apne to apne hote hai

                        अपने तो अपने होते हैं 

        तो दोस्तों, ज़िंदगी भी बड़ी अजीब होती है, कभी कहीं किसी की ज़िंदगी में अपने अपनों का साथ छोड़ देते है, तो कभी कहीं किसी की ज़िंदगी में अपने ही अपनों के काम आते है। कभी कहीं किसी के अपने ही आँखों में आँसू दे जाते है, तो कभी कहीं किसी के अपने ही अपनों के आँसू पोछने आ जाते है। एक तरफ से देखा जाए तो, ये सिर्फ और सिर्फ हमारी सोच, हमारा ज़िंदगी जीने का तरीका और हम अपने अपनों के साथ ही कैसा बर्ताव करते है, उस पे निर्भर करता है। जैसा हम कहते या करते है, वही हमारे बच्चे देखते है और हम से ही तो सीखते है और हमें हमारे ही किए हुए अच्छे या बुरे कर्म का फल भी यही मिल जाता है।

     ऐसा ही कुछ हमने हमारी ज़िंदगी में भी महसूस किया है। एक दिन अचानक से हमारे पापा को हार्ट अटैक आ गया, हम उन्हें अस्पताल ले जाए उस से पहले ही उन्होंने घर में ही अपने प्राण त्याग दिए। पापा के गुज़र जाने के बाद हम सब तो जैसे बिलकुल अकेले ही हो गए थे। एक पल के लिए हम सब को तो लगा, कि हमारे सिर से तो जैसे पिता का नहीं बल्कि भगवान का ही हाथ उठ गया  हो। हम चार बहन और मेरी माँ, उन सब में मैं सब से छोटी। अभी तो हम सब बहनों की पढाई भी ख़तम नहीं हुई थी। पापा का बिज़नेस वैसे तो अच्छा चल रहा था मगर माँ पहले से ही घर संँभालती थी, तो उसे पापा के बिज़नेस के बारे में कुछ भी पता नहीं था। हम सब की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि क्या होगा अब  ? मगर तभी हमारे पापा के छोटे भाई ने हमारे सिर पे हाथ रख दिया और कहा, कि " अपने आप को अकेला मत समजना, तुम्हारे पापा नहीं रहे तो क्या हुआ ? तुम्हारे छोटे चाचू अब भी ज़िंदा है। माना की मेरे भी दो बेटे और दो बेटियांँ है, मगर मुझ से जितना हो सकेगा, उतना मैं तुम सब के लिए करूंँगा। जितना भी हिस्सा मेरे बेटे और बेटी का बिज़नेस में है, उतना ही आप सब का भी होगा। मुझे आज भी याद है, मेरे बुरे वक़्त में, घर में और बाहर मेरी एक गलती पे सब ने जब हम से मुँह फेर लिया था, तब भैया ने ही मेरा हाथ थामा था, मुझे अपने नए बिज़नेस में शामिल किया था और मुझे सब कुछ सिखाया भी था। और मैं आज इस काबिल हो गया हूँ, कि मैं अब अकेले भी सारा बिज़नेस संँभाल सकता हूँ। उनका ये एहसान मैं कभी नहीं भूल पाउँगा। " 

       छोटे चाचू की बात सुनकर हम सब की जान में जान आती है, हम सब की आँखों में एक उम्मीद जगी, छोटे चाचू ने हम सब की बहुत मदद की। धीरे-धीरे चाचू अपने बिज़नेस के बारे में हम को सब कुछ बताते रहे, हम सब की पढाई का और घर का खर्च भी उन्होंने ही संँभाला था, मेरी माँ को सिलाई काम आता था, तो उनके हाथों और भी औरत सिलाई सिख सके इसलिए चाचा ने घर पे ही कुछ सिलाई मशीन खरीद के ला दिए। ताकि मेरी माँ का वक़्त भी गुज़र जाए और उन्हें किसी और के माथे का बोझ हो, ऐसा महसूस ना हो। 

      छोटी चाची ने भी कभी हम से मुँह नहीं फेरा और हम को अपनी ही बेटी जितना मान और हक़ देते। मेरी माँ के साथ अपनी बड़ी बहन की तरह रहते।  

         कुछ ही साल में हम चार बहनों की पढाई भी ख़तम हो गई। अच्छा सा लड़का देख मेरी बड़ी दो बहनों की शादी भी करवा दी।  तीसरी बहन टीचर बनी और मुझे बिज़नेस करना था तो चाचू ने मुझे अपने ही बिज़नेस में अपने साथ कर लिया, जैसा पापा ने उनको सिखाया था वैसा ही उन्होंने मुझे भी सीखा दिया, ऐसा कभी-कभी मुझे उनकी बातों से लगता।  

   चाचू ने कभी भी हम को हमारे पापा ना होने का एहसास भी नहीं होने दिया। उनका एहसान हम सब ज़िंदगी भर नहीं भूल सकते। कभी-कभी सोचती हूँ, की शायद ये बात सच ही है, कि सच में कभी-कभी अपने ही अपनों के काम आ जाते है। 

       अगर सोचो, हमारे पापा ने छोटे चाचू को उनके बुरे वक़्त में उनको साथ नहीं दिया होता, तो क्या वह आज हमारी मदद कर पाते ? या कर सकते ? शायद नहीं ना ! वह भी वैसा ही सोचते, कि मेरे बुरे वक़्त में जैसे आपने भी सब की तरह मुँह फेर लिया था, तो अब मैं भी ऐसा कर सकता हुँ। इसलिए हम जैसा कर्म करते है, वैसा ही फ़ल हम पाते है। अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा।  

#अपने-तो-अपने-होते-हैं  

स्व-रचित 

Bela...  


Comments