नौक झौंक

                            नौक झौंक
        मेरे दादा और दादी, इन के जैसा इस दुनिया में ना कोई है और ना कोई होगा। वैसे देखा जाए तो दोनों सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ एक दूसरे से झगड़ते ही रहते है, उन दोनों के बीच मीठी नौक ज़ौंक चलती ही रहती है, सुबह से मेरा चश्मा कहा है, मेरी दवाई कहा है, पूजा की थाली में आज फूल नहीं तो कल दिया नही है, चाय में शक्कर कम क्यों है, घुटनों में दर्द है, चला नही जा रहा फिर भी मंदिर तो जाना ही है, शाम को दोस्तों से मिलना तो है ही। सुबह हुई नहीं और दादा और दादी की नाैक झौंक शुरू। मैं अपनी किताब में मुंह छुपाकर दोनों की नौक़ झौंक देख सुन लिया करती और मन ही मन मुस्कुराया करती। एक तरफ मेरे मम्मी और पापा को ऑफिस जाने की जल्दी होती है, तो वह भी चिल्लाया करते, मम्मी और पापा दोनों बहुत टेंशन में रेहते, उन दोनों के बीच नौक झौंक नहीं बल्कि झगड़ा होता रहता फिर दादा जी आवाज लगाकर दोनों को चुप करा देते, फिर दोनों मुंह फुलाकर ऑफिस चले जाते।
           लेकिन आज सुबह से घर का माहौल कुछ ओर ही है, नाहीं कोई नौक झौंक नाहीं कोई आवाज़। सुबह से आज दादी लाल साड़ी पहने, लाल चूड़ी, गले में बड़ा मंगलसूत्र, माथे पे लाल बिंदी, हाथों में मेंहदी, बालों में वेणी, सज धज के दादी तैयार होकर मंदिर जा रही थी, दादा जी भी अपने नए कुर्ते में जच रहे थे, मुझ से रहा नहीं गया, आख़िर मैंने पूछ ही लिया, " क्या बात है दादीजी, आज आप इतने तैयार क्यों हुए हो, आज कुछ है क्या ? " दादी थोड़ा मुस्कुराई, पीछे से दादाजी ने मेरी बात सुन ली और कहा कि, " हा बेटा, आज तो बहुत बड़ा दिन है, आज तेरी दादी ने कड़वा चौथ का व्रत जो रखा है, मेरी लंबी उम्र के लिए, पता नहीं और कितना जीना पड़ेगा तेरी दादी के साथ ? कुछ दिनों से वैसे भी इसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है, इसलिए मैंने कहांँ इस बार व्रत मत रखो, लेकिन यहाँ पर मेरी सुनता कौन है ? इतने सालों से जो कर रहे है, वह करना ही है, फिर चाहे जो भी हो जाए। " कहते हुए दादाजी दादी को देखने लगे ।
     उस तरफ़ दादी जी ने कहा, "आपको तो मैं कुछ भी करु, पसंद ही नहीं, हर बात में रोकना और टोकना, आपकी आदत ही है।"
       दादाजी ने कहा, " हा, और हर बार अपने मन की ही करना, तुम्हारी भी तो आदत हो गई है। "
      मुझे दोनों की बात सुनकर मन ही मन हसी आ रही थी । मैंने बात को संँभालते हुए कहा, " चलो कोई बात नहीं,अब व्रत रख ही लिया है, तो हँसी खुशी करते है, आज कोई नौक झौंक नही। " दादा और दादी भी मेरी बात सुनकर हस पड़े, वैसे तो दोनों को एक दूसरे के बिना बिलकुल नहीं चलता, दोनों में इतना प्यार है, लेकिन कभी भी जताएंँगे नही।
       देखते ही देखते रात हो गई, पूजा की सारी तैयारी दादी ने कर ली थी, चांँद को देखा और फिर चरनी में से दादा जी को, मुस्कुराते हुए देखा, फिर दादाजी ने दादी को पानी पिलाया और दादी ने दादा जी को। दादी ने कहा, " चलो अब साथ मिलके खाना खा लेते है, सब आपकी पसंद का खाना बनाया है, मेरे साथ सुबह से आपने भी तो कुछ नही खाया है, फ़िर  दोनों ने पहला निवाला एक दूसरे को खिलाया फिर मुस्कुराते हुए खाना खाया, ऐसा प्यार था मेरे दादा और दादी का। 
      आज कई सालों बाद मैं अपने मोबाइल में उनकी वीडियो देख रही थी, जो मैंने कड़वा चौथ के दिन दादा और दादी की बनाई थी। देखकर ऐसा लगा, कि जैसे आज भी दादा-दादी और उनका प्यार और प्यार भरी नौक झौंक मेरे पास, मेरे साथ ही है, अब तो वह दोनों नहीं रहे मगर उनके जैसा प्यार मैंने आज तक कहीं देखा या सुना नहीं। दिल कहता है, वह दोनों जहाँ भी हो साथ हो, खुश हो।

स्वरचित
Bela...

Comments