इम्तिहान PART -15

                     इम्तिहान -भाग १५   

         तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि रितेश की ममा के जन्म दिन पर उनकी ममा पहले तो मंदिर जाना चाहती थी, उसके बाद उन्होंने घर में एक छोटी सी पूजा रखी थी, उस पूजा में हवन की आग की लपटों से रितेश थोड़ी ही देर में जैसे डरने लगता हैं, उसकी आंँखें लाल होने लगती हैं, रितेश को ऐसा महसूस होने लगता हैं, कि जैसे यह आग उसे जला रही हैं, रितेश तभी वहां से खड़े होकर भागकर अपने कमरे में चला जाता हैं, रिया भी उसके पीछे-पीछे जाती हैं, बहुत बार पूछने पर रितेश उसे कहता हैं, कि वह उनकी ममा का असली बेटा नहीं, बल्कि वह एक अनाथ लड़का हैं, जिसे इन लोगों ने उसके बचपन में ही गोद लिया था, तभी से उसे ये ऐसो-आराम की ज़िंदगी और उसके साथ इतना प्यार मिला हैं, जो शायद ही किसी के नसीब में हो सकता हैं, मगर रितेश को शायद बस यह एक बात खाए जा रही थी, कि उसके पापा की मौत की वजह सिर्फ़ वह है ओर कोई नहीं, अब ऐसा कैसे हुआ ? ये जानने के लिए मेरी कहानी पढ़ते रहिए। अब आगे... 

          रितेश रिया से उसके पापा के मौत का ज़िम्मेदार वह खुद हैं, इतना कहते-कहते वह फ़िर से जैसे टूट जाता हैं, जैसे की फ़िर से वह उस लम्हें को महसूस करने लगता हैं, जो उस वक़्त  उसके साथ हुआ होगा, कहते-कहते अचनाक से रितेश के सिर में दर्द होने लगता हैं, अचानक से रितेश अपना सिर पकड़कर चिल्लाने लगता हैं, "ऊफ्फ... मेरा सिर फ़िर से फ़टने लगा, बहुत दर्द हो रहा हैं, मैं कुछ देर सो जाना चाहता हूँ, रिया उसे सँभाले, उस से पहले ही ऐसा कहते हुए रितेश वहीं गिर जाता हैं, रितेश ने अपनी आँखें बंद कर दी, रिया गभरा जाती हैं, नौकरों की मदद से रिया ने रितेश को बिस्तर पर सुला दिया, रिया ने डॉक्टर को फ़ोन कर के बुलाया, डॉक्टर ने कहा, " मैंने इनका ब्लड टेस्ट करवाने को कहा था, उसकी रिपोर्ट आई या नहीं ? " 


         रिया को अचानक याद आया, एक रिपोर्ट उसके पास ही था, रिया ने वह रिपोर्ट तुरंत ही डॉक्टर को दिखाया, डॉक्टर ने वह रिपोर्ट देख़कर कहा, कि " इन्होंने शायद शराब के साथ-साथ ड्रग्स लेना भी शुरू कर दिया हैं, अगर जल्द से जल्द उनकी आदत नहीं छुड़वाई, तो इस आदत की वजह से इनकी जान भी जा सकती हैं क्योंकि नींद ना आने की वजह से या तो ज़्यादा सोचने की वजह से इन्हें माइग्रेन का दर्द होने लगा हैं, जो किसी भी वक़्त और कहीं भी यह दर्द होने से इंसान अपने आपे में नहीं रहता, यह दर्द इतना गहरा होता हैं, कि इसे हर कोई इंसान सेह नहीं सकता। "

       रिया ने कहा, " हां, तो डॉक्टर, इसका कोई इलाज तो होगा ना ? "

       डॉ.ने कहा, " हाँ, इलाज तो हैं, सब से पहले तो इनकी शराब पिने की और ड्रग्स लेने की आदत छुडवानी पड़ेगी, इन्हें नींद की बहुत ज़रूरत हैं, किसी भी तरह इन्हें सोने की कोशिश करनी पड़ेगी, चाहे इस के लिए दवा भी क्यों ना लेनी पड़े। तभी जाकर शायद इनका यह दर्द भी धीरे-धीरे कम होगा, जहां तक मुझे याद हैं, वहां तक मैंने रितेश को नींद की गोली भी दी थी और कहां था, कि कभी कभी वह नींद की गोली लेके सो जाया करे, उसे अच्छा लगेगा, मगर शायद रितेश ने वह नींद की गोली ली ही नहीं, ऐसा मुझे लगता हैं। पहले भी मैंने कई बार रितेश को सिर दर्द की और नींद की दवाई दी थी, मगर यह खुद बहुत लापरवाह हैं, तो कुछ दिनों बाद दवाई नहीं ली होगी, तभी फ़िर से दर्द शुरू हो गया हैं, तो इन्हें ड्रग्स छुड़वाने वाले सेंटर में भर्ती कर दीजिए। अभी नॉर्मल स्टेज पर हैं, तो शायद इसे इनको ज़्यादा तक़लीफ़ ना हो, मैं एक दो ऐसे बहुत अच्छे सेंटर जानता हूँ, जो ऐसे लोगों की मदद करते हैं और वह कुछ ही महीनों में ड्रग्स लेना छोड़ भी देते हैं, मगर उसके लिए खुद उस इन्सान को ही अपना मन बनाकर ठीक होने की कोशिश करनी पड़ती हैं, मगर जहां तक मैं रितेश को जानता हूं, वहां तक रितेश को कोई बात अंदर ही अंदर खाए जा रही हैं, जिसके चलते उसे नाही ज़िंदगी जीने में कोई दिलचस्पी हैं और नाही ठीक होने में, उसे समझ पाना बहुत ही मुस्किल हैं, मैंने रितेश से कई बार बात करने की उसे समझाने की कोशिश की, मगर वह किसी से जैसे कुछ बात करना ही नहीं चाहता। 

        रिया ने कहा, " कोई बात नहीं, अब रितेश के ठीक होने की जिम्मेदारी आज से मेरी, बस अब आप मुझे लिख के दे दीजिए, रितेश के इलाज के लिए उसे कहाँ जाना होगा, मैं इनको वहां ले जाकर ही रहूंँगी, चाहे कुछ भी हो जाए। "

        डॉक्टर रिया को address और दूसरे  डॉक्टर का नाम लिख कर दे देते हैं, उसके बाद थोड़ी देर में डॉक्टर चले जाते हैं, डॉक्टर के जाने के कुछ ही मिनट में रितेश फ़िर जगने लगता हैं, रिया को लगा, आज रितेश आराम की नींद सो गया, लेकिन नहीं, रितेश नींद में छोड़ दो-छोड़ दो, बचाओ-बचाओ कहते हुए चिल्लाने लगता हैं, रिया कुछ पल वहाँ खड़ी उसे देखती रही। दूसरे ही पल रितेश का पूरा शरीर पानी-पानी हो गया, पलक झपकते ही वह फ़िर से झपक पर बिस्तर पर खड़ा हो गया, एकदम डरा हुआ सा।"

       रिया ने रितेश से पूछा, " फ़िर से कोई बुरा सपना देखा, क्या ? "

       रितेश ( रिया का हाथ पकड़ते हुए पल भर में रोने लगता हैं) मुझे सो जाना हैं, मुझे बहुत नींद आ रही हैं, मगर मैं सो नहीं सकता, अगर मैं सो गया तो ममा का ख़याल कौन रखेगा ? उसे भी पापा की तरह कुछ हो गया तो ? मैं ममा को यूंँ अकेला नहीं छोड़ सकता ? ममा तुम कहा हो ? ममा-ममा ! की आवाज़ लगाते हुए रितेश अचानक से भागते हुए नीचे अपनी ममा के पास चला जाता हैं, अपनी ममा की गोदी में अपना सिर ऱखकर वही बैठ जाता हैं, रिया भी उसके पीछे-पीछे चली जाती हैं, रिया को सच में रितेश का बर्ताव बहुत अजीब लगता, एक पल ऐसा तो दूसरे पल कुछ ओर, लोग सच ही कहते हैं, कि रितेश को समझ पाना बहुत ही मुश्किल हैं। 

       रितेश ने अपनी ममा से कहा, " ममा, तुम कैसी हो ? ठीक तो हो ना ? तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं ? "

       रितेश की ममा ने रितेश को समझाते हुए कहा, कि " मुझे क्या होगा, बेटा ? मैं ठीक तो हूँ, आज कल लेकिन तुझे क्या हो गया हैं ? ऐसी बेहकी-बेहकी बातें क्यों करने लगा हैं ? दिन भर परेशान जो रहता हैं, क्या सोचता रहता हैं दिन भर ? इतना डरा हुआ सा क्यों लग रहा हैं, तुझे किसी ने कुछ कहा तो नहीं, मैं उसकी ख़बर लेती हूँ, कुछ तो बता। 

         रितेश ने अपनी ममा से कहा, " ममा, बस ऐसे ही, तू ठीक तो हैं, ना ! तू खुश तो हैं ना ! बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए, ममा, एक बात कहुँ ?" 

        ममा ने कहा, " हाँ, बोल ना, इस में पूछने की क्या बात हैं ?"

       रितेश ने अपनी ममा से कहा, " ममा, मुझे छोड़कर कभी मत जाना, मुझे हमेशा अपने पास, अपने साथ ही ऱखना। "

        ममा ने कहा, " अरे पगले, मैं कहाँ जाऊँगी ? मगर तुझे भी मुझ से एक वादा करना पड़ेगा, आज के बाद शराब बंद, चाहे जो भी हो जाए, तू शराब  छुएगा भी नहीं, रातों को कहीं जाएगा भी नहीं।" 

       रितेश को भी शराब की आदत छोड़नी ही थी, मगर यह अब उसके बस की बात नहीं थी, क्योंकि एक वक़्त खाने के बिना चलेगा,  मगर जिसको एक बार शराब की आदत लग जाती हैं, वह लोग जैसे शराब के बिना मर से जाते हैं, इनकी नशों में खून नहीं, शराब बहती हैं, इनका शरीर पानी नहीं, शराब माँगने लगता हैं। यूएस तरफ़ रिया बाहर खड़ी चुपके से माँ-बेटे की नौक-झौंक सुन रही थी। 


          रितेश की ममा ने चुपके से कमरें के बाहर खड़ी रिया को देख लिया और इशारे से रिया को अंदर बुलाते हुए कहा, "  देखा रिया, अपनी बारी आई तो, यह एकदम से चुप, पता नहीं, किस की नज़र लग गई हैं, मेरे बेटे को। "

         रिया ने कहा, " आप अब फ़िक्र मत कीजिए, मैंने इसके बारे में भी कुछ सोच रखा हैं। "

        कहते हुए रिया वहां से चली जाती हैं, रिया उस सेंटर पर जाती हैं, जहाँ का पता डॉक्टर ने रिया को दिया था, रिया ऐसी जगह पहली बार गई थी, जहाँ के डॉक्टर के साथ बात करने पर सच में पता चला, कि ऐसे कई लोग यहाँ से ठीक होकर वापस अपने घर गए हैं, पहले-पहले उनको यह आदत छुड़ानी मुश्किल तो होती हैं, मगर बाद में सब ठीक हो जाता हैं, मगर इसके लिए रितेश को मनाना बहुत ही मुश्किल था, क्योंकि वह ये बात नहीं मानेगा और नाही अपनी ममा को अकेला छोड़ेगा, रिया ने पहले दो-तीन दिन तो रितेश से कुछ नहीं कहा, उसके साथ ऑफिस जाती और सारा काम समझ लेती, एक दिन सुबह-सुबह रितेश को फ़िर से अपने ही क्वार्टर में उसके बगल वाले कमरें से बाहर निकलते हुए रिया ने देखा। रिया को लगा, इस कमरे में ज़रूर कुछ ऐसा हैं, जिस की वजह से रितेश अपने कल को भुलाना नहीं चाहता, या तो भुला नहीं पाता। रिया ने कमरे में देखना चाहा, मगर उस कमरें की चाबी रितेश के पास ही होती हैं, वह कब आता हैं और कब जाता हैं, पता ही नहीं चलता। 

       दिन गुज़रते गए, एक दिन की बात हैं, रितेश सुबह-सुबह तक़रीबन ५ बजे के आसपास रिया के बगल वाले कमरें में आया था, उस दिन गलती से उसने उस कमरें का दरवाज़ा बंद नहीं किया था, रिया ने कमरें में आकर देखा, तो कुछ अपने ही हाथों से बनाई हुई किसी लड़की की तस्वीर थी, एक टेबल पर बहुत सारे कलर्स और पिछियां थी, जो अब भी भीगी हुई थी, इस से साफ़ पता चलता था, कि रितेश एक अच्छा पेंटर भी है और वह किसी लड़की का चित्र अभी बना रहा था, मगर किसी-किसी चित्र को देख के लगता था, कि चित्र बना के फ़िर से उसी चित्र पर जान बुज़कर कुछ रंग दाल के उसी चित्र को अपने ही हाथों से बिगाड़ दिया था।


 यह सब देखने के बाद रिया को लगा, रितेश की ज़िंदगी में शायद कोई लड़की भी हैं, या तो थी, जिसे लेकर रितेश बहुत परेशान रहता हैं, मगर इस बारे में कैसे पता चले, उसने अब तक किसी लड़की के बारे में कुछ बताया नहीं हैं, रिया ने फ़िर से दरवाज़ा बंद कर दिया और रिया वहां से रोज़ की तरह वॉक करने के लिए गार्डन में चली गई, मगर चलते-चलते उसकी आंखों के सामने वह रितेश की बनाई तस्वीर बार बार आ रही थी, इसलिए रिया अभी भी उस तस्वीर के बारे में ही सोचती रही, मगर उसे कोई जवाब नहीं मिला, रिया फ़िर से अपने रोज़ के कामो में लग गई, रितेश के साथ ऑफिस भी गई, उसने देखा, कि आज रितेश कुछ ठीक नहीं लग रहा, वह अपना सिर पकड़ के बैठा हुआ था, शायद रितेश का सिर दर्द से फटा जा रहा था, रितेश अपनी कुर्सी पर से खड़ा हुआ और अलमारी के पास जाकर कुछ ढूँढने लगा। 

        रिया ने रितेश से पूछा, " क्या ढूँढ रहे हो ?"

       रितेश ने जरा चिढ़ते हुए कहा, " कुछ नहीं, तुम अपने काम से काम रखो। "

        रितेश का ऐसा जवाब सुनकर रिया ने भी ज़रा चिढ़ते हुए कहा, " मैं तो अपने काम से काम ही रखती हूँ, मगर मेरी समझ में ये नहीं आता, कि तुम मुझ से हर वक़्त यूँ उखड़े-उखड़े से क्यों रहते हो ? अगर कुछ बात हैं तो तुम मुझे बता सकते हो, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ। "


          रितेश ने फिर से चिढ़ते हुए कहा, " हां, ज़रूर, थोड़ा सा ज़हर लाके दे दो मुझे। "

         रिया ने भी बोल ही दिया, " मेरे बस में होता तो वह भी ला देती, ऐसी ज़िंदगी से बेहतर हैं, कि तुम को इस ज़िंदगी से मुक्त किया जाए, लेकिन यह मेरे बस में नहीं और ऐसा मैं कभी कर भी नहीं सकती। " 

         रितेश ने कहा, " बस, तो फ़िर चुप रहो, मुझे मेरा काम करने दो, पता नहीं मेरी दवाई कहाँ चली गई ? आज फ़िर से मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा हैं। "

         रिया ने कहा, " साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहते ? तुम दवाई नहीं बल्कि नशे की पड़िकी ढूँढ रहे हो, डॉक्टर ने तुम्हें और नशे की पड़िकी लेने से मना किया हैं, इसलिए वह सब मैंने कल ही फेंक दी। "

      रितेश ने यह सुनते ही गुस्से में आकर रिया को धक्का देते हुए उसका गला ज़ोर से पकड़ लिया और कहा, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, ऐसा करने की ?

         रिया ने कहा, " तुम्हारी ममा ने ही मुझे ऐसा करने को कहा था और तुम्हें अस्पताल नशा छुड़ाने के लिए भर्ती करने को भी कहा हैं, जिसका फॉर्म मैंने अच्छे से अस्पताल में भर दिया है, आंटी जी के कहने पर, बस अब तुम्हारे वहां जाने की देरी हैं। "

        रितेश को रिया की बात सुनकर और ज्यादा गुस्सा आता हैं, और रिया को कहता हैं, " तुमने यह कैसे मान लिया, कि तुमने फॉर्म भरा और मैं अपनी ममा को यहाँ अकेला छोड़ के चला जाऊंँगा ? "

        रिया ने कहा, " क्योंकि आपकी ममा ने कल से खाना नहीं खाया और उनका ये कहना हैं, कि जब तक तुम अस्पताल भर्ती नहीं होंगे, तब तक वह खाना नहीं खाऐगी, वह भी तुम्हारी तरह ही ज़िद्दी हैं और यह बात तो तुम भी अच्छे से जानते ही होंगे, मेरे लाख समझाने पर भी वह नहीं समझी। "

        रितेश ने अपना हाथ दीवार पर पटकते हुए कहा, " मुझे पहले ही इस बारे में बताया क्यों नहीं ?"

       रिया ने कहा, " तुम सुनते कहा हो ?"

      रितेश ने तुरंत ही घर पर फ़ोन कर के नौकरों से माँ के बारे में पूछा, सब ने वहीं कहा, जो रिया ने कहा था, रितेश नौकरों पर भी बहुत ज़्यादा गुस्सा हो गया, कि किसी ने मुझे बताया क्यों नहीं  ? "

    नौकरों ने कहा, " माजी ने कसम दे रखी थी।" फ़ोन रख कर गुस्से में रितेश घर जाता हैं, घर जाते ही अपनी ममा को आवाज़ देने लगता हैं, "  ममा-म्मा-म्मा। "

       रितेश की ममा ने रितेश को चिल्लाते हुए सुन कमरें में से ही आवाज़ लगाई, " क्या हुआ ? इतना चिल्ला क्यों रहा हैं ?"

        रितेश ने अपनी ममा से कहा, " यह क्या सुन रहा हूँ मैं ? आपने कल से खाना नहीं खाया ? "

        ममा ने कहा, " हां, मेरा उपवास चल रहा हैं। "

          रितेश ने कहा, " झूठ मत कहो,"

        कहते हुए रितेश अपनी ममा से झगड़ पड़ता हैं, गुस्से में रितेश के सिर का दर्द और बढ़ जाता है और  दोनों हाथों से अपने सिर को पकड़ते हुए रितेश वही ज़मीन पर गिर जाता हैं और चिल्लाते और तड़पते हुए बेहोश हो जाता हैं, रितेश की मां ने तुरंत ही रिया को फोन कर के घर पर बुला लिया, सब प्लान के हिसाब से ही हो रहा था, रितेश की ममा और रिया दोनों ने मिलकर यह प्लान बनाया था, ताकि उसे अस्पताल ले जा सके। 

        रितेश की जब आँख खुलती हैं, तो उसने अपने आप को किसी और जगह ही पाया, एक कमरा, बिस्तर, टेबल, आइना, कुछ किताबें, a.c, पंखा, पानी की बोतल, कुछ फ्रूट्स और जूस, दवाइयांँ, घडी उस कमरें में रखे हुआ था। रितेश ने उस कमरें से बाहर निकलने की कोशिश की, कमरा बाहर से बंद था, उस ने और ज़ोर लगाकर कमरें का दरवाज़ा खटखटाया मगर दरवाज़ा नहीं खुला. रितेश छटपटाने लगा, खिड़की के बाहर देखा, तो बाहर खुले आसमान के अलावा कुछ नहीं था। रितेश थक कर वही ज़मीन पर फिर से गिर जाता हैं, कुछ देर के बाद कमरें का दरवाज़ा खुलता हैं। डॉ. नेहा कमरें के अंदर आती हैं, वार्ड बॉय की मदद से डॉ. नेहा रितेश को बिस्तर पर सुलाती हैं और रितेश को एक इंजेक्शन लगाकर कमरें का दरवाज़ा बंद कर फीर से बाहर चली जाती हैं। कुछ दिन तक तो ऐसा ही चलता रहा, रितेश को नशे की आदत थी, वह रोज़ ड्रग्स के लिए कमरें में छटपटाता रहता, कमरें में हर चीज़ उसने तोड़ दी थी। मगर यहाँ उसकी हर कोशिश नाक़ाम रहती। 

           तो दोस्तों, आप समझ ही गए होंगे, कि आख़िर में रितेश को नशा छुड़ाने के लिए अस्पताल ले जाया गया। मगर क्या रितेश  सब कुछ भूल के ठीक हो पाऐगा भी या नहीं ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी।  

                    अब, आगे क्रमशः 


                                                              Bela... 
                   

     




 


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