NAZAR-ANDAZ

                                                            नज़रअंदाज़

           दोस्तों, ज़्यादातर हमारे सुनने में यही आता है की, बच्चो ने अपने माँ - बाप को घर से निकाल दिया या उनका ख्याल नहीं रखा, मगर आज में आप सबको इससे अलग कहानी सुनाना चाहती हूँ, जैसे की हर बार गलती बच्चो की नहीं होती, कभी कभी माँ - बाप भी ज़िम्मेदार होते है। 

         आकाश अपने मम्मी - पापा से तंग आ चूका था, मम्मी और पापा की party  और meetings कभी ख़तम ही नहीं होती थी, उनके पास आकाश के लिए तो जैसे वक़्त ही नहीं था, जब भी आकाश उनसे कुछ बात करना चाहता तब, उनको लगता की आकाश उनसे कुछ माँग रहा है, तब वो दोनों हर बार बिना आकाश की पूरी बात सुने, आकाश के हाथों में हर बार नया खिलौना पकड़ा दिया करते थे, इसलिए आकाश की वो बात उन तक कभी नहीं पहोच पाती थी, जो आकाश उनसे कहना चाहता था, फिर आकाश के दादाजी आकर आकाश को अपने कमरे में ले जाते, और आकाश को समजा दिया करते, की " अपने मम्मी पापा की बात का बुरा मत माना करो, वो तुम्हे सिर्फ और सिर्फ खुश देखना चाहते है। "

            तब में दादाजी से कहता, की  " में तो सिर्फ और सिर्फ उनसे बात करना चाहता हूँ। "

       तब दादाजी आकाश को अपनी गोद में बैठाकर मुस्कुराते हुए कहते, की " तो तुम अपनी बात मुझ से किया करो, में हूँ ना तुम्हारे पास, वैसे भी तुम्हारे पापा मम्मी को business का बहोत काम जो होता है "

         और में समज जाया करता था और दादाजी से बहोत से सवाल किया करता था और उन्ही के साथ खेलता भी था और बातें भी करता रहता था। वो मुझे बहोत प्यार करते थे, लेकिन एक दिन दादाजी अचानक मुझे छोड़ के भगवान् जी के पास चले गए, तब में जैसे एकदम से अकेला हो गया था, लेकिन दादाजी मेरे लिए कुछ ख़त छोड़कर गए थे, जिसमे लिखा था की

 मेरे प्यारे आकाश बेटा,

          " अभी तू सिर्फ १० साल का है, इसलिए अभी शायद तुम्हे मेरी सारी बातें समज में ना आए, इसलिए अभी सिर्फ इतना कहता हूँ की मेरी सिखाई हर बात याद रखना, और उसी पे चलने की कोशिश करना, अपने मम्मी - पापा की हर बात सुनते जाना, और वो जैसा बोले वैसा तूम करते जाना, अच्छे से मन लगाकर पढाई करना। आज भले ही में तेरे पास नहीं रहा मगर में हंमेशा तुम्हारे साथ ही रहूँगा और हांँ मैंने तुम्हारे लिए एक दूसरा खत भी लिखा है, जिसे तूम जब १८ साल के हो जाओ तभी पढ़ना।  मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगा।" 

                                           दादाजी 

        आकाश दादाजी की बात मानकर वो ख़त सम्भाल के अपनी अलमारी में रख देता है। मगर दादाजी के जाने के बाद अब वो बहोत अकेला हो चूका था, आकाश के मन में बहोत से सवाल चल रहे थे, जिसके जवाब पहले उसके दादाजी दिया करते थे और अब मानो आकाश अपने सवालो के भवंडर में फसता ही जा रहा था।  आकाश के पास मानो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं था, उसके मम्मी - पापा के पास आज भी उनके लिए वक़्त नहीं था, आकाश जब भी उनसे कुछ बात करने की कोशिश करता, तब वो लोग यही समझते की उसे कुछ चाहिए, और हर बार नया खिलौना आकाश को दे दिया करते थे, ये सिलसिला चलता ही रहा। आकाश को  जिसका इंतज़ार था, आज वो दिन आ ही गया, आज आकाश का जन्मदिन है, और आकाश को आज वो दादाजी का लिखा हुआ ख़त पढ़ना है, इसलिए वह सुबह जल्दी उठते ही खत पढ़ने लगा, जिसमे लिखा था की, 

          " आकाश बेटा, आज तू १८ साल को हो गया होगा, और आज तुम्हारा जन्मदिन भी है, तो पहले तो तुम्हे तुम्हारे जन्मदिन की बहोत बहोत बधाई। तुम्हारे नाम की तरह तुम्हारी कामियाबी भी आकाश को चूमे।  

           तो सुनो, में जानता हूँ बेटा, की आज भी शायद तुम्हारे मम्मी और पापा तुम से बात नहीं करते होंगे, या तो उनके पास तुम्हारे लिए वक़्त ही नहीं होगा, ये में अच्छी तरह से समज  सकता हूँ, क्यूंँकि तेरे पापा जब से बड़े आदमी बन गए है, तब से तुम्हारे साथ ही नहीं, मेरे साथ भी ऐसा ही करते थे, तुम्हारे पापा ने मेरे साथ भी कभी कोई बात नहीं की, उनके पास हमारे लिए वक़्त ही नहीं होता। इसलिए आज तुम पे क्या बित रही होगी, ये में अच्छी तरह से समज सकता हूँ, तेरे पापा जब कॉलेज में थे तभी से, उनके ऊपर अपने पैसो और अपने स्टेटस का बड़ा घमंड था, उनके दोस्त भी उनके जैसे ही थे, देर रात तक night party, शराब, शबाब, यही उसके शौक थे, मेरे लाख समजाने पर भी उसने वो सब कुछ किया जो उसे नहीं करना चाहिए था, वो मेरी एक भी बात नहीं सुनता था, फिर कॉलेज की अपनी पसंद की एक अमिर लड़की से उसने शादी कर ली, तब से मेरा सारा business वो दोनों ही सम्भाल रहे है, मैंने भी फिर उनसे सारी  उम्मीद छोड़ दी थी, और अपना सारा business मैंने उन दोनों को सँभालने के लिए दे दिया।  जिस पे अब तेरा हक़ है, क्यूंँकि मैंने अपना सारा business उनको सिर्फ सँभालने के लिए दिया है, मगर वो तुम्हारे नाम पे ही है, ये बात शायद उनको भी नहीं पता होगी, क्यूंँकि तुम्हे देखने के बाद मुझे ऐसा लगा की मैंने तुज में वो सब कुछ देखा,  जो में तुम्हारे पापा में देखना चाहता था, इसलिए जो बातें में तुम्हारे पापा से ना कर सका, वो बातें, में तुमको बताया करता हूँ। 

       मुझे पता है, की एक ना एक दिन तुम्हारे मम्मी - पापा को  अपनी गलती का एहसास ज़रूर होगा, तुम्हारे पापा जैसे भी हो मगर तुम उनका साथ कभी मत छोड़ना, और मैंने जो तुम्हे सिखाया है वो हमेशा याद रखना।  

       " दोस्त उसीको बनाना, जो तुम्हारे अच्छे वक़्त में नहीं, बल्कि तुम्हारे बुरे वक़्त में काम आऐ, प्यार और शादी उसी लड़की से करना, जो तुम्हारी दौलत को नहीं, बल्कि तुम्हे प्यार करे, जो बड़ो का आदर सत्कार करे।  

        गरीब को मदद करते रहना, अपने घर के नौकर के साथ बुरा व्य्वहार कभी मत करना, याद रखना उनकी वजह से ही तो तुम्हारा घर चलता है, तुम्हे वक़्त पे खाना मिलता है, उनका घर हम से चलता है, तो हमारा  घर भी उन्ही लोगो से चलता है, रोज़ सुबह इस जीवन के लिए भगवान का शुक्रिया ज़रूर करना, क्यूंँकि आज तुम्हारे पास जो कुछ भी है, वो उन्ही का दिया हुआ है, तुम अपने बेटे के साथ वैसा कभी मत करना, जैसा तुम्हारे पापा ने तुम्हारे और मेरे साथ किया है, तुम अपनी पढाई ख़तम कर अपने पैरो पे खड़े रहना, पैसो से ज़्यादा एहमियत रिश्तों की होती है, अगर हो सके तो  ये बात अपने पापा को ज़रूर मेहसूस कराना, बाकि तुम बहोत समझदार हो, में तुम्हारे साथ कल भी था और आज भी हूँ, इसलिए अपने आप को कभी अकेला मत समजना।"

                                                          - दादाजी 

             आकाश ने दादाजी का खत पढ़ने के बाद बहोत सोचा। उसे जैसे अपने सारे सवाल के जवाब मिल गए थे।  पापा ने हर साल की तरह घर में बहोत बड़ी party रखी थी, पापा के सारे दोस्त और उन सबकी family आ चुकी थी, पापा और मम्मी हर साल की तरह अपने दोस्तों के साथ बातों में मस्त थे, केक काटने का वक़्त हो चूका था, मगर वो शायद भूल गए थे की party किस लिए दी गइ थी, में हर साल की तरह कोने में बैठकर केक की और देखे जा रहा था, बिना कुछ सोचे समजे में वहांँ से खड़ा हुआ, और मैंने केक के टेबल को ही गिरा दिया, पुरे कमरे में सन्नाटा छा गया, में  आगबबूला हो रहा था, पापा मेरी तरफ आके इस बदतमीज़ी का जवाब मांँग रहे थे, तब मैंने कहा की, 

         " हाँ, में हूँ बद्तमीज़।  क्यूँकि ऐसा करने पर आप दोनों ने ही मुझे मजबूर किया है, मुझे बचपन से ही सिर्फ और सिर्फ आप दोनों का प्यार और साथ चाहिए था, जो मुझे शायद आज तक नहीं मिला, मैंने जब भी आप दोनों से कुछ बात करने की कोशिश की, तब आप दोनों मेरे हाथों में हर बार एक नया खिलौना पकड़ा दिया करते थे, मगर आप दोनों के पास मेरे साथ वक़्त बिताने का वक़्त ही तो नहीं था और ना ही मेरे साथ बातें करने का।  

        अपनी party और meetings में आप दोनों इतना buzy रहते है की, मेरे स्कूल की meetings तो आपको याद ही नहीं। सब के parents स्कूल आते थे, में आप का इंतज़ार करता रहता।  मुझे आप दोनों के मुँह से मेरे अच्छे मार्क्स के लिए शाबाशी और मेरे कम मार्क्स और मेरी शैतानी की वजह से डांट सुननी थी, मगर ये आज तक हो ना सका।  मुझे डांस में first prize मिला हो या पढाई में, आप दोनों कभी वहाँ थे ही नहीं, जबकि उस वक़्त मेरी नज़रे हर पल आपको ढूंढा करती थी। 

    क्या आपको याद है की आप दोनों ने आखिरी बार मेरे पास  बैठ के कब खाना खाया था ? नहीं ना, क्यूंँकि ऐसा कभी हुआ ही नहीं।  

       क्या आप दोनों को याद है की, मेरे आखिरी जन्मदिन पे आप दोनों ने मुझे क्या gift दिया था ? नहीं ना, क्यूंँकि आप दोनों कभी भी खुद मेरे लिए gift लेने गए ही नहीं। 

        क्या आप दोनों को पता है की, मेरा मनपसंद   खाना, मेरे मनपसंद कलर के कपडे और शूज, मेरा मनपसंद खिलौना कौनसा है ? नहीं ना, क्यूंँकि ये सब दादाजी  को पता था, क्यूंँकि उन्होंने ही मेरा आज तक ख्याल रखा, और मेरी बातें भी सुनी। 

     आप दोनों  मेरे हर जन्मदिन पे अपने दोस्तों को बुलाकर party देते है, मगर कभी आप दोनों ने मुझसे  पूछा है की मेरे जन्मदिन पे में क्या चाहता हूँ ? नहीं ना, क्यूंँकि आज तक आप दोनों ने मेरे बारे में कभी कुछ सोचा ही नहीं। मेरी समज में तो ये नहीं आ रहा की अगर आप दोनों को मेरी ज़रूरत ही नहीं थी, तो मुझे इस दुनिया में लाए ही क्यों ? 

          इसलिए में आज आप दोनों को और आपके इस ऐशो आराम को छोड़कर जा रहा हूँ, आप को अपनी ये शानोशौकत  मुबारक, में अपने हिसाब से कुछ ना कुछ कर ही लूँगा।"

        आकाश अपनी बात कहकर बहार जाने लगा तभी उसने पीछे से एक आवाज़ सुनी, उसने पीछे मुड़कर देखा, तो उसके पापा आँखों में आँसू लिए सिर झुकाए खड़े थे।            

      पापा ने उसे रोकते हुए कहा की, बेटा ऐसा मत कहो, ये सब तुम्हारे लिए ही तो किया है, और हाँ शायद तूमहारी बात सही हो, हमने पैसो की लालच में तुम्हारा बचपन देखा नहीं, भीड़ में बस आगे बढ़ते रहने की चाह  में हम दोनों ने तुमको नज़रअंदाज़ किया, और ये हमारी सब से बड़ी भूल थी, ये बात अब हमारी समज में आ गई है, बिता हुआ वक़्त तो हम तुम्हे नहीं दे सकते मगर अब हम हमारा आनेवाला कल साथ मिलकर ही बिताएंँगे, और ये हमारा वादा रहा, हो सके तो हमारी हर गलती  के लिए हमें माफ़ कर देना।

        पापा की आँखों में ये बात केहते - कहते आँसु आ जाते है, आकाश का दिल बहोत बड़ा है, वो सिर्फ अपने मम्मी - पापा को उनकी गलती का एहसास कराना चाहता था, आकाश भी अपने मम्मी और पापा के गले लगकर रोने लगा, और वही रुक जाता है।

      मगर उसने अपने मम्मी - पापा के सामने साथ रहने की एक शर्त रखी, की  " में अपने पैरो पे खुद खड़ा होना चाहता हूँ और उसमे मुझे आपके पैसो की कोई मदद नहीं चाहिए, आप दोनों का आशीर्वाद ही मेरे लिए सब कुछ है।" आकाश ने अपनी पढाई ख़तम कर अपना खुद का बिज़नेस शुरू किया और अब वो भी एक बहोत बड़ा आदमी बन गया, मगर आज भी आकाश  दादाजी की सिखाई बातो पे ही चल रहा, उसमे पैसो का बिलकुल घमंड नहीं था, और वो अपनी कमाई के पैसो में से आधा पैसा अनाथाश्रम और वद्धाश्रम में देता है, अब रोज़ सब साथ मिलकर खाना भी खाते है, बातें भी करते है और बहार घूमने भी जाया करते है।

       मगर आज भी आकाश के मन में एक खालीपन सा और एक अधूरापन सा रह गया है, और वो आज भी अपने दादाजी और उनकी बातों को बहोत याद करता रहता है। 

          तो दोस्तों, जो बचपन और जो पल बीत गया वो बीत ही जाता है, वो कभी वापिस लौट के नहीं आता है, पैसा तो आप कल भी कमा सकते हो, मगर वक़्त और प्यार वापिस पाना बहोत मुश्किल है, इसलिए दोस्तों, हो सके तो अपने बच्चो की बातें गौर से सुनिए, उनको समजिऐ, की वो क्या कहना चाहते है ? कहीं ऐसा ना हो की ये पल ही हमारे हाथों से छूट जाऐ, इसलिए इस पल और लम्हे को साथ मिलकर ख़ुशी और प्यार से जी लो क्यूंँकि फिर ये पल रहे ना रहे, ये वक़्त रहे ना रहे, या फिर इन पल को जीने के लिए हम रहे ना रहे। 

                                                                  Bela...  

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