समझोता अपने आप से या ज़िंदगी से भाग - 3
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि शारदादेवी ने पैसो का लालच देकर सुषमा के बाप का सुषमा की शादी उसके बेटे सुमीत से करवाने के लिए राज़ी कर दिया, मगर सुषमा इस शादी के लिए राज़ी नहीं थी, तब सुषमा के बाप ने उसकी माँ और बहन को जला देने के धमकी दी, इसलिए मजबूर होकर सुषमा शादी के लिए राज़ी हो जाती है, उस तरफ शारदा देवी ने अपनी कसम देकर सुमीत को शादी के लिए राज़ी कर लिया। ऐसे दोनों की शादी हो जाती है, अब आगे...
तभी सुमीत के कमरे में रखा अलार्म बज उठा, सुमीत को सुबह जल्दी उठने की आदत थी, सुषमा ने ऐसा अलार्म पहली बार देखा था, उसकी आवाज़ से एक तो वह चौंक के डर गई। ऊपर से वह अलार्म अपने आप बंद नहीं हो रहा था, अलार्म की आवाज़ सुनते ही सुमीत की नींद खुल गई, वह तुरंत ही अपने कमरे से बाहर आया और उसने अलार्म बंद कर दिया। सुषमा से कहा, कल से इसे में अंदर ही लेके जाऊँगा, मुझे जल्दी उठने की आदत है, तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी। मुझे लगता है, तुम रात को ठीक से सोइ नहीं, अभी सिर्फ़ ५ बजे है, तुम चाहो तो कपड़े बदलकर थोड़ी देर के लिए फ़िर से सो जाओ। कहते हुए सुमीत फ़िर से अपने उसी कमरे में चले गए। कमरे का दरवाज़ा सुमीत ने अंदर से बंद कर दिया।
सुषमा सुमीत को अंदर जाते हुए देखती रही। सुमीत का लम्बा कद, गौरा रंग, बिखरे हुए बाल, सफ़ेद कुर्ता-पजामा, पैरो में मख़मली चप्पल, सीधी और सरलता से हर बात कह देना, किसी भी लड़की का मन मोह ले। मगर इस वक़्त सुषमा सच में बहुत थक गई थी, वह अपने बिस्तर से उठी, अलमारी की तरफ़ जाके उसने अलमारी खोली, अलमारी में कपड़ो के नीचे सुमीत की दी हुई चिठ्ठी ऱख दी। अलमारी में उसके लिए बहुत सारी साड़ियाँ थी, वह भी रंग-बेरंगी, रात को पहनने के लिए अलग कपडे भी थे। उसके लिए ये सब एक सपना जैसा था, एक ऐसा सपना जो उसने कभी सपने में भी नहीं देखा था। शादी का जोड़ा और गेहने उतारकर सुषमा ने अलमारी में से कुर्ता निकालकर पहन लिया। फ़िर उसने घडी में देखा। घड़ी में अभी तो सिर्फ़ सवा ५ ही बजे थे, सुषमा बिस्तर की ओर मुड़ी और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर में फ़िर से सुमीत ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला, सुषमा ने देखा, वह बाहर आ रहे है, फ़िर भी सुषमा सोने का नाटक करती रही, उसने अपनी आँखें बंद कर दी, सुमीत को जैसे लगा, कि सुषमा सो गई। सुमितने को चद्दर ओठा दी। अलमारी में से कपड़े लेकर सुमीत वॉशरूम की ओर जाता है, कुछ देर बाद कपड़े बदलकर बाहर आया और कमरे का दरवाज़ा बंद कर चला गया। सुषमा ने चोरी-चोरी ये सब देखा। थोड़ी देर बाद सुषमा की आँख लग गई। सुमीत को रोज़ सुबह जल्दी उठकर गार्डन में चलने जाने की आदत थी, उसे सुबह की धूप और उगता सूरज देखना बहुत पसंद था। कुछ देर चलने के बाद सुमीत वही पे रखी बेंच पे बैठ जाता है, सुमीत आसमान की तरफ नज़र किए देखा करता है, जैसे कि वह फ़रियाद कर रहा हो, कि " सब कुछ देकर सब कुछ मुझ से क्यों छीन लिया और मुझे यह ख़ुशी देनी ही नहीं थी, तो मुझे ये ख़ुशी दी ही क्यों ? आँखों में ढेर सारे सपने दिखाए ही क्यों ? जब की वह सपने कभी सच हो ही नहीं सकते थे। " सोचते-सोचते सुमीत की आंँखें भर आती है, अपने आंँसुओ को छुपाने के लिए सुमीत ने अपनी आँखों पे काला चश्मा लगा दिया, ताकि कोई उसे रोता हुआ देख़ ना सके। तभी रोज़ की तरह एक नन्ही सी लड़की सुमीत के पास आती है और कहती है, " फूल ले लो साहब, मेरे आज के फूल में बहुत अच्छी खुशबु है और आपका घर और मंदिर भी फूलों की खुशबु से महक जाएगा। फूल ले लो साहब,फूल ले लो। ( फूलों की तरफ़ एक नज़र करते हुए ) सुमीत मुस्कुराता है और उस छोटी सी लड़की के पास से कुछ फूल ले लेता है। सुमीत थोड़े से फूल के बदले उस लड़की को बहुत से पैसे दे दिया करता है। लड़की सुमीत को फूल देकर मुस्कुराती हुई खुश होकर चली जाती है, सुमीत उस लड़की को जाते हुए देखता रहता है, फ़िर अपने हाथों में रखे फूलों की ओर देखता है, तभी उसे याद आता है, कि
एक दिन उसे ज़मींन के कागज़ात के लिए जल्दी वकील के पास जाना होता है इसलिए सुमीत थोड़ी ही देर चलकर जल्दी में घर चला जाता है, उस लड़की को फूल देने के लिए आने में थोड़ी देर भी हो जाती है, इसलिए वह अपनी पत्नी शर्मीला के लिए फूल नहीं ले पाया। उस वक़्त उसके घर में आते ही शर्मिला ने पूछा, कि " फ़िर से फूल नहीं लाए ? आपको मैंने कितनी बार कहा है, रोज़ फूल ले के ही आया करो, फ़िर पूजा के लिए फूल लेने मुझे जाना पड़ता है। मगर आपको इस से क्या ? मुझे दिन भर क्या कुछ नहीं करना पड़ता, मगर इस से आपको क्या ? आपको तो आपका काम ही प्यारा है और कुछ नहीं। " शर्मिला मुँह फुलाके पलट कर अपना काम करने लगी, सुमीत उसे मनाने लगा, " अरे, स्वीटू की अम्मा ! गलती हो गई, वह मैं आज ज़रा जल्दी में था, इसलिए भूल गया, बाद में ला दूंँगा, मगर तुम सुबह-सुबह यूँ छोटी-छोटी बात पे मुझ से यूँ रूठा मत करो, मुझे कुछ होता है। शर्मीला ने कहा, " क्या होता है ? " सुमीत ने शर्मीला के करीब जाते हुए कहा, " तुम पे और भी प्यार आता है और कहीं जाने का मन नहीं करता, मन करता है, तुमको यही बैठ के देखा करूँ और सुनता रहुँ।" शर्मिला शरमाते हुए कहती है, " चलो, हटो भी अब, अब आपको जाने में देर नहीं हो रही ? " सुमीत शर्मिला के और भी नज़दीक आ जाता है, तभी स्वीटू वहाँ आ जाती है और मम्मी-मम्मी करते हुए शर्मिला को पकड़ लेती है, शर्मिला अपनी बेटी स्वीटू को प्यार करने लगती है और सुमीत वही खड़ा आहें भरता रह जाता है और वह फ्रेश होने के लिए अपने कमरें में चला जाता है।
तभी सुमीत का ड्राइवर आकर उसे आवाज़ लगाता है, " चलिए साहब घर जाने का वक़्त हो गया, आज आपको एक मीटिंग में भी जाना है, आपने याद कराने को कहा था। " सुमीत अपनी बंद आँखें खोलता है और कहता है, " हहम्म ! तुम चलो, मैं आता हूँ। " सुमीत हाथों में रखे फूल को एक नज़र फ़िर से देखता है। ड्राइवर " जी साहब " कहता हुआ चला जाता है। सुमीत भी खड़ा होकर ड्राइवर के पीछे-पीछे चलने लगता है। अब आगे...
घर जाकर सुमीत वह फूल अपने कमरे में रखे हुए टेबल पे रख कर अपना टॉवल लेकर फ्रेश होने चला जाता है। फूलों की खुशबु से सारा कमरा सच में फ़िर से महक उठता है, सुषमा जो अब भी गहरी नींद में थी, वह फूलों की खुशबू से उठ जाती है, अंँगड़ाइयांँ लेते हुए सुषमा अपने बिस्तर पे बैठ जाती है, तभी सुमीत फ्रेश होकर वाश-रूम से बाहर आता है, उसने अभी सिर्फ एक टॉवल शरीर पे लपेटा हुआ था, सुमीत एक पल के लिए जैसे भूल ही गया, कि अब उसके इस कमरें में कोई और भी रहता है। सुषमा ने सुमीत को टॉवल में बाहर आता देखते ही अपने हाथों से अपना चेहरा ढँक दिया और अपनी आँखें भी बंद कर दी। डर और शर्म के मारे उसके मुँह से निकल गया, " हाय रे ! ये मैंने क्या देख लिया। मुझे माफ़ कर दीजिए, मुझे नहीं पता था, कि आप अंदर... सुमीत ने कपड़े पहनते हुए कहा, " उस में माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं, जी गलती मेरी ही है, मैं ही कुछ पल के लिए भूल गया था, कि आप भी यही हो, आगे से अब मैं इस बात का ज़रूर ध्यान रखूँगा। अब आप अपनी आँखें खोल सकती है। " ऐसा सुनकर सुषमा ने अपनी आँखें खोली और धीरे-धीरे अपना हाथ अपने चेहरे से हटाने लगी, जब तक वह दूसरी बार सुमीत को देखती, सुमीत ने कपड़े पहन लिए। सुमीत अपना काला पैंट और सफ़ेद शर्ट में कमरें का दरवाज़ा खोल बाहर जाने लगा, सुषमा अपने पति सुमीत को फिर से ठीक से देख ना सकी। सुषमा ने आहें भरी और वही बैठी-बैठी कमरें की चारों तरफ़ फ़िर से देखने लगी। उसकी नज़र बीच में रखे फूलो की ओर गई, सुषमा खड़ी होकर फूलों के पास जाती है, उन में से कुछ फूल अपने सुषमा ने अपने हाथों में लिए और उसकी खुशबु लेने लगती है, फ़िर उसे लगा, रात को तो यहाँ कोई फूल नहीं थे और सवेरे-सवेरे यह यहाँ कैसे ? सुषमा ने सोचा, " शायद वह मेरे लिए लाए होंगे ? " फ़िर सुषमा ने माथे पे हाथ रखते हुए कहा, कि "अरे पगली, तू भी क्या सोचती है, कल रात की चिठ्ठी की बात भूल गई क्या ? " तभी माजी की आवाज़ सुनाई देती है, " बहु-ओ बहु, सुबह हो गई, जल्दी तैयार होकर बाहर आ जाओ, कुछ चाय-नाश्ता भी कर लो, बाद में तुम्हारी मुँह दिखाई की रस्म जो है, सभी पड़ोस की औरतें आती ही होगी। "
सुषमाने धीरे से ज़वाब दिया, " जी माजी, अभी आई।" कहते हुए सुषमा थोड़ी डरी। फ़िर मन ही मन कहती है, " हाय रे, शिव जी, मैं भी कितनी पगली हूँ, देर तक सोती रही, किसी ने मुझे जगाया भी नहीं। कहते हुए सुषमा टॉवल और कपड़े लेकर फ्रेश होने चली जाती है, कुछ देर बाद वह बाहर आकर अलमारी में से लाल कलर की साड़ी और उस की मैचिंग ब्लाउज, मैचिंग चूड़ियाँ, गहने, बालो में गजरा लगाते हुए आईने में एक बार फ़िर से अपने आप को देखने लगी, तभी कमरें के बाहर से किसी बच्चे के हसने की आवाज़ सुषमा को सुनाई देती है। सुषमा ने पलटकर पीछे देखा, दरवाज़े के पीछे से एक बच्ची छुपकर उसे देख कर हस रही थी। सुषमा उस प्यारी सी बच्ची को पहचान नहीं पाई, फ़िर भी सुषमा ने बच्ची को इशारा कर के अपने पास बुलाया, पहले तो बच्ची ने अंदर आने से मना कर दिया, फ़िर दूसरी बार बुलाने पे वह सुषमा के करीब आती है। सुषमा ने छोटी सी बच्ची से पूछा, " आप मुझे बाहर से क्यों देख रहे थे ? अंदर क्यों नहीं आए ? " छोटी बच्ची ने मुस्कुराते हुए कहा, " बड़े पापाने कहा था, कि छोटी माँ को परेशान मत करना, वरना आप भी मुझे मेरी मम्मी की तरह छोड़ कर चले जाओगे। " सुषमा ने कहा, तो आपकी मम्मी आप को छोड़कर क्यों चली गई और कहाँ ? " छोटी बच्ची ने कहा, बड़े पापाने कहा, कि " मेरी मम्मी आसमान में जाकर , अब वो परी के पास रहती है, मुझे भी परी के पास आसमान में जाना है, मगर बड़े पापा जाने नहीं देते, कहते है, " वहां पे हम ऐसे नहीं जा सकते। एक दिन घोड़े पे बैठ के राजकुमार आएगा और हमें आसमान में अपनी मम्मी के पास ले जाएगा। क्या आप जानते हो, वह राजकुमार कब आएगा ? और मैं अपनी मम्मी से कब मिलूँगी ? " बच्ची की बात सुनकर सुषमा की आँखें भर आती है, वह बच्ची को एक पल के लिए अपने गले लगा लेती है। सुषमा की समझ में कुछ नहीं आता, कि ये बच्ची कौन है और उसे अपनी छोटी माँ क्यों कह रही है ?
तो दोस्तों, सुषमा की ज़िंदगी में एक तूफान कल रात आया था, जब सुरेश ने एक ख़त उसे दिया था, जिस में लिखा था, कि वह उसे कभी प्यार नहीं कर पाएगा और दूसरा तूफान आज सुबह आया, जब एक छोटी सी बच्ची उसे माँ कहती है। अब क्या सुषमा इन रिश्तों को समझ पाएगी और इन उलझें हुए रिश्तों के साथ ज़िंदगी जी पाएगी ?
अब आगे क्रमशः।
Bela...
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