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15th August
हेतल आज देर तक अपने कमरे में सो रहा था। बाहर के कमरें से हेतल के पापा सुरेश भाई की आवाज आती है, " सूरज माथे पे आ गया है, सब लोग अपने काम पे चले गए, लेकिन सावित्री ( हेतल की मां ) तुम्हारा ये लाडला उठा के नहीं, इस की सुबह ना जाने कब होगी ? "
हेतल की मां : आप हर वक्त मेरे बेटे के पीछे ही पड़े रहते हो, इतने साल भी हॉस्टल में रहकर हम से दूर ही तो रहा, अब ज़रा घर पर चैन की नींद सोने तो दीजिए, दोस्तों के साथ पार्टी में देर हो जाती है, अभी थोड़ी देर में उठ ही जाएगा।
मा हेतल के कमरें में जाती है, पूरा कमरा बिखरा पड़ा हुआ था, मा हेतल के कपड़े जुटे अपनी जगह रखते हुए अपने बेटे को जगाती है। " उठ जा मेरे बेटे, सुबह हो गई, वरना तेरे पापा फिर से पूरा घर सिर पर उठा लेंगे। तुझे तो तेरे पापा का गुस्सा पता ही है, चल उठ जा, अब बहुत हुआ। "
हेतल : पापा की तो आदत है मां। हर बात को बढ़ा चढ़ा के कहने की, थोड़ी देर और सोने दो मां, अभी तो मेरे मजे करने के दिन है, वक्त आने पर काम भी कर लूंगा, और मैं जॉब के लिए इंटरव्यू देने भी तो जाता हूं, ना। मगर उन सब को मेरे साथ जमता नहीं है, तो मैं भी क्या करु ?
मा : ठीक है, जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आ जा। तेरी पसंद का खाना बनाया है। चल उठ जा अभी, बहुत हुआ, और ये अपनी किताबें और फाइल, कपड़े सब अच्छे से अपनी जगह रख कर आना, अगर पापा ने तुम्हारे कमरे का ऐसा हाल देख लिया, तो फिर से गुस्सा हो जाएंगे।
कहते हुए मा कमरें से बाहर चली जाती है।
हेतल उठ कर फ्रेश होकर बाहर आता है।
हेतल : मा, जल्दी से नाश्ता देदो, बहुत भूख लगी है।
सुरेश भाई सोफे पर बैठ न्यूज पेपर पढ़ रहे थे, उन्होंने अपने चश्मे में से एक नजर हेतल और उसकी मां की और देखा, फिर बोले, " बेटा, तेरे पास अगर घड़ी हो तो एक बार उस में देख ले, अभी नाश्ते का समय नहीं, दोपहर के भोजन का समय हो गया है। पता नहीं ये लड़का कब सुधरेगा ? "
माँ : ( हेतल को चुप रहने का इशारा करते हुए ) उनकी बातों पर ध्यान मत दे, ले आज तेरे लिए तेरा मन पसंद दूधी का हलवा, और भिंडी की सब्जी बनाई है, और तुम्हारी मनपसंद चावल और दल और सलाद भी। तू खा ले बेटा।
सुरेशभाई : बस, और लाड लड़ावो अपने बच्चे पर। तुम ने ही इसे सिर पर चढ़ा के रखा है, अगर मेरी बात सुनता तो, मेरे दोस्त के वहां नौकरी पर लग जाता । हमारे पड़ोस में किशोरी लाल का बेटा देखो, कॉलेज ख़त्म होते ही उसे नौकरी मिल गई, रोज़ ऑफिस भी जाता है और तुम्हारा दोस्त राजू, वह भी अपने पापा के बिजनेस में जुड़ गया, वक्त रहते सब को जिम्मेदार होना ही पड़ता है, मैं भी अब कुछ सालों बाद रिटायर हो जाऊंगा, फिर क्या करेंगे, ज़िंदगी में आगे का भी सोचना पड़ता है।
हेतल : माँ, पापा से कह दो, कि मैंने उनको कितनी बार कहा हैं, कि मैं अपने हिसाब से काम ढूंढ ही लूंगा, और मुझे जहां अच्छा लगेगा, मैं वहां ही काम करूंगा। आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है, आप मुझे थोड़ा सा वक्त तो दीजिए।
सुरेश भाई : हा, हा, लेकिन तुम्हारे लात साहेब को तो पहले से ही बड़ी कंपनी में काम करना है, मैंने तो कहा, छोटे से शुरुआत तो कर, मगर मेरी यहां सुनता कौन है ? और नौकरी नहीं मिल जाती तब तक, इस के मोबाइल, पेट्रोल और A.c का लंबा बिल कौन भरेगा, और जिम की फीस और प्रोटीन के डिब्बे, वो अलग से आता है, उसका तो महीने का कोई हिसाब ही नहीं रहता। और खाने में आज ये नहीं पसंद तो कल वो नहीं पसंद। और लात साहेब से हिसाब मांगो, तो हिसाब तो कभी दिया ही नहीं, और चले है, बड़ी कंपनी में नौकरी ढूंढने, अब इस उम्र में जिम्मेदारी जैसी भी कोई चीज़ होती है, की नहीं, काम न काज, पूरा दिन ठिठोल मस्ती।....
हेतल : ( गुस्से से बिना खाए, खुर्सी पर से उठ जाता है ) बस, बहुत हुआ, आपके ताने सुन सुन कर में थक चुका हुआ, आपको हिसाब चाहिए ना, तो माँ, पापा से कह दो, आज, अभी और इसी वक्त में घर छोड़कर जा रहा हूँ, और उतना पैसा लेकर आऊंगा, जितना आपने आज तक मुझ पर खर्च किया है, तब तक मैं अपना मुंह आपको नहीं दिखाऊंगा। मैं जा रहा हूं ।"
मां: आपको मैंने कितनी बार कहा है, खाने के वक्त उसको ताना मत दिया कीजिए, अभी कितने दिनों बाद तो वह हॉस्टल से घर आया है, तो अगर खाने में उस ने अपना मन पसंद चाहा, तो क्या हो गया, आप भी ना, नौकरी भी मिल जाएगी। मेरे बेटे को नाराज कर दिया, अब देखो वह घर छोड़कर जाने की बात कर रहा है। है भगवान।
कहते हुए मा अपने बेटे के पीछे उसके कमरें में जाती है, हेतल सच मुच बैग निकाल कर अपने कपड़े बैग में डाल रहा था, वह अपना लैपटॉप भी अपनी बैग में रख रहा था, तभी कमरें के बाहर से उसके पापा ने कहा, " यह तुम्हारा लैपटॉप १ लाख रुपया का आया था, जिसका हफ्ता अभी तक मैं ही भर रहा हूँ। "
यह सुनते ही हेतल ने अपना लैपटॉप वही टेबल पर रख दिया, और अपनी मां को झुक कर प्रणाम किया, और एक बार गले लगकर चला गया।
मां: हेतल के पापा, देखिए, ना आप, ये सच मैं घर छोड़कर जा रहा है, मेरा बेटा कहां रहेगा, क्या करेगा, ऐसी भी क्या दुश्मनी अपने बेटे से, रोक लीजिए उसे जाने से।
मां : तू तो जानता ही है, ना, तेरे पापा ऐसे ही है, वह बोलते रहते है, मगर उनके दिल में ऐसा कुछ नहीं होता, वह भी तुम से बहुत बहुत प्यार करते है। मेरे लिए रुक जा बेटा।
हेतल : अगर प्यार करते होते, तो हर बार मुझ से पैसों का हिसाब नहीं मांगते रहते। अब बस, बहुत हुआ, अब या तो मैं इन के पैसे लेकर आऊंगा या कभी नहीं आऊंगा। ( तिरछी नज़र से अपने पापा की ओर देखते हुए ) मैं जा रहा हूं।
सुरेश भाई : तुम्हारी बाइक का भी हफ्ता अभी तक मैं ही भर रहा हूं।
हेतल ने टेबल पर बाइक की चाबी भी छोड़ दी, और आंखों में आंसू के साथ घर से निकल गया।
मां: आपका दिल, दिल है, या पत्थर। अब मैं भी आपसे कभी बात नहीं करूंगी। कहते हुए सावित्री जी भी अपने कमरे में रोते हुए चली जाती है।
सुरेश भाई : देख लेना, दो दिन, सिर्फ दो दिन में ये नकारा वापस घर लौटकर नहीं आया, तो मेरा नाम बदल देना।
After 4 years
15 August की सुबह हेतल के घर की डोर बेल बजती है। रोज़ की तरह सावित्री जी चाय नाश्ता बना रही थी और सुरेश भाई न्यूज पेपर पढ़ते थे।सुरेशभाई ने दरवाजा खोला, दरवाज़ा खोलते ही उनकी आँखें स्तब्ध हो गई। उन्होंने तुरंत आवाज लगाई, " देख सावित्री आज घर पर कौन आया है ? जल्दी से बाहर आ जा। " सावित्री जी मन से टूट चुकी थी, उसको तो अब तक सिर्फ उसके बेटे के आने का इंतजार था।
सावित्री : जी, आ रही हूँ।
सावित्री ने दरवाजे पर जाकर देखा तो, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, सामने उसका बेटा हेतल था, वह भी फौजी के कपड़े में।
रोते रोते सावित्री ने अपने बेटे को गले लगा लिया, जैसे कि कई जन्मों के बाद पहली बार अपने बेटे को देखा हो।
सुरेश भाई : अरे, भाग्यवान, बेटे को अंदर तो आने दो।
मा, बेटे, और पापा, सब की आँखें भर आती है, तीनों गले लगकर रोते है।
सावित्री जी : इतने सालों में एक बार फोन भी नहीं किया, ऐसी भी क्या नाराजगी ? अपनी मां को भी भूल गया था, क्या ? तुझे पता है, भगवान से रोज़ हर पल मैंने बस यही मांगा है, कि मेरे बेटे को मुझ से मिला दो।
हेतल : हा, इसी वजह से भगवान ने आपकी सुन ली, और देखो, मैं आ गया ना वापिस, आपके पास, मुझे बहुत भूख लगी है, बहुत दूर से आया हूं, कुछ खाने को मिलेगा क्या ? ( हंसते हुए )
मां: हा, हा, लाती हूं, अभी तेरी मन पसंद का खाना बनती हूं।
थोड़ी देर बाद हेतल अपने पापा की ओर जाता है, उसके हाथ में एक चेक है, चेक देते हुए हेतल अपने पापा से कहता है, " पापा ये लीजिए, आपका नाकार बेटा, आज आपको अपनी पहली कमाई देने आया है, यह इतने तो नहीं, जितने आपने मुझ पे खर्च किए थे, आपने जो मुझ पर खर्च किया है, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं, मगर मुझ से जितना होगा, उतना मैं कर के दिखाऊंगा। आप भी अब सिर उठाकर कहना सब से वह देखो मेरा फौजी बेटा आ रहा है। और हा, यह कमाई मेरी खुद की है, मैंने बचपन से pigi बैंक में पैसे जमा किए थे, वह लेकर गया था, और छोटे बच्चों को ट्यूशन भी करवाया, उसी पैसों में से मैंने अपनी आगे की पढ़ाई और गुजारा किया। किसी के पास से मैंने पैसे लिए नहीं है।
पापा ने अपने बेटे को गले लगा लिया और दोनों की आँखें भर आती है, सावित्री जी भी रसोई में से यह सब देख लिया, और अपने आंसू पोंछने लगी।
सुरेश भाई : आज मैं बहुत खुश हूं, मेरा बेटा आज अपने पैरों पर खड़ा हो गया है, जिम्मेदार हो गया है, जैसे मैं चाहता था, आज का दिन मेरी ज़िंदगी का बहुत बड़ा दिन है। अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए, अब मौत भी आ जाए, तो भी कोई ग़म नहीं। सही मायने में आज हमारा इंडिपेंडेंस डे है।
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Bela...
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