RISHTA TERA MERA

                             रिश्ता तेरा मेरा 

       मेरा नाम मोना और उनका नाम आकाश। बचपन से दादी मुझे राजकुमार और राजकुमारी की कहानियाँ सुनाया करती थी। धीरे-धीरे मैं उन्हीं कहानियों के साथ जीने लगी। मतलब की मैं पढ़ाई कम और सपने ज़्यादा देखती रहती। सपने देखते-देखते मैं कब 18 साल की हुई, मुझे पता ही नहीं चला। कभी घोड़े पे बैठ के राजकुमार मुझे लेने आता, तो कभी राजकुमार मुझे डाकुओ से बचाता, कभी राजकुमार मेरे लिए फूल लाता, तो कभी हम बागो में घूमने जाते, कभी मैं राजकुमार के साथ आसमान में उडती, तो कभी वो मुझे झुला झुलाता। सुनने में कितना प्यारा लगता है ना मेरा ये सपना। इन्हीं सपनो के साथ मैं आज बड़ी भी हो गई।  मगर सपने देखने की आदत ना गई। 

      हाँ, अभी 4 साल पहले ही हमारी शादी हुई है। माना की शादी के शुरुआत के दिन बड़े ही अच्छे होते है। थोड़ा प्यार, थोड़ा, शरमाना, थोड़ा इतराना, थोड़ा रुढ़ना, थोड़ा मनाना।            

      सुबह होते ही आकाश ने आवाज़ लगानी शुरू कर दी। मोना चाय ready है ? ब्रेकफास्ट अभी बना के नहीं ? मुझे  late हो रहा है। शाम को पार्टी में जाना है, तुम्हें  याद तो है ना ? मेरे कपड़े लॉन्ड्री से मंँगवाने भी है, वो मंँगवा लेना, रात को मैं वही पहननेवाला हूँ डार्लिंग और हाँ, माँ और पापा की दवाई, याद से मार्किट जाओ तो लेती आना, मुझे शायद आने में देर हो जाए, ऑफिस में मीटिंग भी है। मुन्ने की स्कूल की फीस भर देना, पैसे मैंने कमरे में टेबल पे रख दिए है, तुम देख लेना और...   

      आकाश आगे कुछ बोले उस से पहले मैंने आकाश के मुँह पे अपना हाथ रख दिया और कहा, कि  कितना बोलते हो तुम मैसेज कर देना और  घर जल्दी आ जाना, मैं ready रहूँगी।

     उन्होंने मुझे और ज़ोरो से पकड़ते हुए कहा, कि अगर तुम कहो तो मैं तो अभी भी ready हूँ। 

     मैंने उनसे दूर जाते हुए कहा, कि मैं शाम को पार्टी में जाने के लिए बता रही हूँ, तुम भी बड़े वो हो...  छोड़ो मुझे और ब्रेकफास्ट कर लो,  तुम्हारा टिफ़िन ready  है, जाओ जल्दी। लेट हो जाएगा तो फ़िर मुझे मत सुनाना, कि  तुम्हारी वजह से ही आज मैं फ़िर से लेट हो गया। 

    उन्होंने मुस्कुराकर मुझे छोड़ दिया और कहा अच्छा ठीक है, जा ही रहा हूँ, और मुस्कुराते हुए कहा, कि  तुम ready रहना.... . 

       उनके जाने के बाद मैं छत पे कपड़े सुखाने गई, आसमान में उड रही चिड़ियाँ को देख, सोचा " काश ! मेरे भी पंख होते, तो मैं भी तुम्हारी तरह खुले आसमान में अपने पंख फैलाए उड के बादलो के पीछे छुप जाती, जहाँ से मुझे कोई ढूँढ ही ना पाए। " तभी निचे से आवाज़ आई, बहु, मेरी दवाई लेने जा रही हो ना ? 

       माँ की आवाज़ सुनते ही चिड़ियाँ की तरह मेरा सपना भी कहीं खो गया। मैंने ज़ोर से माँ को आवाज़ दी,आई माँ। और मैं अपना सपना भूल अपने कामो में जुड़ गई, मानाकि आकाश मुझ से बहुत प्यार करते है, शायद वही मेरा सपनो का राजकुमार है। मगर फ़िर भी कभी-कभी सोचती हूँ, कि जो मोना पहले राजकुमार के सपने देखा करती थी, वो राजकुमार उसकी ज़िंदगी में आया तो सही, मगर उसके साथ-साथ ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगी। मुन्ने को सँभालना, माँ-बाबा का ख्याल ऱखना, छोटी नन्द को पढ़ाना, पड़ोसियों की भी बातें सुनना, समाज में चल रहे रीति-रिवाजों के साथ चलना, घर की और सब की छोटे से छोटी चीज़ का ख़याल ऱखना। 

      दिन गुज़रते गए, आकाश और मैं एक दूसरे के साथ बहुत ख़ुश थे। ना उन्होंने कभी मुझ से कोई शिक़ायत की और नाहीं मैंने कभी उनको पलट के जवाब दिया। मगर कुछ वक़्त के बाद आकाश पे ज़िम्मेदारियाँ बढ़ने लगी। और मैं भी अपने कामो में व्यस्त रहने लगी। 

      फ़िर एक दिन ऑफिस से आते ही आकाश ने मुझ से कहा, कि " ऑफिस में सर ने मुझे एक नया प्रोजेक्ट दिया है, जिस के लिए मुझे विदेश भेज रहे है। कुछ ही दिनों के बाद मुझे जाना होगा। वहाँ कितना वक़्त लग जाए अभी कुछ बता नहीं सकता। मगर अभी मैं तुम सब को वहाँ नहीं ले जा सकता, अभी तो मुझे अकेले ही जाना होगा। बाद में वहाँ पे आप सब के लिए रहने का इंतेज़ाम अगर हो जाएगा, तो आप सब को भी वहाँ बुला लूँगा। "

     उनकी ये बात सुनते ही मैं उनसे लिपटकर रोने लगी, आज तक मैं उनके बिना, इतने दिन अकेली नहीं रही, तो अब ये कैसे होगा ? मेरा मन बहुत ही गभराने लगा। 

     आकाश ने मुझे प्यार से समझाया, देखो इस में रोने की कोई बात नहीं, हम फ़ोन पे बात करते रहेंगे ना ! और मुझे आगे बढ़ना है, तो कुछ तो करना होगा ना ! इतने पैसो में घर चलाना, मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। मुझे जो नया प्रोजेक्ट मिला है, अगर वो प्रोजेक्ट मेरा सब को पसंद आ गया, तो हम सब के लिए अच्छा है ना ! मुन्ने को आगे पढ़ाना भी है, बहन शीला की शादी करनी है, पापा तो अब रिटायर हो गए है, उनकी पैंशन की रकम तो उन्ही के दवाई में जाती है ना ! अगर में ऐसे ही यहाँ बैठा रहा, तो कैसे चलेगा ? please बात को समझो। मैं वादा करता हूँ, कुछ ही समय में मैं तुम सब को वहांँ बुला लूँगा। 

      मैंने भारी मन से उनको जाने की मंज़ूरी देदी। पहले तो अकेलापन खाए जाता था मुझे और ऊपर से लोगों के ताने भी अब तो सुनने पड़ते थे, " जो विदेश जाता है, वो लौट के कहाँ आता है। " मेरा मन और भी डरने लगता, कि कही सच में आकाश वापिस नहीं आया तो ? उन्होंने हम सब को अपने पास नहीं बुलाया तो ? 

      मगर आकाश मेरी हिम्मत बना रहा, वो मुझे फ़ोन पे समझाता रहा, " लोगों की बातों पे ध्यान मत दो। मैं तुम से आज भी बहुत प्यार करता हूँ और  मैं भी तुम सब को यहाँ बहुत याद करता हूँ। सोचो की मैं हर पल तुम्हारे साथ और तुम्हारे पास ही हूँ। मगर मेरा काम ही ऐसा है, कि मेरे पास अब वक़्त ही नहीं। तुम भी अपने दोस्तों के साथ बाहर आना-जाना रखो। खुश रहा करो, तुम को जो पसंद है, वो तुम करो, अगर तुम ऐसे रोती रहोगी, तो मेरा भी मन नहीं लगेगा, बहुत जल्द मैं तुम सब को यहाँ बुला लूँगा। "

      आकाश के ऐसे समझाने पे मैं उनकी बात मान जाती। धीरे धीरे मुझे आदत पड़ने लगी। अपने दोस्तों के साथ वक़्त बिताने लगी। कहानियाँ सुनना आज भी अच्छा लगता, तो मोबाइल पे कहानियाँ सुना करती। मुझे नॉवेल पढ़ने का भी शौक़ था, तो वक़्त मिले तो कभी-कभी पढ़ लिया करती।  उस में वक़्त कहाँ बीत जाता पता ही नहीं चलता। आकाश से रोज़ वीडियो कॉल पे बातें भी होती थी, मगर फ़िर भी कभी-कभी मन उदास हो जाता था, एक अजीब सी बैचेनी लगी रहती। 

       तक़रीबन 5 साल के बाद आकाश ने बताया, कि मेरा प्रोजेक्ट पास हो गया है, वो लोग इस के बदले में मुझे  बहुत सारे पैसे भी देंगे और यहाँ अब मुझे रहने को घर भी दे रहे है, तुम अब यहाँ आने की तैयारी शुरु कर दो, मैं  आप सब के विसा का इंतेज़ाम करना शुरु कर देता हूँ। और एक ज़रूरी बात, Thank you so much की तुमने मुझे यहाँ अपने काम के लिए आने दिया और माँ-पापा, दीदी, मुन्ना और हमारे घर का इतना अच्छे से ख्याल रखा। " तुम्हारे साथ " के बीना में ये कभी नहीं कर पाता। इसलिए तुम्हारा जितना भी शुक्रिया अदा करू कम ही है।

      आकाश की बात सुन मेरी आँखों से ख़ुशी के आँसू बहने लगे। जैसे मेरे सपनों को फ़िर से पंख लग गए हो। फ़िर मैंने अपने आप को सँभालते हुए कहा, कि " ऐसी बात नहीं है, अगर आपका साथ नहीं होता, अगर आप मुझे अकेले कैसे रहकर सब कुछ सँभालना है ? ये नहीं समझाते, तो मेरे लिए बिना आपके इतने साल अकेले रहना बहुत मुश्किल हो जाता। इसलिए ऐसे वक़्त में मेरी हिम्मत बनकर मेरा हौसला बनाए ऱखने के लिए, आपका मैं जितना भी शुक्रिया अदा करू कम ही है। 

    आकाश ने बात को घुमाते हुए कहा, कि " अच्छा चलो फ़ोन रखो, और यहाँ आने की तैयारी शुरु कर दो। 

     हम सब ने वहाँ जाने की तैयारी शुरू कर दी। कुछ ही दिनों में हमारा विसा भी मिल गया। हम सब साथ में ही आकाश के पास विदेश चले गए। इतने सालो बाद आकाश को मिलते ही मैं उनके गले लग के रोने लगी। आख़िर में हमारे बिच की दूरी अब ख़तम हो ही गई। मैंने रोते हुए आकाश से कहा, " अब  मुझे कभी भी यूँ अकेला छोड़ के जाने की बात कभी मत करना, वरना मैं तुमको नहीं छोडूँगी। "  

      आकशने कहा, " ये line तुमने किस कहानी में पढ़ के याद की है ? बताओ तो ज़रा ! मैं भी तो सुनू ! "

    उनकी बात सुन हम सब हसने लगे। फ़िर से हम सब साथ में पहले की तरह रहने लगे। 

      बिस्तर पे सोते-सोते  मैंने रात को आकाश से पूछा, की " राजकुमार क्या सच में होता भी है, या फिर वो सिर्फ़ कहानीयों में ही होते है ? "

       आकाशने कहा, " सिर्फ़ राजकुमार ही नहीं, राजकुमारी भी होती है और मेरी राजकुमारी तुम हो, समझी ? " 

    हम दोनों गले मिल के फिर से हसने लगे।  

        तो दोस्तों, कभी कभी ज़िन्दी में हमें कुछ करने के लिए थोड़ा कुछ छोड़ना भी पड़ता है, ज़िंदगी हमें कभी कुछ करने का मौका दे रही हो, तो वो मौका हमें छोड़ना नहीं चाहिए। अपनी मेहनत और लगन से हम कुछ भी करने की कोशिश करे तो हम ज़रूर कामियाब होके ही रहेंगे। मेहनत का फ़ल हमेंशा मीठा ही होता है। 

     सोचो अगर आकाश ने हिम्मत कर के विदेश जाके  अपना काम नहीं किया होता, तो क्या वो अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ पाता ? नहीं ना ! क्या मोना ने हिम्मत ऱखकर आकाश को नहीं जाने दिया होता, तो क्या वो आज अपनी ज़िंदगी में success हो पाता ? नहीं ना ! 

      और सच कहुँ, तो कभी कभी ज़िंदगी में फासले हम को अपनों के और भी करीब ला देते है और अपनों की अहमियत भी सीखा जाते है। जो " रिश्ता तेरा मेरा " होता है, वह एकदूजे के साथ से हमारा बन जाता है।  

                                                           Bela...
 

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