाम में लगी हुई थी, रिया को तो जैसे लग रहा था, की वह खुद भी माँ बन गई हो। )
रूही की दूसरी बेटी जो थोड़ी कमज़ोर थी, उसका भी ख़याल रिया बहुत अच्छे से रख रही थी, डॉक्टर्स ने उसे दूसरे कमरे में अलग से रखा था, ताकि उसका अच्छे से ख्याल रखा जाए। रिया बार-बार रूही की उस बेटी के पास जाकर उसे भी देख लिया करती थी, कि वह ठीक तो हैं ना ? रिया इन सब में अपने आपको तो जैसे भूल ही गई थी, उसकी ज़िंदगी जैसे रूही और उसके बच्चों के इर्द-गिर्द ही घूम रही थी, जैसे उसे ज़िंदगी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं थी, रूद्र का प्यार और उसकी ख़ुशी में ही जैसे वह खुश थी, रूही की अब दूसरी बेटी भी बिलकुल ठीक हो गई थी, मगर कमज़ोरी की बजह से वह कुछ ज़्यादा ही रोती रहती थी, रूही की माँ भी उसका बहुत ख़याल रखती थी, आख़िर ५ दिन बाद डॉक्टर ने रूही को घर जाने की अनुमति दे दी।
उस तरफ़ रिया ने घर में रूही और बच्चों के स्वागत की सारी तैयारियाँ कर ली थी, आज सब बहुत ही खुश थे, रूद्र की माँ ने भी घर में सब रूही की पसंद का खाना बनाया था और बच्चों का झूला भी तैयार कर के रखा था, ताकि रूही को ज़्यादा परेशानी ना हो और हाँ, रूही के लिए घर में आज एक और सरप्राइज भी था। रूही और रिया साथ में कार में से बच्चों को लेकर निकलते हैं, घर की और बढ़ते हैं। लेकिन रिया को थोड़ा अजीब लगा, कि घर का दरवाज़ा बंद था और घर में अँधेरा सा छाया हुआ था, जब्कि उसने सब कुछ रूद्र की माँ को पहले से ही समझा दिया था, कि रिया के घर आने पर क्या-क्या करना हैं ? रिया ने रूही को वही दरवाज़े पर रुकने को कहाँ, रिया ने डोर बेल बजाई, तुरंत ही घर का दरवाज़ा खुला, रूद्र का घर पूरा सजाया हुआ था, चारों और गुब्बारे लगाए गए थे और पूरा घर रोशनी से झगमगा रहा था, बहुत सारे गेस्ट और रूद्र और रूही के सारे दोस्त भी आए हुए थे, रूही यह सब देख कर दंग ही रह गई, रिया ने रूही का हाथ ठाम लिया और उसे घर के अंदर आने को इशारा किया, रूही अपने दोनों बच्चों के साथ घर में आती हैं, सब रूही को बधाइयाँ दे रहे थे। तभी रूही को रूद्र का ख़याल आता हैं, कि " शायद आज रूद्र भी यहाँ होता, तो वह भी अपने बच्चों को देख़ कितना ख़ुश होता ! "
रूही रिया के करीब जाती है और उसे धीरे से रूद्र को वीडियो कॉल करने को कहती है। तभी रिया ज़ोर-ज़ोर से हसने लगती है और रिया रूही को पलटते हुए, अपनी उँगलियों के इशारे से कमरे के बीच में खड़े रूद्र की ओर इशारा करती है, जो दोनों हाथों में गुब्बारे और बच्चों के लिए खिलौने लेकर खड़ा मुस्कुरा रहा था। रूही के लिए सच में सरप्राइज था। रूद्र और रिया दोनों ही रूही को सरप्राइज देना चाहते थे, इसलिए रुद्र की घर आने की ख़बर दोनों ने छिपाई थी, रूद्र को सामने देखते ही रूही और रिया दोनों उसकी ओर बढ़ते है मगर रूद्र ने रूही को पहले अपने गले लगा लिया और रिया ने अपने आप को एक पल के लिए फ़िर से सँभाल लिया, तब एक बार फ़िर से रिया को इस बात का एहसास हुआ, कि " रूद्र तो रूही का है और उसी का रहेगा, वह तो सिर्फ़ एक दोस्त है, उसे अपनी दोस्ती निभानी हैं, दोस्ती का फ़र्ज़ निभाना हैं।"
। रिया के लिए तो क्या हर औरत के लिए यह एक इम्तिहान जैसा ही तो है, कितना मुश्किल दौर होता है, जब कोई इंसान जिस से प्यार करता है, उसे किसी और का प्यार बनते देखना, यह ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान नहीं तो और क्या हैं ? यह एक औरत ही समझ सकती है। अब आगे...
तभी रूद्र ने रिया की ओर देखा, तब रूद्र को इस बात का थोड़ा सा एहसास हो गया, कि रिया इस पल क्या महसूस कर रही है, इसलिए रूद्र ने अपना दूसरा हाथ रिया की ओर बढ़ाया और अपनी आँखों के इशारों से रिया को अपनी ओर बुलाया, रिया रूद्र का इशारा समझ जाती है और दूसरे ही पल रिया रूद्र के क़रीब जाती है और उसकी बाहो में रिया भी एक पल के लिए ही सही सुकून का एहसास करती है। तभी रूद्र धीरे से रिया के कानों में कहता है, कि Thank You so much रिया। अगर तुम रूही के साथ नहीं होती, तो ना जाने ये सब कैसे हो पता, तुम्हारी वज़ह से ही तो आज रूही और मेरे दोनों बच्चे मेरे साथ है, मेरे सामने है। तुम्हारा ये एहसान मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूंगा। उसके लिए तुम्हें जब भी, जो भी चाहिए, बिना किसी हिचकिचाहट के मुझ से माँग लेना, ये मेरा तुझ से वादा रहा।
रिया थोड़ा रूद्र से दूर होते हुए ( मुस्कुराते हुए ) कहती है, कि हा हा, माँग ही लूँगी, मेरा हक़ जो बनता है। सब लोग हसने लगते है। फ़िर रूद्र अपने बच्चों को देखता है और अपने दोनों बच्चों को एक साथ अपने हाथों में उठाने की कोशिश करता है। रिया और रूही उसकी मदद करते है। रूद्र की आँखें अपने दोनों बच्चों को देख कर भर आती है। जैसे कि सारे जहाँ की खुशियाँ उसे मिल गई हो। उस पल लगा, कि अगर दुनिया में कहीं जन्नत है, तो यहीं है, यहीं है और यहीं है। रूद्र एक नज़र बच्चों को देखता और एक नज़र रिया और रूही की ओर देखता। रूद्र की माँ और उसकी बहन भी बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी, किसी को भी बच्चों से नज़र हटाने का मन नहीं हो रहा था। कितना ख़ुशी का माहौल था, क़ाश ! कि ये खुशियाँ यूँही हर पल बरक़रार रह पाती।
तो दोस्तों, अब रिया, रूही और रूद्र सब बहुत, बहुत ही खुश थे। मगर क्या ये ख़ुशी यूही बरक़रार रह सकती है ? रिया, रूद्र और रूही की ज़िंदगी बच्चों के आने के बाद अब कौन सा मोड़ लेगी ? ये जानने के लिए पढ़ते रहिए, मेरी कहानी
अब आगे क्रमशः।
Bela...
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