इम्तिहान PART -13

                     इम्तिहान भाग - १३ 

           तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रिया ने रितेश के ऑफिस जाना शुरू कर दिया है, रिया सुबह उसके साथ ही ऑफिस जाती है, रितेश ने रिया को पहले ही दिन दो घंटे में एक प्रेज़ेंटेशन तैयार करने को कहा, जो उसने बड़े अच्छे से तैयार किया और सब ने तालियाँ बजाकर रिया को अभिनन्दन दिया, उस प्रेज़न्टेशन के बाद रिया रितेश के साथ उसकी केबिन में ही काम करेगी, ऐसा रितेश ने रिया से कहा, रात को रितेश अपने दोस्तों के साथ पार्टी में चला जाता है, मगर उसी रात रितेश की ममा की तबियत कुछ बिगड़ जाती है, रिया ने रितेश की ममा को अस्पताल ले जाकर उसका इलाज शुरू करवाया, मगर रितेश का अब भी कोई पता नहीं था, वह अपना फ़ोन नहीं उठा रहा था, सुबह होते ही रिया रितेश के घर जाकर उसका इंतज़ार कर रही थी, तभी कुछ देर में रितेश नशे की हालत में आकर सीधा उसके कमरे में चला जाता है, फ़िर रितेश के पीछे उसके कमरें तक जाकर रिया ने देखा, कि " रितेश की ज़िंदगी की तरह, रितेश का कमरा भी बिखरा हुआ था। " रिया ने रितेश के चेहरे पर पानी दाल कर उसे जगाया, तब जाकर रितेश होश में आया, रिया ने रितेश को उसकी ममा के बारे में बताया, रितेश अपनी ममा के बारे में सुनते ही अपने घुटनों के बल गिरते हुए रोने लगता है। अब आगे... 

        रिया ने रितेश से पूछा, " आप पूरी रात ? आपको पता भी है, रात को तुम्हारी ममा के साथ क्या हुआ था ? हम सब ने आपको कितना फ़ोन किया, अगर आंटी जी को रात को कुछ हो जाता तो, उसके लिए ज़िम्मेदार कौन होता ? आप इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो ? मेरी समझ में नहीं आ रहा, कि बिज़नेस में इतना रुफ एंड टफ रहने वाला घर में इतना गैरज़िम्मेदार और लापरवाह कैसे हो सकता है ? "

         रितेश रोते हुए सिर्फ़ उसकी बात सुने जा रहा था, जैसे उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, रिया ने रितेश को अपने दोनों हाथों के सहारे से उठाया, और कहा, " चलो, अब अस्पताल जाना है, कि नहीं ? तुम्हारी ममा अस्पताल में है और वह आपके इंतज़ार में है, दर्द में भी वह आँखें बंद कर आपका ही नाम लिए जा रही है, रितेश-रितेश-रितेश। "


        रितेश ने कहा, " हाँ, मुझे अभी जाना है उनके पास, मुझे ले चलो, वह कौन से अस्पताल में है ? "

      रिया रितेश को लेकर अस्पताल जाती है, रितेश ने अपनी ममा को अस्पताल में उनके कमरें की बाहर रखी हुई, ग्लास में से पहले तो सिर्फ़ देखा, रितेश की ममा को अब भी वेंटिलेटर पर रखा था, रितेश बाहर से ही अपनी ममा को ऐसे देखते ही वहीं कमरे के दरवाज़े को पकड़ते हुए, दर्द से रोते हुए, गिर के बैठ जाता है। 

     रिया को रितेश का इस तरह छोटे बच्चे की तरह लगातार इतना रोते हुए देख रिया को बड़ा अजीब लगा। रिया मन ही मन सोचती है, " रितेश सच में मेरे लिए एक बंद किताब की तरह है, जिसे पढ़ पाना मेरे लिए शायद बहुत ही मुश्किल है। " वैसे भी इसे मिले हुए मुझे कुछ दिन ही तो हुए है, इतने दिनों में हम ने कुछ खास बातें भी तो नहीं की। खैर, अभी तो इसे सँभालना होगा, बाकी बातें बाद में करेंगे, ऐसा सोचकर रिया ने रितेश को फ़िर से वहां से उठाते हुए कहा, " हिम्मत रखो, रितेश, आप ऐसे रोते रहोगे, तो कैसे चलेगा ? इस वक़्त आपकी ममा को आप की सब से ज़्यादा ज़रूरत है, वह आपको याद कर रही है, आप से मिलना चाहती है, आप को देखना चाहती है, चलो अब अंदर चलते है, आंटी जी से मिलते है और ये छोटे बच्चे की तरह सब से पहले रोना बंद करो। "

        ( रितेश के आँसू पोंछते हुए ) रिया और रितेश कमरे में जाते है, रितेश की ममा इस वक़्त सो रही थी, रितेश धीरे-धीरे अपनी ममा के करीब जाता है, रितेश अपनी ममा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए, अपनी ममा को प्यार करने लगता है, तभी रितेश की आँखों के आँसू की कुछ बूंद रितेश की ममा के हाथों को छूती है, रितेश की ममा झपक के जग जाती है। 


         रितेश ने अपनी ममा को कहा, " तू आ गया बेटा ? मैं तुम्हें कब से याद कर रही हूँ, कहाँ रह गया था तू ? नाजाने कहाँ घूमता रहता है, रातो को ? तुझे पता है ना ? तुझे देखे बिना मेरा दिन नहीं जाता, मुझे रातो को नींद भी नहीं आती और तू है, कि तुझे मेरी बिलकुल भी परवाह ही नहीं है, जा, आज के बाद मैं तुमसे बात नहीं करुँगी, अब चला जा यहाँ से, मुझे अब तेरी कोई ज़रूरत नहीं है, मेरी देख़भाल करने के लिए अब रिया है, मेरे पास।" ( ममा ने रितेश से रूठते हुए, अपना मुँह फ़ेरते हुए, रितेश का हाथ छुड़ाते हुए कहा। ) 

     रितेश रोते हुए अपनी ममा को मनाता है। 

      रितेश ने अपनी ममा को समझाते हुए कहा, कि " आप भी मुझे ऐसे जाने को कहोगे, तो मैं कहाँ जाऊँगा ? आज के बाद मैं आपको कभी भी अकेला नहीं छोड़ूँगा, आज के बाद मैं आपको छोड़ के कभी नहीं जाऊँगा, मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ आप चाहिए और कोई नहीं। "

     ( कहते हुए रितेश अपनी ममा के गले लग जाता है, रितेश की ममा उसके बालों को सहलाते हुए रितेश को प्यार करने लगती है।) दोनों माँ बेटे का प्यार देखकर एक पल के लिए रिया की आँखें भी भर आती है, रितेश डॉक्टर से मिलने जाता है।         डॉक्टर ने कहा, " आपकी मम्मी जी इस वक़्त खतरे से बाहर है, अगर आज उनको वक़्त पर अस्पताल लाया नहीं गया होता, तो शायद आज उनकी जान भी जा सकती थी, आपको अब उनका अच्छे से ख्याल रखना होगा। उनके हार्ट में ब्लॉकेज आए है, जिसका ऑपरेशन करवाना होगा, मगर इसकी अभी ज़रूरत नहीं, कुछ वक़्त आप उनका अच्छे से ख्याल रखे, उनको आराम की सख्त ज़रूरत है और दवाई टाइम पर पिलाते रहिएगा। ठीक है ? अच्छा चलो, अब मुझे दूसरे पेशेंट को भी देखने जाना है, अब मैं चलता हूँ, नर्स आपको दवाई के बारे में समझा देगी। "

       कहते हुए डॉक्टर वहां से चले जाते है, रितेश वहीं कुर्सी पर अपने सिर पर हाथ ऱख बैठ जाता है, रिया वहीं खड़ी थी। रिया रितेश के कंधे पर हाथ रख उसे दिलासा देती है, कि अब तो आंटी जी ख़तरे से बाहर है, तो अब डरने और फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं, तुम घर जाकर ब्रेकफास्ट कर के ऑफिस जाने की तैयारी करो, मैं आंटी जी के पास रुक जाती हूँ, वैसे भी कल तो डॉक्टर जी उनको छुट्टी दे ही देंगे। " 

       रितेश ने कहा, " नहीं, आज मुझे कहीं नहीं जाना, मैं अपनी ममा के पास ही रहूँगा, तुम्हें जाना हो तो जाओ। "


       कहते हुए रितेश अपनी ममा के कमरे की ओर जाने लगता है, रिया उसे जाते हुए देख मन ही मन बड़बड़ाती है, " बिलकुल अभी भी रितेश छोटे बच्चे जैसा ही है, पता नहीं कब बड़ा होगा ? रिया ने सोचा, " आज रितेश को अपनी ममा के पास ही रहने देते है, मैं घर जाकर फ्रेश होकर ऑफिस चली जाती हूँ, देखते हूँ, क्या कर सकते है ? "

      रितेश अपनी ममा के पास अस्पताल में ही रुक जाता है, रिया खिड़की में से दोनों माँ-बेटे को बात करते हुए देखती है, रिया घर जाकर फ्रेश होकर ऑफिस जाकर रितेश के केबिन में जाती है, रिया नैना से आज के मीटिंग्स की डिटेल्स और फाइल्स मंगवाती है, उसके मुताबिक आज का काम वह कर लेगी, ऐसा रियाने सोचा। रिया ऑफिस में रखे टेबल और अलमारी खोल के उसकी कल की प्रेजेंटेशन की फाइल ढूँढने लगती है, रितेश के ऑफिस की अलमारी भी उसकी ज़िंदगी की तरह जैसे बिखरी हुई सी थी, एक भी चीज़ अपनी जगह पर नहीं थी, सब उलट-सुलट रखा हुआ था, तभी रिया के हाथ एक फाइल लगी, जिस में रितेश के पापा ने कुछ लिखा था, शायद उनकी वसीयत के कागज़ थे, ऐसा रिया को देख के लगा, रिया वह फाइल खोल के पढ़ने ही वाली थी, कि तभी नैना रितेश के केबिन में फाइल्स लेकर आती है, तभी नैना रिया को अलमारी में से फ़ाइल निकालते हुए देखते ही रिया को रोक लेती है और कहती है, "  यह आप क्या कर रही है, रिया मेम ? रितेश  सर को उनकी फाइल, उनकी अलमारी या उनकी कोई भी चीज़ छुए, यह उनको बिलकुल भी पसंद नहीं, वरना सर बहुत ही गुस्सा होते है, आप अपने काम से काम रखिए वरना यहाँ से आप भी निकाल दिए जाओगे। "

         रिया ने कहा, " आप भी का मतलब ?"

         नैना ने कहा, " आप भी का मतलब, आप से पहले सर की केबिन में आप जैसे ओर भी आए थे, मगर सर के साथ किसी की नहीं जमती, या तो सर उसे नौकरी से निकाल देते, या तो वह खुद नौकरी छोड़ देते। मैं अब तक इसलिए हूँ, क्योंकि मैं सर के काम में और उनकी ज़िंदगी में कभी दखल-अंदाज़ी नहीं करती, मैं बस अपने काम से मतलब रखती हूँ, क्योंकि मुझे पैसों की और इस नौकरी की सख्त ज़रूरत है और रितेश सर का दिल बहुत बड़ा है, मुझे जब भी पैसो की ज़रूरत हो, वह कभी मना नहीं करते, मेरे मम्मी के घुटनों का ऑपरेशन भी उन्होंने ही करवाया, मेरे छोटे भाई को जॉब दिलाई और मेरी छोटी बहन का कॉलेज का एडमिशन भी उन्होंने ही करवाया, प्लीज आप भी अपने काम से काम रखिए, नहीं तो सर ओर भी ज़्यादा गुस्सा हो सकते है, ऐसा ना हो की आप को भी एक दिन यहाँ से जाना पड़े या आप खुद ही यहाँ से चले जाए। "

        नैना की बात सुनते ही रिया ने अपने हाथ में रखी फाइल फ़िर से अलमारी में रख दी और अलमारी बंद कर दी। 

        रिया ने कहा, " ओह्ह, तो ऐसी बात है, ठीक है, जैसा तुम कहो, अपने काम से काम रखते है, चलो, आज के दिन अब और क्या करना है ? उसकी लिस्ट बनाकर मुझे देदो, तुम्हारे रितेश सर आज ऑफिस नहीं आएँगे, जितना हमें समझ में आए, वह काम हम कर लेते है।" 


       नैना और रियाने मिल के आज के दिन तो ऑफिस का काम कर किया, काम के बिच में रिया अस्पताल में फ़ोन कर रितेश और आंटी जी के बारे में पूछ भी लेती थी, शाम को घर जाकर रिया ने अपनी शीला भाभी को फ़ोन कर के कल रात के बारे में सब कुछ बताया, शीला भाभी को भी अपनी मम्मी की बहुत फ़िक्र लगी रहती थी,  शीला भाभी ने रिया को आंटी जी का अच्छे से ख़याल रखने को कहा, और कहा कि, " इस वक़्त तो मेरा वहाँ आना मुश्किल है और अगर तुम वहाँ हो, तो सब कुछ तुम सँभाल ही लोगी, मुझे पूरा यकीं है। "

        रिया ने कहा, " जी भाभी आप चिंता मत कीजिए, आप बस अपना और मुन्ने का ख़याल रखिए, बाकि सब मुझ पर छोड़ दीजिए, मैं सब देख लूँगी। " 

        रिया को फ़ोन ऱखने के बाद याद आया, कि "शीला भाभी को तो रितेश के बारे में सब पता ही होगा, उनसे पूछ लेती, तो भी चलता, ख़ैर, कोई बात नहीं, फ़िर कभी पूछ लूँगी, इस वक़्त मुझे आंटी जी से मिलने जाना है।"

         आंटी जी को दो ही दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल गई, रितेश अपनी ममा को घर लेकर आता है, रितेश ने अपने सब नौकरो को फ़िर से अपनी ममा का अच्छे से ख्याल रखने को कहा और उनको किसी भी चीज़ की कोई तकलीफ ना होनी चाहिए, ऐसा भी कहा। 

         रितेश की ममा ने रितेश से कहा, " रितेश बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए, तू बस अपना भी थोड़ा ख़याल रखा कर, यह क्या हालत बना रखी है तूने, अपने आप की ? ना ही, कुछ खाने पीने का होश, ना ही कुछ और। बीती बातों को भूल जा बेटा, कब तक उन लम्हों के साथ जीता रहेगा, जिसने तुझे इतना दर्द पहुँचाया, अब नए सिरे से अपनी ज़िंदगी फ़िर से जीना शुरू कर, तुझे ख़ुदबख़ुद अपनी ज़िंदगी प्यारी और खूबसूरत लगने लगेगी, मेरा क्या ? मैं कब तक तेरा साथ दे पाऊँगी ? अब मेरी भी उम्र हो गई है, अब मेरे भी जाने के दिन आ ही गए है, एक ना एक दिन मुझे भी तो तेरे पापा के पास जाना ही होगा ना ! वह भी तो मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ? उसके बाद तो तू..."

         रितेश अपनी ममा की गोदी में अपना सिर रख कर एकदम छोटे बच्चे की तरह बैठा हुआ था और अपनी ममा की सारी बातें सुन रहा था।


     ( वैसे भी रितेश उम्र में सच में रिया से दो साल छोटा भी तो था। ) 

       रितेश ने अपनी ममा से कहा, " मैंने आपको कितनी बार मना किया है ममा, ऐसी बातें मत किया करो, वरना मैं आप से रूठ जाऊंँगा और आप से कभी भी बात नहीं करुगा। "

       रितेश की ममा ने रितेश से कहा, " अच्छा बाबा, अब मुझ से यूँ रूठ मत जाना, अब से नहीं करुँगी ऐसी बात, तेरे सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन ? 

       रितेश ने कहा, " मेरा भी, ममा। "

        ( कहते हुए दोनों माँ-बेटे एकदूसरे के गले लग जाते है, रिया कमरें के बाहर खड़ी दोनों माँ-बेटे की मीठी नौकझौंक सुन लेती है, तभी घर के बाहर से फ़िर से रितेश के दोस्तों की कार आकर हॉर्न बजाने लगती है, वे लोग फ़िर से रितेश-रितेश की आवाज़ लगाते रहते है, रितेश खड़ा होकर फ़िर से अपने दोस्तों के साथ जाने लगता है, तभी रितेश की ममा उसका हाथ पकड़ लेती है और रितेश से कहती है, " आज के दिन भी तू फ़िर से मुझे अकेला छोड़ के चला जाएगा ? ऐसी भी क्या बात है, इन शराबी दोस्तों में और शराब में, कि तू मेरी भी नहीं सुनता ? "

         रितेश की ममा अपने नौकरो को आवाज़ लगाते हुए कहती है, " बाहर जाकर कह दो उनको, आज के बाद साहब नहीं आएँगे, फ़िर कभी वापस भूल के भी यहाँ ना आए, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा। " 

         भला ऐसे भी किसी के दोस्त होते है, दुनिया में ? किसी के बारे में या किसी का अच्छा बुरा कुछ सोचते ही नहीं। ( मन ही मन बड़बड़ाते हुए ) और रितेश रुक जाता है, वहीं अपनी ममा के पास, तभी रिया कमरें में आंटी जी से मिलने आती है, आंटी जी रिया को देख के बहुत खुश हो जाती है, रितेश की ममा रिया से कहती है, "आजा बेटी, तू कब आई ? "

       रिया ने कहा, " बस अभी-अभी आंटी, जब आप माँ-बेटे मीठी तकरार कर रहे थे, अब आपकी तबियत कैसी है ? "

       ( रितेश यह सुन तिरछी नज़र कर उस रिया की ओर देखता है।)

        रितेश की ममा ने रिया से कहा, " अब तो मैं ठीक ही हूँ, मगर मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे इस पागल बेटे की फिक्र लगी रहती है, अगर यह खुद को सँभाल ले या इसे कोई सँभालने वाली आ जाए, तो मैं फिर शांति से मर सकूँगी। "

        रिया ने कहा, " बार-बार आप ऐसी बातें क्यों करती है आंटी जी ? आप अपने बेटे की फ़िक्र करना अब छोड़ दीजिए, मैं हूँ ना ! इसको अब सीधे रस्ते पर लाके ही रहूँगी और इसके लिए मैंने एक अच्छी लड़की भी ढूँढ ली है ।( रिया थोड़ा सा मज़ाक करते हुए कहती है। )


     ( रितेश चिढ़ते हुए रिया की ओर देखता है। )

       रितेश की ममा ने कहा, " कौन है वो लड़की ? जल्दी से मुझे उस लड़की के बारे में बता। "

         रिया ने कहा, " हमारी ऑफिस में रितेश की जो असिस्टेंट है, ना ! नैना। बस वहीं, मुझे लगता है, रितेश के लिए वह लड़की बहुत अच्छी रहेगी, वह रितेश को बहुत मानती भी है और आज तो वह ऑफिस में रितेश की बहुत तारीफ़ भी कर रही थी, अगर आपकी हाँ, हो तो में उस से और उसके घरवालों से रितेश और नैना की शादी की बात चलवाऊँ ? " 

         रितेश गुस्से में आकर वहाँ से खड़ा हो जाता है, और कहता है, " कोई जरूरत नहीं मुझे किसी नैना या किसी लड़की की, अपनी ज़िंदगी में। मैं अपना ख़याल ख़ुद ऱख सकता हूँ और अपनी ज़िंदगी अकेले जी भी सकता हूँ और मैं खुश भी हूँ, फ़िर कभी मेरे सामने किसी लड़की की बात मत करना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा, समझ गई ? "

     कहते हुए रितेश गुस्से में आकर फ़िर से ऊपर अपने कमरे में चला जाता है और ऊपर जाकर अपने कमरें का दरवाज़ा अंदर से ज़ोर से बंद कर देता है, रिया रितेश के गुस्से को देखती ही रह जाती है, एक पल के लिए उसकी आवाज़ से काँप भी गई, फ़िर उसने अपने आप को सँभाल लिया और आंटी जी और रिया दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखते हुए हँस पड़ते है।  

        ममा ने रिया से कहा, " देखा, देखा ना इसका गुस्सा, गुस्सा तो हर वक़्त इस की नाक पर रहता है, जब देखो तब उखड़ा-उखड़ा सा रहता है, मेरा बेटा, पहले ऐसा नहीं था ये, मेरे बेटे ने पहले कभी शराब को छुआ भी नहीं था, उसे यह सब पसंद ही नहीं था और जो लड़के शराब पीते हो, जुआ खेलते है, उसके साथ तो दोस्ती भी नहीं करता था, उन सब से दूर ही रहता था, मेरा बेटा, हसी-मज़ाक बहुत किया करता था, पहले से ही ज़िद्दी भी बहुत था, अगर उसे कुछ चाहिए, तो चाहिए ही, वरना पूरा घर सिर पर उठा लिया करता, उसके पापा भी उसे बहुत प्यार करते थे, इसलिए रितेश की सारी ज़िद्द पूरी किया करते, रितेश भी अपने पापा से बहुत प्यार करता था, ज़िद्द करके रितेश ख़ुद पढाई के लिए विलायत पढ़ने गया था, पढाई और स्पोर्ट्स में भी वह नंबर one था। पहले तो वह कभी अकेला बैठता ही नहीं था, दोस्तों के साथ घूमने जाना, मूवी देखना, गाना-गाना, जिम करना, सुबह दौड़ने जाना, हंसना हंसाना, जब भी घर में आता,  तूफ़ान की तरह आता, घर में हसी और खुशियों की एक लहर सी उठ जाती। आज कल तो वह कब घर आता और कब घर से जाता, पता भी नहीं चलता, इसके घर आने से घर में खुशियों का तूफान नहीं, बल्कि उसके गुस्से का तूफान उसके साथ होता है, वो तो मैं हूँ, जिसने इसे सँभाल कर अब तक रखा है, मुझे यही डर है, कि अगर मुझे कुछ हो गया तो तब इस पगले का क्या होगा ? कौन इस को सँभालेगा ? "

     आंटी की ऐसी बात सुन रिया को रितेश पर बड़ी दया आती है।  

        रिया ने पूछा, " ऐसा क्या हुआ था,  रितेश के साथ, कि वह इतना बदल गया ? बताइए आंटी जी, शायद मैं आपकी और रितेश की कुछ मदद कर सकूँ, मगर इसके लिए मुझे उसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। "

       रितेश की ममा ने ( रोते हुए ) कहा, "हां, बेटा तुझे नहीं बताऊँगी, तो और किसे बताऊँगी ? मैं और उसके पापा एक दिन..."

        रितेश की ममा जी आगे बात बताने ही जा रहे थे, कि ऊपर रितेश के कमरें से ज़ोर-ज़ोर से चीखने की आवाज़ आती है और साथ में कुछ चीज़ें टूटने और गिरने की भी आवाज़ आती है। 

      रितेश की ममा ने कहा, " यह कैसी आवाज़ थी ? रितेश इस तरह चिल्ला क्यों रहा है ? "

     रिया ने कहा, " आप फ़िक्र मत कीजिए, आंटी जी, मैं ऊपर जाके देखती हूँ। "

    रितेश की ममा अपने नौकरों को आवाज़ लगाते हुए कहती है, कि  " ऊपर जाके देखो, रितेश को क्या हुआ ? है भगवान्, मेरे बेटे पर कुछ तो रहम कर, उसकी हर परेशानी मुझे देदे, मगर उसे ठीक कर दे, पहले की तरह। " 

        ( भगवान् जी से प्रार्थना करते हुए ) 

      रिया भागी-भागी रितेश के कमरें तक जाती है, कमरें के बाहर खाली काँच की बोटल टूटी पड़ी हुई थी, टेबल भी टुटा हुआ था, पूरा कमरा बिखरा हुआ था, रितेश अपने कमरें के एक कोने में काँपता हुआ, अपने पाँव को अपने हाथों में लपेटे हुए बैठा हुआ था, उसकी आँखें भी लाल हो रही थी, उसके बाल बिखरे हुए थे, उसके कपड़े भी फटे हुए थे, उसके नौकर उसके पास जाने से डरते थे, पूछ ने पर पता चला, कि जब भी साहब रात को बाहर नहीं जाते, उस रात घर में यही सब होता है, सुबह होते साहब फ़िर से नॉर्मल हो जाते है और बिना माजी से मिले और बिना उनसे बातें किए बाहर ऑफिस के लिए चले जाते है, रिया को रितेश की हालत पर और भी तरस आता है, रिया ने रितेश को पानी पिलाने की कोशिश की, मगर उस वक़्त रितेश ने ज़ोर का धक्का देकर रिया को भी दूसरी ओर गिरा दिया, रिया को भी एक पल के लिए अब रितेश से डर लगने लगा, मगर रिया ने हिम्मत नहीं हारी, रिया ने तभी डॉक्टर को फ़ोन कर के बुलाया, डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन देकर सुला दिया और रितेश का ब्लड टेस्ट करवाने को कहा। रिया ने तभी रितेश का ब्लड टेस्ट करवाने को दे दिया। नौकरों ने फ़िर से रितेश का पूरा कमरा साफ किया। डॉक्टर के जाने के बाद रिया कुछ देर वहीं रितेश के पास बैठी रही और उसको एक नजर देखते हुए अपने हाथों से उसके बालों को सवारती रही और मन ही मन सोचती रही, ऐसा क्या हुआ होगा, रितेश की ज़िंदगी में, जो उसे इतना दर्द पहुँचा रहा है ? रितेश के सो जाने के बाद रितेश के बारे में सोचते-सोचते रिया की भी आँख लग जाती है, सुबह जब रिया की आँख खुलती है, तब उसने देखा, कि बिस्तर पर रितेश नहीं था, उसे बड़ा अजीब लगा, रात को इतना परेशान और डरा हुआ इंसान सुबह इतनी जल्दी कहाँ चला गया ? ऐसा कैसे हो सकता है ? रिया को नौकरों की  कहीं बात याद आती है, कि " सुबह को साहब फ़िर से नॉर्मल हो जाते है। " 

      सोचते हुए रिया अपने घर जाने के लिए नीचे उतरती है, तब रिया एक नज़र आंटी जी के कमरे में करती है, तो आंटी जी सो रही होती है, तो उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना, ये सोचकर रिया अपने घर जाती है, घर का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था, जैसे कोई घर का लॉक खोल के अंदर गया हो, घर के बाहर किसी के पाँव के निशान नज़र आते थे, रिया को थोड़ा डर लगा, क्योंकि घर की एक चाबी उसके पास थी और दूसरी चाबी रितेश के पास, तो अंदर कौन होगा ? 

        यह सोचते हुए रिया अपने क्वार्टर में जाती है, मगर घर में कोई नहीं था, रिया अपने कमरें की ओर बढ़ती है, तब बगलवाले कमरे में से कुछ आवाज़ सुनाई दी, उसने डर के अंदर देखने की कोशिश की, रिया ने देखा, कि कमरें में रितेश ही था और कमरें में हर चीज़ जैसे सफ़ेद चद्दर से ढकी हुई थी, आगे और कुछ देख पाए, उस से पहले ही रिया के हाथों से चाबी नीचे ज़मीन पर गीर जाती है, चाबी की आवाज़ से रितेश को पता चल जाता हैं कि कमरें के बाहर रिया है, रितेश तुरंत कमरें के बाहर आता है और   कमरें का दरवाज़ा लॉक कर देता है, रिया को बाहर देखकर रितेश रिया से पूछता है, कि "आपको कुछ चाहिए ? "

   रिया ने कहा, " जी नहीं, मैं तो बस ऐसे ही..." 

     रितेश ने कहा, " ठीक है, तो फ़िर अपने काम से काम रखिए।"     

       कहते हुए रितेश कमरें का दरवाज़ा बंद कर वहाँ से चला जाता है। 

    रिया को उस वक़्त बहुत अजीब लगा, उस वक़्त रिया फ़िर से रितेश को जाता हुआ देखती ही रह गई, जाते-जाते रितेश ने कहा, ठीक १० बजे। इसका मतलब रितेश ठीक १० बजे उसे ऑफिस के लिए लेने आएगा, रिया ऑफिस के लिए तैयार होने में लग गई। "

                   आगे क्रमशः। 

     तो दोस्तों, क्या रिया कभी रितेश की ज़िंदगी के बदलाव और उसकी ज़िंदगी के बारे में कभी जान पाएगी ? अब रितेश की ज़िंदगी में आगे क्या होगा ? यह आप में से क्या कोई बता सकता है?




                                                                   

                       

     


    





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