( कहानी घर घर की, कहानी हर घर की ) जीवन सार्थक

        ( कहानी घर घर की, कहानी हर घर की )
                      जीवन सार्थक 
           कितनी अजीब सी बात है, कि बचपन में हम जवानी वाला जीवन जीना चाहते है, जबकि बुढ़ापा आने पर यही जीवन लौटकर बचपन जैसा हो जाता हैं।
            लेकिन अगर हम किसी भी उम्र में, किसी भी वक्त जैसे भी हो, उस उम्र और उस वक्त, हम जिस परिस्थिति में जिस किसी के भी साथ हो, उसी को स्वीकार कर उसी के साथ ख़ुश रहे, उसी अवस्था में ख़ुश रहे तो, हमारा जीवन सार्थक कहलाता है। 

Bela...

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