अनचाहा रिश्ता भाग - ४
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि निशांत से मिलने मोना आई थी और मोना ने निशांत की गैरमौजूदगी में भावेश और नियति के बीच जो भी था, या जो भी हुआ, क्यों और कैसे हुआ ? वह सब उसे जो भी पता था, वह बता दिया। अब मोना की कही बात पर यकींन करने की बारी निशांत की है, क्या अब निशांत मोना की कही बात पर यकींन करेगा या नहीं ? अब आगे...
मोना की बात सुनकर निशांत फ़िर से सोच में पड़ जाता है, उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि क्या सच और क्या झूठ। इसलिए निशांत कुछ देर बाद घर जल्दी चला जाता है। घर जाकर निशांत ने देखा, कि घर का दरवाज़ा खुला ही था और नियति सोफे पर अपने दोनों पैरों के बीच में अपना मुँह छुपाए बैठी हुई है। निशांत को उसके धीरे से रोने की आहत भी सुनाई दी, निशांत नियति को रोते हुए कभी भी नहीं देख सकता, लेकिन फिर भी इस बार ना जाने क्यों निशांत को नियति के पास जाकर उसे चुप कराने का मन नहीं किया, वह उसे वहीं रोता छोड़ अपने मुन्ने के कमरें में चला गया। मुन्ना कमरें में नहीं था और साथ में उसकी स्कूल बैग और यूनिफार्म भी नहीं थे, इसलिए निशांत समझ गया, मुन्ना इस वक़्त स्कूल गया होगा। मुन्ने के कमरें में बस ऐसे ही निशांत ने दो तीन चक्कर लगाए, जैसे की वह खुद एक बहुत बड़ी उलझन में फस गया हो। नियति का सामना करना भी अब निशांत को अच्छा नहीं लगता था। निशांत अब नियति से जितना हो सके दूर ही रहने लगा। तभी कमरें के बाहर से किसी के आने की आहत हुई, निशांत ने सोचा, अब कोन आया होगा ? ये सोचते हुए निशांत कमरें से बाहर आता है, तो बाहर भावेश अपने एक हाथ में बड़ी सी बैग लिए, अपने कंधे पर दूसरी बैग लटकाए, हुए ब्लू जीन्स और वाइट टी-शर्ट, हाथों में स्पोर्ट्स वॉच, आँखों पे नीले रंग का गॉगल्स और बहुत ही महंगे वाले वाइट शूज पहने वह खड़ा था। एक नज़र में भावेश की पर्सनालिटी को देखकर किसी का भी मन उस पे आ जाए ऐसा उसका व्यक्तित्व था। निशांत को याद आया, कि उसने भी गलती से घर का दरवाज़ा खुला छोड़ रखा था, इसलिए भावेश को दरवाज़ा खटखटाने की ज़रूरत नहीं हुई। लेकिन यूँ अचानक भावेश को अपने घर में अपने सामने देख ताजुब हुआ।
फिर भी बात को आगे बढ़ाते हुए, ज़रा अकड़ से निशांत ने कहा, " तुम यहाँ कैसे ? तुम दोनों ने साथ में ज़िंदगी जीने का फैसला कर लिया है और अगर तुम नियति को अपने साथ ले जाने आए हो तो, ख़ुशी से जा सकते हो, मेरी परवानगी की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं। जब साथ घूमे-फिरे अपनी मर्ज़ी से तो अब आगे की ज़िंदगी जीने का हक़ और फैसला भी मैं तुम दोनों पर ही छोड़ता हूँ, तुम को जो ठीक लगे वह करो, लेकिन मेरे सामने और मेरे घर में तो बिलकुल भी नहीं और हाँ, मुन्ना मेरा है और वह मेरे साथ ही रहेगा, जिसको जाना है जा सकता है। " कहते हुए निशांत एक नज़र रोती हुई नियति पर डालता है तो दूसरी नज़र भावेश पर और अपनी बात ख़तम कर मुड़ते हुए वापस मुन्ने के कमरें की ओर आगे बढ़ता है। निशांत अपने कमरें की ओर आगे बढे उस से पहले ही भावेश अपनी बैग और अपने कण्ठे की बैग निकाल कर भागते हुए जैसे निशांत की ओर बढ़ता है और निशांत को जैसे रोकते हुए उस के पैर पकड़कर अपने दोनों घुटनों के सहारे ज़मीन पर सिर झुकाए बैठ जाता है।
भावेश निशांत से कहता है, " आप गलत समझ रहे है सर, जैसा आप समझ रहे है, वैसा कुछ भी नहीं, बस एक बार हमारी बात सुन लीजिए, फिर आपका जो भी फैसला होगा, मुझे मंज़ूर होगा। "
निशांत अपने पैरों को छुड़ाते हुए बिना मुड़े ही कहता है, कि " मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी है, तुम दोनों को जो ठीक लगे वह करो, मुझे अकेला छोड़ दो। "
भावेश और निशांत की बातों को नियति सुन रही थी।
भावेश ने फिर से request करते हुए कहा, कि " प्लीज सर, एक बार बात सुन लीजिए, मेरे लिए ना सही, नियति और मुन्ने के लिए, उनके प्यार के वास्ते। "
अब निशांत के पास उसकी बात सुनने के अलावा और कोई रास्ता बचा नहीं था। इसलिए थोड़ा अकड़ कर अपने दोनों हाथों को अपनी पीठ पीछे कर के हाथों की बंद मुठ्ठी बनाते हुए भावेश की बात सुनने के लिए रुक जाता है और कहता है, कि "अच्छा, जो भी कहना है, जल्दी से कह दो, मुझे ज़रूरी काम से बाहर भी जाना है।" अपनी बात बताने के लिए मैं तुमको सिर्फ १० मिनिट देता हूँ , जो भी कहना चाहते हो, कह दो। "
ये सुनते ही भावेश जो कब से अपने घुटनों के बल अपना सिर झुकाए बैठा हुआ था, खड़ा हो गया और निशांत का हाथ पकड़कर उसे नियति के बगल में बैठा देता है, एक पल के लिए जैसे छोटा बच्चा ज़िद्द कर रहा हो, ऐसा निशांत को लगा। वह इस बार बिना किसी शिकायत के नियति के बगल में बैठ जाता है, मगर सच में निशांत और नियति दोनों अब भी एकदूसरे से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे, एक दूसरे से जैसे नज़रें चुरा रहे थे, ऐसा भावेश को लगा। निशांत और नियति दोनों ही कभी ज़मीन तो कभी आसमान की और देखे जा रहे था।
तभी भावेश ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, कि " सर आप को ये जानने का पूरा हक़ है, कि मेरे और नियति के बीच इतने दिनों से क्या था, क्यों और कैसे ?" सब से पहली बात तो हम दोनों सिर्फ और सिर्फ एक अच्छे दोस्त थे, मगर अब से मान लो कुछ भी नहीं, हम दोनों अब से एकदूसरे के लिए अजनबी है, उसके अलावा और कुछ भी नहीं। आप को पता है, जब भी मैं नियति से और मुन्ने से मिलता, तब-तब नियति ने सिर्फ और सिर्फ आप की ही बातें की है, कि निशांत ऐसे है, निशांत वैसे है, निशांत को पिज़्ज़ा बहुत पसंद है और मीठा खाने के तो वह दीवाने है। बारिश में सब पकोड़े और चाय मांँगते है तो मेरा निशांत आइस क्रीम खाता है, सर्दियों में लोग चद्दर ओढ़ के सो जाते है, तो निशांत बिना स्वेटर के लॉन्ग ड्राइव करने ले जाते है और मैं उन्हें ज़ोर से पकड़ कर बैठी रहती हूँ। निशांत ये, निशांत वो, निशांत के अलावा और कुछ नहीं कहा, कि उसे क्या पसंद है, वह क्या चाहती है, आपकी इतनी दीवानी है, कि उसे अपने आप का भी होश नहीं। आपकी गैरमौजूदगी में वह आप को बहुत याद करती रहती थी, अकेले में रोया करती, लोगों की खरी खोटी भी सुननी पड़ती, मुन्ने के अटपटे सवालों का जवाब देना। वह साँसें लेती, तो भी आपके नाम से, उसकी सुबह और शाम आपकी तस्वीर देखकर ही होती थी और आज भी होती है। आप चाहे तो अब भी उसके मोबाइल में तस्वीर को देख सकते है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए भावेश कहता है, कि उस रात सिर्फ उस रात ये सच है, कि मैं और नियति एक दूसरे के इतने करीब आए, जब आपने हम को देखा। मगर उस पल भी नियति मेरे साथ नहीं बल्कि जैसे, कि वह आप के साथ ही थी, नियति अपनी आँखें बंद कर निशांत-निशांत-निशांत, बस आपका ही नाम ले रही थी, मैं उसको रोकता उस से पहले ही आप वहांँ आ गए और अगर आप ना आते, तब भी मैं वह होने नहीं देता, जो आप सोच रहे है। क्योंकि मैं नियति जी से प्यार नहीं, बल्कि उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ। और हाँ, आखिर में मैं अब आप दोनों की ज़िंदगी से बहुत-बहुत दूर जा रहा हूँ, मुझे सिंगापुर से एक बड़ी कंपनी से जॉब का ऑफर आया है और जिस के लिए में २ साल से इंतज़ार में था, अब वक़्त आ गया है, मेरे जाने का। आप और नियति साथ थे और साथ रहेंगे, मैं ना ही कभी था और ना ही कभी आप दोनों के बीच आऊंँगा, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा, समझ लेना, एक हवा का झोका दरवाज़े से आया और खिड़की से चला गया। मैं अगर चाहता तो बिना आप से बात किए, बिना नियति से मिले चला जाता मगर मैंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि ये चोरी हो जाती और जो गुनाह हम ने किया ही नहीं, वह सच कहलाता, इसलिए आपकी गैरसमझ को दूर कर सकूँ इसीलिए मैं आप से बात करने आया हूँ। मैं सिर्फ और सिर्फ आप दोनों की ख़ुशी चाहता हूँ, मुझे पता है, यह अब इतना पहले की तरह आसान नहीं, मगर एक ना एक दिन मेरे जाने के बाद पहले सा सब ठीक हो जाएगा। "
कहते हुए भावेश निशांत के हाथों में नियति का हाथ थमा देता है, नियति उसकी और एक नज़र देखती रह गई, उसकी आँखें जैसे उसे पूछ रही थी, कि " तुम इतने अच्छे क्यों हो ? और अगर इतने अच्छे हो तो जा क्यों रहे हो ? तुम को मुझ से प्यार है, तो एक बार कह दो, जो आज तक ना कहा, ऐसे ही दिल में इतना दर्द लेकर कैसे ज़िंदगी जी पाओगे ? उस रात तुम कुछ कहने वाले थे, एक बात अधूरी रह गई, हम दोनों के बीच एक कहानी अधूरी रह गई, एक तरफ से देखा जाए तो हम दोनों के बीच कुछ ना होकर भी सब कुछ हो गया, कोई रिश्ता ना होकर भी एक अनचाहा सा रिश्ता जुड़ गया, सच में एक हवा का झोका, जो बस एक बार मुझे और मेरे दिल को जैसे छू के दूर चला गया हो। " कमरें में एक अन-सुनी सी ख़ामोशी छा गई थी, सब के होठ सील गए थे।
निशांत को एक पल के लिए भावेश की बातों पर यकींन करने को मन किया, एक नज़र नियति की ओर देखा, जिसकी आँखों में कई तरह के सवाल, कई उलझनें, कई आँसू छुपे नज़र आ रहे थे। चार दिन बाद आज निशांत ने नियति को एक नज़र देखा, दोनों की आँखें जैसे एक दूसरे से बातें कर रही थी, नियति की आँखें एक मौका और एक माफ़ी चाहती थी।
तभी निशांत ने कहा, कि " पहले भी मैंने कहा और अब भी यही कहता हूँ, कि तुम दोनों को जो ठीक लगे वह करो, मेरी मर्ज़ी ना मर्ज़ी की कोई बात नहीं। "
कहते हुए रूठते हुए फिर से निशांत वहां से खड़ा होकर मुन्ने के कमरें में चला जाता है और अंदर से दरवाज़ा बंद कर देता है। बाहर भावेश और नियति की नज़रें एक दूसरे से टकराती है, भावेश ने झुक कर नियति से कहा, " आप की ज़िंदगी में इतना बड़ा तूफान लाकर हवा के झोकों की तरह चले जाने के लिए मुझे माफ़ कर देना। मैं बस एक पल के लिए भूल गया था, कि आप किसी और की अमानत हो, मेरी नहीं, हाँ, लेकिन इतना ज़रूर कि आप से मैंने दोस्ती भी दिल से की, इसलिए आपकी ख़ुशी के लिए मैं यहाँ से आज, अभी और इसी वक़्त जा रहा हूँ, दूर बहुत दूर, हो सके तो मुझे भूल जाइएगा और आप की ज़िंदगी में इतना बड़ा तूफान लेन के लिए मुझे माफ़ कर दीजिएगा।"
कहते हुए भावेश वहांँ से खड़ा होकर अपनी बैग लेकर बिना नियति का जवाब या बात सुने वहांँ से चला जाता है, नियति के पास भी इस वक़्त भावेश को कहने या रोकने की कोई बात या बजह नहीं थी, वह एक तरफ उसे जाता हुआ देख रही थी और दूसरी तरफ उस कमरें का दरवाज़ा, जिस में निशांत रूठ के बैठा हुआ था।
तो दोस्तों, अब निशांत को नियति कैसे मनाएगी और क्या निशांत नियति को माफ़ कर के उस के साथ ज़िंदगी शुरू करेगा या नहीं ? मुझे आप के जवाब का इंतज़ार रहेगा।
अब आगे क्रमशः।
स्व-रचित
#अनचाहा रिश्ता भाग-४
Bela
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