तो दोस्तों, क्या आप बता सकते हो, कि क्या सच में हमारा चेहरा ही हमारी पहचान है ? या हमारा नाम हमारी पहचान है ? जो हमारे चेहरे के साथ जुड़ा हुआ है।
एक दिन की बात है, मैं सुबह-सुबह आईने के सामने जाकर अपने आपको, बड़ी गौर से देख रही थी। उस पल अपने आप को आईने में देख ना जाने क्यों, मुझे ये ख्याल आया, कि ये जो मेरा चेहरा है, वही मेरा चेहरा है ? क्या ये मेरा ही चेहरा है, जिसके साथ मेरा नाम और मेरी पहचान जुडी हुई है, लोग मुझे जिस चेहरे और जिस नाम के साथ पुकारते है, सब से पहले बस यही मेरी पहचान है ?
और अगर दो या तीन दिन आप अपना चेहरा आईने में ना देख और उसके बाद देखेंगे, तब आप को ये सवाल ज़रूर होगा, कि क्या यही मेरा चेहरा है ? क्या ये यही चेहरा है, जिसे देख लोग मुझे पहचानते है ?
कभी-कभी मुझे अपने आपको ही आईने में देख एक अजनबी सा एहसास होता है, क्या आप के साथ भी ऐसा होता है क्या ?
और अगर सोचो, किसी हादसे की वजह से आपका चेहरा बदल जाए, तब क्या आप, आपके अपने, आपको पहचान सकेंगे ? और क्या आपके अपने आपको और आपके इस नए चेहरे को स्वीकार सकेंगे, किसी और का चेहरा मतलब किसी और की ज़िंदगी जीना। इतना आसान नहीं, जितना हम समझते है...
तो बस आज ऐसे ही कुछ अपने आपके साथ जुड़े हुए सवाल लेके मेरी ये किताब एक कहानी के तौर पे आपके पास आ रही है, तो इसे अच्छे से पढ़कर और समझकर मेरे सवाल का जवाब दीजिएगा, मुझे आप सब के जवाब का इंतज़ार रहेगा....
Bela...
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