KABHI KHUSHI KABHI GUM

                         कभी ख़ुशी कभी ग़म 

        आज कल सभी बच्चों के सिर पे जैसे एक ही भूत सवार है, विदेश जाके पढ़ने और पैसे कमाने का। रवि की ममा रवि को सुनते हुए अपने आप से ही जैसे बातें कर रही थी मगर रवि के पापा और रवि समझ गए थे, कि रवि की माँ कुसुम किस के बारे में बात कर रही है। दरअसल दोस्तों, बात ये है, कि रवि को अपनी B.C.A की पढाई के बाद आगे की पढाई के लिए विदेश पढ़ने और उसके बाद अच्छी सी जॉब मिल जाए, तो वही पे रहने का रवि ने तो मन बना लिया था, मगर माँ का तो एक ही लाडला बेटा था, रवि। 

     अब आप ही सोचो दोस्तों, एक माँ अपने एक लौटे बेटे को वह भी अकेले और हमेशां के लिए अपने आप से कैसे दूर कर दे ? उसका दिल तो दुखेगा ही ना ! 

             ( रसोई में रोटियांँ बनाते-बनाते )

 कुसुम : हाँ-हाँ, जिसको जहाँ जाना हो, जा सकता है, मेरा क्या है ? पहले मुझे ज़्यादा रोटियाँ बनानी पड़ती थी, अब कम बनानी पड़ेगी। मुझे खाने के वक़्त रोज़ किसी का इंतज़ार नहीं करना पडेगा और नाही रोज़ किसी के लिए अलग खाना बनाना पड़ेगा। नाही मुझे रोज़ किसी के कपड़े समेटने होंगे और नाही किसी की बीमारी में उसको काढ़ा और दवाई बनाके पिलाना होगा और नाही उसके सिर पे ठन्डे पानी की पट्टी लगानी होगी और नाही उसके आने के इंतज़ार में रात को मुझे जगना पड़ेगा।  और... 

     ( रवि अपनी मांँ को पीछे से गले लगाते हुए )

रवि : बस मांँ बस, अब कुछ भी मत कहना, मैं समझ गया, तुम क्या कह रही हो। मैं जानता हूँ माँ, कि तुम्हारे लिए ये सब बहुत मुश्किल है, तुम्हें मेरा ख्याल रखने की आदत जो हो गई है। तो माँ, मुझे भी तो वहां आपकी याद आएगी ही ना ! मुझे भी तो आपके हाथों के बने खाने की आदत है, छोटी-छोटी बात के लिए, मैं भी तो आप को ही तो आवाज़ लगाता हूँ, आप जितना यहाँ मुझे याद करेगी, उस से कई ज़्यादा मैं वहां आप को और पापा को याद करूँगा ना ! मगर मुझे ज़िंदगी मैं आगे भी तो बढ़ना है ना! पापा भी अब एक-दो साल में रिटायर होनेवाले है, अगर तब तक मैं कुछ अच्छा सा सिख जाऊ, अच्छा इंजीनियर बन जाऊ, तो आप को वहां बुला लूँगा ना ! लेकिन उसके लिए पहले मुझे वहां अकेले जाना होगा, पढाई के साथ-साथ जॉब भी मिल जाएगी, बाद में आप को भी वहांँ बुला लूँगा, या वहांँ कुछ अच्छा ना लगा तो खुद यहाँ आप के पास आ जाऊँगा। इसलिए प्लीज माँ, मुझे जाने दो ना ! आप लोगो की बात मत सुनो, सिर्फ मेरी सुनो। बस कुछ साल की ही तो बात है, फ़िर तो हम सब साथ में ही रहेंगे ना !

    ( रवि की बात सुनकर कुसुम ने रोते-रोते रवि को गले लगा लिया। )

कुसुम : अच्छा बाबा, कर ले अपनी ज़िद्द पूरी और चला जा तुझे जहाँ भी जाना हो। मैं अपने दिल पे पत्थर रख के कुछ साल जी लुंँगी। 

रवि : Thank you माँ, Thank you so much. आपको पता नहीं, आपने मुझे ये कह कर कितनी बड़ी ख़ुशी दी है। मैं अभी पापा से कह कर विदेश जाने की तैयारी शुरू कर देता हूँ। 

   ( रवि ने विदेश जाने की सारी तैयारी कर ली। दो महीने के बाद रवि विदेश चला जाता है। रवि ने वहां मन लगाकर पढाई भी की और कुछ ही समय में रवि को अच्छी सी जॉब भी मिल गई। कुसुम की रवि से फ़ोन पे या वीडियो कॉल पे बात होती रहती, मगर माँ का दिल है, रवि का फ़ोन रखते ही छुप-छुप के कुसुम रो लिया करती। देखते ही देखते दो साल बीत गए। एक दिन अचानक से रवि ने फ़ोन पे बताया की, " मैंने आप दोनों की टिकट करवा दी है, आप दोनों भी अब यहाँ आ जाओ, हम सब साथ रहेंगे और माँ, आप को अब रात को छुप-छुप के रोने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि कुछ दिन बाद मैं आप के पास ही सो जाऊँगा। " रवि की बात सुनकर कुसुम की आँखें भर आती है।  कुसुम और रवि के पापा ने विदेश जाने की तैयारी शुरू कर दी और कुसुम और रवि के पापा रवि के पास पहुँच ही गए।  रवि ने वहांँ  अपने लिए एक लड़की भी पसंद कर रखी थी, जो कुसुम को भी बड़ी पसंद आती है, कुछ ही दिनों में वहां रवि की शादी भी करवा दी, रवि और बहु को साथ में देख कुसुम अब मन ही मन ख़ुशी से मुस्कुराया करती। 

        रवि के विदेश जाने के बाद कुछ साल कुसुम के बड़े दुःखदाई बिते हो, मगर अब सब साथ में ख़ुशी-खुशी रहते है, ऐसे ही सब की ज़िंदगी में कभी ख़ुशी-कभी गम का सिलसिला चालू ही रहता है। 

#कभी-ख़ुशी-कभी-गम

स्व-रचित 

Bela...  

   




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