वे सब से अच्छें
शीला का पति अक्सर काम के सिलसिले में घर से बाहर रहता है, कभी-कभी तो शीला के पति को काम के लिए शहर से दूर भी जाना पड़ता है और शीला को अब इसकी आदत सी हो गई थी। वैसे भी इतने साल साथ रहने के बाद शीला को पता चल गया है, कि उसके पति को काम का नशा है, उसे मेहनत करना अच्छा लगता है और जिंदगी में कुछ कर के दिखाना है, जब तक वह अपनी मंजिल हासिल नहीं कर पाएँगे , तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगे, इस लिए शीला अपने पति के काम के बीच नहीं आती। वह जितना हो सके अपनी दुनिया में अपने बच्चों के साथ खुश रहने की कोशिश करती है, अपने सास ससुर की सेवा करती है और वैसे भी वह नाही इतनी पढ़ी लिखी या समझदार है, कि वह घर और बच्चे संभालते हुए साथ में कोई अच्छी सी नौकरी भी करे।
एक दिन शीला की सहेली उससे मिलने उसके घर आई, बातों बातों में शीला की बात सुनकर शीला की दोस्त रमा ने कहा, कि " देखो शीला, अपने पति को इतनी छूट देना भी सही नहीं है, माना कि वह काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं लेकिन बाहर अगर किसी लड़की के साथ उनका कोई चक्कर हो गया, तो तुझे कैसे पता चलेगा ? आज कल प्यार और रिश्ता बदलते देर नहीं लगती, पता नहीं कब कौन धोखा दे ? मेरी बात मान तू भी ज़रा सँभल कर रह , अपने पति की ओर जरा ध्यान दे, घर पर वह आए तो थोड़ा तू भी सज संवर लिया कर, अपने हुस्न के जाल में उसको फँसा कर रख, फिर देख तेरा पति बाहर जाना भूल जाएगा।"
रमा की बात सुनकर शीला ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी, उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।
रमा को बड़ा ताजूब हुआ कि इतनी सीरियस बात सुनकर शीला ज़ोर-ज़ोर से हँसने क्यों लगी ? कहीं ये पागल तो नहीं हो गई ? रमा ने शीला को चुप कराते हुए पूछा कि तू हँस क्यों रही है ? क्या मैंने कुछ गलत कहा क्या ? "
शीला ने रमा से कहा, सतीश ( शीला का पति ) ऐसा कभी कुछ भी नहीं कर सकता, क्योंकि उसे अपनी जिंदगी में अपने काम से ही सब से ज़्यादा प्यार है, शायद मुझ से भी ज़्यादा और रही बात किसी लड़की की उसकी जिंदगी में आने की तो वह मेरे साथ ही जैसे तैसे सेक्स के लिए राज़ी होते हैं तो किसी और के साथ क्या करेंगे ? उसके सिर पर काम का ऐसा भूत सवार है, कि उसके आगे वह दिन और रात भी नहीं देखते। हम दोनों का रिश्ता बाकी लोगों से ज़रा हटके है, हम एक दूसरे को वह जो है, जैसा भी है उसी हाल में उसे प्यार करते हैं हमारे लिए ये जरूरी नहीं, कि मैं उनके लिए सज-धज के उसका मन बहलाऊँ , उसको अपनी साड़ी के पल्लू से बाँध के रखूँ नहीं बिलकुल नहीं क्योंकि मेरा ये मानना है, कि चाहे आप कुछ भी कर लो, किसी के शरीर को आप जरबरदस्ती बाँध के रख सकते हो, मगर उसके मन को आप नही बाँध सकते, वह इंसान आप के साथ जरूर होगा, लेकिन उसका मन तो कहीं और ही होगा। तो अगर आप के पति का मन ही आप के पास नहीं होगा तो शरीर को बांध कर रखने से क्या फायदा ? हम ने तो प्यार उसके मन से किया है, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें चाहता है, भले ही वह कुछ कहते नहीं मगर मैंने अपने मन की आँखों से उस प्यार को देखा है, महसूस किया है, और मेरा तो ये भी कहना है, कि जैसे तू बता रही है, कि अपने पति को खुश रखने के लिए और उसे अपना बनाए रखने के लिए सजना सँवरना , नैन मटका जरूरी है, तो क्या कोई पति अपनी पत्नी को खुश करने के लिए कभी ऐसा कुछ करता है क्या ? मैंने तो ऐसा कभी नहीं देखा या सुना। तो फिर हम ही क्यों ?
मेरे लिए वह अपने आप को नहीं बदल सकते तो उनके लिए मेरा भी अपने आप को बदलना उतना ही मुश्किल है। अगर प्यार करना है, तो हम जैसे हैं जिस हाल में उसी रूप में प्यार करे, वही सच्चा प्यार, वक्त रहते प्यार और उसके साथ रिश्ता बदल जाए, तो उस रिश्ते को फिर आप जितना भी बाँध ने की कोशिश करो, वह रिश्तों की डोर कच्ची ही रहती है, और उसके टूटने का डर हर वक्त लगा रहता है, जैसा शायद तुमने अपने रिश्ते में महसूस किया होगा, तभी तू मुझे बता रही है। तो उस में भी कोई गलत बात नहीं तू अपनी जगह सही है और मैं अपनी जगह, बस हमारे प्यार करने का तरीका ज़रा हटके है। मैंने सतीश को उसकी जिंदगी उसके तरीके से जीने का हक उसे दिया है, तो उसने भी मेरी जिंदगी मेरे मुताबिक जीने का हक मुझे दिया है। प्यार सिर्फ़ दो जिस्मों का ही नहीं बल्कि दो दिलों का भी बंधन है।
शीला की बात सुनकर रमा ने कहा, कि " तू और तेरे उसूल और तेरी सोच, आज भी ऐसी ही है, जैसी तू पहले थी, तेरे साथ बातों में कोई नहीं जीत सकता, तुझे तेरा प्यार मुबारक, तू बस खुश रह मुझे और कुछ नहीं चाहिए। " कहते हुए रमा शीला के गले लग जाती है। तभी शीला की आँखों से दर्द के दो आँसू बह जाते हैं जो कई बार वह अपने अंदर छुपा के रखती थी, शीला मन ही मन सोचने लगी, " वैसे वह सब से अच्छे सब से प्यारे हैं बस उनके जिंदगी जीने के उसूल उन से भी पक्के, मतलब वह जो बोले, जो सोचे वह होना ही चाहिए, वरना वह सब से रूठ जाते हैं और ऐसे रूठ जाते हैं कि उस वक्त उनको देखकर कुछ देर के लिए ऐसा लगता है, कि जैसे उन्हें हमारी अपनी जिंदगी में कोई जरूरत ही नहीं, नाही सामने देखना, नाहीं कोई बात करना, नाहीं किसी बात का सीधे मुँह जवाब देना और दोस्तों के साथ तो फोन पर मज़े से बातें करना, जैसे घर में कुछ हुआ ही न हो, उस वक्त इस दिल को बहुत ही बुरा लगता है, क्योंकि हम से तो उस हाल में रहा नहीं जाता और दूसरी तरफ़ वह आराम से घूमते फिरते और अपनी मस्ती में रहते और यहाँ उन से बातें किए बिना हमारा पल पल जिंदगी गुजारना मुश्किल हो रहा होता है, क्योंकि चाहे वे जैसे भी हो, हम ने उनसे प्यार बहुत किया है और हम उसी वजह से सब कुछ सह जाते, बस उनकी नाराज़गी नहीं सह पाते, अंदर ही अंदर जैसे हम टूटते जाते हैं । अब यह बात हम कैसे अपनी सहेली को बताए, कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हम किसी से भी कहना नहीं चाहते, क्योंकि अगर बता भी दे, तब भी दूसरे हम को सलाह देने लग जाते, मगर साथ तो हमें ही रहना है, तो मुझे ही पता होगा ना, कि उनको कैसे मनाया जा सकता है। बस चुप रह जाते हैं और कर भी क्या सकते हैं झगड़ा करना हमें आता नहीं, अकेले रह नहीं पाएँगे , अब तो चाहे जो भी हो जिंदगी उनके नाम कर दी है, वह जो है, जैसे भी है, वह बहुत अच्छे है, हमारा खयाल भी बहुत रखते हैं और हम से प्यार भी बहुत करते हैं बस उनके जिंदगी जीने के उसूल जरा सब से हटके हैं, मगर अब हमें उन ही उसूलों पर चलने की आदत सी हो गई है, इसलिए अब उनसे हमें कोई शिकवा, शिकायत नहीं होती। " ऐसा सोच के शीला जैसे अपने आप को ही मनाने की कोशिश कर रही थी।
रमा ने फिर भी शीला से कहा, " फिर भी कभी भी तुझे मुझ से बात करनी हो, या मेरी मदद की ज़रूरत लगे, तब पक्का मुझे बताना, मैं तेरे हर फ़ैसले में तेरे साथ हूं, अपने आप को कभी अकेला मत समझना। " कहते हुए रमा वहां से अपने घर चली जाती है।
तो दोस्तों, आप जो हो जैसे भी हो, उसी रूप में आप एक दूसरे को पसंद करें आप अपने आप में सही हो और हम आप को उसी रूप में प्यार करते थे, करते हैं और करते रहेंगे, बिना किसी शर्त, बिना किसी उम्मीद के, बस यही तो प्यार है।
स्वरचित
Bela...
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