SHAYARI

     दस्तक
 किसी ने दरवाज़े                   
पे दस्तक दी, 
दरवाजे पे खड़ी मैं, 
इंतज़ार तेरा, 
बालो में आ गई सफेदी,
चेहरे पे पड़ने लगी झुर्रियांँ,
आँखों पे आ गया चश्मा, 
भला कब तक सँभालूँगी,
में अपनी जवानी को, 
और भला कब तक,
 यूँही बरक़रार रहेगी,
 मेरी ये जवानी, 
अब तो ये सोचने लगी हूँ मैं, 
अब तो ये सोचने लगी हूँ मैं, 
की तेरा इंतज़ार 
करू भी या नहीं ?
 सूरज ढला,
 शाम हुई, 
आधी उम्र भी
बीत चुकी,
अब तो अकेले
 जिया नहीं जाता,
 हो सके तो 
कुछ इशारा कर
 मोरे सवारियांँ
अब भी तेरा
 इंतज़ार करु, 
या ढलती उम्र में
 किसी और का
 हाथ थाम लूँ ? 
 दरवाज़े पे खड़ी मैं, 
और इंतज़ार तेरा। 
                              Bela... 

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