बेचारे भैया
राखी के एक महीने पहले से ही इंतजार लगा रहता है, भाई के फोन का और आज वह दिन आ ही गया, भाई ने फोन पर कहा, कि राखी के लिए तुम को बच्चों को और हमारे प्यारे जमाई बाबू को भी इसबार साथ में लेकर ही आना और वैसे भी बहुत दिन हो गए है, जमाई बाबू से मिले हुए, इसी बहाने उन से मिलना भी हो जाएगा, मैं आज ही ट्रेन की टिकट सब की बुक करा देता हूं। मैंने खुशी से मुस्कुराते हुए हां कहा और मन ही मन खुश होती रही, कि कई महीनो बाद मायके जाने को मिलेगा। बड़े दिनों बाद भैया और भाभी से भी मिलना होगा।
भैया ने हम सभी की टिकट्स भी बुक करवा दी, लेकिन मेरे पति को उन दिनों ऑफिस में ज़रूरी काम आ गया, इसलिए वह नहीं आ सके । मेरे पति ने कहा, कि " मेरा इस बार आना मुमकिन नहीं लगता, तो तुम और बच्चें चले जाओ, वैसे भी राखी के त्योहार में तुम दोनों भाई-बहन के बीच आकर वैसे भी मैं क्या करूंगा। " मैंने तो हमारे जाने की तैयारी कर ली लेकिन जाने के अगले दिन ही पता चला कि किसी वजह से सूरत जाने वाली सभी ट्रेन नवसारी तक ही जाएगी और हमें जाना था मुंबई से सूरत।
जैसे ही मेरे भैया को ये बात पता चली उन्होंने तुरंत ही मुझे फोन कर के कहा, कि " तुम फिक्र मत करना, तुम बच्चों सहित नवसारी स्टेशन उतर जाना, मैं वक्त पर तुम सब को लेने नवसारी स्टेशन आ जाऊंगा। " ये सुनकर हमारी तो जैसे टेंशन ही दूर हो गई ।
भैया स्टेशन लेने आ गए, नवसारी से सूरत का सफ़र भी बड़ा मजेदार रहा, हमारी तो जैसे छोटी सी ट्रीप ही हो गई। आते वक्त रास्ते में मेरे बच्चों को भूख लगी थी, ( मेरा बड़ा बेटा ८ साल का और बेटी ६ साल की ही है । ) बच्चों को भूख लगी थी, तो भैया ने बीच रास्ते गाड़ी रोक सब को फाफड़ा, खमन और जलेबी का मज़ेदार नाश्ता कराया, गाड़ी में गाना सुनते-सुनते कब घर आ गया, पता ही नही चला। दुसरे दिन राखी बंधी, भैया ने गिफ्ट में मुझे सुंदर साड़ी और भाभी ने ज्वेलरी दी। फ़िर भाभी ने ढेर सारे पकवान बनाए थे, मन खुश हो गया। शाम को बच्चों ने अपने मामा से ज़िद्द की, कि "आज मामा मूवी देखने जाना है।" तो शाम को भैया- भाभी उनके बच्चे हम सब साथ में "oh my god २" मूवी देखने गए, इंटरवल में बच्चे पॉपकॉर्न, समोसे और पेप्सी के बिना तो मानते नही, तो वह भी खिलाया, रात को बाहर होटल में ही डिनर किया । मेरे पति को भैया बीच-बीच में फोन कर के बता देते की, " आप भी आते तो मजा आ जाता। " फिर दूसरे दिन बच्चों की ज़िद्द की वजह से फिर से गार्डन में घूमने गए, वहां भी बच्चों ने अपने मामा को बड़ा परेशान किया, बलून, कुल्फी, पानीपुरी, भेल पूरी, फालूदा और भी ना जाने क्या क्या मजे से खिलाया। "बेचारे मेरे भैया "। हस्ते-हस्ते हमारे सारे नखरे उठाए। चेहरे पर उफ्फ तक नही आया। आखिर में वापस घर लौटते वक्त बच्चों को भी कपड़े, चॉकलेट्स और गिफ्ट दिए। बच्चे तो इतने खुश की मत पूछो बात, हमे फिर से उन्होंने सूरत से नवसारी तक छोड़ा और हम वापस जाने लगे, तब हमारा हाथ पकड़ के भैया ने कहा, कि " तुम खुश तो हो ना ? मम्मी पापा नहीं रहे तो क्या हुआ, हम तो है ना, जब भी तुम्हारा मन मिलने का हो, तब बिना किसी हिचकिचाहट बस एक फोन कर देना, तेरा ये भैया हाजिर होगा और अपने आप को कभी भी अकेला मत समझना। मुझ से जितना हो सकेगा, उतनी मदद में तुम्हारी जरूर करूंगा। " उनकी बातें सुनते ही मेरी आंखें भर आई। मैंने भैया से कहा, कि आपने बस इतना कह दिया, मेरे लिए उतना ही काफी है। मेरी भगवान से बस यही प्रार्थना है, कि "आप दिन दुगनी और रात चौगनी तरक्की करे, स्वस्थ और खुश रहे, दुख का बादल आपके और आपके परिवार पर कभी नहीं आए। "
भाभी ने भी गले लगाते हुए कहा, " हा दीदी, आपका जब भी मन करे आ जाया किजिए, आप से मिलकर मुझे भी अच्छा लगता है, मम्मी जी के जाने के बाद मैं भी एकदम अकेली सी हो गई हूं।"
इतने अच्छे भैया-भाभी पाकर मेरा तो जैसे जन्म ही सफल हो गया, भला आज कल के ज़माने में मा-पापा के चले जाने के बाद कौन इतना अपनी बहन के लिए करता है। मुंबई जाते वक्त पूरे रास्ते में मैं सिर्फ और सिर्फ उनके अच्छे भविष्य के लिए ही प्रार्थना करती रही, दूसरी तरफ़ अपने बच्चों को देखते हुए हसी आ रही थी, कि " दो-तीन दिन में मेरे बच्चों ने बेचारे मेरे भैया को कितना परेशान कर दिया, कभी ये तो कभी वो।" 😄😃
स्वरचित
मौलिक कहानी
बेचारे भैया
Bela...
Comments
Post a Comment