अपराधी कौन ?
उर्वी की शादी अभी कुछ दिन पहले ही हुई थी, उर्वी के ससुराल में उसके सास-ससुर, उसका पति उमेश और उसका एक छोटा देवर सब साथ में रहते थे, उर्वी का पति उमेश किसी कंपनी में मामूली सी नौकरी करता था, घर में कमाने वाला सिर्फ़ वह एक अकेला ही था, उमेश के पापा टीचर थे और अब वह रिटायर हो गए थे, उमेश का भाई अभी कॉलेज में पढता था, उमेश की माँ पहले से घर संँभालती थी, पहले से ही घर में पैसो की कमी रहा करती थी, मगर उमेश की माँ जैसे-तैसे कर के बचत कर कर के घर चला ही लेती थी, अब तो उसे भी ऐसे ही बचत करने की आदत हो गई थी।
उर्वी इतना पढ़ी-लिखी नहीं थी, कि वह कुछ जॉब कर सके, मगर उर्वी घर का सब काम जानती थी, इसलिए उमेश की माँ को उर्वी के आने से थोड़ा आराम मिल गया। उर्वी के लिए ससुराल में एक बात अच्छी थी, कि दोनों सास बहु की अच्छी बनती थी और ये बात उमेश को ज़रा खटकती भी थी।
उमेश पहले से ही घमंडी और गुस्से वाला था, ये बात घर में सब जानते थे, इसलिए सब उसकी हांँ में हांँ मिला ही लेते थे, इसलिए कोई उस से बातों में भी उलझा नहीं करता था। ऊपर से उमेश को घर में सब कुछ अच्छा ही चाहिए, अपने कपड़े भी उसको अच्छे ही चाहिए, जुते पॉलिश किए हुए ही चाहिए, सुबह ऑफिस जाते वक़्त उसको टिफ़िन रेडी चाहिए, अगर घर में उसके हिसाब से कुछ काम ना हो तो, वह गुस्सा हो जाता है। जैसे कि वह महलों का राजा हो, " आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपया।" ऐसा उसका मिजाज़ था।
बेचारी उर्वी, पूरा दिन घर का काम करती और छोटा-मोटा सिलाई का काम भी कर लिया करती, मगर उस पे भी उमेश को एतराज़ ही था। इसलिए जब उमेश घर पे नहीं रहता, तब उर्वी चुपके से सिलाई काम करती और उसकी सासुमा थोड़ा रसोई का काम सँभाल लेती। दो पैसे ज़्यादा मिलते तो माँ-पापा का दवाई का ख़र्चा निकल जाता। मगर उमेश को शायद इस बात का पता नहीं था।
उमेश को ज़्यादातर रात को दोस्तों के साथ शराब पीने की भी आदत थी। उमेश देर रात को शराब पीकर घर आता और उर्वी को रोज़-रोज़ सोते वक़्त भी परेशान करता, चाहे उसकी मर्ज़ी हो या ना हो। उमेश को जो चाहिए वह चाहिए ही, फीर चाहे कुछ भी हो जाए। उर्वी अपनी साड़ी का पल्लू अपने से हटाए, मुँह फ़ेर कर बिस्तर पे बेजान सी पड़ी रहती और उमेश भूखे शेर की तरह बिना उसे देखे, बस उसे खा जाने की कोशिश में लगा रहता। अपना काम ख़तम कर उमेश मुँह पलटकर गहरी नींद में सो जाता। उस तरफ उर्वी अपनी आँखों से बह रहे आँसूओ के साथ जगती आँखों से, अपने दर्द के साथ सोने की कोशिश करती, मगर अब उसे नींद कहाँ ?
दूसरे दिन सुबह उमेश रोज़ की तरह सीधे न्यूज़ पेपर लेके पढ़ने बैठ जाता और उर्वी को चाय-नास्ते के लिए आवाज़ लगाता रहता, जैसे उसे कुछ पता ही नहीं, कि कल रात उसने अपनी ही पत्नी उर्वी के साथ कैसा बर्ताव किया था ? उर्वी भी बेचारी क्या करती, चुप-चाप आके टेबल पे उसने चाय-नास्ता रखा और फ़िर से रसोई में चली गई। उर्वी की सासु को भी अपने बेटे के बर्ताव के बारे में पता था, मगर वह भी क्या करती ? बेटा पैसा कमाकर जो लाता था और वैसे भी वह किसी की कभी सुनता ही नहीं था, हर वक़्त अपनी ही मनमानी करता रहता। अब उस से मुँह लगने में कोई समझदारी नहीं, ये सोच वह भी चुप रहती। उर्वी के मायके वाले भी मिडिल क्लास परिवार से थे, उन्होंने तो अच्छा घर और अच्छे लोग जानकार शादी की थी, अब उर्वी अपने मायके में ये सब बता के उनको भी परेशान करना नहीं चाहती थी।
एक दिन की बात है, जब उर्वी के महावारी के दिन चल रहे थे। उन दिनों उर्वी की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी, उसके पेट में बहुत दर्द रहता था, ऊपर से आज तो उर्वी का पूरा शरीर बुखार से काँप रहा था। आज खाना भी उसकी सासुमा ने ही बनाया था, सासुमा ने ही उसे आराम करने को कहा था, मगर ये क्या ? उमेश जैसे ही ऑफिस से घर आता है, तो उसकी माँ को रसोई में खाना बनाते देख और उर्वी को सोता हुआ देख, बिना कुछ सोचे समझे उर्वी पे चिल्लाने लगता है, " पूरा दिन ऑफिस में साहब की चमचागिरी करो और ऊपर से अगर थका हारा पति घर आए, तो बीवी आराम फरमा रही है, एक गिलास पानी तक पूछने वाला नहीं कोई घर में। " तभी उमेश की माँ कमरें में आती है और उमेश को डरते-डरते समझाने की कोशिश करती है, कि आज उर्वी की तबियत ठीक नहीं है, इसीलिए वह आराम कर रही है, मैंने ही उसे आराम करने को कहा है। बेचारी, पूरा दिन तो काम करती रहती है, आज उसे मत छेड़, आज उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है। माँ की बात को अनसुना कर उमेश अपनी माँ पे भी चिल्लाने लगता है, " हांँ, तुमने ही इसे बिगाड़ के रखा है ओर चढ़ाओ अपनी बहु को सिर पे, फ़िर रोते हुए मेरे पास मत आना, कि बहु कुछ काम नहीं करती है। " उमेश की बात सुनकर उसकी माँ की आँखें भर आती है। उर्वी से ये सब देखा नहीं गया और वह बिस्तर से खड़ी होकर उमेश से कहती है, कि " आप बैठिए मैं अभी आप के लिए पानी लाती हूँ। आप ऐसे मम्मी जी पे मत चिल्लाइए, जो भी कहना है मुझ से कहिए। " ये सुनते ही उर्वी को उमेश ने धक्का दे दिया, उर्वी ज़मीन पे गीर गई, उमेश ने गुस्से में उस से कहा, "नहीं पीना मुझे पानी और कुछ खाना भी नहीं है, मैं आज भूखा ही रहूँगा, यही तुम दोनों की सज़ा है। " कहते हुए उमेश वहां से चला जाता है। उर्वी और उसकी सासुमा दोनों एक दूसरे के गले लगकर रोती रहती है और एकदूसरे को दिलासा देती है, कि " सब ठीक हो जाएगा।"
मगर दोस्तों, क्या ऐसे लोग कभी कहीं ठीक होते है क्या ?
रात को उर्वी और उसकी माँ फीर भी उमेश का खाने पे इंतज़ार करती रही, दोनों ने खाना भी नहीं खाया, देर रात के ११ बजे उमेश शराब के नशे में धुत घर आकर टेबल पे खाना खाने बैठ जाता है। उर्वी बिना कुछ कहे खाना गरम कर के उमेश को देती है, सब्जी शायद ज़रा गरम थी, तो उमेश ने जैसे ही पहला निवाला अपने मुँह में डाला, उसे थोड़ा गरम लगा, उसके हाथ से निवाला थाली में जा गिरा और उसका मुँह भी जल गया। उमेश गुस्से से फ़िर से उर्वी की और देखते हुए कहता है, कि " बदला लेना चाहती है क्या मुझ से ? मुझे गरम खाना खिलाकर मार डालना चाहती है ? आज तुझे मैं अच्छे से मज़ा चखाता हूँ, " कहते हुए उर्वी का हाथ खींचते हुए सब के सामने उमेश उर्वी को खिंच के अपने कमरें में घसीटते हुए ले जाता है, उर्वी की माँ भी उसे रोकने की नाकाम कोशिश करती रही। उमेश ने कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से धक्का देकर अंदर से बंद कर दिया। उमेश ने कमरें में उर्वी को बिस्तर पे एक खिलौने की तरह फेंक दिया और गुस्से में अपने कपडे निकालने लगा। उर्वी हाथ जोड़कर उमेश से माफ़ी मांगती रही, कि " मेरी गलती हो गई, मुझे माफ़ कर दो, दूसरी बार ऐसी गलती कभी नहीं होगी, आज मेरा महावारी का दिन चल रहा है, आज की रात मुझे छोड़ दो, मुझे माफ़ कर दो। "
मगर उमेश शराब के नशे में उर्वी की कोई बात सुनता नहीं, आज तो अपने आप को बचाने के लिए उर्वी पूरे कमरे में अपने ही पति से बचने के लिए भाग रही थी, उमेश की माँ और पापा भी बाहर से दरवाज़ा लगातार पीट रहे थे और कह रहे थे, " उर्वी को छोड़ दो, उसकी कोई गलती नहीं, दरवाज़ा खोलो। " मगर उमेश ने किसी की नहीं सुनी, उमेश ने भागति हुई उर्वी की साड़ी खिंच के निकाल दी और फ़िर से उसे बिस्तर पे पटक दिया। उर्वी मिन्नतें करती रही और उमेश फ़िर से भूखे शेर की तरह उसे नोच के खा रहा था, उर्वी थक कर बिस्तर पे बेजान लाश की तरह पड़ी रही, पूरा बिस्तर भी आज तो खून से लाल हो गया था, अपना काम ख़तम कर उमेश ने भी थक कर उर्वी को बिस्तर की एक ओर धक्का दिया और मुँह पलटकर सो गया। उर्वी से आज तो उठा भी नहीं जाता था, उर्वी ऐसे ही बिस्तर पे लेटी रही, रात के २ बजे वह जैसे-तैसे कर के बिस्तर से खड़ी हुई और बाथरूम में जाकर पानी का नल खोल उसके नीचे कुछ देर तक बैठी रही, उसके अंदर की औरत भी आज तो मर चुकी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि वह क्या करे ? थोड़ी देर बाद बाहर आके उर्वी ने साड़ी पहनी, उमेश अब भी गहरी नींद में था, उसका बिस्तर अब भी लहू से लाल था, उर्वी में चलने की भी ताकत नहीं थी, फ़िर भी वह कमरें के बाहर आई, देखा तो, कमरें के बाहर दरवाज़े पे उसके सास-ससुर वही पे सो गए थे, उर्वी ने चुपके से दोनों के पैर छूकर उनको नमन किया और दबे पैर घर से बाहर चली गई, उसे कहाँ जाना था, पता नहीं था, बस बीच रास्ते दबे पैर धीरे-धीरे उर्वी चल रही थी, तभी पीछे से एक ट्रक हॉर्न बजाती हुई आती है, वह आवाज़ भी उसने सुनी नहीं और शराबी ट्रक ड्राइवर उर्वी को कुचलता हुआ, आगे निकल जाता है, आधी रात का वक़्त था, रास्ते पे कोई नहीं था, उर्वी कुछ ही देर में वहीं छटपटाती हुई, अपनी साँसे छोड़ देती है।
उस तरफ उमेश और उसके माँ-पापा उर्वी को सुबह से ढूंँढने में लगे हुए थे, मगर उसका कोई अतापता नहीं। इस बात को 6 महीने बीत चुके, मगर आज तक उनको पता नहीं, कि उस रात उर्वी कहाँ गई थी ? और वह आज कहाँ है ? क्योंकि उस रात ट्रक के नीचे आ जाने के बाद उर्वी का चेहरा किसी की पहचान में आने लायक नहीं रहा था।
तो दोस्तों, ऐसी भी हवस किस काम की और ऐसा नशा किस काम का जो अपनों की ही जान ले ले। मेरी नज़र से देखो, तो अत्याचार करने वाला जितना गलत होता है, अत्याचार सहने वाला भी उतना ही गलत होता है, रिश्तों में बराबरी की भागीदारी होती है। अत्याचार सहते हुए अपने आपको महान मत बनाइए। पलट कर उसका विरोध कीजिए तभी ऐसे औरतों को खिलौना समझने वालों को मुँह तोड़ जवाब मिलेगा। साथ ही माँ को भी अपने बेटे को औरत की इज़्ज़त करना सिखाना चाहिए। वैसे भी कई जगह पे पिता को माँ के साथ जैसे व्यवहार करते हुए देखते हैं, बेटे भी वैसे ही करते हैं । बात चाहे कोई भी हो, आख़िर घर से ही तो बच्चे सीखते हैं । उमेश को उसकी माँ ने पहले से ही काबू में रखा होता तो, आज यह दिन न उन्हें देखना पड़ता न उनकी बहू को ।
अब आप ही बताएँ दोस्तों, कि अब इस कहानी मैं अपराधी कौन ? लड़का, लड़की या उन दोनों के माँ-बाप ?
Bela...
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