हिम्मत
सुषमा अभी सिर्फ १७ साल की ही थी, मगर कहते है ना, कि " लड़कियांँ वक़्त से पहले ही जवान हो जाती है," वैसे ही सुषमा का यौवन दिखने में २० साल की लड़की जैसा था और तो और वह दिखने में भी पहले से ही बहुत सुंदर थी, एक ही बार में किसी का भी दिल उस पे आ जाए, तो फ़िर ये तो सब दारू के नशे में रहनेवाले पियक्कड़ थे।
हाँ, तो दोस्तों, आज मैं बात करने वाली हूँ, उस बस्ती की, जिस बस्ती में पैसो के लिए लोग कुछ भी करने को राज़ी हो जाते है, वह लोग सिर्फ़ एक ही भाषा जानते है, वह है, " भूख़ "। चाहे वो भूख़ रोटी की हो या हवस की। इसके लिए वह कुछ भी कर जाते है। अब आगे...
वैसे ही सुषमा का बाप भी रोज़ रात को नशे में घर आकर पैसो के लिए बीवी-बच्चों को मारता है, उस पे अपना रॉब जमाता है, जुआ खेलता रहता है, जुए में वह हर बार अपना सब कुछ हार जाता है, यहाँ तक की अपनी खोली भी वह जुए में हार जाता है, एक दिन तो उसने अपनी बड़ी बेटी सुषमा को दाव पे लगाया, वह तब भी हार गया। सुषमा की माँ कुसुम जैसे-तैसे करके लोगों के घर के बर्तन-झाड़ू कर के अपना घर चलाती है, जिस रात सुषमा के बाबा दाव पे लगी, सुषमा को हार गया, उसी रात दूसरा पियक्कड़ सुषमा को घसीटता हुआ, उसे अपने साथ ले जाने लगा, सुषमा की माँ अपनी बेटी को बचाने उसके पीछे जाती है, कुसुम ने उस पिय्यकड़ को रोकने की बहुत कोशिश की, तो सुषमा के बाबा ने कुसुम के सिर पे लाठी दे मारी, उसी वक़्त वह बेचारी गिर के बेहोश हो गई, सुषमा के बाबा ने अपनी दूसरी बेटी राधा को दूसरे कमरे में बंद कर दिया, ताकि दोनों बाहर ना आ सके और वह पिय्यकड़ सुषमा को घसीटते हुए किसी अँधेरी खोली में ले गया।
उस हैवान को नन्ही सी जान पे ज़रा भी दया नहीं आई। पूरी रात वह हैवान उसके मज़ा लेता रहा और सुषमा दर्द के मारे चीख़ती-चिल्लाती रही। सुबह होने से पहले वह हैवान सुषमा को उसकी खोली के आगे फ़ेक आया। क्योंकि सुषमा का सौदा सिर्फ़ एक रात के लिए ही हुआ था। उस एक रात ने सुषमा को इंसान से पथ्थर बना दिया। सुबह सुषमा की माँ ने दरवाज़ा खोला तो, दरवाज़े के आगे सुषमा बेहोश हालत में पड़ी हुई थी, उसके कपड़े भी फटे हुए थे, उसका आधा नंगा बदन साफ-साफ दिख रहा था। सुषमा की माँ को अकेले ही सुषमा को उठा के घर के अंदर लाना पड़ा, सुषमा की माँ ने उसके बदन को पानी से साफ किया, उसके शरीर पे पड़े निशान से साफ पता चल रहा था, कि रात को उसके साथ क्या हुआ होगा ? मगर ये किस से कहे ? सुषमा की माँ ने रोते हुए सुषमा को दूसरे कपड़े पहनाए। उस वक़्त कुसुम का मन किया, कि यहाँ से भाग जाए मगर जाए भी तो कहाँ ? जहाँ खाने को रोटी नहीं, वहांँ सिर छुपाने के लिए जग़ह कहाँ मिलेगी ? और वह भी दो जवान होती हुई बेटी के साथ ?
रोज़ रात को ऐसे हैवानो की कामना जाग उठती है और उसकी हैवानियत का शिकार किसी भी घर की बहु, बेटी या माँ हो जाती है क्योंकि ऐसा सिर्फ़ सुषमा के साथ ही नहीं, उसकी माँ के साथ भी कई बार हो चूका था और बस्ती में शायद ओर भी कई औरतों और लड़कियों के साथ ऐसा होता होगा मगर डर और शर्म के मारे कोई किसी को कुछ नहीं कहता और रात के अँधेरे मैं हुए ऐसे दर्दनाक हादसे को सुबह होते ही भुला दिया जाता है और अपने मन में और झोपड़ी में ही छुपा दिया जाता है। मगर कुसुम को इस बात का अंदाज़ा नहीं था, कि उसका पति किसी दिन दाव पे अपनी बेटी को भी लगा देगा।
थोड़ी देर बाद सुषमा की आँख खुलती है, अपने सामने अपनी माँ को देखकर माँ के गले लग कर रोने लगती है और रोते-रोते कहने लगती है, कि " माँ, मुझे बहुत दर्द हो रहा है, कल रात उसने मेरे साथ बड़ा गन्दा बर्ताव किया, मुझे थप्पाड़ भी मारा, कल रात उस पियक्कड़ ने मुझ को कहीं अँधेरी खोली में ले जाकर मेरे सारे कपड़े फाड़ डाले, मैं अपने बचाव के लिए इधर-उधर खोली में भागति रही मगर मुझे बचाने के लिए कोई नहीं आया, मैंने तुम को भी कितनी आवाज़ लगाई माँ, तुम कहाँ रह गई थी ? और तो और मेरी आवाज़ बाहर न जा सके इसलिए उस पियक्कड़ ने मेरे मुँह में पहले से कपड़ा धुस दिया था, मेरे हाथ भी रस्सी से बांध दिए थे और तो और उसने....। " माँ क्या कहती, माँ ने सुषमा के होठों पे हाथ रख के उसे चुप रहने को कहा, और कहाँ," बस बेटी बस, चुप होजा, मुझे सब पता है, आगे क्या हुआ, मैं नहीं सुन पाऊँगी। "
कुसुम मन ही मन सोचती है, " और तो और अगर इस बात का पता, बस्ती में लग जाए, तो दूसरे हैवानो की नज़र भी उस पे पड़ती और वह भी उसे पाने की कोशिश में लग जाते। काश ! उस दरिन्दे से मैं अपनी फूल सी बेटी को बचाके रख पाती। "
कुछ देर तक कुसुम की आँखों से आँसू की धारा बहती ही जाती है और वह अपनी फूल जैसी गुड़िया को गले से लगा कर प्यार करती रहती है ।
कुछ देर बाद सुषमा ने माँ को कहा, " तुम बाबा को छोड़ दो। हम कहीं और चले जाएँगे, हमें बाबा के साथ नहीं रहना, वह भी बहुत गंदे है, रात को नशे में बाबा भी कभी-कभी मेरी छाती पे हाथ फेरते रहते है। मैं तुम को कैसे बतलाती ? मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।"
ये सुनकर सुषमा की माँ का कलेजा ही फट गया, और सुषमा की माँ ने कहा, " उस हैवान की इतनी ज़ुर्रत ? आज हाथ फैरता है, कल वह नशे में कुछ भी कर सकता है। तू ठीक कहती है, बेटी, हम यहाँ नहीं रहेंगे, कहीं और चले जाएँगे, आज तेरे साथ जो हुआ वह तेरी बहन के साथ भी हो सकता है, उस से पहले ही हम यहाँ से चले जाएँगे। "
सुषमा ने कहा, " हां माँ, अब मुझे भी यहाँ नहीं रहना है। " दोनों माँ-बेटी एक दूसरे से लिपत के रोने लगे। अब आगे...
कुसुम को उस वक़्त तो क्या करे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन कुसुमने उस वक़्त सुषमा को " मैं कुछ सोचती हूँ, " कहते हुए, सुषमा को चुप रहने को और आज के लिए कमरे से बिलकुल बाहर निकलने को मना किया। वैसे भी उस हैवान ने सुषमा की हालत कहीं जाने के लायक छोड़ी ही नहीं थी। कुसुम रोज़ की तरह घर का खाना बनाकर कमरे में बंद कर के अपने काम के लिए चली जाती है। इतफ़ाक़ से वह जिस घर में झाड़ू-पोछा करती थी, वह घर एक बॅरिस्टर बाबू का ही था। सुषमा ने पहले तो बॅरिस्टर बाबू से कुछ नहीं कहा, मगर बॅरिस्टर बाबू को आज सुषमा का बर्ताव और उसका चेहरा कुछ अलग लगा, तो बॅरिस्टर बाबूने कुसुम से ही पूछा, कि क्या बात है, आज आप इतनी दुखी और परेशान क्यों लग रही हो, कुछ बात भी नहीं कर रहे हो ? कुसुम ने कहाँ, कोई बात नहीं बॅरिस्टर बाबू, हम बस्ती वालों के तो नसीब ही फूटे हुए है, हमें तो दर्द से गुज़रना ही पड़ता है।
बॅरिस्टर बाबूने कहा, बस यही तो तुम लोगों की कमज़ोरी है, कुछ बताओगे नहीं, तो हम को पता कैसे चलेगा ? आप लोग जब तक ज़ुल्म सहते जाएंँगे, तब तक ज़ुल्म करने वाले ज़ुल्म करते रहेंगे, किसी को तो आवाज़ उठानी ही होगी ना !
बॅरिस्टर बाबू की बात सुनते ही कुसुम की आँखों में छुपे आँसू बहने लगे और कुसुम को अपनी बेटी की चीख सुनाई दे रही थी, कि " उसने मुझे क्यों नहीं बचाया ?" बॅरिस्टर बाबू के बहुत पूछने पे आज कुसुम ने रात की बात बॅरिस्टर बाबू को बता दी।
कुसुम की बात सुनते ही बॅरिस्टर बाबु की आँखों में भी आँसू आ गए और गुस्सा भी, खड़े होते हुए वह बोले, कि " अब भी तुम बस चुप ही रहना चाहती हो ? क्या तुम चाहती हो, की आज जो सुषमा के साथ हुआ वह हर रात उसके साथ हो ? और वही सब राधा के साथ हो ? तुम कैसी माँ हो ? तुम्हारे जगह में होता तो, वह हैवान जेल में होता।
कुसुम ने कहा, उस पे केस करेंगे, तो मेरी सुषमा की कितनी बदनामी होगी, उस से कई सवाल पूछे जाएँगे, जिसका जवाब उसे सब के सामने देना पड़ेगा और ये हम नहीं चाहते, बस इसी बजह से चुप है। बस अब किसी भी तरह उस घर को छोड़ देने का फैसला किया है और कहीं दूर चले जाएँगे, मगर कहाँ जाऊँ दो बच्ची को लेकर समझ नहीं आ रहा, हम गरीब के पास इतने पैसे भी तो नहीं है, और तो और दुनिया ऐसे हैवानो से भरी पड़ी है, जहाँ जाए, ये ख़तरा तो हर वक़्त हम औरत के सर पे लगा ही रहता है, घर में ही हम औरत सुरक्षित नहीं है, तो बाहर कैसे सुरक्षित रह सकेंगे ? किस-किस से बचे और कब तक ? आप तो सब जानते ही है, आप जैसे लोग दुनिया में बहुत ही कम होते है, जो औरत को समज़ते है और उनका सम्मान भी करते है।
बॅरिस्टर बाबू को भी पता था, कि आखिर कोर्ट में ऐसा ही होगा, इसलिए वह कुछ देर सोचने लगे और कहा, कि देखो, " तुम वैसे तो सच ही कह रही हो, तो तुम ऐसा कर सकती हो, कि यहाँ पास में मेरी अपनी भी एक खोली है, जो अभी खाली पड़ी है, जिसे हम बेचने के बारे में सोच रहे थे और वैसे भी वह बहुत छोटी है, तो शायद ज़्यादा क़ीमत उसकी नहीं आनेवाली। तो तुम ऐसा करो, अभी के लिए अपनी बेटी सुषमा और राधा को लेकर मेरी खोली में रहो, यहाँ आस-पास सब लोग भी अच्छे रहते है, तो तुम्हें और तुम्हारी बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी, उसका अच्छे से डॉक्टर के पास इलाज कराओ और उसकी पढाई भी जारी रखो, अगर वह ज़्यादा पढ़ लेगी, तो उसे तुम्हारी तरह यूँ घर-घर जाकर काम नहीं करना पड़ेगा, उसे अच्छी जॉब मिल जाएगी। मैं सरकारी कॉलेज में उसका दाखिला करा दूँगा, ताकि फीस ज़्यादा ना हो।
कुसुम को बॅरिस्टर बाबू जी की ये बात सही लगी, और उसी दिन कुसुम अपना सामान और अपनी दोनों बेटी को लेकर बॅरिस्टर बाबू जी के बताए हुए खोली में जाकर रहने लगी। कुसुम का पति उसे ढूंँढता रहा, ढूंँढता ढूंँढता वह उस खोली तक भी आ गया, जहाँ कुसुम और उसकी बेटी रहते थे। कुसुम के पति ने उसे घर वापस आने को कहा और उसे रण्डी भी कहा, लेकिन इस बार कुसुम ने तय कर दिया था, कि वह अपने पति के साथ नहीं जाएगी और कुसुम ने बॅरिस्टर बाबु का दिया हुआ बड़ा सा डंडा उठाया और अपने पति को दिखाते हुए ज़ोर से गुस्से में कहा, कि " अगर ज़िंदा रहना चाहते हो, तो अब वापस इधर मत आना और नाही मेरी बेटी की और नज़र उठाके कभी देखना, वार्ना मुझ से बुरा और कोई नहीं होगा। "
आज कुसुम की आँखें सच में गुस्से से लाल होती देख, कुसुम का पति वहाँ से उसे धमकी देता हुआ चला जाता है, कि " देख लूँगा तुझे और तेरी बेटी को "।
कुसुम में अब अपनी बेटी के लिए, अब सब से लड़ने की हिम्मत थी, कुसुमने अपनी दोनों बेटी को पढ़ाया और बेरिस्टर साहब ने सुषमा को अच्छी नौकरी भी दिलाई, अब कुसुम और उसकी बेटी बिना किसी डर के सर उठा के ज़िंदगी जी रहे है।
तो दोस्तों, ज़ुल्म तब तक ही सहना चाहिए, जब तक बर्दास्त कर सको, जब तक सामने वाला अपनी हद में हो, आज जैसे हिम्मत दिखा के कुसुम ने अपनी दोनों बेटी को उस बदनाम बस्ती से भी निकाला और उनका जीवन बचा लिया, उसी तरह अगर कुसुम ने यही हिम्मत पहले दिखाई होती तो, उसकी बेटी को उस रात उस हैवान से बचा सकती। आप को मेरी कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा। कुसुम ने अपनी बेटी के लिए हिम्मत दिखाकर बस्ती छोड़कर और अपने पति को धमका कर सही फैसला लिया ?
स्व-रचित
मौलिक
#हिम्मत
Bela...
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