इम्तिहान भाग - १६
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रिया ने उसके बगल वाले कमरें में, जहाँ रितेश अक्सर जाया करता था, उस कमरें में रिया ने एक लड़की की कुछ पेंटिंग्स देखि, मगर उसकी समझ में कुछ नहीं आया, क्योंकि पेंटिंग्स को बनाके उस पर फिर से रंग दाल के बिगाड़ दिया गया था, ऑफिस में रितेश का सिर आज फ़िर से दर्द करने लगा था, तब रितेश अपनी नशे की पड़िकी ढूँढने लगा, तब रिया ने कहा, उसकी ममा के कहने पर उसने नशे की सारी पड़िकी बाहर फेंक दी, रितेश गुस्से में घर जाता हैं, अपनी ममा से बात करते-करते वह वही गिर जाता है और बेहोश हो जाता हैं, रितेश की आँखें खुल ने पर वह खुद को एक बंद कमरे में पाता हैं, रितेश वहांँ से बाहर निकलने की बहुत कोशिश करता हैं, मगर नाक़ाम रहता हैं, अब आगे...
उस तरफ़ रिया रितेश की ऑफिस सँभालने लगी, एक दिन बातों-बातों में रिया ने रितेश का सच जानने के लिए आंटी जी से पूछ ही लिया, " आंटी जी, ऐसा क्या हुआ था रितेश के साथ, जो वह इतना उलझा हुआ रहता हैं ? उसके अस्पताल के डॉक्टर से कल मेरी बात हुई, तब डॉक्टर ने कहा, कि " रितेश की हालत में इतना सुधार नहीं हैं, जैसे वह अब भी किसी दर्द से या अपने आप से लड़ रहा हो, रितेश कैसे इतनी शराब पिने लगा और नशा भी करने लगा ? कुछ तो बात हैं, मगर क्या ? क्या आप मुझे बताएगी ? ताकि मैं रितेश और आप की कुछ मदद कर सकूँ। "
रिया की बात सुनकर आंटी जी फ़िर से रोने लगी और कुछ देर बाद कहने लगी, " एक रात ने रितेश की पूरी ज़िंदगी ही बदल दी, उस हादसे के बाद रितेश को अपने आप पर से ही भरोसा उठ गया, वह ना तो अपने आप से प्यार कर पाता हैं और नाही किसी और से कर पाता हैं, बस अंदर ही अंदर घुटता ही जाता हैं। अपने आंसू पोंछे हुए रितेश की ममा ने आगे बताते हुए कहा, कि " जब वो विलायत में पढता था, तब उसे एक कविता नाम की लड़की से प्यार हो गया था और उन्हीं दिनों रितेश की दोस्ती किसी राकेश नाम के लड़के से हुई थी, वह तीनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे, तीनों साथ में खाना खाते, घूमने जाते, नाच-गाना पार्टी सब कुछ साथ में, कॉलेज के दो साल तो बहुत अच्छे से बीते, रितेश ने कविता से अपने प्यार का इज़हार किया, कविता भी रितेश से बहुत प्यार करती थी, एक दिन दोनों ने शादी के बारे में सोचा, क्योंकि कविता ने रितेश से कहा, कि "उसके घरवाले उसकी शादी कहीं और कर देंगे, उस से पहले हम शादी कर लेते हैं, मैं तुम से बहुत-बहुत प्यार करती हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मेरे पापा बहुत ही सख़्त मिजाज़ के हैं, वह हमारी शादी के लिए कभी राज़ी नहीं होंगे।"
राकेश ने भी ऐसा ही कहा, कि " अगर तुम दोनों एक दूसरे से इतना ही प्यार करते हो, तो शादी करने में कोई हर्ज़ नहीं, तुम दोनों को तुम्हारी ज़िंदगी का फैसला करने का अधिकार हैं, शादी के बाद सब के घर वाले शादी को मान ही जाते हैं, तुम्हारे माँ-पापा को मनाने की ज़िम्मेदारी मेरी रही, तुम दोनों की शादी भी मैं ही करवाऊंँगा। "
राकेश की मदद से रजिस्टर ऑफिस जाकर रितेश और कविता ने एक दूसरे से शादी कर ली, जान-पहचान के लिए राकेश ने दस्तख़त कर दिए, उसके बाद दोनों ने मंदिर में जाकर भी शादी कर ली, उस वक़्त उन सब का कॉलेज का आखरी साल था और सबकी परीक्षा भी तब तक ख़त्म हो चुकी थी, विलायत में भी रितेश अच्छे से घर में रहता था, शादी के बाद कविता भी उसके साथ रहने लगी, रितेश ने हम को फ़ोन कर के सब कुछ बता दिया था, वह उस वक़्त हम से कुछ नहीं छुपाता था, हम ने भी उसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी हैं, कहते हुए कविता को अपनी बहु स्वीकार कर लिया था और साथ में यह भी कहा था, कि " जब भी वे लोग यहाँ आएँगे तब हम फ़िर से दोनों की शादी धूम-धाम से करेंगे और सब रिश्तेदारों को भी बुलाएँगे। " रितेश ने हांँ भी कहा था, रितेश पहले से ही हमारी हर बात मानता था, वह हमारी किसी भी बात को अनदेखा या अनादर नहीं करता था। "
कहते हुए आंटी का गला भर आता हैं, रिया ने तुरंत ही आंटी जी को पानी पिलाया और फिर से पूछने लगी, " हां, तो आंटी जी उसके बाद क्या हुआ ? "
रितेश की ममा ने कहा, " रितेश की शादी के कुछ दिन बाद रितेश ने सुबह जल्दी उठकर कविता से कहा, कि " उसे आज कुछ ज़रूरी काम से बाहर जाना है और शायद उसे घर वापस आने में थोड़ी देर भी हो सकती है, तुम मेरा इंतज़ार मत करना और खाना खा कर सो जाना। "
कविता ने कहा, " ठीक हैं, मगर हो सके उतना जल्दी घर वापस आ जाना और घर आने से पहले एक बार ज़रूर फ़ोन कर देना। "
रितेश इतना कह कर वहांँ से चला जाता हैं। मगर उस रात रितेश को घर आने में सच में देर हो गई थी और घर आते वक़्त वह कविता को फ़ोन करना भी भूल गया, कि "उसका काम ख़तम हो गया हैं और वह अभी घर आ रहा हैं।" रितेश के पास घर की एक चाबी हमेशा रहती थी, इसलिए कविता को कोई परेशानी ना हो यह सोच चुपके से रितेश ने खुद ही अपने घर का दरवाज़ा खोल, चुपके से घर के अंदर चला जाता हैं, वह कविता को सरप्राइज देना चाहता था, मगर घर के अंदर जाकर वह खुद ही सरप्राइज हो जाता हैं।"
रितेश को अपने बेड-रूम में से किसी के बात करने की आवाज़ सुनाई दी, पहले तो उसने सोचा, कि कविता शायद अब भी टी.वी देख रही होगी, इसलिए जब रितेश खुद कमरें का दरवाज़ा खोलने गया, तब रितेश ने देखा की bed room का दरवाज़ा आधा खुला हुआ ही था, रितेश ने कमरें के अंदर देखा, तो कविता उसी के दोस्त राकेश की बाँहों में बाहें डाल, अधनंगी अवस्था में उसी के बिस्तर पर बैठी हुई थी, राकेश भी उसके बदन से लिपट के बैठा हुआ था, एक पल के लिए तो रितेश को अपनी आँखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था, रितेश को यह सब देख बहुत गुस्सा आया, उसका दिल टूट जाता हैं, रितेश का मन किया, कि अभी अंदर जाके दोनों को जान से मार दूँ, ऐसा सोचते हुए रितेश गुस्से में घर की एक तरफ़ रखा हुआ डंडा लेकर आता हैं और रितेश फ़िर से अपने बेड-रूम की ओर जाता हैं, बेड-रूम के बाहर खड़े रहकर फ़िर से रितेश ने कविता और राकेश दोनों की बातें सुन ली। राकेश कह रहा था, कि " अब जल्द से जल्द रितेश नाम के बच्चे से उसकी आधी जायदाद अपने नाम करवा लो और वह रितेश का बच्चा जेल में चक्की पीसता रह जाए, ऐसा कुछ करना होगा। " तब जाके रितेश को पता चला, कि ये सब कविता और राकेश की चाल हैं, उसका पैसा पाने की, इसलिए जल्दबाज़ी में कविता ने मुझ से शादी की और राकेश ने सोची-समझी चाल चलने की कोशिश की, यह तो अच्छा हुआ, मुझे पहले ही इस बात का पता चल गया, अब मैं इन दोनों को सबक सीखा के ही रहूंगा।"
रितेश मन ही मन बड़बड़ाया, " क्यों मैंने तुझ जैसे दोस्त और प्यार पर भरोसा किया, जो प्यार और दोस्ती के लायक ही नहीं। " रितेश ने गुस्से में आकर कमरें का दरवाज़ा खोला, राकेश और कविता दोनों रितेश को देखते ही रह गए, उन दोनों को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था, कि रितेश इस वक़्त यहाँ आ जाएगा।
रितेश ने कहा, " मैंने तुम दोनों की सारी बात सुन ली है और एक बात कान खोल के सुन लो, तुम दोनों को अब मेरी जायदाद में से कुछ नहीं मिलने वाला। इसलिए अब यह सपना देखना छोड़ दो, दोस्ती और प्यार के नाम पर तुम दोनों ही एक धब्बा हो, मुझे तुम दोनों से नफरत हैं। चले जाओ यहाँ से, अब ज़िंदगी में कभी भी अपना चेहरा मुझे मत दिखाना, वरना आज मैं कुछ कर बैठूंगा, जो मुझे नहीं करना चाहिए, इसलिए जल्दी से जाओ यहाँ से।
तभी कविता और राकेश ने एक दूसरे की ओर इशारा किया, राकेश ने रितेश के हाथो से डंडा छीन लिया और रितेश का हाथ मरोड़ के उसके पीछे कर दिया, कविता ने रितेश के दोनों हाथों को रस्सी से बांध लिया। रितेश को मारते हुए एक कुर्सी पर बैठाकर बांध लिया, उसके मुँह में कपड़े का बोल बनाकर भर दिया, ताकि रितेश ज़ोर से चिल्ला ना सके।
राकेश ने कहा, " ऐसे थोड़ी ना पैसा नहीं मिलेगा ? हमारी तीन साल की मेहनत हैं, ऐसे ही थोड़े जाने देंगे ?"
राकेश ने उसी वक़्त रितेश के पापा को फ़ोन कर के कहा, कि " रितेश हमारे पास हैं और अगर आपने हमें २ करोड़ रूपए नहीं दिए, तो हम रितेश को जान से मार देंगे। "
रितेश के पापा को पैसो से ज़्यादा अपने लाडले बेटे से प्यार था, वह कुछ सोचे समझे बिना अपने बेटे को छुड़ाने चले गए, मुझे इस बारे में उन्होंने कुछ बताया भी नहीं था, "कुछ ज़रूरी काम हैं, ३ दिन में लौट आऊंँगा। " कहते हुए रितेश के पापा यहाँ से रितेश को छुड़ाने चले गए। मगर जब रितेश के पापा ने राकेश की बात इतनी जल्दी मान ली, तो राकेश के मन में लालच और भी बढ़ने लगी। दूसरी बार राकेश ने रितेश के पापा से कहा, की " आप ने आने में बहुत देर कर दी, इसलिए अब हमें २ नहीं, बल्कि ५ करोड़ रुपए चाहिए। " मगर उस वक़्त रितेश के पापा के पास उतने पैसे नहीं थे। इसलिए रितेश के पापा ने राकेश को २ करोड़ देकर दूसरे पैसो का इंतेज़ाम करने के लिए थोड़ा वक़्त माँगा।
राकेश ने रितेश के पापा के आने से पहले किचन में चाय रखी थी, जो उबल के सब बह गई थी, गैस भी चाय उबल ने की वजह से बंद हो गया था, मगर इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं था, कविता ने किचन में देखे बिना ही दूसरी बार चाय बनाने के लिए, फ़िर से गैस जलाने के लिए लाइटर ऑन किया। तभी वहाँ आग लग गई। कविता उस वक़्त वहीं थी, तो शायद वह तो उस आग में बहुत बुरी तरह जल गई। किसी को रितेश के बारे में पता ना चले, इसलिए घर के खिड़की और दरवाज़े पहले से बंद रखे थे, इसलिए आग तेज़ी से पूरे घर में फैलने लगी। आग की लपेट से रितेश के पापा ने रितेश को तो बचा लिया, मगर अपने आप को बचा ना सके, रितेश के पापा ने आग लगते ही जल्दबाज़ी में सब से पहले रितेश के ऊपर कहीं से कम्बल लाके उसे ओढ़ा दिया और रितेश के हाथ खोलने लगे, तभी ऊपर से जलता हुआ लकड़ा रितेश के पापा के ऊपर आके गिरा, उसके साथ वह भी गिर गए, यह सब रितेश की आँखों के सामने ही हुआ, मगर रितेश के हाथ और पैर अब भी बंधे हुए थे, इसलिए वह उस वक़्त कुछ कर ना पाया। राकेश के साथ क्या हुआ पता ना चला, मगर उस एक रात ने रितेश के दिल को बहुत चोट पहुँचाई। एक वह दोस्त जिससे रितेश को सब से ज़्यादा भरोसा था, एक वो बेवफा पत्नी, जिससे वह अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता था, एक वह उसके पापा जिस में रितेश की जान बसती थी, उस एक रात में रितेश ने दोस्ती, प्यार और रिश्ता तीनों को अपनी आँखों से जलते हुए देखा। उस रात रितेश ने तीनों रिश्तों के साथ अपने आप को भी को खो दिया। तुम सोच रही होगी रिया, कि राकेश कविता और उसके पापा अगर आग से ना बच पाए तो, रितेश वहां से कैसे बच गया ?
रिया ने कहा, " हाँ, वही तो ! "
तो दोस्तों, आप भी सोच रहे होंगे, कि जब कविता, राकेश और रितेश के पापा इस आग से नहीं बच पाए, तो रितेश उस आग से कैसे बच गया ? और कैसे वह अपने घर अपनी ममा के पास जा पहुँचा ? यह जानने के लिए बस पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी।
अब, आगे क्रमशः।
Bela...
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