स्वार्थ
आज कल की दुनिया में स्वार्थी कौन नहीं है ? हर कोई इंसान किसी ना किसी बजह से एक दूसरे के साथ या कहूंँ तो, किसी ना किसी रिश्तें से जुड़ा हुआ है, जिसको हमने रिश्तों का नाम दे रखा है...
पति और पत्नी का रिश्ता, जैसे ज़्यादातर पहले के ज़माने के पति पत्नी एक दूसरे पे निर्भर रहते थे, पति के कई काम उसकी पत्नी सँभाल लेती और पत्नी के कुछ काम पति संँभाल लेता, रिश्तें में प्यार तो होता ही है, मगर उसके साथ-साथ एक दूसरे से अलग होने का डर भी हर पल लगा रहता है, कि उसके जाने के बाद मेरा क्या होगा ? मेरा ख्याल कौन रखेगा ? सब से ज़्यादा हाउस वाइफ को पैसो की कमी होने लगती है, पहले तो पत्नी अपने पति के पास पैसो के लिए हाथ फैलाती थी और पति के जाने के बाद उसे अपनी ज़रूरत के हिसाब से पैसो के लिए अपने बच्चों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है, जो उसे कटई मंज़ूर नहीं होता, एक तरफ पति जो सुबह से लेकर रात तक अपनी हर ज़रूरत के लिए अपनी पत्नी को आवाज़ लगाता, वह उस के जाने के बाद उसे कौन सी चीज़ घर में कहाँ रखी होती है, पता नहीं होता, तब वह अपने आप को बहुत ज़्यादा अकेला और बेबस महसूस करने लगता है, बार-बार छोटी-छोटी बातों के लिए बहु और बेटे से पूछना अच्छा नहीं लगता, शायद इसी डर और परेशानी की बजह से पति-पत्नी एक दूसरे से ज़्यादा करीब रहने लगते है। ये तो हुई एक बात मगर
ऐसे ही हमारी पड़ोस में एक अंकल आंटी रहते थे, पहले तो अंकल आंटी के बीच बहुत प्यार था, अपनी जवानी में दोनों ने बहुत मज़े किए, अच्छे से घूमे, फिरे, तीर्थ-यात्रा भी की, मौज-मस्ती से ज़िंदगी कट रही थी, कई बार मुझे तो क्या लोगों को भी ये देख हैरानी होती थी, सब सोचते थे, कि अंकल-आंटी के बीच बहुत प्यार है। कुछ साल बाद एक दिन वह दोनों अपनी स्कूटर पे कहीं जा रहे थे और उनका एक्सीडेंट हो गया। आंटी को तो ज़्यादा चोट नहीं लगी, लेकिन अंकल के सिर में बहुत चोट लगी और पैरों में भी फ्रैक्चर हो गया। डॉक्टर ने कुछ दिनों तक कम्प्लीटली बेड-रेस्ट करने को कहा, जैसे-तैसे कुछ दिन तो गुज़र गए, लेकिन पता नहीं, वक़्त को क्या मंज़ूर था, कि उसके बाद अंकल जी कभी चल ही नहीं पाए, उस वक़्त तो आंटीजी ने अंकल की मन लगा कर बहुत सेवा की, मगर जैसे-जैसे दिन चलते गए, वैसे-वैसे अंकल की बीमारी अब आंटी जी को बोज लगने लगी, क्योंकि अब उन का बाहर आना-जाना बंद हो गया, अंकल जी को किसी भी चीज़ की कभी भी ज़रूरत पड़ सकती थी, इसलिए आंटी जी कुछ देर के लिए भी कभी बाहर जा नहीं पाति थी और उनके बच्चे विलायत में रहते थे, जो वक़्त पर पैसे भेज देते और फ़ोन पे रोज़ हाल-चाल पूछ लेते, अब तो अंकल भी दिन भर बिस्तर पर सोते-सोते बोर हो जाते और चिड़चिड़े भी रहने लगे, छोटी-छोटी बात को लेकर अब अंकल जी-आंटी जी से नाराज़ हो जाते या उनके साथ झगड़ पड़ते, धीरे-धीरे दोनों में रोज़ झगड़े होने लगे।
ये सब मुझे इसलिए पता है, क्योंकि इंसानियत के नाते मैं कभी-कभी उनके घर आंटी जी की मदद के लिए चली जाती, तब घर का माहौल और उन दोनों की बातों से पता चल ही जाता। और तो और एक दिन तो आंटी जी ने खुद ही मुझ से कह दिया, कि " देखो ना, तुम्हारे अंकल जब ठीक थे, तब कितने अच्छे दिन थे, हम रोज़ बाहर घूमने जाते, अब उनकी बीमारी की बजह से कहीं नहीं जा पाते, वह तो ठीक लेकिन वह मुझे भी बाहर जाने नहीं देते, घर का सारा सामान भी ऑनलाइन ही मँगवा लेते है, तो उस बहाने भी कहीं जाना नहीं होता। "
ये सुन मुझे बहुत बुरा लगा, उस वक़्त तो मैंने आंटी जी को दिलासा दे दिया, कि " ऐसा क्यों कहते हो, अंकल जी पहले की तरह ठीक हो जाएँगे और आप लोग पहले की तरह घूम-फिर सकोगे, बस मेरे कान्हा जी पे भरोसा रखिए, वह सब ठीक कर देंगे। "
उस रात मैंने घर आकर सोचा, " जब तक घूमे-फिरे तब तक सब सही रहा, थोड़ा वक़्त बदला, थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, तब सहा भी नहीं जाता, अपनों से ही जैसे मन भर गया हो, प्यार तो ना जाने कहाँ खो गया ? मगर ऐसे वक़्त में ही पति का साथ देना ज़रूरी बन जाता है, उसे हर बात आराम से करनी पड़ती है, पति को और भी ज़्यादा वक़्त देने की ज़रूरत होती है, उसे इस वक़्त पहले से भी ज़्यादा प्यार और सहारे की ज़रूरत होती है, उनको बातों में लगाकर उनका मन बहलाने की ज़रूरत होती है, उनको ये एहसास ही नहीं होने देना चाहिए की, वह अपना खुद का काम करने में बेबस है, उस के बदले अगर उनके साथ ऐसा बर्ताव करोगे, तो उनको बुरा तो लगेगा ही ना ! उनकी जगह अपने आप को रख कर एक बार देखो, कि अगर एक्सीडेंट में आप की ऐसी हालत हुई होती, तब अगर आप का पति आपके साथ ऐसा बर्ताव करता, तो क्या आप को अच्छा लगता ? मगर क्या करे सब लोगों की सोच और ज़िंदगी जीने का सलीका अलग-अलग है, हम एक या दो बार उनको समजा सकते है, फिर मानना नहीं मानना वह उनकी मर्ज़ी होती है।
तो अब आप ही सोचिए दोस्तों, वह प्यार ही किस काम का जो ज़रूरत आने पे हम से तंग आ जाए या हम से परेशान रहने लगे, जब सब ठीक तो प्यार भी बहुत और वक़्त बदला तो प्यार भी कम होता गया, इसे स्वार्थ नहीं कहेंगे, तो और क्या कहेंगे ? और भी ऐसे कई रिश्तें है, जो कहीं ना कहीं किसी ना किसी तरह से स्वार्थ से जुड़े हुए है, जो मैं आप को अपनी अगली कहानी में बताऊँगी।
स्व-रचित
सत्य घटना पर आधारित
#स्वार्थ
Bela...
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