BIN TERE ZINDGI

                            बिन  तेरे ज़िंदगी 

       नैना एकदम चुपचाप सी अपने कमरें में बैठी है, वह ना तो घर में किसी से कुछ बात करती है, नाहीं किसी से  कुछ सलाह मशवरा करती है। बस खिड़की की बाहर नज़र गड़ाए ऊपर आसमान की ओर देखे जा रही है। खुला आसमान, आसमान के पीछे बादलो में सूरज, सूरज की तेज़ किरणें सीधे उसके चेहरे पे आ रही थी, गर्मियों का मौसम था, इसलिए दोपहर के वक़्त उस धूप को देखना, मुश्किल बन रहा था, फ़िर भी वह अपनी नज़रें नहीं हटा रही थी, नैना पहले तो बिलकुल ऐसी ना थी। 

         तभी नैना की मम्मी उसे खाना खाने के लिए आवाज़ लगाती है, नैना भागी-भागी रसोई की ओर जाती है, भाभी को  काम में फटाफट हाथ बँटाने लगती है, घर में सभी को खाने के लिए बुला लेती है। नैना के मम्मी-पापा, भैया-भाभी, भैया का छोटा लड़का और नैना सब साथ बैठ के चुपचाप खाना खाते है। खाना खा के अपने-अपने काम में लग जाते है। जहाँ कभी नैना अपनी शरारत से पूरा घर सिर पे उठा लेती थी, सब उसे चुप रहने को कहते थे, वहीं नैना की आवाज़ सुनने को, उसकी बातें सुनने को सब तरस गए है। आज-कल गुमसुम सी हो गई है नैना।  

       हाँ दोस्तों, आप सोच रहे होंगे, कि आखिर नैना की ज़िंदगी में ऐसा क्या हुआ होगा, जो वह इतनी चुपचाप सी हो गई ? बस ये जानने के लिए मेरी कहानी अंत तक ज़रूर पढ़िए। 

      एक दिन शाम को नैना की कॉलेज की सहेली रीमा नैना से मिलने के लिए, उसके घर आई। तब शाम के ४ बजे होंगे। नैना अपने कमरे में अब भी खिड़की से बाहर आसमान की ओर एक नज़र गड़ाए देखे जा रही थी, सूरज की तेज़ धूप से उसके चेहरे पे पसीना आ रहा था, मगर उस बात का भी उसे होश न था। नैना की मम्मी ने रीमा से कहा, नैना ऊपर अपने कमरे में ही है, जा जाकर उससे मिल ले। रीमा नैना के कमरे तक जाती है, कमरे का दरवाज़ा खुला ही था, रीमा नैना को आवाज़ लगाती है, नैना ने उस आवाज़ को अनसुना किया। जैसे नैना ने किसी की आवाज़ सुनी ही नहीं। रीमा उसके करीब जाकर उसके कंधे पे हाथ ऱखकर फ़िर से उसे आवाज़ देती है। रीमा घबराई हुई सी देखती है, मगर अपने सामने उसी की सहेली रीमा को देखते ही जैसे उसकी जान में जान आती है। 

नैना : ओह्ह, रीमा तुम ! तुमने तो मुझे डरा ही दिया था। बड़े दिनों बाद मेरी याद आई तुझे ? आ बैठ। क्या पीएगी तू ? चाय या कॉफ़ी ? मैं अभी बना के लाती हूँ। 

        नैना रीमा से ये बात ऐसे कह गई, जैसे वह एकदम नॉर्मल हो, उसे कुछ हुआ ही नहीं। 

रीमा : मुझे कुछ नहीं चाहिए, नैना। मैं तो सिर्फ़ तुम से मिलने आई हूँ, तुम से बात करने आई हूँ, ना की चाय कॉफ़ी के लिए। तू थोड़ी देर बैठ मेरे पास। 

नैना : हाँ, चल बता कैसी है तू ? रीमा : तू मेरी छोड़, तू अपनी सुना, तू कैसी है ? देख़ तो ज़रा तेरा चेहरा कितना फीका-फीका सा लग रहा है और तू इतनी गर्मी में सूरज की तेज़ धूप का मज़ा ले रही थी क्या ? ऐसा कौन करता है भला ?  ( नैपकिन से नैना के चेहरे से पसीना पोंछते हुए ) अपना ख़्याल रखा कर। क्या हुआ है तुझे ? 

नैना : कुछ भी तो नहीं, बस यूँही। 

       कहते हुए नैना की नज़र कमरे में रखी घड़ी की ओर पड़ती है। घडी में साढ़े चार बज गए थे। नैना फटाक से बेड से उठी और 

नैना : अरे, बाप रे, बातों बातों में कितने बज गए, देखो तो ज़रा। नीचे भाभी रसोई में मेरा इंतज़ार कर रही होगी, मुझे रसोई में नहीं देखा, तो फ़िर से बड़बड़ाने लगेगी, तू बैठ मैं काम निपटा के अभी आई। 

       कहते हुए तूफ़ान की तरह नैना नीचे रसोई में चली गई, रीमा ने उसे रोकने की कोशिश की मगर वह शायद उसके पूछे जानेवाले सवालों से भी भाग रही थी। रीमा ये देख़ एक पल के लिए सोच में पड़ गई, नैना ऐसा क्यों कर रही है, पहले तो वह काम न करने का बहाना जैसे ढूँढती रहती थी और अब... 

        मगर रीमा आज उस से बात किए बिना नहीं जाने वाली थी, वह कमरे में उसके इंतज़ार में वहीं बैठी रही। थोड़ी देर बाद नैना की मम्मी रीमा के पास चाय और नास्ता लेकर आई। 

मम्मी : लो बेटी, नैना को आने में थोड़ी देर लग जाएगी, तुम बैठ के उतनी देर में चाय-नास्ता कर लो। 

      कहते हुए नैना की मम्मी की आँखें भर आई। रीमा समझदार लड़की थी, वह समझ गई, कुछ तो गड़बड़ है। रीमा ने मम्मीजी से पूछा 

रीमा : क्या हुआ मम्मीजी सब ठीक तो है ना ? आप रो क्यों रहे हो ? और ये नैना को क्या हुआ है ? ऐसी बुझी -बुझी  सी क्यों है ? क्या आप मुझे नहीं बताएगी ? मैं भी तो आपकी बेटी जैसी ही तो हूँ ना ? 

     रीमा की बात सुनते ही नैना की मम्मी और रोने लगी, 

रीमा : आप क्यों रो रही हो ? प्लीज चुप हो जाइए। क्या बात है, प्लीज आप मुझे बताइएगा ? शायद मैं कुछ आप की हेल्प कर सकूँ ? 

मम्मी : अब मैं तुझे क्या बताऊँ बेटी ? क्या -क्या नहीं हुआ मेरी लाड़ो के साथ ? तुम जानती ही हो, नैना की शादी हमने कितने अच्छे परिवार में की थी, लड़का भी बहुत अच्छा था, नैना और हमारे जमाई राजीवकुमार दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार भी करने लगे थे।  नैना भी बहुत खुश थी। हमने दहेज़ में भी बहुत कुछ दिया था नैना को, इसलिए शायद लड़के के घर वाले भी बहुत खुश थे। इसलिए शायद नैना को अच्छी तरह से रखते थे। मगर शादी के ६ महीने बाद ही राजीवकुमार का कार एक्सीडेंट हुआ और वह इस दुनिया से चल बसे। उसी दिन से शायद नैना भी मर गई। जब से राजीवकुमार गए है, तब से ख़ामोश सी हो गई है, मेरी फूल सी बच्ची, ज़िंदगी जीना ही भूल गई है जैसे, दिन भर इस खिड़की के सामने  राजीव कुमार का इंतज़ार करती रहती है, कहती है, 

       " राजीव एक ना एक दिन उसके लिए वापस ज़रूर आएँगे ! " राजीव भी नैना से बहुत प्यार करता था। अब तुम ही बताओ बेटी, जानेवाले कभी लौट के दुनिया में वापस आते है क्या ? मगर कौन समझाए इस पगली को ?  राजीवकुमार के जाने के बाद यह  ससुराल में भी गुमसुम रहने लगी, अकेले-अकेले कमरे में राजीव की तस्वीर के सामने बैठी रहती, ना खाने-पीने का होश और नाहीं कुछ काम का। एकदम खामोश हो गई है। इसलिए उसके ससुराल वालों ने कहा, कुछ दिन अपने मायके जाकर आओ, तुम्हें थोड़ा अच्छा लगेगा।  बाद में तुझे बुला लेंगे। मगर सच बात तो ये है, कि नैना की ससुराल वाले राजीवकुमार के मौत की ज़िम्मेदार नैना को ठहरा रहे है, जैसे उसके साथ शादी के बाद ही ये हादसा हो गया। अब तू ही बता, इस में नैना की क्या गलती ? हमने तो सब कुछ देख-जान कर शादी करवाई थी। अब हमारी नैना पे ऐसा इल्ज़ाम लगाएँगे, तो कैसे चलेगा ? और यहाँ आके वह तब से वैसी ही है, ससुराल से लौटे उसे ४ महीने हो गए, नैना के यहाँ आने के बाद उसके ससुराल से नाही कोई फ़ोन    आया और नाहि किसी के बर्ताव में कोई बदलाव और नाही उन्होंने दहेज़ का सामान और गहने वापस किए। उनको तो ज़रा सी भी फिक्र नहीं, मेरी नैना की, कि अब नैना यहाँ कैसी है ? क्या कर रही है ? किस हाल में है ? ऊपर से मेरी बहु सुधा वो ज़रा तीखे सवभाव की है, नैना शादी कर के वापिस घर लौट आई, ये इसके गले नहीं पड़ता, इसलिए बार-बार किसी ना किसी बहाने नैना को ताना  मारती रहती है। इसलिए मैंने नैना को समझाया, अपनी भाभी को काम में हाथ बँटाया करो, इसी बहाने  तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। तो अब सुधा धीरे-धीरे कर  के घर का सारा काम नैना  से  करवाती है। अब तू ही बता, ये सब कुछ देख के एक माँ का दिल रोएगा नहीं तो और क्या करेगा ? 

       कहते हुए नैना की माँ फ़िर से रोने लगी। रीमा सारी बात समझ गई, रीमा ने नैना की मम्मी को दिलासा दिया। तभी नैना अपना काम ख़तम कर के कमरे में वापस आती है, 

रीमा : चल नैना, आज हम दोनों कहीं बाहर जाते है। बाहर ही खाना भी खाएँगे।  तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। 

       पहले तो नैना ने रीमा के साथ बाहर जाने से भी मना कर दिया। कहते हुए की आज उसका मन नहीं है, और वह बहुत थक भी गई है, फ़िर कभी चलेंगे।  लेकिन रीमा ने बहुत ज़िद्द की। तब वह रीमा के साथ जाने के लिए मान गई। नैना की मम्मी ने भी कहा, 

मम्मी : अगर रीमा इतना कह रही है, तो उसके साथ जाकर आओ।  सुधा को मैं समझा दूंँगी, बाकी का काम मैं देख लूँगी। 

     नैना ने हलके गुलाबी रंग की ड्रेस पहनी और उस पे हलके रंग का दुपट्टा। आज भी वह इतनी ही सुंदर लग रही थी, जैसे पहले दिखती थी, बस सिर्फ़ उसकी मुस्कान कहीं खो गई थी, इसलिए बुजी-बुजी सी लग रही थी।  सब से पहले रीमा उसे गार्डन में लेके गई, जहाँ वह दोनों पहले जाते थे।  वहां पर रीमा ने नैना को समझाने की कोशिश की। 

रीमा : देखो नैना, तुम ऐसे बुझी-बुझी सी रहोगी, तो कैसे चलेगा ? खुश रहा करो।  जैसे तुम पहले रहती थी।  तुम्हें पढ़ने का शौक़ था, तो अपनी पढाई जो शादी की बजह से अधूरी रह गई थी, उसे पूरा करो, तुम्हें नॉवेल पढ़ना अच्छा लगता है, मैं तुम्हारे लिए वह लेकर आउंगी। तुम नॉवेल पढ़ना और हाँ, मैं जिस नर्सरी स्कूल में हूँ, वैसे भी वहाँ एक और टीचर की ज़रूरत है, तुम  कल से मेरे साथ आ रही हो, तुम्हें वहाँ बच्चों के साथ बहुत अच्छा लगेगा, शाम को अपनी पढ़ाई करना। अब तो डिग्री के लिए ऑनलाइन exam लेते है, तो तुम्हें  कॉलेज जाने की ज़रूरत नहीं। तुम्हें आसानी से जॉब मिल जाएगी, तब तुम्हारा वक़्त कैसे कट जाएगा, तुम्हें पता भी  नहीं चलेगा। तुम अपना सारा गम भूल जाओगी।

       एक तरफ़ रीमा नैना को समझा रही थी और दूसरी तरफ़ रीमा की बातें सुनते-सुनते नैना रीमा के गले लग कर फूट-फूट कर रोने लगी। 

रीमा : रोले नैना रोले, अपने नैनो से तुझे जितने आँसू बहाने है, बहा ले। क्योंकि तुम्हारे रोने के दिन अब गए। क्या आज अगर राजीव  होता तो क्या वो तुम्हें ऐसे रोने देता ? नहीं ना ? तो समझ ले राजीव तेरे साथ ही है और वह तुम्हें यूँ रोते हुए नहीं मगर हँसते हुए देखना चाहता है। कब तक तू युही घुट-घुट के जीती रहेगी ? अब बस बहुत हुआ। 

नैना : मगर मैं क्या करू रीमा ? मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता। राजीव और मेरा साथ भले ही चाहे सिर्फ़ ६ महीने का था मगर इन ६ महीनों में जैसे मैंने उसके साथ पूरी ज़िंदगी जी ली हो। उसके साथ बिताया एक-एक पल जैसे मैं रोज़ महसूस कर रही हूँ। मुझे हर पल ऐसा लगता है, कि जैसे राजीव मेरे आस-पास ही है, लेकिन जब मैं मूड के  देखती हूँ, या उसे छूने की कोशिश करती हूँ, वह वहाँ से गायब हो जाता है। उसके बदन की खुशबु आज भी जैसे मैं महसूस करती हूँ। उसकी बातें आज भी मुझे सुनाई देती है, मेरे रोम-रोम से बस राजीव के नाम  की पुकार सुनाई देती है और राजीव  को अपने पास ना  पाकर मैं पागलों सी हो जाती हूँ। अब तुम ही बताओ रीमा, अब ये सब बातें मैं किसे कहुँ ? और ऐसे में मैं उसे कैसे भूल जाऊँ ? 

रीमा : अरे पगली ! तुझे कौन कह रहा है राजीव को भूल जाने को ? उसकी यादें ही तेरी ज़िंदगी है और उसकी यादें ही तुम्हारी ताकत होनी चाहिए। राजीव तुम्हारी कमज़ोरी नहीं बल्कि तुम्हारी ताकत है। ये तुम हमेशां याद रखना।  समझी पगली ? अब हँस दे ज़रा। 

नैना : मेरे लिए अब तुम जो कह रही हो, वह बहुत ही  मुश्किल है। मगर अब मैं राजीव के लिए कोशिश ज़रूर करुँगी। मुझे खुश देख कर शायद उसे भी ख़ुशी मिले। 

रीमा : कल सुबह १० बजे तुम तैयार रहना, मैं तुम्हें लेने आ जाऊँगी। हम साथ में ही नर्सरी स्कूल जाएँगे। 

       उसके बाद दोनों एक अच्छे से होटल में खाना कहते है, फ़िर रीमा नैना को उसके घर छोड़ती है, रीमा अपने घर जाकर नैना की मम्मी से बात करती है, जो उसने नैना से की थी।  नैना की मम्मी ने तुरंत ही हाँ कह दी और कहा कि,  बड़ी अच्छी बात है, नैना थोड़ा बाहर जाएगी, तो उसे भी अच्छा लगेगा।  यूँ कब तक घर में घूम-सुम बैठी रहेगी ? बेटी, आज तुमने बड़ा अच्छा काम किया, जो हम इतने दिन से नहीं कर पाए, वह तुम ने एक दिन में ही कर दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा तेरा धन्यवाद कैसे करू ?

रीमा : उसमें धन्यवाद की क्या बात है आंटी जी ? जैसी आपके लिए नैना वैसी ही मैं। तो फ़िर मैं अपनी बहन जैसी सहेली को कैसे दुखी होते हुए देखूँ ? अब आप उसकी बिलकुल फ़िक्र मत कीजिएगा। देखना आप, कुछ ही दिनों में नैना पहले की तरह हंसती-मुस्कुराती आपको नज़र आएगी। अपनी ज़िंदगी वह भी खुल के जिएगी और आसमान में पंछी की तरह उडने लगेगी। अच्छा, तो अब मैं फ़ोन रखती हूँ, कल सुबह नैना को लेने आ जाऊँगी। 

मम्मी : ठीक है, बेटा। सुखी रहना। 

      नैना की मम्मी के दिल को आज बड़े दिनों बाद तसल्ली मिली, की अच्छा चलो अब नैना फ़िर से बाहर जाएगी, लोगों से मिलेगी, तो उसे अच्छा भी लगेगा। 

        दूसरे दिन सुबह रीमा नैना को लेने आ जाती है, मगर ये क्या आज फ़िर से सब कुछ भूल के नैना बस खिड़की से बाहर आसमान की और देखे जा रही है। रीमा का ये देख दिल टूट गया, कि उसने कल नैना को कितना समझाया, मगर ये देखो आज इस में कोई फर्क नहीं। फ़िर भी रीमा कोशिश करती रही। रीमा ने नैना को आवाज़ लगाई। 

रीमा : नैना, चलो नैना, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई हो ? आज तुझे मेरे साथ आना ही होगा, मुझे कोई बहाना नहीं सुनना है। कहते हुए रीमा ने नैना की अलमारी से एक अच्छी सी ड्रेस निकाली और उसके सामने रख दी।  चलो अब ये जल्दी से पहन लो। 

नैना : मगर रीमा, मेरी बात तो सुनो, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा, भाभी को मुझ से कुछ काम है। 

रीमा : मुझे अगर-मगर कुछ नहीं सुनना है, मेरी आंटी जी से बात हो गई है, वह सारा काम सँभाल लेगी। तुम फटाफट से ये ड्रेस पहन के नीचे आ जाओ, मैं तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ। रीमा भी बड़ी ज़िद्दी थी, रीमा एक बार जो थान लेती है, वह थान ही लेती है। वह ये कहते हुए नीचे चली गई। नैना समझ गई, कि रीमा अब नहीं मानेगी, मुझे उसके साथ जाना ही होगा। ये सोचकर नैना तैयार होकर कुछ ही देर में नीचे आ गई। उसने अपने पापा से जाने की इजाज़त ली, पापा ने k-ख़ुशी उसे जाने दिया और कहाँ, जा बेटी, जी ले अपनी ज़िंदगी और खुश रहा करो, हमें और कुछ नहीं चाहिए, कहते हुए नैना के पापा की आँखों में भी ख़ुशी के आँसू आ गए। रिमाने पहले तो नैना का ऑनलाइन कॉलेज का एडमिशन करवा दिया। रस्ते में से उसने नैना को बुक्स भी दिला दी। फ़िर रीमा नैना को अपने साथ नर्सरी स्कूल लेके जाती है। स्कूल बहुत बड़ा था, रीमा उस स्कूल की प्रिंसिपल थी, ये बात नैना को वहां जाकर पता चली। पहले तो रीमाने  खुद नैना को उसका पूरा स्कूल दिखाया। स्कूल में बहुत सारे छोटे-छोटे बच्चे थे। स्कूल के आगे छोटा सा गार्डन बना हुआ था, जहाँ बच्चों के लिए जुला रखा हुआ था, स्कूल के अंदर भी बच्चों की पसंद के कार्टून्स के चित्र दीवाल पे बनाए  हुए थे, हर क्लास में बहुत सारे खिलौने और गेम्स भी थे, बहुत सारे टीचर और कामवाली बाई भी थी, जो सब बच्चों का अच्छे से ध्यान रखते थे। रीमा ने एक क्लास में नैना को बिठाया और कहाँ आज से ये तुम्हरी क्लास और तुम्हारे बच्चे है, अब इन बच्चों के साथ तुम खेलो, इनको कहानियांँ सुनाओ, इनके साथ लुका-छुपी खेलो, इनको पढ़ाओ, तुम्हें जो भी मन करे करो और साथ में इन सब का ख्याल भी रखना है, वैसे डरो मत, तुम्हारे साथ पहले-पहले एक और टीचर और बाई साथ में होगी, जो तुम्हें क्या करना है, सब समझा देगी। मुझे थोड़ा काम है, तो मैं अपने केबिन में हूँ, अगर कुछ चाहिए या कुछ काम हो तो मुझे फ़ोन करना और केबिन में आ जाना। ठीक है ? 

नैना : अच्छा, ठीक है।  

     कहते हुए रीमा अपने केबिन में चली जाती है।  नैना सब बच्चों की ओर देखती है, कुछ बच्चे रो रहे है, कुछ घूम-शूम बैठे है, कुछ खेल रहे है, तो कुछ कमरे से बाहर जाने की कोशिश में लगे हुए है, बाई उसे बाहर जाने से रोक रही है और समझा कर फ़िर से अंदर बैठा देती है। नैना के साथवाली टीचर ने नैना को सब समझा दिया, कि क्या करना है। नैना भी बच्चों के साथ बच्ची बन गई। बच्चों के साथ खेलने लगी। रीमा को बाहर से देखकर ऐसा लगा, कि कुछ देर के लिए ही सही, नैना अपना ग़म भूल तो गई। 

       बस ऐसे ही नैना कुछ ही दिनों में बच्चों से घुल-मिल गई, अब उसे ज़िंदगी अच्छी लगने लगी। नैना अब खुश रहने लगी। नैना सुबह जल्दी उठकर पहले पढाई कर लेती, फ़िर भाभी को रसोई में हेल्प कर देती, फ़िर उसका नर्सरी स्कूल जाने का वक़्त होता तब नैना अपना टिफ़िन लेकर स्कूल चली जाती। घर आकर फ़िर से भाभी को काम में हाथ बँटाती, फ़िर आराम से बैठकर उनसे और मम्मी से बातें करती, फ़िर राजीव की फोटो के साथ दिन भर बातें किया करती। दिनभर उसने क्या किया और क्या नहीं उसके बारे में बातें करती। रात को फ़िर से पढाई कर के सो जाती। ऐसे ही दिन बिटने लगे, नैना की एग्जाम भी ख़तम हो गई, कुछ ही दिनों के बाद रीमा की मदद से नैना को एक बैंक में जॉब मिल गई, अब नैना स्कूल नहीं जाती, मगर कभी-कभी वक़्त मिले तो रीमा और स्कूल के बच्चों के साथ वक़्त बिताने स्कूल चली जाती। उसे उन बच्चों से लगाव हो गया था। नैना के मम्मी-पापा भी नैना को खुश देखकर खुश थे, नैना अपनी कमाई के पैसे भाभी को दिया करती या कभी-कभी अपने भैया-भाभी के लिए अपनी कमाई के पैसो से गिफ्ट्स भी लाकर दे देती, तो अब उसकी भाभी भी उस से चिढ़ती नहीं। नैना से अब वह भी अच्छा व्य्वहार करती है, जैसे उसकी दोस्त बन गई हो, नैना ने घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए बाई भी रख दी, तो भाभी और मम्मी दोनों को घर में काम से थोड़ा आराम मिल जाता। जैसे अब नैना सच में आसमान में उड़ने लगी थी। राजीव को नैना अब भी उतना ही याद  करती तो थी, मगर रोते हुए नहीं मगर हँसते हुए। कभी-कभी नैना राजीव की तस्वीर से ही बातें कर लेती, जैसे की वह तस्वीर में से सब सुन रहा होता है। रीमा के जन्मदिन पे नैना ने उसको गिफ्ट्स दिए और उसका बहुत धन्यवाद किया, उसे इस स्कूल में लाने के लिए और जॉब दिलाने के लिए अपनी बेरंग सी ज़िंदगी में फ़िर से रंग भरने के लिए। 

      तो दोस्तों, मैं अपनी इस कहानी से यही कहना चाहती हूँ, कि किसी के चले जाने से ज़िंदगी रूकती नहीं, उसकी यादों के सहारे हमें ज़िंदगी तो जीनी ही पड़ती है। दर्द के आँसू पीकर दूसरों के लिए, अपने अपनों के लिए ज़िंदगी, तो जीनी ही है, तो इसे हँसत-हँसाते क्यों ना जिए ? 

                  

                                                              Bela... 

                   https://www.instagram.com/bela.puniwala/


                        https://www.facebook.com/bela.puniwala

     


Comments