माँ का दूसरा रूप
मेरी कहानी की राधिका का के तीन बच्चें थे, उसमें दो बेटे और एक छोटी बेटी थी, राधिका अपने तीनों बच्चों पर जैसे जान न्योछावर करती थी, कभी कभी राधिका का पति रितेश, राधिका को चिढ़ाते हुए मज़ाक में कहता, कि " कभी कबार मेरी तरफ़ भी ध्यान दिया करो, मैं भी तो तुम्हारा बच्चा ही तो हूँ। "
राधिका भी हंस कर कह देती, " मेरे और मेरे बच्चों के बीच आप नाही आओ, तो ही ठीक रहेगा।" और बेचारे रितेश टिफिन लेकर मुँह फुलाकर ऑफिस चले जाते।
सुबह से राधिका अपने सोनू, मोनू और स्वीटी इन तीनों बच्चों के बीच ही उलझी रहती, अपने बच्चों के अलावा उसे और कुछ दिखता ही नहीं, बच्चों का खाना, पीना, सब को टाइम पर जगाना, टिफिन बनाना, सब को तैयार कर के स्कूल, ट्यूशन, ड्राइंग क्लास, कराटे क्लास, डांस क्लास भेजना, स्कूल मीटिंग, पीटीए मीटिंग, पेरेंट्स मीटिंग, हर मीटिंग में टाइम पर पहुँचना, बच्चों को स्कूल की हर एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करने के लिए मोटिवेट करना, सब के प्रोजेक्ट तैयार करने में उनकी मदद करना, कितना कुछ राधिका अपने बच्चों के लिए करती आई है, अपने लिए तो जैसे उसके पास वक्त ही नहीं रहता, यह तो बस एक माँ का प्यार ही है, जो हर हाल में वह अपने बच्चों के लिए करती आई है, मगर वक्त बदलते देर नहीं लगती।
राधिका की छोटी बेटी अभी तो सिर्फ़ ११ साल की ही थी, इन दिनों राधिका की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी, पहले तो राधिका ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, मगर बाद में तकलीफ़ और बढ़ने लगी, तब राधिका के पति ने डॉक्टर के कहने पर राधिका का ब्लड रिपोर्ट करवाया, उस में राधिका को कैंसर आया, राधिका को तब सब से पहले अपने नहीं बल्कि अपने बच्चों के बारे में ख़्याल आया, कि मेरे बाद मेरे बच्चों का क्या होगा ? उन्हें वक्त पर कौन स्कूल भेजेगा ? वक्त पर कौन खाना खिलाएगा, रितेश को तो बच्चों के बारे में ज़्यादा कुछ पता ही नहीं, उन्हें तो अपने काम से फुर्सत ही कहा ? और माँ से बेहतर अच्छा ख़्याल और कौन रख सकता है ? राधिका को अजीब अजीब ख़्याल आने लगे।
आख़िर राधिका ने अपना मन बना ही लिया, कि कैंसर हो या कोई भी बीमारी हो, मुझे अपने बच्चों के लिए ठीक होना ही है, उसने अपने पति रितेश से कह दिया, कि " मेरा इलाज शुरू करवा दे, अगर पैसे कम पड़े तो मेरे सोने के गहने बेच दे लेकिन अच्छे से अच्छे डॉक्टर के पास मेरा इलाज करवाए और चाहे कुछ भी हो जाए मैं हिम्मत नहीं हारूंगी, मुझे मेरे बच्चों के लिए ठीक होना ही है।"
राधिका की ऐसी बात सुनकर रितेश को भी हिम्मत मिली, रितेश ने राधिका का इलाज अच्छे से अच्छे डॉक्टर के पास करवाया, kimo थेरपी की ज़रूरत पड़ी, तो वह भी करवाया, kimo थेरपी की वजह से उसे अपने लंबे बाल भी गवाने मंजूर थे। राधिका ने सोचा, कि बाल तो फिर से आ जाएंगे। उस वक्त राधिका ने बच्चों की देखरेख के लिए अपनी माँ को गाँव से बुला लिया और एक कामवाली बाई भी पूरे दिन के लिए घर पर रख ली, ऑपरेशन से पहले घर में सब सामान मंगवा के रख लिया ताकि माँ, बच्चें और रितेश को कोई तकलीफ़ ना हो, आख़िर राधिका जीत गई, रितेश ने पैसों का भी इंतजाम कर लिया, राधिका के गहने बेचने की भी ज़रूरत न पड़ी, माँ के प्यार के आगे भगवान को भी झुकना पड़ा, अब वह मौत के मुँह से बाहर है, भले ही उसे ठीक होने में काफी वक्त लग गया, मगर वह हिम्मत नहीं हारी, अब वह पहले की ही तरह बच्चों के साथ खेलती है, उनको स्कूल भेजती है, उनको होमवर्क करवाती है, साथ में गलती करने पर डांट फटकार भी लेती है, मगर बच्चों के साथ वह आज बहुत खुश है और अपने मंदिर में भगवान के आगे रोज़ एक दिया जलाकर, नई ज़िंदगी देने के लिए भगवान का शुक्रियादा करती है।
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