एक फ़ैसला अपने लिए
शीला का पति सुरेश कोरॉना में चल बसा, उसकी ज़िंदगी में जैसे अंधेरा सा छा गया था। उसका एक बेटा और बहू थी, जिसकी अभी दो साल पहले ही शादी हुई थी और एक लड़की थी, जिसकी भी शादी हो गई थी, और वह भी अपने ससुराल में अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी। बेटा और बहू दोनों जॉब करते थे, तो सुबह टिफिन लेकर चले जाते, शाम को आते, दोनों खाना खाकर बाहर walk करने चले जाते, या तो कभी कभी अपने दोस्तों के साथ घूमने चले जाते, शीला का बेटा अपनी मम्मी को भी साथ आने को कहता, मगर शीला समझदार थी, वह अपने बेटे और बहू की ज़िंदगी के बीच नहीं आना चाहती थी, उनकी अब उम्र है, घूमने फिरने की, इसलिए वह कोई बहाना बनाकर घर पर ही रुक जाती, शीला के बेटे का एक छोटा सा बेटा भी था, तो उसको संभालने में उसका वक्त बीत जाता, मगर आखिर कब तक ऐसा चलता रहता। उसको कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, अकेलापन उसे खाए जाता था, बाहर से शीला सब के साथ हंसकर बातें करती मगर अंदर से वह टूट चुकी थी, ऐसे ही जैसे तैसे कर के दो साल तो गुजर गए।
सतीश के जाने के बाद शीला रोज मंदिर जाती, उसकी मुलाकात राजेश नाम के लड़के से हुई, जो तकरीबन उसी की उम्र का था और उसके साथ भी वहीं हुआ था, जो शीला के साथ हुआ था, राजेश की पत्नी भी कोरोना में चल बसी थी और वह बिलकुल अकेला हो गया था, अपना अकेलापन दूर करने के लिए दोनों कृष्ण के मंदिर में आते और सारी फ़रियाद वहीं करते, तब धीरे धीरे दोनों में बातें शुरू होने लगी, एक दूसरे का साथ दोनों को अच्छा लगने लगा, सोचा कि कृष्णा के मंदिर में हम दोनों मिले है और उनकी भी यहीं मर्ज़ी होगी, ऐसा सोचते हुए, अपना अपना अकेलापन दूर करने के लिए दोनों ने शादी करने का फ़ैसला कर लिया। मगर दोनों के बच्चों को अब यह रिश्ता मंजूर नहीं था, कहते थे, " इस उम्र में शादी करेंगे, तो लोग क्या कहेंगे ? " इसलिए पहले तो राजेश और शीला ने एकदुसरे से अलग होने का सोच लिया, दोनों ने मंदिर जाना भी बंद कर दिया, मगर फिर भी दोनों को अकेलापन खाए जा रहा था।
एक दिन फोन पर बात कर के शीला और राजेश दोनों ने अपने अपने घर में एक चिठ्ठी लिखी, जिस में लिखा कि " हम दोनों शादी कर रहे हैं और आपको परेशानी ना हो, इसलिए हम यह शहर ही छोड़कर कहीं दूर चले जाएंगे, कोई पूछे तो आप बता देना, कि हम लंबी यात्रा पर चले गए हैं और अब वहीं हरद्वार में ही रेहने का इरादा कर लिया हैं, अगर आप सब को ठीक लगे तो, कभी कभी फोन कर के हम आप से बातें भी कर लिया करेंगे, आप सब अपनी ज़िंदगी में खुश रहो, हमें और कुछ नहीं चाहिए, हम अपना देख लेंगे। " ऐसा कहते हुए शीला और राजेश ने भागकर शादी कर ली और शहर से कहीं दूर चले गए और अपनी एक नई दुनिया बसा ली, जिस में अब सिर्फ वह दोनों ही थे। शीला को सिलाई का काम आता था, तो फ्री टाइम में उसने मशीन लेकर वह काम शुरू कर दिया और राजेश कॉलेज में टीचर था, तो उसने यहां भी एक अच्छे से कॉलेज में जॉब शुरू कर दी, रात को दोनों साथ में खाना खाते और घूमने जाते और कभी खाना बनाने का मन ना हो तो बाहर ही चाट पूरी का मजा ले लेते और फ़िर बातें करते करते उन दोनों का वक्त कहां बीत जाता पता ही नही चलता, घर आकर पुराने गाने सुनते सुनते दोनों सो जाते। अभी दोनों की इतनी उम्र भी तो नहीं थी, शीला तकरीबन 44 की थी और राजेश तकरीबन 46 के थे, अब इतनी छोटी उम्र में साथी तो चाहिए ही ना ! एकदूसरे का अकेलापन दूर करने के लिए दोनों ने एकदुसरे का हाथ थामने का फ़ैसला कर लिया।
एक दिन शीला ने अपनी बीती हुई ज़िंदगी याद करते हुए कहा, कि " हमारा घर छोड़ना और शादी करने का फैसला बिलकुल सही था, अगर हम ऐसा नहीं करते तो आज हम अपने बच्चों के टुकड़ों पर जिंदगी जीते रेहते, उनके एहसान तले दबे रहते, अपने मन की कभी कुछ कर ही नहीं सकते, अपने तरीके से जिंदगी जी नही सकते। " राजेश ने कहा, " तुम सही कह रही हो, लोगों का क्या है, उनका तो काम ही बातें करना हैं, जिंदगी तो अकेले हमें जीनी पड़ती और हम अपनी नहीं बल्कि उनकी दी गई ज़िंदगी जीते, पहले हमने अपने अपने बच्चों को बड़ा किया, अब उनके बच्चे संभालने में ज़िंदगी गुज़ार देते, ऐसा नहीं की हम अपने बच्चों को और अपने अपने पति पत्नी को भूल गए, उनका साथ, उनका प्यार भूल गए, मगर ज़िंदगी में कभी कभी कुछ फ़ैसले हमें अपने लिए भी लेने पड़ते हैं, कब तक हम यूहीं अपने बच्चों के बारे में सोचते रहेंगे ? उनकी भी अपनी जिंदगी हैं, अपने बीवी बच्चें है, उनके साथ वह खुश रहे, अब बोझ क्यों बन कर रहे ? हमारा साथ रहने का फ़ैसला एकदम सही था।
माना कि यह फ़ैसला लेना और इस उम्र में अपने बच्चों से रिश्ता तोड़कर नई ज़िंदगी शुरू करना इतना आसान भी नहीं, मगर कभी कभी दूसरों के बारे में नहीं बल्कि हमारे अपने बारे में सोचना भी जरूरी हो जाता है। और तो और यह भी नसीब की बात हैं, कि इस उम्र में कोई अच्छा साथ निभाने वाला मिलना भी मुश्किल ही हैं, जिस पर हम आँखें बंद कर भरोसा कर सके, हम तो यहीं कहेंगे, कि ज़िंदगी में सब को एक साथी मिल जाए, जो उसे समझे, उसके प्यार को समझे, जिस के साथ ज़िंदगी आराम से बीत जाए। "
तो दोस्तों, शीला और राजेश ने अपने अपने बच्चों के खिलाफ़ जाकर शादी कर के नई जिंदगी शुरू करने का फ़ैसला सही था या गलत ?
स्वराचित्
एक फ़ैसला अपने लिए
सत्य घटना पर आधारित
Bela...
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