MAN KE BHAAV

                             

         मन के भाव 

       हमारी पहचान हमारे चेहरे और नाम से जुडी हुई है। मेरा परिचय और मेरी पहचान मैं कैसे बताऊ ? 

      सब से पहले तो हम यही कहेंगे, कि हम एक हाउस वाइफ है।  हमारे दो बच्चे है, जो इस वक़्त काफी बड़े हो गए है, पहले मैं  उनको सिखाती थी, अब मोबाइल और इंटरनेट के ज़माने में वह हमें सिखाते है। 

     मेरी अपनी खुद की बात करू तो, मुझे बचपन से ही कहानी पढ़ने का और मूवी देखने का भी बहुत शौक़ था, और साथ में ढ़ेर सारे सपने पलकों पे मेरी नाचते रहते। जो कभी मैं पूरा ना कर सकी, या कहूँ तो अपने आपको पहचान ना सकी। क्योंकि मैं उम्र के साथ बड़ी तो होती गई मगर दुनियादारी की समझ मुझ में बिलकुल नहीं थी और इसी का फ़ायदा लोगों ने उठा लिया। फ़िर भी मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं।  मैं बस अपने आप के साथ ज़्यादा रहती थी, मुझे दूसरों की ज़िंदगी में ताकझाँक करने की बिलकुल आदत नहीं और मुझे अच्छा भी नहीं लगता। मुझे ज़िंदगी से क्या चाहिए था, ये भी पता नहीं था। या सच कहुँ तो आज भी पता नहीं। बस देखो जिए जा रहे है और अपना कर्म किए जा रहे है। 

       बचपन से मैं  मेरे घर आ रहे न्यूज़ पेपर और मैगज़ीन की सारी कहानी पढ़ा करती, उन कहानियों में शायद मैं कभी-कभी अपने आपको ढूँढा करती कि शायद किसी दिन मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ तो ? उस वक़्त मुझे एक आदत थी, अपनी डायरी में सब से छुपके-छुपाते अपने पुरे दिन और दिल की बातें लिखने की... 

       उस वक़्त मैं बहुत नासमझ थी, मुझे नहीं पता था, कि इस तरह अपने दिल की बात कागज़ पे लिख पाना, सब को नहीं आता। जो बात मैं किसी को कह नहीं सकती, वह बात मैं अपनी डायरी में लिखा करती। फ़िर कुछ सालों बाद मैं वह डायरी या तो फाड़ देती या तो अपनी बुक्स के साथ पस्ती में दे देती ताकि मेरी वह डायरी किसी के हाथ ना लगे, और कोई पढ़ भी ना सके। 

       मुझे उस वक़्त नहीं पता था, कि ऐसे लिखना भी अपने आप में एक कला है, जो हर कोई नहीं कर पाता। मैं हमेशां सोचा  करती, जो मेरी उम्र की लड़कियांँ  बड़ी आसानी से कर जाती, वह मैं नहीं कर पाती। जैसे की ड्रॉइंग, डांस, गरबा, सिलाई करना, आर्ट एंड क्राफ्ट में नई-नई चीज़े बनाना, खुल के हसना, खुल के बातें करना, खुल के ज़िंदगी जीना, मेहँदी लगाना, सजना-सवरना और भी बहुत कुछ जो मेरी उम्र की लड़कियांँ बड़ी आसानी से कर जाती मगर मेरे लिए बहुत मुश्किल होता, तब मैं  मन ही मन अपने आपको कोसती रहती, अपने आप पे शर्मिंदा होती, कि मैं कैसी लड़की हूँ, जो मुझे कुछ भी नहीं आता। शादी के बाद जैसे-तैसे कर के कुछ  खाना बनाना तो सिख लिया। अब मैं you tube पे देख के अच्छा खाना भी बना लेती हूँ, घर में मेरे खाने की तारीफ़ जब करते है, तब दिल को तसल्ली हुई, कि चलो ज़िंदगी में कुछ तो आता है मुझे। और हाँ, मेरे पति भी मुझे बहुत समझाते, कि मैं जैसी भी हूँ, अच्छी हूँ।  क्योंकि जो दूसरे करते है, वह मैं नहीं कर सकती, मगर जो मैं करती हूँ, वह भी दूसरे नहीं कर पाते। ये सुनकर मेरे दिल को तसल्ली मिलती। 

        फ़िर कभी-कभी मुझे ख्याल आता, कि मैं अपना रिटायर टाइम कैसे बिताऊंगी ? मेरे मुताबिक ज़िंदगी में सब से मुश्किल वक़्त यही होता है। रिटायर्मेंट के बाद क्या करे ? वैसे तो मैं कोई जॉब नहीं करती मगर सोचती की बच्चे बड़े होके अपनी ज़िंदगी में बिजी हो जाएँगे, मेरे पति अपने काम में बिजी रहते है, मगर मेरा क्या ? फ़िर एक दिन मैंने you tube पे एक वीडियो में देखा, कि आज कल लोग ब्लॉग पे कहानी और शायरी लिख़ के भी पोस्ट करते है। तब मैंने सोचा मैं भी कुछ लिखने की कोशिश करती हूँ। फ़िर मैंने अपने बच्चे और मेरे पति की मदद से लैपटॉप पे ब्लॉग पे अपना अकाउंट खोला और जो भी मेरे खयालो में आता, वैसी कहानी मैं लिखा करती। लिखना मुझे अच्छा लगने लगा। लिखते-लिखते वक़्त कहाँ बीत जाता पता ही नहीं चलता। फ़िर वह कहानी मैं फेसबुक पे पोस्ट करने लगी। वहां सब को मेरी कहानी बहुत पसंद आने लगी। सब की कमेंट पढ़के मुझे तस्सली मिलती, कि हां मैं जो लिख रही हूँ, वह सही है, मैं भी अच्छा लिख सकती हूँ। इसलिए मैंने लिखना जारी रखा। फ़िर फेसबुक पे किसी दोस्त ने मुझे प्रतिलिपि ऍप के बारे में बतलाया।  तो मैंने वहां भी अपनी कहानी पोस्ट करनी शुरू की, तो वहां भी मेरी कहानी की सब ने प्रशंसा की। उसी से मुझे और लिखने की प्रेरणा मिलती रही। अब मैं ज़्यादातर अपने घर का सारा काम निपटाके अपना फ्री समय लिखने और नॉवेल पढ़ने में बिताती हूँ।  जो मुझे अच्छा भी लगता है। लिखने और पढ़ने में वक़्त कहाँ बीत जाता है, पता ही नहीं चलता, दोस्तों। 

        मैंने अपनी एक छोटी कहानी " माँ की ममता " जो  " मेरी माँ " नाम की पुस्तिका में छपी हुई है। दूसरी छोटी कविता " माँ का सफर " जो " माँ याद " नाम की पुस्तिका में छपी गई है। तीसरी एक छोटी कविता " सीख़ " जो " शब्दों की आत्मा " नाम की पत्रिका में छपी गई है और बाद में मैं जो कहानी लिखती थी, वह कहानी बड़ी लम्बी होती जा रही थी, तब मैंने सोचा की इसी कहानी को क्यों ना थोड़ा और अच्छे से लिखकर एक पुस्तक छपवा दूँ ?उस कहानी का टॉपिक भी अच्छा था और मुझे उसे लिखने में भी बड़ा मज़ा आता था। इसलिए मैंने अपनी कहानी कम्पलीट करके बुक छपवा दी, जिसका नाम मैंने रखा " मैं कौन हूँ ? " वह अभी अभी पब्लिश की गई है। और मुझे उम्मीद है, कि ये बुक सब को पसंद आए। जो Amazon पे से बड़ी आसानी से मिल रही है, तो मैं चाहती हूँ, की लोग मेरी ये बुक ख़रीदे और पढ़े, साथ-साथ मुझे बताए कि आप सब को मेरी ये बुक कैसी लगी ?

               THANK YOU SO MUCH 

                                                             Bela... 


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