ओ क्रिष्ना

                           ओ क्रिष्ना    
 
        तू मेरी आँखों में और मेरे दिल में कुछ इस तरह बस चूका है, कि जहाँ तक मेरी नज़र जाए, बस तू ही तू नज़र आए।  हर पेड़, पत्तो में, समंदर की गहराई में, आसमान में उड रहे पंछी में, बरसात की बूंदो में, हवाओ में बहते संगीत में, कोयल की कुकू में, भवरे के गुंजन में, मैया की लॉरी में, राधा की आंँखों में, गोपिओ के स्वपन में, सुदामा की दोस्ती में, अर्जुन की आँखों में, कर्ण के विश्वास में, बच्चों की मुस्कान में, भक्त की भक्ति में, बंसी की धुन में, देवकी की आंखों में, यशोदा के माखन में, हर इंसान में, अपने आप में, जिस ओर भी मैं देखूं मुझे बस तू ही तू नज़र आए।
 

        तू मेरे साथ हर पल है, तु मुझ में, मैं तुज में हूँ, तू मुझ से दूर कहाँ, जहाँ तक मेरी नज़र जाए, वहांँ तक मुझे बस तू ही तू नज़र आए।  
        लोग तुझे ढूंढे मंदिरों में, मगर मैने तुझे पाया मेरे रोम- रोम में ।
     तेरी दीवानी बन, क्यों मैं तुझे ढूँढू गली-गली ? जब की तुम को मैंने पाया मेरे मन मंदिर में। 
       
                                                                स्वरचित 
Bela...

 

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