अनचाहा रिश्ता भाग-१
एक दिन की बात है। रात का वक़्त था, निशांत के पास अपने घर की एक चाबी हंमेशा से रहती ही थी, तो नियति को सरप्राइज देने के चक्कर में निशांत दबे पाँव घर का दरवाज़ा खोल घर में आ जाता है, निशांत का 5 साल का बेटा मुन्ना अपने कमरे में आराम से सो रहा होता है और निशांत के कमरें से किसी के धीरे से बात करने की और हँसने की आवाज़ आ रही थी, निशांत को बड़ा ताजुब हुआ, वह अपनी पत्नी नियति और अपने बेटे मुन्ने को सरप्राइज देना चाहता था, इसलिए बिना नियति को बताए, निशांत अचानक से दिल्ली से घर आ जाता है और उसी दिन.... भावेश और नियति का प्यार भी पहली बार सारी सिमाएंँ तोड़ ने जा रहा था। नियति ने अपनी आँखें बंद कर दी थी, शायद नियति को उस बात का होश नहीं था, कि वह आज जिसके साथ है, वह उसका पति निशांत नहीं बल्कि उसका करीबी दोस्त भावेश था। बारिश का मौसम था, खिड़की में से ठंडी हवा के साथ-साथ बारिश की बुँदे खिड़की के पर्दो को भीगाती हुई खिड़की के पास खड़े नियति और भावेश दोनों के बदन और मन को भी भीगा रही थी। नियति और भावेश के होठों से होंठ टकराने ही वाले थे, दोनों के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी थी, भावेश ने नियति की पतली कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ के रखा था, नियति ने भी भावेश को अपनी बाँहों में कस के पकड़ के रखा था, जैसे कि आज सच में कोई अनहोनी होने वाली थी, दोनों को लग रहा था, कि जैसे ये वक़्त, ये लम्हा बस यहीं थम जाए और हम दोनों एक दूसरे में समां जाए, वह दोनों एक दूसरे में ऐसे लीन हो गए थे, कि उस पल नियति और भावेश दोनों को एक दूसरे के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था, दोनों को जैसे होश ही नहीं था, दोनों कहाँ है और क्या कर रहे है, ये दोनों को खुद को पता नहीं था, कि ये सब क्या हो रहा है और कैसे ?
उस वक़्त नियति के कमरें का दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, इसलिए निशांत कमरें के अंदर का दृश्य देखकर हैरान हो जाता है, नियति और भावेश आधी रात को उसके ही घर में उसी के कमरें में... नियति ने निशांत को ये तो बताया था, कि " योगा क्लास में उसका एक दोस्त भी है मगर उस दोस्त के साथ दोस्ती इतनी गहरी होगी, ये तो निशांत को नहीं पता था। "
निशांत कुछ समझ पाए, उस से पहले ही भावेश को लगा, कि कमरें के बाहर कोई तो है, भावेश ने फट से नियति को इशारा किया, कि बाहर कोई तो है और नियति को धक्का देते हुए अपनी शर्ट का एक बटन बंद करने लगा, जो नियति के खींचने पर गलती से खुल गया था, नियति ने भी जल्दी में अपना नाईट गाउन ठीक कर लिया और अपने बिखरे हुए बाल भी ठिक कर लिए।
तब तक निशांत सीढ़ियों से नीचे उतर कर अपनी पानी की बोतल से पानी पीने लगा, तब तक भावेश और नियति भी साथ में ही घर में कौन आया है, ये चेक करने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरते है, सामने निशांत को देखकर पहले तो दोनों के होश ही उड जाते है। फ़िर कुछ देर बाद बात को सँभालने के लिए भावेश ने सामने से निशांत की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा, कि " मेरा नाम भावेश, शायद हम पहली बार मिले है, मैं नियति का दोस्त हूँ, उसने आपको ये बताया ही होगा। मुन्ने की तबियत कुछ ठिक नहीं थी, इसलिए उसे अस्पताल ले गए थे, नियति को अकेले में डर लग रहा था, इसलिए हम कुछ देर बातें कर रहे थे। "
नियति ने भी ज़रा डरते हुए, बात को सँभालते हुए निशांत से कहा, कि " आप यहाँ अचानक कैसे ? आप ने आने की खबर क्यों नहीं दी ? "
निशांत एक पल के लिए तो नियति और भावेश दोनों का सामना नहीं कर सका, इसलिए निशांत दिवार की ओर मुँह करते हुए बोला, कि " आने की खबर, देता तो मुझे आज यहाँ जो मेरी गैरमौजूदगी में हो रहा है, उसके बारे में पता कैसे चलता ? "
नियति ने कहा, " आप ये सब क्या कह रहे हो ? मैं और भावेश सिर्फ दोस्त ही है और मैंने आप से ये बात बताई भी थी। "
निशांत ने कहा, " हांँ, बताया तो था, मगर ये नहीं बताया था, कि आधी रात को भी तुम दोनों साथ रहते हो, वह भी मेरे घर में और मेरे ही कमरें में। "
नियति निशांत की बात सुनकर एक पल के लिए डर गई और निशांत को समझाते हुए कहाँ, " आप जैसा सोच रहे हो, वैसा कुछ भी नहीं। आज सच में मुन्ना बहुत बीमार था, हम दोनों उसे अस्पताल लेकर गए थे और घर आकर दवाई और खाना खिलाकार जैसे-तैसे उसको सुलाया है। आपकी गैरमौजूदगी में भावेश ने हमारी बहुत मदद की है। हम दोनों सिर्फ अच्छे दोस्त है और बातें करते है, आप तो काम के बहाने से दिल्ही जाकर बस गए, मगर हमारा क्या ? मुन्ने को भी पूरा दिन मैं ही संँभालती हूँ, उसके सवाल अब मुझे परेशान करने लगे है, पापा कब आएँगे, कब आएँगे ? "
निशांत की नज़र अब भावेश के चेहरे पे आकर रुक गई। भावेश ने भी हिम्मत कर के कह दिया, कि " आज तक हम ने ऐसा कोई गलत काम नहीं किया, जिस से आप को या नियति के नाम पे कोई दाग लगे। "
निशांत ने कहा, " अच्छा, मेरी गैरमौजूदगी में तुम दोनों ने मेरे घर में और मेरे ही कमरें में ना जाने कितनी रातें साथ में बिताई होगी, नियति मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी, मैं तुम से बहुत-बहुत प्यार करता हूँ या करता था, आज ये सब देखने के बाद...
नियति ने निशांत को समझाते हुए कहा, " निशांत आप बिलकुल गलत समझ रहे हो, भावेश आज पहली बार हमारे घर आया है, उसने जो भी कहा, वह सब सच ही है, अब मैं तुम्हें ये सब कैसे समजाऊँ, कि हम दोनों के बीच अभी तक कुछ भी नहीं हुआ।
निशांत ने कहा, " चलो मान भी लूँ, कि अब तक कुछ भी नहीं हुआ, मगर होने जा तो रहा ही था, " शायद " इतनी भी भोली मत बनो, तुम दोनों कोई छोटे बच्चे नहीं, जो तुमको ये सब क्या हो रहा है, वह पता नहीं हो। "
भावेश समझदार था, उसने बात को सँभालते हुए कहा, कि " जो भी हुआ उस में मेरी और सिर्फ मेरी ही गलती थी, नियति को आप कुछ ना कहिए तो अच्छा होगा, इस वक़्त आप गुस्से में है, बहुत दूर से आए है, हम इस बारें में आज नहीं कल बात करेंगे, मैं अभी जा रहा हूँ। "
नियति सिर्फ भावेश को जाता हुआ देखती रही, इस तरफ़ निशांत गुस्से में अपने मुन्ने के पास जाकर सोने की कोशिश करने लगा, नियति वहीं सोफे पे बैठ गई। उस तरफ़ भावेश अपने घर जाकर अपने बैडरूम की खिड़की के आगे खड़ा रह गया और आसमान की ओर देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। नियति, निशांत और भावेश तीनो के अंदर एक तूफान सा चल रहा था, अब आगे क्या होगा ? अब आगे...
शायद हर एक के जीवन में शादी के बाद भी कुछ ना कुछ बजह से ऐसा दिन ज़रूर आता होगा, जब दिल के आगे लोग सब कुछ हार जाते है, औरत को सिर्फ प्यार चाहिए, उसे अपने पति का साथ चाहिए, तो वह दुनिया में आए हर तूफ़ान से भी लड़ जाए, मगर जब उसे वह प्यार ही ना मिले तब उसका मन उस प्यार को हर इंसान में ढूंँढने लगता है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, प्यार तो आख़िर प्यार ही होता है। मगर बस यही प्यार उसे एक दिन ऐसे चौराहें पर लाके खड़ा कर देता है, जहाँ से उसे अब कोई रास्ता नज़र ही नहीं आता, बीच मझधार में जाकर वह कुछ पल के लिए रुक जाते है, जैसे ज़िंदगी, कुछ पल के लिए रुक सी गई हो, साँसे कुछ पल के लिए जैसे रुक सी गई हो। दोनों तरफ उसे बस डूबना ही है। चाहे निशांत कितना भी अच्छा हो, मगर बात ये है, कि वह उसके पास नहीं था, उसके साथ नहीं था। अब आगे...
शादी के वक़्त नियति का पति निशांत वही अलहाबाद में ही जॉब करता था लेकिन, शादी के एक साल बाद उसका तबादला सीधे दिल्ली शहर में हो गया और दिल्ली शहर में रहना इतना आसान नहीं। निशांत की कंपनी में से उसे घर तो दिया था, लेकिन एक घर में तीन लोग साथ में रहते थे, ऐसे में वह अपनी पत्नी नियति को कैसे बुलाए, उसने नियति से कहा, कि " कुछ वक़्त ऐसे ही रहना पड़ेगा, मैं तुम से मिलने घर कभी-कभी बीच में आता-जाता रहूँगा, कुछ वक़्त के बाद मैं यहाँ अपना घर ले लूंँगा, तब तुमको यहाँ बुला लूँगा।"
नियति क्या कहती, काम है, तो जाना तो पड़ेगा ही, ऐसा सोच उसने हांँ कह दी। दिन बीतते गए, नियति के महीने चढ़े, निशांत कभी-कभी उसे मिलने आ जाया करता, फ़ोन पे भी रोज़ बातें हो जाती, नियति को लड़का हुआ। निशांत तब छुट्टी लेकर कुछ दिनों के लिए नियति और अपने बेटे के साथ रहा, फिर १५ दिन के बाद निशांत फिर से दिल्ही चला गया, छोटे बच्चे के साथ नियति फ़िर से अकेली पड जाती। वक़्त बीतता गया, नियति का लड़का ३ साल का हो गया, अब वह स्कूल जाने लगा, तो अब नियति घर में काम निपटा के योगा क्लास जाना शुरू कर दिया। मुन्ने के आने के बाद उसका वज़न काफी बढ़ भी गया था, इसलिए निशांत ने ही कहा, कि " योगा क्लास जाना शुरू कर दो, इस से तुम्हारा वक़्त भी कट जाएगा, बाहर जाओगी, दूसरे लोगो से मिलोगी, नए दोस्त हो जाएँगे, तो तुम्हें अच्छा भी लगेगा, मैं भी तो यहाँ जिम जाता ही हूँ ना ! वैसे भी तुम्हें डॉक्टर ने भी तो वजन कम करने को भी तो कहा है। "
नियति को भी निशांत की बात सही लगी, वह मुन्ने को स्कूल छोड़ने के बाद रोज़ २ घंटे योगा क्लास जाने लगी। घर में नियति बोर हो जाती थी, तो उसने जॉब भी शुरू कर दी। अब नियति के पास निशांत के बारे में सोचने के लिए वक़्त ही नहीं रहता, पहले दोनों में रोज़ बातें हो जाती, अब हफ्ते में दो दिन ही बातें करते।
उस तरफ़ निशांत भी जिम जाता, उसने भी वहांँ नए दोस्त बना लिए थे, इसलिए कभी-कभी पार्टी में भी जाने लगा, दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी में व्यस्त रहने लगे। योगा क्लास में नियति के साथ एक भावेश नाम का लड़का भी आता था, जो शायद उस से उम्र में छोटा था, बातें करते-करते भावेश और नियति के बीच दोस्ती हो गई और दोस्ती कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता ही नहीं चला, वक़्त मिलते ही दोनों अब योगा क्लास के अलावा मूवी देखने जाते, शॉपिंग करने जाते। मुन्ने को भी भावेश से काफी लगाव हो गया था। आखिर नियति भी तो एक इंसान ही तो है, उसे भी प्यार की, अपनेपन की ज़रूरत है, हर औरत को दो पल किसी के साथ अपने मन की बातें करना अच्छा लगता, जो उसे सुने, उसे और उसकी बातों को समझे और ऐसे में अगर बस कोई दो मीठे बोल बोल दे, तो वह उसकी ओर खींची चली जाती है, कभी-कभी औरत पैसे और गहनों के अलावा प्यार की भी भूखी होती है, बस नियति अपने प्यार को ही ढूँढ रही थी, जो प्यार जो एहसास उसे भावेश के साथ रहते हुए महसूस किया, वह कभी उसने निशांत के साथ महसूस नहीं किया। निशांत से वह प्यार तो करती थी, मगर वह उसके पास, उसके साथ हो तब ना ! भावेश के साथ रहते हुए नियति अपने सपनो की दुनिया में चली जाती, उसे ऐसा लगता, कि उसका सपना सच हो रहा है, भावेश के साथ बातें कर के नियति को बड़ा अच्छा लगता, उसके मन का बोझ जैसे उतर जाता, वह जानती थी, कि वह जो महसूस कर रही है, वह गलत है, मगर दिल तो आखिर दिल ही है, कब, कहाँ, किस पे आ जाए कुछ भी कह नहीं सकते। अब आगे...
निशांत नियति को इस बार खुशख़बरी देने आया था, कि अब उसने दिल्ली में अपना खुद का घर ले लिया है और अब वह सब साथ में रहेंगे, निशांत, नियति और अपने मुन्ने को साथ ले जाने के लिए ही आया था। मगर अब यहाँ के हालात कुछ और ही थे, निशांत ने आने में थोड़ी देर कर दी, ऐसा उसे लगा।
तो दोस्तों, अब बारी निशांत की आती है, क्या वो अपनी बीवी के इस रिश्ते को स्वीकार कर पाएगा ? क्या निशांत नियति और भावेश के रिश्तें को समझ सकेगा ? अब निशांत नियति को अपने साथ दिल्ली ले जाएगा ? उन दोनों को अब क्या करना चाहिए ?
आगे क्रमशः।
स्व-रचित
#अनचाहा रिश्ता भाग - १
Bela...
Comments
Post a Comment