ANCHAHA RISHTA PART-2

                         अनचाहा रिश्ता  ( भाग-२ )

        तो दोस्तों अब तक आप सब ने पढ़ा, कि निशांत अपनी पत्नी नियति को सरप्राइज देना चाहता था, मगर निशांत ने घर आकर नियति और भावेश को एक साथ अपने ही घर में, अपने ही कमरें में देखकर वह खुद ही सरप्राइज हो गया। नियति और भावेश ने निशांत को बहुत समझाने की कोशिश की, कि " उन दोनों के बीच अब तक कुछ नहीं हुआ है, लेकिन अब निशांत का भरोसा नियति पे से उठ गया था। " अब आगे... 

        आज की रात मान लो जैसे इम्तहान की रात थी, नियति, निशांत और भावेश तीनों विचारशून्य हो गए थे, अचानक से ये सब क्या हो गया, किसी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, अब आगे क्या ? बस यही सवाल तीनों को सताए जा रहा था। खास तौर पर निशांत को अपनी आँखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था, क्योंकि  " नियति पहले से ही इतनी सीधी-साधी लड़की थी, कि वह ऐसा कुछ करेगी, ये निशांत कभी सोच भी नहीं सकता था। नियति एक बड़े संस्कारी घर की और संस्कारी माँ-पापा की लड़की थी, जो पूजा पाठ किया करती, हर तीज-त्यौहार पर वह मंदिर जाया करती, व्रत-उपवास रखा करती, पति-व्रता औरत आज अपने पति को भूलकर, अपना पति-व्रता व्रत तोड़कर, किसी और के साथ ? ऐसा हो ही नहीं सकता। मेरे बारे में एक बार सोचुँ, तो हाँ, ये बात सच है, कि मेरा भी दिल किसी पे आ गया था, मगर मैंने अपने आप को सँभाल लिया था, तो फ़िर नियति अपने आप को क्यों नहीं सँभाल सकी ? इतने सालों में जो नहीं हुआ, वह आज कैसे हो गया ? या तो उस लड़के भावेश ने उसको अपनी बातों में लाके उसे फसाया है, या तो कुछ और बात ? मुझे सही बात का पता करना ही होगा। मैं नियति और मुन्ने को ऐसे नहीं जाने दे सकता। कुछ ना कुछ तो सोचना पड़ेगा। "

        उस तरफ भावेश भी सोच में डूबा हुआ था, कि " ये मुझ से क्या हो गया ? नियति तो मुझ से बड़ी है, फ़िर मैंने उनके बारे में ऐसा क्यों सोचा ? प्यार था, लेकिन वह दोस्ती वाला प्यार था, मैं ऐसे नियति और निशांत के बीच में नहीं आ सकता, क्योंकि जहाँ तक मुझे याद है, वहांँ तक मेरी ओर नियति की जब दोस्ती हुई थी, तब शुरू-शुरू में नियति ने मुझ से कहा था, कि " वह अपने पति निशांत और मुन्ने से बहुत-बहुत प्यार करती है, निशांत की तारिफ़ भी किया करती थी। फ़िर मैं उनकी दुनिया में तूफ़ान लेकर क्यों आ गया ? कल रात को जो कुछ भी हुआ, वह ना तो मैं ऐसा कुछ चाहता था और नाहीं नियति। मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई है। नियति कितनी अच्छी है, ऐसी औरत की ज़िंदगी में मैंने आकर एक सब से बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया, अब इस उलझी हुई बात को मुझे ही सुलझाना होगा, नहीं, मैं ऐसे नियति और निशांत दोनों के बीच नहीं आ सकता। " बस यहीं सब सोचते हुए भावेश भी अपने बिस्तर पर करवटें बदलता रहा। 

          एक ओर नियति अपने दोनों पैरों के बीच अपना सिर छुपाए बस रोए जा रही थी, कभी नियति भावेश के बारे में सोचती तो कभी अपने पति निशांत के बारे में। निशांत एकदम से चुप-चाप रहनेवाला, फ़ोन पे भी सिर्फ कुछ काम की ही बातें करते, किताबें पढ़ने वाला, अपनी ही दुनिया में रहनेवाला, सब पे भरोसा करने वाला, नाहीं किसी से लड़ना-झगड़ना, बस अपनी ही दुनिया में मस्त रहनेवाला। मगर भावेश निशांत से एकदम अलग था, हंमेशा सब के साथ खुश रहने वाला, सब को हँसाने वाला, बातें तो उसकी कभी ख़तम ही नहीं होती, घूमना, फिरना, नाचना-गाना, सब कुछ उसे पसंद था, फ़िर क्यों किसी का दिल उस पे ना आ जाता ? "

      बस इन्हीं सब उलझनो में रात बित गई। सुबह हो गई, अब तो निशांत और नियति एकदूसरे से नज़र कैसे मिलाए, यह भी एक प्रश्न हो गया। मुन्ने को आज भी बुखार था, तो नियति मुन्ने के लिए दवाई और नास्ता लेकर उसके कमरें में जाती है, मुन्ना माँ-माँ कहता हुआ नियती को पुकार रहा था, अपने पापा को इतनी महीनों बाद अपने पास देखकर मुन्ना निशांत के गले लगा हुआ था, निशांत भी अपने मुन्ने को गले लगाकर उस से प्यार कर रहा था।            

          कमरें में नियति को आता देख कर निशांत ने जैसे नज़रें चूरा ली, नियति को निशांत की आँखों में बहुत सारे सवाल नज़र आ गए। मगर आज नियति निशांत से नज़रें नहीं मिला पा रही थी, इसलिए नियति ने पहले मुन्ने से बात करना शुरू किया, " चलो मुन्ना, आपकी दवाई और नास्ते का वक़्त हो गया है, आप पहले उठकर ब्रश कर लो, बाद में दवाई के साथ नास्ता कर लो। "

     मुन्ने ने कहा, " नहीं माँ आज नहीं, आज कुछ भी मन नहीं है और ये दवाई भी बहुत कड़वी है, उस मूँछ वाले डॉक्टर अंकल की तरह। "

    नियति ने कहा, " ऐसा नहीं कहते, देखो तुम्हारे लिए आज मैंने तुम्हारे मन-पसंद आलू के पराठे जो बनाए है, वह क्या पापा को दे दूँ ? "

    निशांत ने कहा, " वाह, आलू के पराठे, वह भी तुम्हारी मम्मी के हाथ के, मुझे देदो, मुझे भी बड़ी भूख लगी है, कल रात को भी कुछ नहीं खाया था। "

     ये सुनकर नियति ने एक नज़र निशांत की ओर देखते हुए सोचा, कि " अरे, कल रात को उस चक्कर में निशांत ने भी कुछ नहीं खाया। "

    तभी मुन्ना फटाक से उठ कर बोला, " नहीं, आलू के पराठे तो मैं ही खाऊँगा। "

    मुन्ने की बात सुनकर एक पल के लिए नियति और निशांत दोनों के चेहरे पे हँसी आ गई। 

     मुन्ने ने कहा, " मैं अभी ब्रश कर के आता हूँ, पापा आप मेरे पराठे को हाथ भी मत लगाना, मुझे भूख लगी है। " कहते हुए मुन्ना, वॉशरूम की ओर भागता हुआ चला जाता है।  

     नियति ने मौके का फायदा उठाते हुए निशांत से कहाँ, कि " आपने कल रात को भी शायद कुछ नहीं खाया होगा, मैं अभी आपके लिए भी पराठे बना कर लाती हूँ।" कहते हुए नियति कमरें से बाहर किचन की ओर जाने लगी, तभी पीछे से निशांत ने सख्ती से कहा, कि " रुको, मुझे अब तुम्हारे हाथ से कुछ नहीं खाना और मुझे भूख भी नहीं है, वह तो मैंने मुन्ने को मनाने के लिए कह दिया था।  तुम जाओ, मुन्ने को मैं नास्ता करा दूंँगा, तुम जाकर अपने पराठे खाओ। "

     निशांत की बात सुनकर नियति की आँखें भर आई। तभी मुन्ना पापा-पापा करता हुआ वॉश रूम में से बाहर आता है और अपने पापा की गोद में बैठते हुए कहता है, कि " आप कब आए पापा ? आप को पता है, मैं आपको कितना याद करता था, फिर भावेश अंकल कल घर आए थे, हमने साथ में टॉम एंड जेरी वाला कार्टून देखा, बड़ा मज़ा आया था।  म्मा, भावेश अंकल कहाँ है ? वह चले गए क्या ? कल रात के लिए मुझे उनको थैंक यू कहना था, अगर वह अस्पताल में हमारे साथ नहीं आते, तो मैं वह मूँछ वाले डॉक्टर से इंजेक्शन कभी नहीं लगवाता। मुझे उस डॉक्टर को देख कर ही डर लगता है, पापा आप को पता है, वह डॉक्टर के काले घुंगराले बाल, लम्बी दाढ़ी और लम्बी मूँछें थी और बार-बार खाँसे जा रहे थे, फ़िर भावेश अंकल ने मुझे कस के गले लगा लिया था और मुझे बातों में लगाए रखा, डॉक्टर अंकल ने कब इंजेक्शन लगा लिया, मुझे पता ही नहीं चला, ममा ने भी डर के मारे आँखें बंद कर दी थी। तीन दिन से स्कूल भी नहीं गया, अब आज आप आ गए है, तो देखो, मैं अब बिलकुल ठिक हो गया हूँ, yeee..... पापा आ गए, पापा आ गए.... " कहते हुए मुन्ना निशांत के गले लग जाता है। 

     निशांत फीर से एक बार नियति की ओर देखता है। नियति ने सामने से ही कह दिया कि आप परेशान हो जाएँगे यहीं सोचकर मैंने आपको मुन्ने की बीमारी के बारे में नहीं बताया। " फिर आँखों से जैसे नियति कह रही हो, कि " मुन्ने ने जो कहा, वह सब सच ही है। जैसे आपके बिना सच में हमारी दुनिया अधूरी थी। "

     निशांत ने मुन्ने को कहा, " चलो अब तुम पहले नास्ता कर लो और साथ में दवाई भी खालो, हम बाद में बातें करेंगे, मुझे कुछ काम से बाहर भी जाना है। "

     मुन्ना निशांत के फीर से गले लग जाता है और कहता है, कि " नहीं पापा, अब मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंँगा। आपके बिना हमें कुछ अच्छा नहीं लगता, वो तो अच्चा है, कि भावेश अंकल के साथ कभी-कभी हम बाहर चले जाते थे, वार्ना हमारा क्या होता ? मेरे सारे दोस्त अपने पापा-मम्मी के साथ बाहर जाते है, मगर आप तो यहाँ होते ही नहीं हो। "

    निशांत मुन्ने को समझाते हुए कहता है, " अरे, मैं कहीं नहीं जा रहा, मैं यहीं हूँ, बस कुछ काम है, अभी आया। "

     मुन्ने ने कहा " प्रॉमिस ?"

     निशांत ने कहा, " पक्का वाला प्रॉमिस। "

     निशांत कहते हुए मुन्ने के कमरें से बाहर चला जाता है, नियति भावेश को जाता हुआ देखती रह जाती है। नियति की समझ में इतना तो आ ही गया था, कि " निशांत उस से बहुत नाराज़ है। " 

      निशांत अपने कमरें में फ्रेश होने के लिए जाता है, मगर कमरें में जाते ही उसे कल रात को जो भावेश और नियति को साथ में देखा था, वही नज़र आने लगा, इसलिए निशांत अपने कमरें में भी नहीं गया और कार की चाबी लेकर बिना कुछ कहे बाहर चला जाता है। 

     तो दोस्तों, निशांत को पता है, कि नियति ऐसा जान-बुझकर कुछ नहीं कर सकती और मुन्ने की बात सुनकर लगा, कि कल सच में वह अस्पताल मुन्ने को लेकर गए थे। मगर फ़िर भी....  

      और एक तरफ भावेश खुद विचारशून्य हो गया है, वह नियति और निशांत के बीच नहीं आना चाहता था, इसलिए उसे अपने किए पे पछतावा हो रहा है, तो क्या आप बता सकते हो, कि मेरे अगले भाग में निशांत और भावेश क्या करेंगे ? 

                            आगे क्रमशः। 

स्व-रचित 

#अनचाहा रिश्ता 

Bela... 






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