SHAYAD

                           शायद  
             
       रवि ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, " मेरी फाइल कहाँ है ? जो मैंने परसों रात को अपने टेबल पे रखी थी, जो आज नहीं मिल रही। "
     मैं अपना सब काम छोड़ कर रवि के पास दौड़ी और रवि को कहाँ, कि " आप बस दो मिनिट रुकिए मैं अभी अलमारी में से ढूँढ के लाती हूँ, वो कल छोटी आपकी फाइल से खेलने लगी थी, तो मैंने वह फाइल सँभाल कर अलमारी में ही कहीं रख दी है, मैं अभी ढूँढ के लाती हूँ।         मैं अलमारी में रवि की फाइल ढूँढ रही थी, तभी हमारी नज़र हमारी पुरानी डायरी पे पड़ी, जो हम ने सब से छूपा कर अपनी साड़ियों के बीच में रखी हुई थी। वो हमारी पुरानी डायरी के कागज़ के पन्ने जिन पर हम अपने विचार कभी लिखा करते थे। जो आज तक हम किसी को न कह पाए, कुछ पल के लिए हम उन कागज़ के पन्नों में ऐसे डूब गए जैसे की, वह लम्हा हम ने फिर से एक बार जी लिया हो, वक़्त वहीं रुक सा गया, मेरी डायरी के एक पन्ने पर लिखा था, कि
 " तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं, मगर ये कम्बख़त रात है, कि तेरे बिना कटती नहीं। "
        कॉलेज का वो आख़िरी साल था और कॉलेज का आखिरी एनुअल फंक्शन था। जिस में मैं और आकाश गाना गाने वाले थे। हांँ, मैं और आकाश बहुत अच्छा गाना गा लिया करते थे, सब दोस्त हम दोनों की बहुत तारीफ़ भी किया करते। हम दोनों साथ में रियाज़ भी किया करते थे, कुछ ही वक़्त में हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। आकाश मुझ से एक साल छोटा था मगर इस बात पे हम ने कभी गौर नहीं किया।
     एक दिन अचानक आकाश ने मुझे कॉफ़ी शॉप में बुलाया था, यह कहते हुए, कि " कुछ ज़रूरी बात करनी है। "         
      जब मैं वहांँ पहुँची तब कॉफ़ी शॉप का माहौल देख कर हैरान रह गई थी। उस वक़्त पहले तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया। कॉफ़ी शॉप पूरा फूलों से सजाया गया था। हर टेबल पे खुशबूदार रेड रोज़ और कैंडल्स रखे हुए थे, एकदम प्यारा सा संगीत भी बज रहा था, जो मुझे और आकाश को भी बहुत पसंद था। तभी पीछे से किसी ने आकर मेरी आँखों पे पट्टी बांँध ली और मेरा हाथ पकड़कर मुझे आगे की ओर लेकर चला, मैं कुछ समझ पाऊँ, इस से पहले उसने दूसरे ही पल मेरी आँखों की पट्टी खोल दी और मेरे सामने अपने घुटनों पे बैठ के रेड फ्लावर का बुके देते हुए मुझ से कहा, कि " इन्हीं फूलों की ख़ुश्बू की तरह आपकी ज़िंदगी भी मैं फूलों सी महका दूँगा, आपके रास्तों में आते हुए काँटों पे सब से पहले मैं चलूँगा, आप से प्यार से बढ़कर प्यार करूँगा, बस इन फूलों को अपना कर मुझे और मेरे प्यार को अपना लो, मुझे प्यार के बदले सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार चाहिए और कुछ नहीं। " 
         इतने प्यार से तो अगर एक बार दुश्मन भी कह दे तो, उसका मन भी पिघल जाए, फ़िर ये तो मेरा दोस्त था, जिसे मन ही मन मैं भी पसंद करने लगी थी, मगर कभी जताया नहीं, अब आकाश का सामना करना मेरे लिए मुश्किल था, इसलिए कुछ देर रुकने के बाद मैंने आकाश से अपना हाथ छुड़ा लिया और दूसरी तरफ़ मूड के आकाश से कहा, कि " प्यार तो हम को भी तुम से है, मगर तुमने ये बात बताने में बहुत देर कर दी, मेरे पापा ने पिछले हफ्ते मेरी शादी किसी और लड़के से पक्की कर दी है, एक हफ्ते तुम कॉलेज भी तो नहीं आए, कैसे बताती तुम्हें ? एग्जाम के बाद हमारी शादी है, मेरी शादी में ज़रूर आना। मैं अपने पापा से भी बहुत प्यार करती हूँ, इसलिए अब उनका दिल मैं तोड़ नहीं सकती। सब रिश्तेदारों को भी पता चल गया है। पापा की कितनी बदनामी होगी। तुम तो समझदार हो, मेरे दोस्त हो और हंमेशा मेरे दोस्त रहोगे, तुम्हारे पास न होकर भी तुम्हारे पास रहूंँगी, तुम्हारे साथ न होकर भी तुम से बातें करुँगी।  बस एक वादा करो मुझ से कि इस बात को दिल से नहीं लगाओगे और वक़्त रहते अच्छी सी लड़की से तुम भी शादी कर लोगे और मुझे भी अपनी शादी में ज़रूर बुलाना, मैं भी वह खुशनसीब लड़की को देखना चाहूँगी, जिसे तुम्हारा प्यार नसीब होगा, क्योंकि मैं तुम्हें अच्छे से जान गई हूँ, कि तुम जिस से भी शादी करोगे, उसे बहुत प्यार, मान और सम्मान दोगे। फ़र्क सिर्फ इतना है, कहा नहीं या तो कहने का मौका मिला नहीं और देखो आज जब मौका वक़्त ने दिया, तब हम किसी और के हो चुके है। मगर इस बुके में से एक फूल हमारी दोस्ती के नाम पे मैं हंमेशा अपने पास रखूंँगी। 
      मैंने उस दिन मूड के उसे एक बार देखा भी नहीं और ऐसा कहते हुए मैं कॉफ़ी शॉप से बाहर की ओर दौड़ती हुई आँखों में आँसू लिए वहांँ से चली गई। 
        तभी रवि की आवाज़ सुनाई पड़ती है और मुझे होश आता है, मैं तो अपने ससुराल में अपने पति रवि और छोटी के साथ रहती हूँ, नाहीं आकाश के साथ कॉफ़ी शॉप में। किताब के पन्नों के बीच यादों की बारात में वक़्त का पता ही नहीं चला। तभी एक बार फ़िर से रवि की आवाज़ सुनाई देती है, " मेरी फाइल मिली या नहीं ? मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है, मेरी चीज़ों को हाथ मत लगाया करो मगर तुम सुनती कहाँ हो ? " 
        मैंने आवाज़ लगाकर रवि से कहा, हाँ, मिल गई आपकी फाइल, अभी लाती हूँ, रुकिए। मैंने फाइल जाके  रवि को दी। 
       उन्होंने कहा, अब से हो सके तो मेरी चीज़ों को हाथ मत लगाया करना, जब देखो तुम और तुम्हारी छोटी मेरी हर चीज़ इधर से उधर ऱख दिया करते हो और में ढूँढ़ते -ढूँढ़ते परेशान हो जाता हूँ, मुझे ऑफिस जाने में देर हो रही है। कहते हुए रवि वहांँ से चले गए। 
     मैं उनको जाते हुए देखती रह गई और उनके शब्द तीर की भाँति मेरे दिल को चीरते रह गए, कि " मेरी  चीज़ों को... मतलब उनकी चीज़ मेरी नहीं है, यहाँ इस घर में मेरी छोटी के अलावा मेरा अपना कहने को कोई नहीं है। फ़िर से अपने कमरें में जाते हुए, मैं सोचती रही,  गुज़रा वक़्त बीत गया, अपनी यादों के साथ-साथ मैंने अपनी डायरी को भी एकबार फ़िर से साड़ियों के बीच में छुपा के रख दिया। 
         रवि के जाने के बाद मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए मैं छोटी को स्कूल से लाने के बहाने घर से कॉफ़ी शॉप के लिए चली गई। शादी के ५ साल बाद आज फिर से मैं वही कॉफ़ी शॉप में बैठी हुई हूँ, आज फ़िर से वही रोज़ डे है, आज फ़िर से सब अपने प्यार का इज़हार एक दूजे को फूल देकर कर रहे है और मैं उस दिन को याद कर रही हूँ, कि काश ! उस दिन मैंने थोड़ी  हिम्मत कर के रवि के बदले आकाश को शादी के लिए हाँ कह दिया होता तो आज शायद मेरी ज़िंदगी कुछ और होती।  तभी पीछे से मेरे कंधे पे किसी ने हाथ रखा और कहा,
   " शायद जिसका आपको बरसों से इंतज़ार है, उसे आज भी आपका इंतज़ार है, इसलिए हर साल मैं यहाँ ज़रूर आता हूँ, ये सोच के, कि आप एक ना एक दिन मुझे ज़रूर मिलोगी। 
        मैंने पीछे मुड के देखा तो आकाश ही था, मेरी आँखें आँसुओ से भर आई, अपने आँसुओ को पलकों में छुपाने की कोशिश में मैंने अपनी पलकें झपकाई। मैंने उस पल आकाश की कही बातों को अनसुना कर दिया और आकाश से कहा, " तुम यहाँ कैसे ? " 
   आकाश ने उल्टा सवाल किया, " आप यहाँ कैसे ? " दोनों एक पल के लिए हँस पड़े। आकाश मेरे सामने की कुर्सी पे आकर बैठ गया। कुछ पल हम दोनों के बीच आँखों से बातें होती रही। फिर मैंने आकाश से पूछा, "अपनी शादी में तुमने मुझे बुलाया नहीं ? " 
      आकाश ने कहा, " क्या करूँ, कोई लड़की पसंद ही नहीं आई और जो पसंद आई उसने मुझे नापसंद कर दिया, इसलिए आज भी अकेला हूँ। मगर इस बात का अब भी मुझे कोई ग़म नहीं, अपनी ज़िंदगी में पुरानी यादों  के साथ आज भी मैं खुश हूँ। 
        ओह्ह तो ये बात है, आकाश के जवाब से मुझे पता चल गया, कि उसने शादी मेरी वजह से नहीं की, मैंने बात को टाल दिया और बहाना बनाया, कि " छोटी को लेने स्कूल जाना है, फ़िर कभी बातें करेंगे। " 
       कहते हुए मैं वहांँ से चलने लगी, आज भी मैं आकाश को पीछे मूडकर न देख पाई, आज दिल ने फ़िर से आहें भरी और पूरे रास्ते सोचती रही... 
       आकाश  एक खुली किताब है, जिस से हर किसी को प्यार हो जाए और रवि मेरा पति सूरज की वो धूप है, जिस के गुस्से से हम बार-बार जल जाते है। हाँ, वैसे देखा जाए तो मेरे पास आज मोटर, गाडी, बंगला, मोबाइल, a.c कमरें, बहुत से कपड़े और गहने सब कुछ है, मगर जिसे अपना कह सके वैसा शायद कोई नहीं, सब एक दिखावा सा लगता है और मन भी खाली-खाली सा रहता है। रवि ने मुझे सब कुछ दिया मगर वह प्यार-सम्मान न दे सके, जो हर औरत अपने लिए चाहती है।   
       बस कुछ अधूरी सी ख्वाईश, जो कभी पूरी नहीं हो सकती, उसे फ़िर से अपने अंदर समेत लिया और आज आकाश से मिलने के बाद ना जाने क्यों खयाल आ रहा है, कि अगर उस दिन मैंने आकाश को हांँ कह दिया होता और थोड़ी स हिम्मत कर के आकाश के बारे में अपने पापा को बात कर दी होती, तो शायद आज ज़िंदगी कुछ ओर हो सकती थी, मेरी चीज़ों के बदले हमारी चीज़ें होती, बड़ा बंँगला ना सही छोटा घर होता, बड़ी गाडी ना सही, एक स्कूटर होता, बहुत सी साड़ी और गहने ना सही कुछ अच्छी साड़ी और गहने होते, तो ज़िंदगी वैसे भी अच्छी ही होती, ज़िंदगी उसूलों के सहारे नहीं, बल्कि प्यार के सहारे जी लेते। खैर ! अब इन बातों से कोई फायदा नहीं। सोचते हुए मैं रोज़ की तरह अपना घर, अपना बच्चा और परिवार सँभालने में लग गई।       
        अपने पापा की परी अपने पापा से अब कैसे कहे, कि उनकी परी आज राज कुमार के राज महल में आके कैद हो गई है, वो खुश नहीं है, वो खुले आसमान में उड़  जाना चाहती है, मगर उसके पंख काट दिए गए है, वो फ़िर से एक बार गुड्डे-गुड्डी का खेल खेलना चाहती है, मगर सोने के नहीं, मिट्टी के। वो कुछ गीत गुन-गुनाना  चाहती है, मगर उसे इसकी अब इजाज़त नहीं, क्योंकि महलो में रहने वाले यूँ सरे-आम गाना नहीं गाया करते, वह हँसना चाहती है, मगर उसकी हँसी अब कहीं आँसूओ के पीछे छिप गई है। वो खुश रहना चाहती है, मगर ख़ुशी उसके दरवाज़े पे दस्तक देकर लौट गई है, क्योंकि अब उस पापा की परी ने अपने दिल का दरवाज़ा अपने आप ही बंद कर दिया है। 
      अपने पापा की परी अपने पापा से अब कैसे कहे, कि उनकी प्यारी सी परी राज महल में आके कैद हो गई है। 
      
      तो दोस्तों, उम्र, वक़्त, लम्हा, हालात कुछ भी हो, दिल की बात दिल में नहीं रखनी चाहिए, एक बार दिल की बात बता देने में ही समझदारी है, वार्ना ज़िंदगी भर पछताना पड़ता है, शायद शादी से पहले एकबार पापा से उस दिन आकाश की बात की होती तो, शायद पापा मान भी गए होते, शायद आज ज़िंदगी कुछ ओर होती, शायद... 

स्व-रचित 
#शायद  
Bela... 
     

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