इम्तिहान भाग - १७
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रितेश को कविता नाम की लड़की से कॉलेज में प्यार हुआ, फ़िर अपने दोस्त राकेश की मदद से रितेश और कविता ने शादी कर ली, मगर कविता ने सिर्फ़ पैसो की ख़ातिर रितेश से शादी की थी, रितेश को अपने दोस्त और पत्नी की बेवफाई के बारे में कुछ ही दिनों में ही पता चल गया था, राकेश ने रितेश को रस्सी से बांध दिया और रितेश के पापा को फ़ोन कर के पैसे मंँगवाए और कहा, कि उनको अगर पैसे वक़्त पर नहीं मिले तो वह रितेश को जान से मार देंगे, थोड़ी देर के बाद ही अचानक घर में आग लग जाती हैं, उस आग में कविता, राकेश और रितेश के पापा जल कर मर जाते हैं, मगर रितेश बच जाता हैं। अब आगे...
आंटी जी रिया को आगे कहती हैं।
आंटी ने रिया से कहा, " उसी वक़्त रितेश का एक दूसरा दोस्त हेमंत, रितेश के घर जा पहुँचा था, उसे रितेश ने कुछ सामान देने के लिए बुलाया था, मगर वह वक़्त से पहले ही वहांँ पहुँच गया था, हेमंत ने कांँच की खिड़की में से सब देखा, कि रितेश के साथ क्या हुआ ? हेमंत ने अपनी जान की परवाह किए बगैर काँच की खिड़की को किसी चीज़ से तोड़ दिया और रितेश को उस आग से बाहर ले आया, मगर जब तक हेमंत रितेश को लेकर बाहर आता, तब तक रितेश बेहोश हो चूका था, हेमंत रितेश को अस्पताल लेकर गया, उसके बाद हेमंत फ़िर से रितेश के घर गया, रितेश के पापा को बचाने, मगर तब तक वह नहीं रहे थे, इस घटना से रितेश को बहुत बड़ा सदमा लगा था, रितेश को जब होश आया, तब वह अपने आपे में नहीं रहा, उसकी आँखों के सामने वह रात्रि ही दिखाई देने लगी, जिसे उसने महसूस किया था, रितेश वह आग रोज़ महसूस करने लगा, अपने पापा को रितेश ने अपनी आँखों से जलते और मरते हुए देखा, दो दिन बाद हेमंत रितेश को यहाँ मेरे पास लेकर चला आया। मगर उस वक़्त रितेश मुझे कुछ भी बता सके, उस हालत में नहीं था, उसके साथ विलायत में क्या हुआ, ये मुझे रितेश के दोस्त हेमंत ने कहा और आज तक रितेश अपने प्यार, अपने दोस्त या अपने पापा के साथ क्या हुआ था, वह सब रितेश ने पनी आंखों से देखा, मगर वह अपने मुँह से आज तक कभी भी मुझे यह सब बता नहीं सका, उस हादसे के बाद नाही कभी रितेश खुल के रोता हैं और नाही कभी खुल के हसता हैं।
उस हादसे के कुछ दिन बाद रितेश को पता चला, कि वह हमारा बेटा हैं ही नहीं, वह तो अनाथ हैं, फिर भी उसके पापा ने उसके नाम अपनी पूरी जायदाद कर दी थी, उसके पापा को शायद अंदाजा लग गया था, कि वह शायद अब वहाँ से वापस नहीं आ पाएँगे। रितेश के पापा ने विलायत जाने से पहले रितेश के नाम एक चिठ्ठी लिखी थी, जिस में उन्होंने लिखा था, कि " मेरे ना रहने पर उसे ही अपनी माँ का ख्याल रखना हैं, यह घर और बिज़नेस मेरा सपना हैं और मेरे ना रहने पर तुम्हें ही यह सब संँभालना हैं। दुनिया के लिए तुम भले ही मेरे बेटे ना हो मगर मैंने और तुम्हारी माँ ने कभी तुम्हें पराया या अनाथ नहीं समझा। मैं जानता हूँ, तुम मेरा सपना ज़रूर पूरा करोगे, मैं तुम से बहुत-बहुत प्यार करता हूँ और करता रहूंँगा, और मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा, चाहे मैं इस दुनिया में रहूँ या ना रहूंँ। " बस वह चिठ्ठी को रितेश हर पल अपने गले से लगाए रखता हैं और दिन में कई बार आज भी पढता होगा। अब रितेश को शायद यही लग रहा हैं, कि उसके पापा के मौत का ज़िम्मेदार वह खुद ही हैं, नाही वह राकेश से दोस्ती करता, नाही कविता से प्रेम करता और नाही कविता और राकेश उसे धोखा देते, नाही उसके पापा पैसे लेकर विलायत उसे बचाने आते और नाही उनके पापा की इस तरह मौत होती।
मैंने उसे बहुत समझाया की होनी को कौन ताल सकता हैं। मगर उस दिन से वह अपने आप से नफरत करता हैं, हर लड़की से नफरत करता हैं, वह बस अकेला रहना चाहता हैं, मगर वो रात वह कभी नहीं भुला सकता। वह प्यार, वह दोस्ती को शायद आज भी उसने अपने अंदर ज़िंदा रखा हैं, क्योंकि रितेश को शायद लगता हैं, कि शायद यही उसकी सज़ा हैं, पता नहीं, भगवान् ने उसकी किस्मत में अब आगे क्या-क्या लिखा हैं ? इंसान को उसकी ज़िंदगी में जिस तीन हमदर्द की ज़रूरत हो, अगर वही उस से छूट जाए, तब उसके लिए जीना कितना मुश्किल हो जाता हैं, यह मेरे सिवा और कौन जान सकता हैं ? जिसे हम ने अपना हमदर्द समझा हो, वही अगर हमें ज़िंदगी में धोखा दे या हमें बीच मझधार ज़िंदगी जीने के लिए अकेला छोड़ दे, तब ज़िंदगी-ज़िंदगी नहीं, बल्कि बोझ लगने लगती हैं, कभी कभी मेरी और रितेश की ज़िंदगी जैसे एक इम्तिहान जैसी लगती हैं, कभी तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आता, इस लड़के के लिए मैं क्या करू और क्या नहीं ? मैंने भी अपने आपको रितेश की वजह से ही संभाल कर रखा हैं, अगर मैं ही हिम्मत तोड़ दूंगी, तो मेरे बेटे का क्या होगा, उसके चेहरे पर खुशी देखने के लिए ही तो यह मां आज भी जिंदा हैं और जिंदगी का हर इम्तिहान देने को भी तैयार हैं, बस वह ठीक हो जाए, मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए। "
रिया आंटी जी की बातें सुनती ही रह गई, एक इंसान की ज़िंदगी में इतना दर्द ! सच में अब वह जिए भी तो कैसे ? किस के लिए ? और क्यों ? रितेश की ज़िंदगी की कहानी सुनते-सुनते रिया की आँखें भी भर आति हैं, रिया भी आज रितेश की तरह आंटी जी की गोद में सिर रख कर बैठ गई, कुछ पल दोनों के बीच ख़ामोशी छाई रही, रिया के पास आज आंटी जी को दिलासा देने के लिए कोई शब्द नहीं रहे, रिया खुद कुछ पल के लिए सेहम गई।
कुछ देर बाद रिया ने कहा, " आंटी जी, क्या आज मैं आप के पास सो जाऊ ?"
आंटी ने कहा, " अरे पगली, यह भी कुछ पूछने वाली बात हैं ? यहीं मेरे पास ही सो जा, मुझे भी अच्छा लगेगा। "
रिया मन ही मन आँख बंद कर सोचती रही, एक ही इंसान के साथ एक साथ इतने सारे हादसे ! शायद मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ होता, तो मैं क्या करती ? मैं तो मर ही जाती। हां, मगर ममा के लिए, उनकी ख़ुशी के लिए, पापा की आख़री ख़्वाइश के लिए तो जीना ही पड़ेगा। मैंने सोचा था, कि रितेश की प्रॉब्लम जान कर मैं उसे चुटकी में सॉल्व कर दूँगी। मगर रितेश की कहानी सुनने के बाद मैं रितेश और आंटी जी को क्या दिलासा दूँ ? और कैसे ? मेरी खुद की समझ में नहीं आता। ऐसा लगता है, जैसे आंटी जी रितेश के लिए और रितेश अपनी ममा के लिए ही ज़िंदा हैं, सच में आंटी जी बहुत ही हिम्मतवाली हैं, जो उन्होंने रितेश को सँभाले रखा हैं, वरना रितेश तो कब का... सोचते-सोचते रिया की आँख लग जाती हैं, सुबह होते ही रितेश जिस अस्पताल में था, उस अस्पताल से फ़ोन आता हैं, सामने से
डॉ.नेहा ने कहा, " हेल्लो, रिया जी, कैसे हो आप ? "
रिया ने कहा, " जी मैं तो ठीक हूँ, लेकिन आप ने इतनी सुबह-सुबह फ़ोन किया ? रितेश ठीक तो हैं ना ?"
डॉ.नेहा ने कहा, " जी डरने की कोई बात नहीं हैं, अब रितेश बिलकुल ठीक हो रहा हैं, अब उसके नशे की आदत भी छूट गई हैं, वह वक़्त पर खाना खता हैं और सो भी जाता हैं। लेकिन रितेश अपनी ममा को बहुत याद कर रहा हैं। वह नींद में बार-बार अपनी ममा का नाम लिए जा रहा था, मेरे ख़याल से अब उसे अपनी ममा से एक बार मिला देना चाहिए। "
रिया ने कहा, " हाँ, ज़रूर, क्यों नहीं ? ये तो बहुत ख़ुशी की बात हैं, मैं आंटी जी से बात करती हूँ और शाम तक हम रितेश से मिलने आ जाएँगे।"
डॉ.नेहा ने कहा ," जी, जरूर। "
कहते हुए डॉ.नेहा फ़ोन रख देती हैं, रितेश के ठीक होने की खबर सुनते ही रिया की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, क्योंकि कल रात को रितेश की कहानी आंटी जी से सुनने के बाद उसे लगा था, कि रितेश अपने इस दर्द से कभी बाहर निकल पाएगा भी या नहीं ? वह कभी ठीक हो पाएगा भी या नहीं ? मगर डॉ. नेहा के कहे मुताबिक अब रितेश बहुत जल्द ठीक भी हो जाएगा और अपने घर भी आ जाएगा और फ़िर से अपना ऑफिस भी सँभाल लेगा। अब आगे...
रिया रितेश की ममा को लेकर रितेश से मिलने अस्पताल जाती हैं, रितेश अपनी ममा को देख कर आज पहली बार खुल के रोया, बहुत रोया, अपनी ममा से अपनी हर गलती के लिए उसने माफ़ी माँगी, आंटी जी की आँखो में भी आँसू आ गए, रितेश ने अपनी ममा से अच्छा वाला बेटा बनने का और शराब और नशा छोड़ देने का वादा किया, डॉ. नेहा से इजाज़त लेकर रिया रितेश को घर लेकर चलती हैं, रितेश के लिए आज जैसे दूसरा जन्म था, अब वह बिलकुल बदल गया था, रितेश ने आज पहली बार रिया से थैंक यू कहा। उसकी माँ का ख्याल रखने के लिए, उसका बिज़नेस सँभालने के लिए और उसे एक नई ज़िंदगी देने के लिए, रितेश ने रिया का बहुत-बहुत शुक्रियादा किया। आज की रात रिया, रितेश और रितेश की ममा सब ने मिल के खाना खाया, बहुत सी बातें की और रात को बिना शोर-शराबे के रितेश पूरी रात अच्छे से सोया।
तो दोस्तों, क्या सच में रितेश इतने दिनों में बिलकुल ठीक हो गया होगा ? या वापस जल्दी से घर जाने की उसकी यह कोई चाल होगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी।
अब आगे क्रमशः।
Thanku aage ki story ka link de dejiye
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