पति पत्नी नोंक जोंक

                    पति पत्नी नोंक जोंक

          आज विशाखा फिर से अपने कमरें में खिड़की के पास अपने पाँव को जैसे अपनी गोदी में समेटे मुँह फुलाकर बैठी हुई थी। तभी विशाखा का पति जिसका नाम विकास है, वह ऑफिस से लौटकर आता है और विशाखा को यूँ मुँह फुलाकर बैठा देख विकास समझ जाता है, कि आज विशाखा को फिर से कुछ तो हुआ है, क्योंकि किचन में भी उसने जाकर देखा तो सारे बर्तन ऐसे ही बिखरे पड़े हुए थे और किचन का हाल देखकर पता चलता था, कि शायद आज खाना भी कुछ बनाया नहीं था। लेकिन विकास समझदार पति था, वह अपनी पत्नी विशाखा के नियत और उसके नखरे को अच्छे से जानता था। मगर वह भी क्या करे, पहले तो प्यार किया फिर जल्दबाज़ी में आकर शादी भी कर ली, अब जो भी है, निभाना तो पड़ेगा ही ! इसलिए विकास ने विशाखा के करीब जाकर धीरे से उस से पूछा, " क्या हुआ ? आज फिर से ऐसे मुँह  फुलाकर क्यों बैठी हुई हो ? कुछ खाना बनाने का मूड नहीं है क्या ? ऐसा हो तो बता दो, कोई बात नहीं, हम आज बाहर जाकर खाना खा लेते है, उस में कौन सी बड़ी बात है ? चलो जल्दी से तैयार हो जाओ, मैं भी फ्रेश होकर आ जाता हूँ, आज तुम्हारी रसोई से छुट्टी, बाहर चलते है। आज बाहर का मौसम भी बड़ा अच्छा है। " विशाखा को मनाते हुए विकास उस से कहता है। 
      लेकिन ये क्या आज तो ऐसा सुनकर भी विशाखा के चेहरे पे थोड़ी सी भी हसीं या नाराज़गी नहीं आई। विशाखा तो बस अपने पाँव को देखते हुए कुछ सोच रही थी, जैसे की विकास ने क्या कहा, उसे कुछ भी पता ही नहीं। 
      विकास ने सोचा ऐसा तो कभी हुआ नहीं, कि मैंने बाहर जाकर घूमने और खाने के लिए कहा हो और विशाखा खुश नहीं हुई हो। विशाखा चाहे जैसी भी थी, फिर भी विकास उस से बहुत प्यार करता था, बस उसके नखरे थोड़े-थोड़े दिन में बार-बार उठाने पड़ते, उसको बार-बार कुछ ना कुछ समझाना पड़ता, जिसकी विकास को अब आदत पड़ चुकी थी, जैसे एक छोटे बच्चे को हम समझाते और  मनाते रहते है, बिलकुल वैसे।  
       इसलिए विकासने विशाखा को फिर से मनाने की कोशिश करते हुए कहा, कि " क्या हुआ मेरी जान ? आज मेरी जान इतनी उदास क्यों है ? किसी ने कुछ कहा क्या ? कुछ तो बताओ, वार्ना मैं भी अपना मुँह फुलाकर बैठ जाऊंँगा, तुम्हारा तो पता नहीं, लेकिन वैसे अभी तो मुझे बहुत ज़ोरों की भूख भी लगी है। " कहते हुए विकास विशाखा के पीछे मुँह पलटकर मुँह फुलाकर बैठ जाता है।  
       तब विशाखा छोटी बच्ची की तरह जोर-जोर से रोने लगी, विशाखा को ऐसे रोते हुए देख विकास मन ही मन बड़बड़ाता है, कि " है भगवान् ! पता नहीं आज इसे फिर से क्या हो गया है, छोटी-छोटी बात को दिल पर लगाकर मुँह फुलाकर बैठ जाती है और रोने भी लगती है, यहाँ पति दिन भर काम कर के थका हारा घर आया हो और उसे खाना देने के बदले खुद ही मुँह फुलाकर मेडम साहिबा रोने लगी। है भगवान् ! मुझे इस से ही प्यार क्यों होना था ? दुनिया की सारी लड़कियाँ पता नहीं कहाँ छुप गई थी, जब मुझे इस से प्यार हो रहा था। 
     तभी फिर से वह रोने लगी, विकास ने फिर से पूछा, " ओए माय बेबी, क्या हुआ ? ये तो बताओ।
        रूढ़ते हुए विशाखा ने कहा, अब मैं क्या क्या गिनाऊं और क्या क्या नहीं ? "
       मुंह फूलते हुए, विकास : अरे मेरी अम्मा, अब क्या गिनना रह गया है ? 
        विशाखा : हमारे बाजू वाले महेश भाई की मनीषा को देखो, जब देखो तब अपने पति की तारीफ करती रहती है, की " आज वह मेरे लिए साड़ी लेकर आए, तो बर्थडे के दिनों सोने की अंगूठी, वह भी अपनी बात बात में अपनी अंगुलियों दिखाकर मुझे जलाया करती, और तो और पता है, आपको महीने में सिर्फ एक बार नहीं, दो बार किटी पार्टी में जाती है, दोनों सुबह साथ में नाश्ता करते है, महेश भाई सुबह का चाय नाश्ता खुद ही बनाते है, कपड़े भी बाल्कनी में वही सूखाने डालते है, मैंने तो कितनी बार देखा है, और एक आप हो, की सुबह हुई नहीं, चिल्लाना शुरू, विशाखा, मेरी चाय और नाश्ता रेडी है, विशाखा मेरा नया शर्ट और शूज कहां रखे है ? मेरा टिफिन रेडी है ? मुझे ऑफिस जाने में देर हो गई है। 

विकास : बस फिर से तुम्हारी यही सब बातें शुरू हो गई, तुम्हें कितनी बार कहा है, दूसरों के घर को देखकर अपना घर मत जलाओ। जब देखो तब, अपनी सहेलियों की बातें लेकर बैठ जाती हो, ऑफिस में मुझे कितना काम होता है, यह कभी आकर देखो, तो पता चलेगा, कि पैसे कैसे घर आते है, पूरा दिन कितने लोगों के साथ सिर दुखाना पड़ता है, तब काम होता है। 

विशाखा : हा, हा, तो मैं भी तो पूरा दिन घर पर ऐसे ही थोड़े ना बैठी रहती हूं, सुबह आपका टिफिन बनाओ, जाते वक्त आप जो घर पर कपड़े, जुटे, ऐसे ही फैलाके जाते हो, वह सब समेटना, कामवाली बाई ना आए तो  तब सारा काम खुद ही करना, बाजार जाना, कभी दूध वाला, कभी प्लंबर आए, कभी इलेक्ट्रीशियन आए, कभी ये कभी वो, कुछ न कुछ रोज चलता ही रहता है, और ऊपर से आपके ये दोनों चुन्नू और मुन्नी को स्कूल छोड़ना, पढ़ाना, उन दोनों की शैतानी बर्दाश्त करना, एक दिन आप मेरी जगह घर पर रहकर देखो, तो पता चले, कैसे सब काम होता है । बाजू वाले महेश भाई देखो, कभी मूवी दिखाने लेके जाते है, तो कभी शॉपिंग, कभी भेल पूरी खाने जाते है, तो कभी ice cream party, तो कभी kitty party। और आप तो हर बार घर का और बच्चों का खर्चा गिनाते ही रहते हो, बस हो गई पार्टी।

विशाखा इतना बोलके फिर से मुँह फुलाके बैठ जाती है।

विकास : हा, हा, भाग्यवान, महेश भाई के वहां पैसे तो पैड पर उगते होंगे, वह मुझे पता नहीं, लेकिन मुझे पूरा दिन काम करना पड़ता है, यहां से लोकल ट्रेन में एक दिन बैठ के विरार तक धक्के लगाके जाओ, तो पता लग जाएगा, कैसे सुबह गुजरती है, फिर ट्रेन से उतर कर चलते जाओ ऑफिस, ऑटो मिले तब तक देर हो जाती है, इसलिए कई बार चलकर ही जाना पड़ता है, फिर भी अगर लेट हो जाए तो ऑफिस जाकर बॉस की डांट सुनो, और फिर सजा के तौर पर ओवर टाइम करो, और उस पर मिलता कुछ भी नहीं। फिर घर आते वक्त वही ट्रेन के धक्के खाते आओ, तब तक तो इंसान की हालत खड़े रहने के लायक भी नहीं रहती और तुम्हें शॉपिंग और मूवी देखने जाना है। एक दिन ज़रा तुम भी मेरी ज़िंदगी जी कर देखो, तो पता चले।

विशाखा : हा, हा, और ऑफिस जाकर जो पूरा दिन आप a.c में ही बैठे रहते हो । और मैं यहां पूरा दिन किचन में रोटी के साथ जलती रहती हूं, उसका क्या ? बोलो बोलो।

विकास : हा, हा, तो ऑफिस से बाहर जाना होता है, तब मेरी भी तो रोटी की तरह धूप में सिकाई हो ही जाती है। अब तुम आज मुझ से पंगा मत लो, मैं बहुत थक गया हूं, और मुझे भूख भी लगी है, अगर कुछ खाना बनाया हो तो थोड़ा सा मुझे भी देदो, भाग्यवान। 

विशाखा : आज बच्चों के स्कूल में मीटिंग थी, आते आते देर हो गई, बच्चों ने जिद्द की तो, हमने तो रास्ते में भेल पूरी और पिज्जा खा लिए, मैं भी आज बहुत थक गई हूं, घर में मैगी है, अगर आपको भूख लगी हो तो, खुद ही मैगी बना के खा लो। बच्चों के सोने का टाइम हो गया है, तो मैं तो उनको सुलाने चली, आपको जो ठीक लगे, वो करो।

विकास: रुको, रुको भाग्यवान, बच्चों का नाम लेकर ये जो बार बार तुम मुझे सुनाया करती हो न यह अब बहुत हुआ, मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो, मैंने आज एक फैसला किया है, कल से तुम ऑफिस जाओगी और मैं बच्चों के साथ घर पर रहूंगा। ट्रेन के धक्कों के साथ और बॉस के तानों के साथ, जब पैसे कैसे कमाए जाते है, यह पता चलेगा, तब अकल ठिकाने आयेगी तुम्हारी। 

विशाखा : अच्छा, तो ये बात है, साहेब को अब घर पे रहना है, बहुत खूब। अब पता चलेगा आपको भी की, कैसे घर का काम होता है और बच्चों को संभाला जाता है।

विकास : हा, हा, मुझे नहीं तुम्हें पता चल जाएगा।

विशाखा : मुझे नहीं आपको पता चल जाएगा, ये लो संभालो अपने शैतान बच्चे को अब आप ही।

विकास : अब मेरे बच्चे ? क्या ये सिर्फ मेरे बच्चे है ? तुम्हारे बच्चे नहीं ? 

विशाखा : रोते हुए, हा, हा, आपके ही है, क्योंकि आप ही की तरह पूरा दिन झगड़ते रहते है और मुझे परेशान करते रहते है। 

विकास: तुम्हें बच्चे संभालने ही नहीं आते।
( बच्चों को अपने साथ कमरें में लेते जाते हुए ) 
 
विकास : आओ बच्चों, मम्मी को छोड़ो, आज हम साथ में सोते है, तुम्हें कहानियां सुनाऊंगा, गेम खेलेंगे, बड़ा मजा आएगा।  

( विशाखा की और फक्र से देखते हुए। )

विशाखा भी मुंह फुलाते दूसरी और चली जाती है। इस तरफ विकास ने मोबाइल में बच्चों को वीडियो गेम खोल के दे दी और बातें करते करते खुद खर्राटे लगाते हुए सो गया। रात को चुन्नू और मुन्नी ने दो बार पानी और वाश रूम के लिए विकास को जगाया। इसी चक्कर में विकास की नींद उड़ गई, उसे रात भर नींद नहीं आई और सुबह उठने में देरी हो गई, दोनों बच्चों को फटाक से उठाया, जैसे तैसे कर के नहलाके तैयार किया, मुन्नी की चोटी एक लंबी और एक छोटी हो गई, तो वह रोने लगी, उसे जैसे तैसे समझाकर चुप कराया, दोनों बच्चों को लंच बॉक्स में जल्दी में ब्रेड बटर दे दिया। दूध गैस पर रखा था, वह उबल गया। दोनों बच्चों की बस आ गई। गैस बंद कर के भागते हुए दोनों को बस में बैठाया। घर के अंदर आकर विकास जैसे ही बाथ रूम में जाकर आराम से बैठा, तो फ्लश में पानी नहीं आ रहा था, विकास ने ज़ोर से आवाज लगाई,

विकास : विशाखा, बाथ रूम में पानी नहीं आ रहा, please कुछ करो।

विशाखा : अरे, आज तो पानी की मोटर चालू करने की बारी आपकी थी, आपने सुबह 6 बजे मोटर की स्विच चालू नहीं की ? है भगवान, अब पानी गया, अब तो पानी दोपहर 12 बजे के बाद ही आएगा।

विकास : ( विकास  घबराकर मन ही मन, 06 बजे में पानी की मोटर की स्विच भी चालू करनी होती है, क्या ? अब तो मैं गया ! ) तो क्या, तब तक मैं यहां ऐसे ही बैठा रहूं क्या ? कुछ करो न विशाखा।

विशाखा : गुस्सा मत कीजिए, मैं कुछ करती हूं। कहते हुए, विशाखा ने  इमरजेंसी के लिए पानी भर के रखा था, वह विकास को दिया। 

विकास बाहर आता है।

विकास : बहुत बहुत शुक्रिया, तुम्हारा, वरना आज मेरा क्या होता ? 

विशाखा : लो, अभी तो दिन शुरू हुआ है, और आपने अपनी हार मान भी ली ? 

विकास : नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है, वो तो सिर्फ पानी नहीं आ रहा था, इसलिए।

विशाखा : जाने दो,  जाने दो, आप से नहीं होगा, यह सब, रहने दीजिए, एक दिन में घर की क्या हालत कर दी, आपने ?

विकास : रुआब दिखाते हुए, यह सब तो मैं चुटकी में ठीक कर दूंगा। 

अच्छा, चलो तो कर के दिखाओ सब, चुटकी में, मुझे जाना है ऑफिस। 

कहते हुए विशाखा, अपना बैग लेकर ऑफिस के लिए जाने को तैयार हो गई। जाते जाते विशाखा ने पूछा, मेरा टिफिन कहां है ? 

विकास ने चिढ़ते हुए विशाखा को भी ब्रेड बटर लगाके दे दिया। विशाखा ऑफिस के लिए निकलती है, उसे भी देर हो जाती है।




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