इम्तिहान भाग - १४
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रितेश की ममा ठीक होकर अस्पताल से लौट आई है, रितेश अपने घर में सभी नौकरों को अपनी ममा का और भी अच्छे से ख़याल रखने को कहता है, आंटी जी और रितेश की प्यारभरी नौकझौंक रिया उनके कमरें के बाहर से सुन लेती है, अपनी ममा के कहने पर आज रात रितेश अपने दोस्तों के साथ बाहर नहीं जाता और रात को रितेश अपने कमरें सोने के लिए चला जाता है, लेकिन कुछ ही देर बाद रितेश के कमरें में से उसके चीखने की आवाज़ सुनकर रिया और घर के नौकर उसके कमरे की और भागते है, वैसे नौकरों को पता ही था, कि साहब जब भी रात को घर पर होते हैं तब ऐसा ही होता है और साहब सुबह होते ही नॉर्मल हो जाते है, यह बात रिया के लिए बहुत अजीब थी, रिया ने डॉक्टर को बुलाया, डॉक्टर ने रितेश को इंजेक्शन लगाकर सुला दिया और उसका ब्लड टेस्ट करवाने को कहा, रिया उस रात वहीं रितेश के पास ही बैठे-बैठे सो जाती है। अब आगे...
अब ऐसा कुछ दिनों तक चलता रहा, रितेश और रिया साथ में ऑफिस जाते और साथ में ही ऑफिस से घर वापस आ जाते, रात को फ़िर से रितेश अपने उन्हीं दोस्तों के साथ कार में बैठकर पार्टी में जाने लगा, रितेश के हाथों एक दिन उसी की ब्लड रिपोर्ट आ गई थी, जिसे रितेश ने जानबूझकर छुपा दिया, रितेश के ममा रितेश को कभी-कभी जाने से रोक लेती, मगर उनके सोने के बाद रितेश चोरी-छुपे भी बाहर चला जाता, इसका मतलब यहीं हुआ, कि शायद रितेश रातों को सो ही नहीं पाता, उसे नींद आती ही नहीं थी और नींद आ भी जाए, तो बुरे सपने से वह कुछ ही देर में झपक के जग जाता और उसके बाद उसके लिए सोना और भी मुश्किल हो जाता, उसी सपने और नींद से बचने के लिए रितेश रातों को शराब और दोस्तों को अपना सहारा बना देता, ताकि नशे में वह कुछ देर सो भी सके और उसे किसी बुरे सपने का सामना भी ना करना पड़े, अब रितेश को अगर कोई बीमारी है, तो उसे अच्छे डॉक्टर की ज़रूरत है, मगर रितेश अपनी बेरंग ज़िंदगी किसी के सामने बया नहीं करना चाहता, रितेश ने अपने ज़िंदगी के रंगो को सफ़ेद रंग से रंग दिया है, अब उसकी ज़िंदगी में सफ़ेद रंग के अलावा और कोई रंग ही नहीं है। अब आगे...
कुछ दिनों बाद रितेश की ममा का जन्मदिन था, रितेश चाहता था, कि उस दिन वह पूरा दिन अपनी ममा के साथ रहेगा और उनकी हर ख़्वाइश को पूरा करेगा, रितेश की ममा उस दिन अपने कुलदेवी के मंदिर जाना चाहती थी और घर में उन्होंने एक छोटी सी शांति पूजा रखवाई थी, जिस में भी सिर्फ़ रितेश, रितेश की ममा, रिया और घर के नौकर ही थे।
जैसे ही पूजा शुरू हुई पूजा के दरमियान हवन की आग से रितेश को कुछ होने लगा, वह जैसे उस छोटी सी आग से भी डर रहा था, उसका शरीर काँपने लगा, उसकी आँखें लाल होने लगी, उसी वक़्त रितेश वहाँ से फ़ौरन उठकर दौड़ता हुआ फ़िर से अपने कमरें में चला जाता है, रितेश को ऐसे अचानक भागते हुए देखकर उसके पीछे-पीछे रिया भी जाती है, उसे देखने, की " रितेश को क्या हुआ ?" लेकिन रितेश अपने कमरें में जाकर अंदर से अपना कमरा बंद कर देता है और दरवाज़े के पास बैठकर डर कर काँपने, रोने और चिल्लाने लगता है, रिया की समझ में कुछ नहीं आता, रिया बाहर से रितेश के कमरें का दरवाज़ा खत-खताते हुए रितेश को आवाज़ लगाने लगी, दरवाज़ा खोलो रितेश, दरवाज़ा खोलो, क्या हुआ ? कुछ बताओ तो सही ? रितेश दरवाज़ा खोला, प्लीज।
ममा वहीं पूजा में बैठी रही, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे मगर वह सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं कर पाती, सिर्फ़ चुप रही, रिया भागति फिर से आंटी जी के पास आती है और उनसे कहती है, " आंटी जी रितेश ने अपने आप को कमरें में बंद कर दिया है, वह कमरें का दरवाज़ा खोल नहीं रहा, कहीं उसे कुछ हो ना जाए, उसे क्या हो रहा है ? कुछ तो बताइए। "
मगर आंटी जी उस वक़्त बहुत ही दुखी थी, इसलिए वह सिर्फ़ चुप ही रही, रिया फ़िर से भागती हुई ऊपर रितेश के कमरें के पास जाकर रितेश को आवाज़ लगाते हुए दरवाज़ा खटखटाने लगी, तभी ज़ोर से दरवाज़े को धक्का लगने से दरवाज़ा खुल जाता है, रितेश वही दरवाज़े के पास बेहोश पड़ा हुआ था, नौकरों की मदद से रिया ने रितेश को उसके बिस्तर पर सुलाया, रिया ने कमरें की चारों ओर देखा, अभी भी उसका कमरा वैसे ही बिखरा हुआ था, जैसे उस दिन बिखरा हुआ था, मगर रिया ने आज एक और चीज़ देखी, वहाँ कोने में कुछ पेंटिंग्स और कुछ कलर्स थे, एक खुली पेंटिंग्स पर जैसे एक के बाद एक कलर्स गिराके कुछ अजीब ही पेंटिंग बन गई थी, रिया ने करीब जाके उस पेंटिंग्स को छूना चाहा, मगर उसी वक़्त रितेश झपक के अपने बिस्तर पर बैठ गया, रितेश ने बिस्तर के बगल में रखी पानी की बोतल से, पानी अपने ही सिर पर डालते हुए उसने अपने चेहरे को धो डाला, जैसे कोई बुरा सपना देख कर हम डर के मारे झपक के जग जाते है, बिलकुल वैसे ही। रिया सोचने लगी, " ऐसी क्या बात हो सकती है, जो रितेश को अंदर ही अंदर इतना खाए जा रही है, आज तो मैं यह रितेश से यह पूछ के ही रहूँगी, यह सोचकर रिया धीरे से रितेश के करीब जाती है और उसे टॉवल देते हुए कहती है, यह लो और अपना सिर पॉछ लो, रितेश लम्बी गहरी साँस लेते हुए अपना सिर टॉवेल से पोंछने लगता है, रिया ने मौके का फायदा उठाते हुए उस से पूछा, " क्या हुआ रितेश तुम्हें ? तुम यूँ अचनाक पूजा से उठकर ऐसे भागते हुए ऊपर अपने कमरे में क्यों चले आए ? अगर कोई बात है तो, तुम मुझ से कह सकते हो। "
रिया के ऐसे सवाल से रितेश फ़िर से परेशान हो जाता है, गुस्से में आकर अपने हाथ में पकड़ा हुआ टॉवेल एक ओर फेंक देता है और रितेश रिया पर चिल्ला उठता है, " चले जाव यहाँ से, मुझे अकेला छोड़ दो, मैं अकेले रहना चाहता हूँ। "
फ़िर भी रिया वहाँ से नहीं जाती और फ़िर से वही सवाल करने लगती है, रितेश खड़ा होकर रिया के बाज़ू को पकड़ कर उसे कमरें के बाहर धक्का दे देता है और अंदर से कमरें का दरवाज़ा बंद कर देता है, रिया के सवाल फ़िर से सवाल बन कर ही रह गए, रिया ने बाहर से आवाज़ लगाते हुए कहा, " कुछ नहीं बताना है, तो मत बताओ, मुझे भी किसी के बारे में जानने की ज़रूरत नहीं, अगर कोई अपने दर्द के साथ जीना चाहे तो हम कर भी क्या सकते है ? मैं जा रही हूँ। " कहते हुए रिया नीचे जाने का झूठा नाटक करती है, अपने पाँव से दो-तीन सीढ़ी उतरती और फ़िर से चढ़ जाती है, रितेश को लगा, रिया चली गई, रितेश ने धीरे से अपने कमरें का दरवाज़ा खोला और बाहर देखा तो रिया अब भी दरवाज़े के सामने खड़ी थी, रितेश रिया को देख, मुँह पलटकर अपने कमरें के अंदर चला जाता है। रिया भी दरवाज़ा खोल फ़िर से उसके पीछे-पीछे जाती है, रितेश बालकनी की और मुँह किए बाहर देखता रहता है, रिया उसके कमरें को ठीक करने में लग जाती है, तभी रिया के हाथों वह ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट लग जाती है, जिसका उसे कई दिनों से इंतेज़ार था, रिपोर्ट देख रिया समझ गई, कि रिपोर्ट ज़रूर रितेश ने ही छुपा लिया होगा, ताकि हम इसके बारे में कुछ जान ना सके, रिया ने वह ब्लड रिपोर्ट अपने पास छुपा लिया, रिया रितेश के क़रीब जाती है और उस से पूछती है, कि अब कैसा लग रहा है तुम्हें ?
रितेश ने उस वक्त सिर्फ़ इतना ही कहा, कि " जब किसी इंसान से, कोई उसके जीने की वजह ही छीन ले, उसकी साँसे ही छीन ले तब उस इंसान को कैसा लगेगा ? "
रिया को रितेश की बात सुनकर कुछ समझ नहीं आया और रिया ने फिर से रितेश से पूछा, " मतलब ?"
रितेश ने कहा, " मतलब तुम नहीं समझोगी, जब कोई इंसान दो साल से सोया ही ना हो, तो उसे रात होने का इंतज़ार नहीं, बल्कि रात के नाम से डर लगने लगता है, वह सोने के नहीं मगर ना सोने के बहाने ढूँढ ने लगता है, वह सोने की कोशिश में जगने लगता है, बंद आँखों के सपने अब वह खुली आँखों से देखने लगता है, अपने आप के पास रहने के लिए वह सब से दूर रहने लगता है, ज़िंदगी जीता तो है, मगर उसे कुछ पाने की उम्मीद ही नहीं, हर पल वह अपनी मौत के बारे में सोचता है, मगर मौत उस से रूठ के बहुत दूर जा चुकी है, बस साँसे चल रही है और वह अकेले में अपनी साँसो को गिनता रहता है। "
रितेश की ऐसी बेहकी-बेहकी बातें रिया की समझ में नहीं आती, मगर उसके दिल का दर्द रिया ने कुछ कुछ महसूस किया।
रिया ने कहा, " अगर तुम्हें नींद नहीं आती, तो तुम किसी डॉक्टर से क्यों नहीं बात करते ? हर बीमारी का इलाज है, ऐसे तुम कब तक जीते रहोगे ? "
रितेश ने कहा, " अब तो मुझे बस ऐसे ही आदत हो चुकी है जीने की। "
रिया ने कहा, " अपनी ममा के बारे में कभी सोचा है तुमने ? वह तुम्हें देखकर कितनी परेशान और दुखी रहती है, उनके लिए तो तुम्हें जीना ही होगा ना ? "
रितेश ने कहा, " बस एक वही तो है, जिसके लिए आज मैं हूँ, वरना मैं कब का किसी और दुनिया में चला गया होता ? मेरी ममा ही तो मेरी सब कुछ है, जिसकी वजह से मैं आज यहाँ हूँ, तुम्हारे सामने। तुम जो यह आलिशान घर देख रही हो, बड़ा सा बिज़नेस, बड़ी-बड़ी कार, घर में इतने सारे नौकर-चाकर, करोड़ो की प्रॉपर्टी, यह सब कुछ मेरा होते हुए भी मेरा कुछ भी नहीं। "
रिया को रितेश की ऐसी बहकी बहकी बातें सुनकर बड़ा अजीब लगा, " यह ऐसा कैसे हो सकता है, उसकी समझ में कुछ नहीं आता। "
रितेश ने कहा, " हो सकता है रिया, हो सकता है, मेरे साथ हुआ है, क्योंकि सच बात तो यह है, कि मैं अपनी ममा का असली बेटा हूँ ही नहीं, शीला दीदी के जन्म के बाद डॉक्टर ने कहा, कि अब मेरी ममा कभी माँ नहीं बन सकती, उनकी जान को खतरा है, लेकिन ममा की ज़िद्द थी, कि उसे एक लड़का चाहिए ही चाहिए, पापा ने आख़िर ममा की ज़िद्द के आगे अपनी हार मान ही ली, उन्होंने एक अनाथालय में जाकर एक गोलमटोल, सुंदर सा, प्यारा सा, भोला-भाला सा एक लड़का जिसकी उम्र तक़रीबन २ साल की ही होगी, उसे गोद ले लिया। मगर उन्होंने उस लड़के को नाही कभी बताया और नाही कभी यह एहसास होने दिया, कि वह उनका लड़का नहीं, बल्कि एक अनाथ लड़का है, जिसे एक बारिश की तूफ़ानी रात में किसी ने अनाथालय के दरवाज़े के बाहर झुले में सुला दिया था, उस वक़्त वो लड़का सिर्फ़ २ या ३ दिन का ही था। कई बार मुझे ऐसा ख़याल आता है, कि पता नहीं उस माँ की क्या मज़बूरी रही होगी, कि उसने उस लड़के को जन्म तो दे दिया, मगर उसे अपने पास ऱख ना सकी, उसे अपना प्यार दे ना सकी, जहां तक मुझे पता है, एक माँ अपने बेटे को, अपने कलेजे के टुकड़े को कभी अपने से दूर करना नहीं चाहेगी, अगर कोई उसकी कोई मज़बूरी ना रही हो। अनाथालय में वह लड़का २ या ३ साल तक जैसे-तैसे कर के पला, बड़ा हुआ, तभी एक देवता जैसे इंसान ने उस लड़के को गोद ले लिया, उसे अपने घर ले आए, उस लड़के को सारे जहाँ की खुशियाँ मिली, जो शायद उसके सगे माँ-बाप भी उसे कभी नहीं दे पाते, उस लड़के की नई माँ, वो तो उस लड़के पर जैसे अपनी जान न्योछावर करती, उनको तो जैसे नई ज़िंदगी मिल गई, दिन रात अपने बेटे के पीछे भागना, उसे खिलाना, उसे सुलाना, उसे स्कूल भेजना, बीमारी में पूरी-पूरी रात उसके लिए जगना, उसके लिए पापा से तो क्या दुनिया से भी लड़ जाना, सब की बुरी नज़रों से बचाना, रोज़ सुबह शाम उसकी बलैयां लेना, क्या कुछ नहीं किया उस माँ ने उस बेटे के लिए, वह माँ उस बेटे के प्यार में यह भी भूल गई, कि उसकी एक बेटी भी है और वह बेटा उसका नहीं किसी और का बेटा है, जानती हो ? वह ख़ुशनसीब लड़का कौन है ? ओर कोई नहीं बल्कि वह खुश नसीब लड़का मैं ही हूँ, मुझे ही वह सारा सुख, प्यार और ऐसो-आराम दिया, जिस पर मेरा कोई हक़ ही नहीं, जैसे यशोदा माँ ने निःस्वार्थ भाव से अपने बेटे को प्यार किया, लाड-दुलार किया, वैसे ही मेरी ममा ने भी मुझे प्यार किया, बिना किसी स्वार्थ के। "
रिया ने कहा, " ये तो अच्छी बात है, उस में प्रॉब्लम क्या है ? तुम्हें एक अच्छी ज़िंदगी, एक परिवार और एक अच्छे माँ-पापा का प्यार भी तो मिला। "
रितेश ने कहा, " हाँ, प्यार तो मिला और उसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूँगा, उनका यह कर्ज़ मैं एक जन्म तो क्या कई जन्म लेकर भी नहीं चूका सकता, उतना प्यार और अपनापन मिला, मुझे मेरी ममा और पापा से। "
रिया ने कहा, " तो फ़िर तुम्हें इतना परेशान होने की क्या बात है ? "
रितेश ने कहा, " तुम्हारे लिए यह अच्छी बात होगी, मगर जब तुम्हें किसी दिन पता चले की उसी माँ के पति के मौत के ज़िम्मेदार भी तुम ही हो, जिसने तुम्हें यह सारा ऐसो-आराम और ज़मीन-ज़ायदाद और इतना प्यार दिया, तब तुम्हारे दिल पर क्या बीतेगी ? तब क्या तुम चैन की नींद सो पाओगी ? "
रिया ने कहा, " क्या ? यह तुम क्या कह रहे हो ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, मतलब तुम्हारे पापा के मौत के ज़िम्मेदार तुम खुद हो, यह कैसे हो सकता है, तुम्हें जरूर कुछ गलतफहमी हुई होगी ? "
तो दोस्तों, रितेश के पापा की मौत के ज़िम्मेदार क्या रितेश खुद है ? या कोई ओर ? या फिर रितेश को ऐसा लग रहा है ?
अब आगे क्रमशः
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