जिसने दुनिया में से पाप को दूर करने और प्रेम का संदेश देने के लिए बार बार धरती पे जन्म लिया। जिसको कालकोठरी में देवकी ने जन्म दिया, जिसे वासुदेवने यमुना पार कराया, जो यशोदा का लाडला है, जो नंद का दुलारा है, जिसका रंग साँवला है, जिसके कानो में बालि है, जिसके माथे पर तिलक है, जिसके मुख पर अवर्णनीय तेज है, जिसकी ऑंखों में भोलापन है, जो सब का मन मोह लेता है, जिसके माथे पे मोर पंख सज़ा हुआ है, जिसके होठों पे हंमेशा मुस्कान सजी रहती है, जिसकी बोली सबसे मीठी है, जो सब के मन का चोर है, जो माखन चुराता है, जो गइयाँ चराता है, जो बंसी बजाता है।
जिसने यशोदा को अपने मुँह में ब्रह्माण्ड के दर्शन कराए, जो यशोदा को सताए भी और जब यशोदा माँ रूठे तो उसे मनाए भी, जो बलराम संग खेले और उसे सताए भी, जिसकी माखन चुराने की फरियाद गाँव की सारी औरत यशोदा माँ से करे,
जिसके हाथों में बाँसुरी है, जो हर पल प्रेम की बँसी बजाता है, जिसकी बाँसुरी की मधुर धून सुनके गोपीयाँ दौड़ी चली आती है, जिसके संग गोपीयाँ रास खेले,
जो गोपीयों की मटकी फोड़े, जिसके दिल की धड़कन में बसती है राधा, जिसकी प्रेम दीवानी राधा, जो राधा संग रास रचे और खेले प्रेम की होली, जिससे राधा बात-बात पे रूठ जाए और वही राधा को बार-बार मनाए भी।
जिसके लिए मीरा ने ज़ेहर पिया, जिससे मिलने सुदामा नंगे पैर आते है और जिसने अपने आंँसुओ से सुदामा के पैर धोए, जो बिना बताए अपने मित्र का दर्द समज जाते है, जिसे सब कुछ पता है।
जिसने बकासुर का वध किया, जिसने कालिया नाग को माफ़ किया और कालिया नाग के ऊपर नृत्य किया, जिसने व्योमासुर का वध किया, जिसने कंस का वध किया और अपने माता- पिता को कंस की कैद से आज़ाद किया।
जिसने रुक्मणि को अपनाया, जिसकी सोला हज़ार रानियाँ है,
जो माखन चुराके खाता था, इस लिए माखन चोर कहलाया, जिसने अपनी ऊँगली पे गोवर्धन पर्वत उठाया, वह गोवर्धनधारी कहलाया, जिसका रूप मन मोह लेनेवाला था, इसलिए वह मोहन कहलाया, जो युद्ध में रण छोड़ने पर रणछोड़ कहलाया, जो द्वारिका का राजा था, वह द्वारिकाधीश कहलाया, जो बंसी की मीठी धुन सुनाता था, वो बंसीधारी कहलाया, जिसके मुगट में मोर पंख रहता था, वो मोरमुकुटधारी कहलाया, जिसने द्रौपदी की लाज रखी, इसलिए द्रौपदी का सखा कहलाया, जो अर्जुन का सारथि बना इसलिए वह सारथि कहलाया।
जिसने युद्ध में धर्म की जीत के लिए पांडवो का साथ दिया, जिसने अर्जुन को गीता का पाठ सुनाया, जिसने अर्जुन को अपने विश्वरूप के दर्शन कराए, जिसे देख अर्जुन धन्य हो गया, जिसने गीता रूपी ज्ञान से अमृतवर्षा की,
जिसको गांधारी ने श्राप दिया, उस श्राप से जिसके कुल का विनाश हुआ, जो अंत में हुआ अकेला, छोटी उम्र में जिसने देह त्याग दिया और दुनिया को प्रेम और ज्ञान सिखाके गए,
जिसके शब्द में सिर्फ प्रेम है, जो सिर्फ प्रेम की भाषा सिखाते है, जिसकी लीला है न्यारी, जिसने सुदर्शनचक्र धारण किया है, जो कण कण में है, जो अत्र, तत्र सर्वत्र है, जिसके पीछे दुनिया दीवानी है, जो सब के मन का चोर है, जिसे आज भी हर औरत प्रेम से मेरा कान्हा, मेरा लल्ला, मेरा भाई कहकर अपना मानती है। जिसे कई लोगो ने अपना गुरु भी माना है, जिससे हर किसी को प्रेम है और जिसे हर एक से प्रेम है, वह है, मेरे प्यारे
" श्री कृष्ण "
" तू बस कर्म कर फल की इच्छा मत कर। "
ऐसे अवर्णनीय श्री कृष्ण को मेरा कोटि कोटि वंदन।
"राधे कृष्ण "
Bela...
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