पछतावा
माँ-पापा के कहने पर भी अच्छे से मन ना लगाकर पढ़ने का पछतावा अब ज़िंदगी भर रहेगा। माँ-पापा ने बहुत समझाया, कि " मन लगाकर पढाई करो, अपने पैरों पर खड़े रहो, इतने काबिल बनो कि, ज़िंदगी में कभी भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने की ज़रूरत ना पड़े। " मगर क्या करे, १६ साल की बाली उम्र ही ऐसी होती है, कि उस वक़्त बस पढाई के अलावा सब कुछ अच्छा लगता था, सपने देखना, हवाओं से बातें करना, आईने के आगे घंटो बैठ के अपने आप को देखा करना, अपने आप से बातें करते रहना, सजना, सवरना, शर्मा जाना, और तो और सपनों में किसी राज कुमार के आने का इंतज़ार करना, जो हमें प्यार से भी ज़्यादा प्यार करे और हमारे लिए बस जैसे कुछ भी कर जाए। कभी-कभी ख्याल आता है, कि इस उम्र में ज़्यादातर लड़कियांँ ऐसा ही करती होगी, जो उस वक़्त मैं किया करती थी। पढाई कम, बातें ज़्यादा, सपने में आसमान को छूने की चाह, मगर पैर ज़मीन पर। बात शुरू हुई थी, स्कूल के दिनों से, उन्हीं दिनों एक लड़का, जो स्कूल से मेरे पीछे पड़ा हुआ था, मेरे स्कूल पहुँचने से पहले वह पहुँच जाता, मेरे रास्ते में खड़ा रहकर मुझे रोज़ एक लाल गुलाब का फूल दिया करता, पहले-पहले तो मैं वह फूल नहीं लेती और मुँह फेर कर अपने रास्ते चली जाती, लेकिन क्लास में भी वह मुझे एक निगाह से देखा करता, मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आ जाता, इसलिए मैंने और मेरी सहेली ने उसका नाम मजनू रख दिया था। धीरे-धीरे वह मुझे भी अच्छा लगने लगा, प्यार हुआ, इकरार हुआ, उम्मीदें और बढ़ने लगी, १६ साल की बाली उम्र में दिल पे आख़िर किस का ज़ोर चलता है, बस थोड़ा सा प्यार कहीं से मिला और पैर फिसल गए, बस कुछ ऐसी ही हालत उन दिनों मेरी और मेरे मजनू की थी। ।
माँ-पापा के मना करने के बावजूद भी हम दोनों ने १८ साल की उम्र में घर से भाग कर शादी तो कर ली, लेकिन यूँ समझ लीजिए, कि ज़िंदगी का सही मायने में इम्तिहान तो अब शुरू हुआ था, मुझे अभी खाना बनाना नहीं आता था, उस मजनू को भी खाना बनाना नहीं आता था। अब जैसे-जैसे दिन बीतते गए मुझे तो माँ के हाथ का टेस्टी और मज़ेदार खाना याद आने लगा, एक तो किराए के घर में रहते थे, ऊपर से प्यार के चक्कर में हम दोनों ने पढाई भी अधूरी छोड़ दी थी, अच्छी नौकरी कैसे मिलती ? मेरे मजनू को, जिसे अपने दोस्त की सिफारिश से किसी होटल में काम मिल गया। मुझे नर्सरी स्कूल में बच्चे सँभालने का काम मिला, हमने जो घर किराए पे लिया था, उस घर में नीचे सिर्फ एक मौसी रहती थी, जिसका बेटा कुछ साल पहले उसे अकेली छोड़कर विदेश चला गया था, इसलिए ऊपर का एक कमरा उसने हमें किराए पे दिया, जिस से उसे कुछ पैसे मिल जाए और उसका गुज़ारा चलता रहे। मौसी को जब पता चला. कि हमें खाना बनाना नहीं आता तब कभी-कभी वह हमें खाना दे जाती और धीरे-धीरे उन्होंने मुझे खाना बनाना भी सीखा दिया, इसलिए थोड़ा बहुत तो अब में बना ही लेती हूँ। सुबह खाना बनाकर और घर का काम निपटाकर, मेरा और मेरे मजनू का टिफिन लेकर हम दोनों अपने-अपने काम पे निकल जाते है, लौटते वक़्त फिर से घर का सामान और सब्जी लेके घर आते है, फिर रात का खाना बनाओ, खाना खाओ, दूसरे दिन सुबह की तैयारी करो, सब कपड़े बर्तन अपनी जगह पे सही से लगाओ, जो सब मौसी ने सिखाया था, क्योंकि उनको सफाई पसंद है, इसलिए घर गन्दा रहेगा, तो वह हमें निकाल देंगे, ऐसा पहले से ही कहाँ था, इसलिए सब कर लेते थे, कमरा अच्छा था और बाकि के घर से किराया भी कम था और मौसी कभी-कभी खाना बनाकर दे जाती थी, इसलिए उनका मन रखने के लिए सफाई कर देती थी। और अब सफाई की आदत भी लग गई थी। सारा काम निपटाने में वक़्त बिट जाता और रात तक इतने थक जाते है, कि कुछ बात करने का मन ही नहीं करता और चुप-चाप एकदूसरे का मुँह देखकर-पलटकर सो जाते... और हांँ, अब तो जो भी हो हफ्ते में एक दिन संडे को तो बाहर ही खाना खाने चले जाते है, मैंने बोल ही दिया, कि एक दिन मुझे भी थोड़ा आराम चाहिए। शादी अपनी मर्ज़ी से की थी, इसलिए माँ-पापा पे कोई इलज़ाम नहीं लगा सकते और फरियाद भी नहीं कर सकते, जाए भी तो क्या मुँह लेकर उनके पास जाए, हिम्मत ही नहीं होती, इसलिए कभी पलटकर देखा नहीं, और वैसे भी उनकी मर्ज़ी के बिना हमने शादी की इसलिए उन्होंने भी हमें माफ़ नहीं किया, ऐसा हम को लगता है। लेकिन अब पछताने से क्या फायदा ?
धीरे-धीरे दिन भर छोटे बच्चों के साथ रहते-रहते मुझे भी रोना आने लगा, तब कई बार याद आ जाता, कि पहले माँ-पापा सच ही कहते थे, कि प्यार से पेट भरता नहीं, पहले पढाई करो, अपने पैरों पर खड़े रहना सिख लो, बाद में प्यार और शादी के सपने देखना शुरू करो, क्योंकि ज़िंदगी सिर्फ प्यार के सहारे नहीं गुज़रती, प्यार के साथ-साथ पेट भी भरना होता है और उसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
मजनू के साथ प्यार तक तो अच्छा था, मगर ज़िंदगी ऐसे गुज़ारना अब बहुत मुश्किल लग रहा है, पता नहीं आगे क्या होगा ? सोचती हूँ, काश! माँ-पापा की बात मानकर पहले पढाई पे ध्यान दिया होता, तो आज मैं भी अच्छी कंपनी में नौकरी करती, मगर अब पछताने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती।
तो दोस्तों, अपने से बड़े अगर हमें कुछ सिख देते है, तो तब उसे अमल में लाना चाहिए, बाद में पछतावे के अलावा कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
स्व-रचित
#पछतावा
Bela
Comments
Post a Comment