CHANGU AUR MANGU KI YAARI

                           चंगु और मंगू की यारी 

      चंगु और मंगू दोनों बड़े पक्के दोस्त थे। बचपन से ही साथ में ही खाना,पीना, घुमना, फ़िरना, पढ़ना, लिखना, खेलना, कूदना, सब कुछ साथ मिल के ही करते थे। दिन गुज़रते गए। 

       चंगु और मंगू दोनों अब बड़े हो गए। मस्ती में एक नंबर और पढाई में ज़ीरो नंबर।

" इसकी टोपी उसके सर,"  यही बस दोनों का काम था, पास के हर दूकान में दोनों की उधारी चलती रहती थी, सब लोग दोनों  से परेशान थे, उन दोनों को भी सब को परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था, एक दिन उन दोनों की शैतानी से तंग आकर दोनों को घर से भी निकाल दिया गया। घरवालों ने कहा, कि अब घर आना हो तो कुछ कमाकर पैसा लेकर ही घर आना, वरना कभी मत आना। 

          चंगु और मंगू दोनों घर छोड़कर दूसरे शहर चले  जाते है। वहाँ दोनों भाड़े का छोटा कमरा लेकर रहने लगे। अब ज़िंदगी जीने के लिए कुछ काम तो करना होगा ना ! मगर क्या करे ? दोनों ने कभी कुछ काम तो किया ना था। मगर अब सोचना पड़ेगा। इसलिए दोनों साथ में सुबह-सुबह कुछ काम ढूँढने निकल पड़े। उनके घर के पास में ही एक हलवाई की दूकान थी, वहाँ जैसे तैसे करके हलवाई  वाले को पटा के नौकरी पक्की कर दी। मगर शैतान शैतानी ना करेंगे, तो और क्या करेंगे ? जो भी मिठाई लेने आते थे, उनको वज़न में मिठाई कम देके, खुद मिठाई खा जाया करते थे। जैसे ही हलवाई वाले को इस बात का पता चला, दो ही दिन में दोनों को काम से निकाल दिया। फिर दूसरी  जगह में भी झूठ बोलके उधारी पे पैसा लेना शुरू कर दिया और पैसा लेकर खा-पीके, मौज-मस्ती करके उड़ाया करते थे। मगर ना  उधारी चुकाते और ना ही कभी पैसा जमा करते। 

       फ़िर एक दिन दोनों मस्ती में रास्ते पे चल रहे थे। चलते-चलते एक कोने में किसी की साइकिल पड़ी हुई दिखी। दोनों ने आगे-पीछे देखा तो, कोई नहीं था, तो साइकिल वहाँ से चुरा ली और साइकिल पे बैठ के दोनों मस्ती में खुश होते हुए जा रहे थे, कि चलो आज तो साइकिल भी बिना मेहनत के मिल गई। लो, अभी तो साइकिल पे थोड़े  दूर पहुँचे ही थे, कि पीछे से बड़ी तेज़ी से आती हुई कार चंगु मंगू की साइकिल को टक्कर लगाके वहाँ से चली गई। साइकिल को ज़ोर से धक्का लगा, दोनों गिर गए। तो चंगु को टक्कर लगने की वजह से ज़्यादा चौट लगी। चला भी नहीं जा रहा था। लहू भी बहुत बह चूका था। मंगू उस वक़्त बहुत घबरा गया। उसे भी चौट लगी थी, मगर चंगु को ज़्यादा चोट लगी थी। इसलिए जैसे-तैसे करके मंगू खड़ा हुआ और अपने दोस्त को उठा के अस्पताल ले गया। मगर चंगु मंगू  के पास अस्पताल के खर्चे के लिए भी पैसे नहीं थे। डॉक्टर को जैसे-तैसे समझाकर चंगु को अस्पताल में भर्ती तो कर दिया। मगर अब क्या करे ? अब दोनों को अपनी शैतानी पे बड़ा पछतावा हो रहा था। चंगु को अस्पताल छोड़ कर मंगू अस्पताल का पैसा जमा करने के लिए काम की तलाश में निकल पड़ा। मंगू काम के लिए जहाँ भी जाता, सब लोगों ने उसकी शैतानी की वजह से उसे पैसा और काम देने के लिए मना  कर दिया। अपने दोस्त को बचाने के लिए मंगू ने अपने चुराए हुए कपड़े और जुटे तक बेच दिए। अपने दोस्त की फ़िक्र में उस दिन मंगू ने कुछ खाना भी नहीं खाया।  

         दूसरे दिन एक होटल में मंगू को बर्तन धोने का काम मिल गया और रात तक उसने कुछ पैसे जमा कर दिए। तीन दिन बाद चंगु भी अब ठीक हो गया और उसे अस्पताल से घर जाने दिया। चंगु भी ठीक होके मंगू के साथ काम करने लगा, दोनों को पैसों की एहमियत का पता चल गया। शैतानी छोड़कर दोनों दोस्त बड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगे। कुछ ही महीनो में पैसा इकठ्ठे करके अपने घर जाते है। धीरे-धीरे करके दोनों ने  जिन से भी पैसा उधार लिया था, सब को माफ़ी माँग के पैसे लौटा रहे थे। अपने घरवालों से अपनी की हुई नादानी और गलती की माफ़ी माँगी और जो भी पैसा मेहनत करके कमाया था, वो अपने-अपने घरवालों को दे दिया और अपने घरवालों के साथ रहने लगे। वहांँ पे अच्छा काम ढूँढ के काम करने लगे।  

       तो दोस्तों, आख़िर शैतानी तब तक अच्छी लगती है, जब तक हम बच्चे है और वह न दूसरों को नुकसान हो और ना हमें। बड़े होने के बाद बड्डपन आना भी बहुत ज़रूरी है। बड़ा हुआ तो क्या हुआ ? 

     जैसे " पेड़ खजूर के समान " कहावत को सार्थक न करते हुए समय के रहते ही वक़्त और पैसो की एहमियत पता चलना भी ज़रूरी है। 

      इस तरह चंगु और मंगू दोनों ने अपनी दोस्ती निभाई, अगर अच्छे वक़्त में दोनों साथ थे, तो बुरे वक़्त में भी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। बस यही तो दोस्ती कहलाती है। 

                                                            Bela...  

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