इम्तिहान भाग - ११
तो दोस्तों, अब तक आप सबने पढ़ा, कि रिया की भाभी शीला के आख़िरी महीने चल रहे थे, तो रिया के अपने घर जाने के बाद कुछ ही दिनों में शीला भाभी ने एक नन्हे-मुन्ने लड़के को जन्म दिया, घर में बच्चे के आने से सब लोग बहुत खुश थे, रिया ने मन लगाकर शीला भाभी की सेवा की, उस के कुछ महीनों के बाद मुन्ना जब थोड़ा बड़ा हो गया, तब शीला भाभी ने रिया को जॉब के लिए अपने भाई रितेश के पास दुबई जाने को कहा, पहले तो रिया ने इतनी दूर जाने के लिए मना कर दिया मगर बाद में वह जाने के लिए मान गई, क्योंकि रिया को अब भी रूद्र की याद बहुत सताती थी, यह बात और थी, कि उसने कभी किसी के आगे अपने प्यार के बारे में ज़ाहिर नहीं होने दिया, घर में मम्मी-पापा का आशीर्वाद और भैया-भाभी और मुन्ने का प्यार लेकर रिया दुबई के लिए रवाना होती है, दुबई एयरपोर्ट पहुँच कर रिया रितेश का इंतज़ार कर रही थी, मगर रितेश ने आने में बहुत देर कर दी। रितेश के देर से आने की बजह से रिया थोड़ी सी उस पर चिढ़ जाती है, रितेश ने अपने घर के करीब जो कवाटर्स था, उसमें रिया के रुकने का इंतेज़ाम पहले से कर रखा था, क्योंकि उसकी बहन शीला, जो रिया की भाभी है, उसने रितेश को रिया के बारे में अच्छे से सब कुछ बता दिया था, कि " रिया बहुत ही अच्छी लड़की है और उसका अच्छे से ख्याल रखना, दुबई शहर उसके लिए एक दम नया है, हर वक़्त उसके साथ रहना और उसकी तुम्हारे लिए बिलकुल शिकायत नहीं आनी चाहिए, मैं फ़ोन कर के उस से रोज़ बात करती रहूँगी, इसलिए रितेश अपनी ओर से पूरी कोशिश करता है, रिया का ख़याल रखने की।" अब आगे...
रिया ने पहले तो पूरा घर आराम से देखना शुरू किया और अपना सारा सामान घर में सेट करने लगी, ताकि वह दूसरे दिन सुबह से ही ऑफिस जाके अपना काम सँभाल सके, घर के एंट्रेंस डोर से अंदर आते ही एक बड़ा ड्राइंग रूम था, उसके पीछे किचन और किचन के करीब बगल में एक छोटा सा गेस्ट रूम था, ऊपर जाने के लिए सीढ़ी थी, ऊपर दो कमरे और थे, एक कमरे पर ताला लगा हुआ था, उसी दरवाज़े के करीब टेबल पर एक चिठ्ठी रखी हुई थी, जो शायद रिया के नाम ही थी, जिस में लिखा था, कि "इस कमरें में जाने की मनाई है, अगर किसी ने इस कमरें के अंदर जाने का सोचा, तो वह सजा के लिए तैयार रहे। " रिया को यह पढ़कर बड़ा अजीब लगा मगर तब रिया ने उस बंद कमरें पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और रिया चिठ्ठी वही छोड़ कर उसके बगल वाले कमरें में अपना सारा सामान ऱख दिया, क्योंकि उसे वह कमरा अच्छा लगा, कमरें में एक तरफ़ बड़ा सा बिस्तर था, बगल में अलमारी और उसके करीब स्टडी टेबल, जिस पर कुछ बुक्स रखी हुई थी, स्टडी टेबल के बगल में एक बड़ी सी खिड़की थी, खिड़की खोल के बाहर देखा, तो सामने बस खुला आसमान था, दूर-दूर तक कोई घर नहीं था, चारों तरफ़ पेड़-पौधे थे और थोड़ी और दूर नज़र करने पर पहाड़ भी नज़र आता था, जिस के पीछे से सूरज डूबता शायद उसे नज़र आएगा, ऐसा उसे लगा, रिया को ख़ामोशी बहुत पसंद है, जहाँ पर सिर्फ हवा के आने-जाने की धीमी आवाज़ आती हो और दूसरी तरह पेड़-पौधे पर चुपके से बैठे हुए पंछी, जो सुबह शाम इधर-उधर आसमान में बादलों के साथ जैसे खेल रहे हो, वैसे घूमते रहते है, उनकी आवाज़ रिया को प्यारी लगती थी, इस बार रिया अपने साथ एक parrot भी लेके आई थी, वह parrot रिया ने airport से आते वक्त रास्ते में से लिया था, रिया को वह parrot देखते ही बहुत पसंद आ गया था, रिया वह parrot के पिंजरे को टेबल पर रखकर उस से बातें करती है, उसे भी पूरा घर दिखाती है, मतलब रिया को घर और यहाँ का माहौल अच्छा लगा। अब आगे...
तभी रिया के शीला भाभी का फ़ोन आता है।
शीला भाभी ने कहा, " हेल्लो, रिया, तुम आराम से पहुंँच गई ना ? तुम्हारा कोई मैसेज या कॉल नहीं आया, इसलिए मुझे तुम्हारी फ़िक्र हो रही थी, देखो ना रितेश भी मेरा फ़ोन नहीं उठा रहा। "
रिया ने कहा, " अरे भाभी, आप मेरी फ़िक्र मत करो, मैं अच्छे से पहुँच गई हूँ। "
शीला भाभी ने कहा, " रितेश वक़्त पर लेने तो आ गया था ना ? उसने तुमसे कोई ऐसी वैसी बात तो नहीं की ना ?"
रिया ने कहा, " उन्होंने आने में थोड़ी नहीं बल्कि बहुत देर कर दी थी, मगर कोई बात नहीं मैंने उनका इंतज़ार किया था, और भला। मैं जाती भी तो कहा ? मैं उनके साथ ही यहाँ आई हूँ, अभी मैं अपना सामान ही सब ऱख रही थी, तभी आपका फ़ोन आ गया। "
शीला भाभी ने कहा, " अच्छा, मैंने रितेश को कितनी बार कहा था, कि वक़्त पर पहुँच जाना, मगर ये लड़का सुधरेगा नहीं, शायद आज छुट्टी है, इसी बजह से, मगर वह दिल का बहुत अच्छा है, तुम उसकी किसी बात का बुरा मत मानना, अगर कोई भी प्रॉब्लम लगे, तो मुझे तुरंत कॉल कर के बताना। "
रिया ने कहा, " अच्छा भाभी, अब मैं यहाँ आई हूँ तो सब सँभाल ही लूँगी, आप अपना और मुन्ने का ख़याल रखिए, वैसे मुन्ना कर क्या रहा है आज ? अपनी बुआ को मिस करता है या नहीं ? "
शीला भाभी ने कहा, " हां, मुझे पता है, तू वहाँ सब सँभाल ही लेगी और मुन्ना अभी सो रहा है, थोड़ा झुकाम हो गया था, तो मैंने उसे दवाई पीला दी है, ठीक हो जाएगा और जो मैंने तुझे कहा था, वह याद तो है ना ? "
रिया ने कहा, " हाँ भाभी, अच्छे से याद है, मुझे आपकी मम्मी से मिलने उनके घर जाना है, उनसे बातें करनी है, मैंने शाम को आंटीजी से मिलने जाने के बारे में सोचा है, अभी यहाँ मैं... "
शीला भाभी ने कहा, " अच्छा ठीक है ! तुझे जब भी वक़्त मिले चली जाना, अपना ख़्याल ऱखना, कुछ भी ऐसा वैसा लगे तो मुझे बताना। "
उसके बाद रिया किचन में जाती है, रसोई का थोड़ा बहुत सामान भी पहले से ही रखा था, उसे भूख़ भी लगी थी, कुछ मेगी, पास्ता और वैजिटेबल्स फ्रिज़ में रखे हुए थे। लेकिन रिया को सूप और फ्रूट्स खाने की आदत है, उसे मेगी, पास्ता इतना अच्छा नहीं लगता, मगर इस वक़्त उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था, इसलिए उसने पहले मेगी बनाई और मेगी का बाउल लेकर बाहर बालकनी में चली गई, बाहर एक झुला था, उसे झुले पर बैठना अच्छा लगता, रिया आराम से बैठकर झूले का मज़ा लेने लगी।
शाम को तक़रीबन ६ बजे रिया फ्रेश होकर अच्छी सी कुर्ती और जीन्स पहन कर रितेश के घर उनकी मम्मी से मिलने जाती है, जैसा शीला भाभीने कहा था, बाहर से ही रितेश का घर बहुत बड़ा लग रहा था, घर के आगे छोटा सा गार्डन भी था, जिस में बहुत सारे पौधे लगाए हुए थे, घर का नाम शारदादेवी रखा था, वह बाहर बोर्ड पर ही लिखा था, इस घर के बाहर भी बालकनी में झूला रखा हुआ था, रिया घर के अंदर जाती है, घर में दरवाज़े के सामने ही कान्हाजी की मूर्ति थी, बड़ा सा कमरा, सोफ़ा, t.v, डाइनिंग टेबल, खिड़की पर लगे परदे सब कुछ एकदम परफेक्ट लग रहा था, देखने पर लगता था, इंटीरियर पे अच्छा ख़र्चा किया होगा। तभी सामने से व्हील-चेयर पर एक औरत अंदर से बाहर आती है, उसने रिया से पूछा, " कौन है आप ? "
घर के नौकर ने कहा, " माजी, कोई रिया नाम की लड़की आप से मिलने आई है। "
माजी ने कहा, " ओह्ह ! रिया आई है ! उसे सोफ़े पर बिठाओ, चाय-पानी और नास्ते का इंतेज़ाम करो, कहते हुए माजी, सोफ़े की और आगे बढ़ी और रिया से कहती है, "अरे, तो तुम हो रिया बेटी, जिसके बारे में शीला ने बताया था, अच्छा हुआ बेटी, तुम आ गई तो, कैसी हो तुम ?"
रिया ने ( माजी के पाँव छूटे हुए ) कहा, " मैं तो ठीक हूँ, आप कैसे हो ?"
माजी ने ( आशीर्वाद देते हुए ) कहा, " खुश रहो बेटा, मैं भी ठीक ही हूँ, बस देखो, इस व्हील चेयर पर अब तो ज़िंदगी कट रही है, और तो क्या ? बहुत साल बाद मिले, रिया की शादी में मिले थे, मगर तब तो तुम छोटी लगती थी और किसी काम की बजह से एक दिन में ही चली गई थी, इसलिए उस वक़्त तो ज़्यादा बातें नहीं हो पाई थी, अब तुम यहाँ आ ही गई हो, तो वक़्त मिले तो मिलने आ जाया करना, मुझे अच्छा लगेगा, यहाँ इस बड़े से घर में मैं और रितेश ही तो रहते है, रितेश के पापा के जाने के बाद मैं एकदम अकेली हो गई हूँ, रितेश ज्यादातर अपने काम में और दोस्तों में बिज़ी रहता है, कभी-कभी तो मुझ से मिलता भी नहीं, कब आता है, कब जाता है ? पता ही नहीं चलता, बस हर पल अपनी ही धुन में रहता है।"
रिया ने कहा, " माजी, लड़के शायद ऐसे ही होते है, जाने दीजिए, लेकिन आप उससे कुछ कहती नहीं ? "
माजी ने कहा ," कहती हूँ ना ! मगर मेरा कहा वह सुने तब ना ! लेकिन इतना तो है की मुझ से बहुत प्यार करता है, मेरा ख्याल भी बहुत रखता है, मुझ से ज़्यादा बात नहीं करता मगर नौकरों से पूरे दिन में फ़ोन कर के पूछता रहता है, कि मैं क्या कर रही हूँ ? डॉक्टर्स भी घर पर ही आ जाते है, मेरे चेक-अप के लिए, अगर मुझे कुछ हुआ तो वह पूरा घर सिर पर उठा लेता है, (हस्ते हुए ) सब नौकरों की आ बनती है तब। "
रिया ने कहा, " ओह्ह ! ऐसा, लेकिन ऐसा क्यों ?"
माजी ने कहा, "अब तुझ से क्या छुपाना बेटी। बात तो यह है, कि... "
तभी रितेश ऊपर अपने कमरें से नीचे आता है, वह समझ जाता है, उसकी माँ, उसी के बारे में शायद बताने की कोशिश कर रही थी... तभी रितेश ( अपने बालों पर हाथ फेरते हुए आता है, ऐसा लगता था, जैसे वह गहरी नींद में से अभी अभी ही जगा हो )और कहने लगते है, "ममा, क्या आप भी ? आप को कितनी बार कहा है, बीते बातें भूल जाया करो, सब को सब कुछ बताना ज़रूरी है क्या ? ( रिया की तरफ तिरछी नज़र करते हुए, जैसे वह रिया को कुछ बताना नहीं चाहता था, अपनी माँ के गले लगते हुए कहता है )
माजी ने भी रितेश को प्यार करते हुए कहा, " मैं कहाँ सब को कुछ बताती हूँ, वैसे भी रिया अपनी ही तो है, पराई थोड़ी है।"
रितेश ने ( अपनी माँ को चुप कराते हुए ) कहा, "आज आपने अपनी दवाई ली या नहीं ? वह नर्स एक्सरसाइज करवाने अब तक आई नहीं ? " ( माँ की फिक्र करते हुए )
माजी ने ( अपने बेटे को प्यार करते हुए ) कहा, "दवाई तो मैंने लेली, मगर वह नर्स को आज बाहर जाना था, उसने मुझे फ़ोन कर के बता दिया, कल आएगी। "
रितेश चिढ़ते हुए उस नर्स को फ़ोन लगाने लगता है ।
रितेश बड़बड़ाते हुए कहने लगता है, " बस आजकल सब को छुट्टी का बहाना चाहिए, पैसे लेने सब वक़्त पर आते है, काम के लिए नहीं, अभी लेता हूँ, उसकी ख़बर।"
रितेश के हाथ से माजी फ़ोन छीनते हुए कहती हैं, " अब छोड़ो भी, होगा कुछ ज़रूरी काम, कभी-कभी किसी की मज़बूरी भी समझा करो, एक दिन एक्सरसाइज नहीं करुँगी, तो मैं मर नहीं जाऊँगी। "
रितेश थोड़ा गुस्सा होते हुए कहता है, कि " मेरे सामने फ़िर से मरने की बात की ना तो... देख लेना, मैं कहीं दूर चला जाऊँगा। "
माजी की आँखें भर आती है।
माजी ने कहा, " हाँ, तू भी चला जा, अपने पापा की तरह, मुझे इस बड़ी सी हवेली में अकेला छोड़कर।"
रितेश माजी को मनाते हुए कहता हैं, " बस माँ, मैं तो ऐसे ही।"
दोनों माँ-बेटे एक दूसरे के गले मिलते है, दोनों माँ-बेटे की प्यार भरी तकरार देखते हुए रिया की आँखों में भी आंँसू आ जाते है, तभी नौकर जिसका नाम रामु था, वह नास्ता और चाय लेकर आता है।
माजी ने कहा, " लो बेटी, चाय और नास्ता कर लो, तुम्हें भी भूख़ लगी होगी, मेरा बेटा तो एकदम पागल है, उसकी बात पर ज़्यादा ध्यान मत देना।"
रिया ने कहा, " अरे, इन सब की क्या ज़रूरत थी, आंटी ? वैसे भी मैं चाय पीती नहीं और नास्ते के लिए मुझे अभी भूख़ नहीं, वैसे भी मुझे इतने heavy नास्ते की आदत ही नहीं।"
रितेश प्लेट में से समोसे और वेफर्स लेते हुए कहता है, "लेकिन मुझे तो बहुत भूख़ लगी है और वैसे भी समोसे देख़कर कौन कंट्रोल करता है, ममा ? ( समोसे मुँह में ऱखते हुए ) its sooo yyuumm... रामुकका आप कमाल हो। आप नहीं होते तो मेरा क्या होता ? "
( रितेश ने देखा, रिया को अपनी ओर आँखें बड़ी करते हुए, वापस समोसे प्लेट में ऱखते हुए ) रितेश ने कहा, " ओह्ह ! सॉरी। "
रिया ने कहा, " नो सॉरी, you carry on." ( हंसते हुए )
माजी ने कहा, " अच्छा तो मैं तुम्हारे लिए कॉफ़ी या juise मँगवालु ?"
रिया ने कहा, " अरे, नहीं ! सच में मुझे कुछ नहीं चाहिए, अब तो मेरा आना-जाना लगा ही रहेगा। "
रितेश चिढ़ते हुए, मन ही मन बड़बड़ाता है, " कितना भाव खाती है ! "
रिया ने कहा, " जी, आपने कुछ कहा ?"
रितेश ने कहा, " जी, मैं... मैं क्या कह सकता हूँ ?"
रिया ने कहा, " हहमम... अच्छा तो आंटी, मैं चलूँ ? मुझे कुछ काम याद आया है।"
माजी ने कहा, " अरे, अभी तो आई हो तुम, आज रात को खाना खा के ही जाना, बहुत दिनों के बाद कोई अपना घर आया है, बैठ के बातें करेंगे। "
रितेश ने गले से आवाज़ करते हुए " फ़िर से माँ !"
माजी ने कहा, " तेरी बात कौन करता है ? मुझे अपनी बात करनी है, तू जा अपने दोस्तों के साथ पार्टी में। "
रिया ने कहा, " आंटी, मैं ज़रूर रुक जाती, मगर आज नहीं, फ़िर कभी, मुझे सच में कुछ काम है। "
माजी ने कहा, " अच्छा, तेरी यही मर्ज़ी है, तो तू जा, लेकिन जब भी आने का मन हो तब आ जाना और अगर रितेश तुझे ज़रा भी परेशान करे, तो मुझे बता देना, मैं इसके कान ही खिंच लूँगी।"
रिया ने ( हंसते हुए ) कहा, " माजी, आप इसकी फिक्र मत करो, इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, अब मैं चलती हूँ।"
रिया रितेश की ओर अपने जाने का इशारा करते हुए रितेश को सिर्फ़ byyy कहती है।
रितेश अपना चेहरा थोड़ा एक तरफ़ करते हुए, नज़रों से और हाथों के इशारों से रिया को byy कहता है, उस वक़्त जैसे रितेश बहुत ही प्यारा और मासूम लगता था, रिया अपने कवाटर्स चली जाती है, रितेश अपनी माँ को गले लगकर प्यार करने लगता है, रिया को इन दोनों से मिलकर अच्छा लगा, उसे फ़िर से कुछ लिखने का मन किया, रिया अपने कमरे में जाकर खिड़की से बाहर देखने लगी, उसे एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे वह कुछ पल के लिए रूद्र को भूल ही गई थी, उसका ख़याल ही आज उसे नहीं आया। मगर....
" अकेले में अक्सर वही बातें और लम्हें याद आते है, जिसे हम भूल जाना चाहते है, मगर यह हो नही सकता और फिर से अपने बीते हुए उन्हीं लम्हों में ना चाहने पर भी कुछ पल उन लम्हों को फिर से जैसे जीने लगते है, जिस पल ने कभी हमारे दिल को छू लिया होता है। रिया अपने आप से बातें करने लगती है, रूद्र तुम्हारे अलावा मैंने कभी किसी लड़के के बारे में सोचा ही नहीं, कि लड़के ऐसे भी होते है, मैंने लड़कों को तुम्हारी नज़र से ही देखा है, मगर दुनिया में कुछ लड़के ज़रा हटके भी होते है, जैसे की, रितेश। बहुत ही अजीब लड़का है, शायद उसको समझना उतना ही मुश्किल, जितना तुमको समझना आसान था। रिया अपनी डायरी को गले लगाकर कर अपनी आँखें बंद कर कुछ पल वही बैठी रही।
तो दोस्तों, रितेश की माँ किस बारे में रिया को बताना चाहती थी ? जिसे रितेशने सही वक़्त पर आकर बताने से रोक दिया, क्या आप बता सकते हो ?
अब, आगे क्रमशः
Comments
Post a Comment