ख़ाली जगह
जब भी आधी रात को बिस्तर पे मैं करवट बदलता हूँ, तब मेरी नज़र सावित्री की जग़ह पे जाके रुक सी जाती है, क्योंकि आज वो जगह खाली है।
सुबह जिसके साथ मैं मंदिर जाया करता था, घर आकर चाय-नास्ता करता था, कल जो रातो को मेरा सिर दबाया करती थी, रात को मेरे पैर की तेल मालिश भी किया करती थी, मुझे वक़्त पे दवाई दिया करती थी, मेरी हर छोटी से छोटी बात का ख्याल रखा करती थी, जो मेरे सोने के बाद ही सोती थी, आज वो मुझ से पहले ही एक बहुत गहरी नींद में सो गई है। आज मेरे बिस्तर पे उसकी जग़ह खाली हो गई है और उसके साथ मैं भी खाली सा हो गया हूँ।
अब तो सिर्फ नाम हसमुख रह गया है, पहले मैं भी बहुत ख़ुश रहा करता था, मगर जब से मेरी बीवी सावित्री इस दुनिया से चली गई है, तब से मैं बहुत अकेला रह गया हूँ। ये सब इतनी अचानक से हुआ की मुझे पता ही नहीं चला ये सब कैसे हो गया ? उसके अचानक से जाने के बाद मेरी भी तबियत ठीक नहीं रहती। मैं चिड़चिड़ा सा होने लगा, मेरा भी टेंशन diabetes की वजह से बढ़ गया, मेरा लड़का और बहू सुबह ऑफिस चले जाते है और मेरा पोता भी स्कूल चला जाता है, मैं घर में अकेला हो जाता हूँ, मेरी समज में नहीं आता था, की मैं क्या करू ?
मेरे चिड़चिड़ेपन की वजह से कभी-कभी मेरा झगड़ा मेरी बहु और बेटे के साथ हो जाता, कभी चाय में चीनी ज़्यादा तो कभी खाने में नमक कम, अपनी बहु से मैं ऐसी शिक़ायत किया करता। मेरा चश्मा तूट गया, तो मुझे आज के आज ही नया चश्मा चाहिए, जो मुझे आज के आज ही चाहिए था, ऐसी मैं ज़िद्द करता, मेरा सारा सामान और मेरे कपड़े जो पहले सावित्री सब अच्छे से संभालके रखा करती थी, वो आज मेरे पुरे कमरे में बिखरा पड़ा है, बहु को अपने जॉब की वजह से इन सब के लिए बहुत कम वक़्त मिलता, वो ये सब सिर्फ sunday को ही करती, सावित्री के जाने के बाद बहु भी बहुत अकेली हो चुकी थी, क्योंकि सावित्री उसको हर काम में हाथ बताया करती, दोनों साथ मिलके घर संभाल लिया करते थे। सावित्री के जाने के बाद मैं और मेरा पूरा घर जैसे बिखर गया था। मेरी समज में कुछ नहीं आ रहा था, की ये सब मैं कैसे ठीक करू ?
फ़िर एक दिन मेरा दोस्त मुझे मिलने के लिए मेरे घर आया, उसकी भी बीवी कुछ साल पहले ही चल बसी थी, तो उससे मैंने अपने बारे में बताया तब उसने मुझ से कहा, की " इन सब में गलती तुम्हारी ही है, तुम ख़ामख़ा ही अपने लड़के और बहु के साथ झगड़ते हो, वो दोनों भी अपने काम में पूरा दिन buzy रहते है। अपना काम खुद कर लिया करो, माना की तुम्हें आदत नहीं है, इन सब चीज़ो की क्योंकि सावित्रीजी ही ये सब संभालती थी। उनकी भी गलती है, कि उन्होंने तुम को कुछ करने नहीं दिया, इसीलिए आज तुम्हारा ऐसा हाल हो गया है, जब्की मेरी बीवी ने मुझ को सब बताया था और हम दोनों साथ मिलकर घर का और बाहर का काम संभाल लिया करते थे, इसलिए मुझे उसके जाने के बाद इतनी तकलीफ नहीं हुई, जितनी तुमको हो रही है। लेकिन कोई बात नहीं, अब भी वक़्त है, अब मैं जैसा कहु वैसे करते जाओ और कल सुबह ६ बजे तुम मुझे हमारे पास वाले गार्डन में मिलना, वहांँ हम बातें करेंगे। "
मुझे भी अपने दोस्त की बात सही लगी।
दूसरे दिन सुबह मैं जल्दी उठकर अपने दोस्त से मिलने गार्डन में गया, तो वहांँ मेरे जैसे और भी बहुत से लोग थे, मेरा दोस्त वहांँ पे कुछ अपने जैसे ही दोस्त के साथ योगा कर रहा था, उसने मुझे भी ऐसा करने को कहा, मुझे बाद में अच्छा लगा, सब के साथ मेरी भी दोस्ती हो गई, उसके साथ मैंने भी लाफिंँग क्लब जाना शुरू कर दिया, गार्डन से आते वक़्त बहु से पूछकर मैं घर के लिए रोज़ दूध, फ्रूट और सब्जी लाया करता हूँ और घर में भी रोज़ अपना काम खुद करने लगा। हर चीज़ के लिए मैं अपनी बहु और बेटे को परेशान नहीं करता, सुबह की चाय भी मैं खुद ही बनाने लगा और बहु को सब्जी काटने में भी उसकी हेल्प करने लगा, पहले तो उसने मुझे ऐसा करने से मना किया, लेकिन मैंने बहु को समजाया कि " घर में बैठे-बैठे मैं क्या करूँगा ? कुछ काम करूँगा, तो मेरी तबियत भी ठीक रहेगी और मेरा मन भी लगा रहेगा। " बहु को भी मेरी बात सही लगी, तो वो भी अब मेरा बहुत ख्याल रखती है, सुबह कान्हाजी की सेवा पूजा भी मैं ही करता हूँ, मेरे पोते को किताब में से पढ़के उसे अच्छी- अच्छी कहानियांँ सुनाने लगा, उसके साथ कभी-कभी खेल भी लिया करता हूँ, मेर बेटे ने खुश होकर मुझे एक नया मोबाइल भी दिला दिया, जिसमें मैं रोज़ भगवान जी की आरती के दर्शन घर बैठे ही कर लेता हूँ। मोबाइल से अपने दोस्तों से बातें भी हो जाती। इन सब में वक़्त कैसे बित जाता है, पता ही नहीं चलता।
इन सब में वक़्त तो गुज़र जाता है, मगर मुझे सावित्री की कमी आज भी महसूस होती है, आज भी मैं रात को बिस्तर पे करवट बदलता हूँ, तो उसकी ख़ाली जग़ह आज भी मेरे मन को फिर से ख़ाली कर जाती है।
तो दोस्तों, ज़िंदगी में हर एक को कभी ना कभी इस ख़ालीपन के साथ रहना ही होता है, अगर हम पहले से इसके लिए सजग रहे तो हमारी बाकि की ज़िंदगी थोड़ी आसान हो सकती है, ज़िंदगी को कैसे जीना चाहिए, ये हमारे हाथ में ही है, हमारे अकेलेपन के लिए हम किसी और को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते या फिर इसकी वजह से हम हमारे अपनों को ही परेशान नहीं कर सकते। उनकी भी अपनी ज़िंदगी होती है। अगर हम हमारे अपनों के साथ मिल-जुलकर रहे और उनके हर फैसलों पे हम अपना फैसला ना थोपे, तो उनको भी अच्छा लगेगा। वक़्त के साथ-साथ हर इंसान को और उनकी सोच को भी बदलना ज़रूरी है।
Bela...
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