ANCHAHA RISHTA BHAG-5

                        अनचाहा रिश्ता भाग -५ 

          तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि निशांत जब घर आता है, तब नियति चुपके से सोफे पर बैठ के जैसे रो रही थी, मुन्ने के कमरें में जाकर देखा, तो मुन्ना कमरें में नहीं था, वह स्कूल गया हुआ था, थोड़ी देर बाद कमरें के बाहर से किसी के आने की आहत सुनाई देती है और बाहर देखा तो भावेश कुछ सामान लेकर घर के अंदर आ चूका है, क्योंकि घर का दरवाज़ा पहले से ही खुला हुआ था, भावेश निशांत के पास बैठकर निशांत को मनाने की कोशिश करता है ये कह कर चला जाता है, कि अब वह लौट के वापस कभी नहीं आएगा, वह तुम दोनों की ज़िंदगी से बहुत-बहुत-बहुत दूर जा रहा है। नियति एक तरफ भावेश को जाता हुआ देख रही और दूसरी  तरफ वह कमरें का दरवाज़ा जिस में उसका निशांत रूठ के बैठा हुआ था, अब आगे... 

       नियति के लिए अब निशांत को मनाना, ये एक चुनौती जैसा था, वह निशांत, जो नियति की हर बात आसानी से मान लेता था, जिसकी सुबह और शाम नियति का चेहरा देख कर होती थी, नियति के साथ बातें करना, रूठना, मनाना, लड़ना, झगड़ना, प्यार करना, प्यार का इकरार करना, सब कुछ जैसे एक पल में निशांत जैसे भूल गया था। सच कहूंँ तो निशांत की जगह ओर कोई भी होता, तो वह भी ऐसा ही करता, शायद इस से भी बुरा, कि नियति को घर से निकाल ही दे। निशांत को अब सिर्फ और सिर्फ नियति की गलती नज़र आती थी, वह खुद उस से जैसे नज़रें चुरा रहा था, निशांत और नियति एक ही घर में रहते हुए एक दूसरे से दूर जा रहे थे, नियति से अब बात कर पाना अब निशांत के लिए आसान नहीं था, ऊपर से दिन-रात रो-रो कर, दिन-ब-दिन नियति का हाल-बेहाल हो रहा था, नियति निशांत से बात करने जाती तो, निशांत कुछ ज़रूरी काम है, कहते हुए चला जाता, चाय लेकर आती तो आज मन नहीं ऐसा कह देता, उसकी किसी भी बात का सीधे मुँह जवाब नहीं मिलता, नियति निशांत का मन-पसंद खाना बनाती, तब भी निशांत खाना खाकर आया, कहते हुए भूखे पेट सो जाता, दोनों के गले से निवाला नहीं उतरता था, मुन्ना भी अब समझ रहा था, तो वह भी निशांत से पूछ लेता, कि " पापा आज कल ममा बार-बार अकेले में क्यों रोती रहती है, आप से उसकी फाइट हुई क्या ? " तब निशांत उसको झूठ कहते हुए मना लेता या तो हँसा कर बात को भुला देता। रात को भी बिस्तर के एक तरफ़ निशांत तो बिस्तर के दूसरी तरफ़ नियति मुँह पलटकर सो जाती। 

     एक दिन नियति से रहा नहीं गया, नियति ने जबरदस्ती से निशांत का हाथ पकड़कर उस को अपने पास बिठाया, और कहने लगी, कि " मुझे कुछ कहना है और आपको आज मेरी हर बात सुननी ही पड़ेगी। आज मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंँगी, फिर भी निशांत वहां से खड़ा होकर चलने लगा, तब नियति निशांत के पाँव पकड़कर अपने घुटनों के बल वही ज़मीन पर बैठ जाती है, जैसे भावेश ने किया था, और अपने एक हाथ से ज़ोर लगा कर नियति ने निशांत को फिर से सोफे पर बैठा दिया। निशांत ने जब नियति की आँखों में देखा, तो उसके आँखों से आँसू ओ की धारा बह रही थी, एक पल के लिए निशांत का दिल ये देख पिगल गया, फिर भी वह चुप रहा, तब आँखें बंद रखकर ही नियति ने अपनी बात कहना शुरू किया, निशांत मुझे खुद को ही पता नहीं, मुझे क्या हो गया था ? मगर ये बात भी सच है, कि मैं आप से बहुत-बहुत प्यार करती थी और आज भी करती हूँ, आप की ये नाराज़गी अब मुझ से बर्दास्त नहीं हो रही, आज चाहे कुछ भी हो जाए मुझे जो कहना है, वह आप को सुनना ही पडेगा। जब आप मुझे अकेला छोड़ के चले गए थे, तब मैं बहुत अकेली पड़ गई थी, लेकिन फिर भी मैंने हौसला कभी नहीं हारा, लोगों की खरी-खोटी भी सुनी, कई आदमी की बुरी नज़रों से भी अपने आप को बचाए रखी, कई मर्द की बिस्तर पे अपने साथ सोने की ऑफर को भी मैंने अनदेखा और अनसुना कर दिया, ये बात मैंने आप को सिर्फ और सिर्फ इसलिए ना बताई, कि कहीं आप को इस बात से तकलीफ ना हो, आप अपने काम पे ध्यान दे सको, या कहूंँ, तो कभी हिम्मत भी नहीं हुई। डर लगता था, कि आप क्या सोचेंगे, आप अपने उसूलों के बड़े पक्के हो, ये जानते हुए आप के कहे मुताबिक ज़िंदगी जीने की कोशिश करती रही, या कहूंँ तो अपने आप को आप की नज़रों से देखने लगी, दिन-ब-दिन मुझे आप की याद इतनी सताने लगी, कि मैं दिन रात बस आप के ही बारे में सोचा करती, ना रात को नींद और ना दिन को चैन। नाहीं कहीं जाने का मन करता और नाहीं घर में मन लगता, तभी आपने मुझे योग क्लास जाने को कहा, अपने मन की कुछ कर लूँ, तो दोस्त भी बनेंगे और मन भी लगा रहेगा, लेकिन उलझनें और भी बढ़ने लगी, दोस्त बने दोस्ती हुई, बातें हुई, मन को अच्छा लगने लगा, वक़्त भी कट जाता, मगर आप के बिना जैसे सब कुछ अधूरा सा था, मैं कोई बहाना नहीं बना रही और नाहीं अपनी गलती पे पर्दा डालने की कोशिश कर रही हूँ। मैं और भावेश कभी अकेले में नहीं मिले थे, वह पहली बार हुआ था और आखरी बार उसके बाद मैंने उस से कभी बातें नहीं की। आप मेरे दिल के सरताज हो, अब भी मेरी सुबह आपके नाम से होती है और शाम आपके नाम से। मेरी धड़कनों में आप के नाम का संगीत आज भी बजता है, आपकी जगह जो मेरे दिल में है, वह ओर कोई कभी भी नहीं ले सकता, वह एक एहसास था, हवा का झोका था, जो आकर चला गया, उस हवा के झोकों को नाही मैं पकड़ के रख सकती हूँ और नाही आप। जो चला गया, उसे भूला देने में ही हम दोनों का अच्छा है। आप हम से रूठे हुए रहते है, तो मुझे लगता है, कि मेरी साँसे रुक सी गई हो, मैं हर पल घुटन महसूस कर रही हूँ और इस घुटन के साथ मेरा जीना और भी मुश्किल हो रहा है। या तो आप मेरे साथ लड़िए, मुझ पे जितना गुस्सा करना हो कर लीजिए, मुझे अगर मारने का मन करे तो वह भी कर लीजिए, फरियाद कीजिए, मगर यूँ चुप ना रहिए, मुझ से अब आपकी ये ख़ामोशी बर्दास्त नहीं हो रही। ऐसा कर के आप अपने आप को भी सज़ा दे रहे हो और मुझे भी। क्योंकि मुझे पता है, आप भी मुझ से उतना ही प्यार करते है, जितना मैं आप से, आप मुझ से खफा रह सकते हो, मगर मुझ से दूर नहीं। ज़िंदगी को अब और मुश्किल ना कीजिए, जो भी आप के दिल में है, वह आज बता ही दीजिए। हो सके तो मुझे मेरी गलती के लिए माफ़ कर दीजिएगा, मगर अब मुझ से यूँ नाराज़ ना रहिएगा। " 

    कहते हुए नियति वहां से निशांत का हाथ छुड़ाते हुए खड़े होकर जाने लगती है, लेकिन निशांत ने उसका हाथ नहीं छोड़ा, निशांत ने रोती हुई नियति को अपनी ओर खिंच लिया, ना कुछ कहे सुने नियति को अपने गले लगा लिया। नियति को गले लगाकर निशांत भी रो पड़ा, निशांत और नियति ने एक दूसरे को बड़े ज़ोरो से गले लगा लिया, ऐसे जैसे कई सालों से बिछड़े हुए दो प्रेमी आज मिले हो, जैसे की धरती और आसमान का मिलन आज हुआ हो, दोनों एक दूसरे के गले मिलकर बहुत देर तक रोते रहे, कई दिनों की दूरियांँ मिट गई। दो बिछड़े दिल फिर से एक होने लगे, हवाओं में से जैसे संगीत बजने लगा, " बाँहों से बाहें मिली उसके बाद होठों से होठ टकरा गए, नियति की बंद आँखों से आंँसू की धारा अब भी बेह रही है।  

    आखिर निशांत ने नियति को माफ़ कर ही दिया, लेकिन कुछ वक़्त तक दोनों के बीच हिचकिचाहट तो रह ही जाती है, लेकिन कुछ वक़्त बाद धीरे-धीरे सब पहला सा ठीक हो जाता है, निशांत, नियति और मुन्ना अब सब साथ में दिल्ली में ही रहते है और बहुत खुश भी है, लेकिन कभी-कभी एक अनचाहा सा रिश्ता जो, नियति और भावेश के बीच आ गया था, वह पल दो पल के लिए, कभी-कभी नियति को आसामन में देखने पर या तेज़ हवा के झोंके जब नियति को छू के जाते है, तब उसे याद आ जाता है, लेकिन नियति उस पल को फीर से अपने अंदर समेत कर फिर से अपने काम में लग जाती है। 

         तो दोस्तों, शायद ऐसा ही अनचाहा सा रिश्ता हर एक की ज़िंदगी में आता होगा, जिसे शायद हर कोई अपने अंदर छुपाए रखता है और उस अनचाहे रिश्ते के एहसास के साथ अपनी ज़िंदगी कुछ यादों के सहारे गुज़ार लेता है।   

                               समाप्त 

स्व-रचित 

#अनचाहा रिश्ता भाग -५ 

Bela 

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