इम्तिहान भाग - ३
तो दोस्तों, अब तक आप सब ने पढ़ा, कि रिया, रूही को रूद्र से मिलने के लिए कहती है और रूही को समझाती भी है, कि बार-बार गुस्सा कर के झगड़ना और घर छोड़ कर तेरा यहाँ चले आना, ठीक नहीं है, रूही रिया की हर बात समझती भी है और मानती भी है, रूही रूद्र से मिलने होटल पहुँचती है, होटल में रूद्र ने पूरा terrace अपने लिए बुक करवाया था, terrace पर इतना सुंदर डेकोरेशन देख कर रूही दंग रह जाती है, रूद्र भी रूही को समझाता और मनाता है, रूही भी रूद्र की प्यार भरी बातें सुनकर खुश हो जाती है और रुद्र और रूही दोनों साथ में बात करते-करते डिनर करते है। अब आगे...
( वहां terrace पर रुद्र ने एक म्यूजिशियन को भी बुलाया था, जो प्यारा सा गाना अपने पियानो पर बजा रहा था, इस से मौसम और भी प्यारा सा हो रहा था, बारिश का महीना था, तो बारिश की कुछ बूंदे रूही के बाल, चेहरे और उसके नरम हाथों को थोड़ा थोड़ा भिगो रही थी, फिर रुद्र ने रूही को देखते हुए प्यार से, अपने साथ, डांस करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, रूही ने शर्मा कर रुद्र के हाथों के सहारे खड़े होकर रुद्र के साथ डांस करना शुरू किया, रुद्र ने रूही की क़मर को धीरे से पकड़ा और रूही को अपनी तरफ और खींचने की कोशिश की, रूही और ज़्यादा शर्मा कर के रूद्र के गले लग जाती हैं, इस पल रुद्र और रूही को एक दूसरे के अलावा और कुछ भी याद नहीं आता, दोनों एक दूसरे में जैसे की खो गए हो, देखते ही देखते बारिश के पानी ने दोनों को भिगो दिया, मगर शायद उस वक्त दोनों को इस बात का भी होश नहीं था, उसी वक्त हॉटल का एक आदमी छाता लेकर दोनों के करीब आता हैं और कहता हैं, कि " सर आप दोनों please अंदर आ जाइए, लगता हैं, तूफान आनेवाला हैं और बारिश बहुत जोरों से हो रही हैं।"
रुद्र ने रूही से कहा, " हा, आज तो तूफ़ान सच में आने वाला हैं और शायद हम दोनों को यह तूफ़ान अपने साथ लेकर ही जाएगा।"
रूही ने रुद्र के होठों पर हाथ रखते हुए कहा, कि " ऐसी बातें मत किया करो, मुझे डर लगता हैं, मैं तुम से दूर नहीं रह सकती, कहते हुए रूही रुद्र को और जोर से पकड़ते हुए उसके गले लग जाती हैं।"
उस तरफ़ जो आदमी छाता लेकर खड़ा था, उसने फिर से ज़ोर आवाज़ दी, " सर, प्लीज बारिश तेज़ हो रही हैं, अंदर चलिए, आपका खाना अंदर टेबल पर serve कर देंगे। "
रुद्र और रूही दोनों ही उस छाते के सहारे terrace से अंदर होटल में जाते हैं, वहां कोने में एक टेबल पर कैंडल्स रखे हुए थे, रूही टेबल के क़रीब जाकर अपने भीगे बाल को टॉवेल से पूछने लगी, रुद्र की नज़र आज एक पल के लिए भी रूही से दूर नहीं हो रही थी, वह बस अपनी रूही को देखे ही जा रहा था, इस बात का अंदाज़ा रूही को हो गया था, इसलिए बात बदलने के लिए और रुद्र का ध्यान अपने ऊपर से हटाने के लिए रूही ने रुद्र से कहा, " बड़ी जोरों से अब तो भूख लगी हैं, कुछ खाने को मिलेगा भी या ऐसे ही टुकुर टुकुर देखते रहोगे।
रुद्र ने मुस्कुराते हुए और खुद ही अपने बाल को अपने हाथों से ही सुखाते हुए कहा, " हा, जाने मन अब तो मुझे भी बहुत जोरों की भूख लगी हैं, मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे favourite pasta and Chinese पहले से बोल दिया हैं, अभी वह लेके आ जाएंगे, वैसे भी बारिश में गरम गरम chinese खाने का मज़ा कुछ ओर ही हैं। "
रूही ने कहा, " मगर तुम्हें तो chinese पसंद नहीं, फिर क्यों मंगवाया ? अपने लिए कुछ और ले लो।"
रुद्र ने कहा, " जी नहीं मैडम, ( तिरछी नज़र करते हुए ) आज तुम जो कहो, जो भी खिला दो, मुझे चलेगा, मुझे तो अब बस जल्दी खाना खत्म कर के घर जाना हैं, और तुम्हारे साथ और भी प्यारी बातें करनी अभी बाकी हैं।
( उतनी देर में वह आदमी ( vaiter) खाना लेकर आता हैं, रुद्र और रूही दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नज़र से देखते हुए खाना खाकर घर के लिए निकलते हैं। )
( रुद्र को इस बार यकीन हो गया था, कि अब सब ठीक हो जाएगा और अब रूही शायद छोटी-छोटी बातों पर रूठा नहीं करेगी। )
उस तरफ़ रिया को भी लगा, कि रूही अब ऐसी बेवकूफ़ी नहीं करेगी। वैसे भी आज नजाने क्यों रिया को नींद नहीं आ रही थी, इसलिए रिया का मुड़ आज कुछ लिखने का हो रहा था, इसलिए रिया अपनी डायरी में कुछ लिख रही थी, लिखते लिखते रिया अपने टेबल के drawer में कुछ ढूँढने लगी, तभी उस drawer में से एक पुरानी चिठ्ठी रिया के हाथों लग जाती हैं, जो रिया ने अपने कॉलेज के ज़माने में रूद्र को लिखी थी, मगर जिसे वह कभी भी रूद्र को दे नहीं पाई। )
हां दोस्तों, तो अब आप सच ही समझ रहे हैं, रिया कॉलेज के वक़्त से रूद्र को प्यार करती थी, मगर रिया रूद्र को यह बात बताती, उस से पहले ही रूही ने अपने मन की बात रिया को बता दी, कि " वह रूद्र को बहुत, बहुत, बहुत प्यार करती हैं। "
रूही, रिया की एकदम पक्की वाली दोस्त थी, इसलिए बस उसी दिन से रिया ने रूद्र के लिए अपने प्यार को अपने अंदर ही समेत लिया, रिया ने जैसे उसी पल अपना प्यार रूही को दे दिया, और तो और रिया ने ही रूही के मन की बात रूद्र तक पहुँचाने में उसकी मदद की थी और रूद्र भी तब मन ही मन रूही को पसंद भी करता था, मगर वह भी बस मौके की तलाश में ही था, इसलिए रुद्र ने रूही का प्रपोजल स्वीकार कर लिया। रिया ने ही रूही के मम्मी-पापा को उन दोनों की शाद्दी के लिए भी राज़ी किया, जीवन भर अकेले रहना का फैसला रिया ने उसी दिन कर लिया, जब रूही और रूद्र की शादी हो रही थी। रिया बस रूही और रुद्र को साथ और खुश देखना चाहती थी और कुछ नहीं।
अपने ही प्यार को किसी और का होते हुए देखना, इतना आसान नहीं, उस वक्त दिल के अंदर एक तूफ़ान सा मचा हुआ रहता हैं, ना चाहते हुए भी दोस्ती की खातिर हमें उस इम्तिहान से गुजरना पड़ता हैं, जिसका रिज़ल्ट क्या होगा, जिसका अंजाम क्या होगा वह भी उसे पता नहीं, वो कहते हैं ना कि " प्यार के प्यार में रहने की मज़ा ही कुछ और हैं, प्यार की खातिर कुछ भी कर जावा, प्यार के लिए ज़माने से तो क्या उस रब से भी लड़ जावा। रिया को लग रहा था, कि अब से उसकी ज़िंदगी जैसे एक इम्तिहान होने वाली हैं और उसे उस इम्तिहान से हर पल, हर रोज़ ना चाहते हुए भी वह इम्तिहान देना ही होगा और उसे उस इम्तिहान से गुजरना ही होगा।"
बस दोस्तों, सही मायने में प्यार इसी को कहते हैं, अपने प्यार की ख़ुशी में खुश रहना और अपना सारा जीवन उसके नाम कर देना और उसे इस बात का पता भी ना चले। शायद प्यार ऐसा ही तो होता हैं। प्यार महसूस किया जाता हैं, जो मज़ा प्यार देने में हैं, वह प्यार छीनने में कहाँ ? किसी से छीन के जो प्यार पाया जाता हैं, वह प्यार-प्यार नहीं बल्कि ज़िद्द हैं, सिर्फ अपने प्यार को पाने की और कुछ नहीं।
अब आगे...
४ महीने बाद
अब रूही अपने रोज़ के काम में बहुत ही busy रहती हैं और रूद्र को भी अपने काम से फुर्सत ही नहीं, अपने लिए मुश्किल से वक़्त निकाल पाते थे दोनों।
ऐसा ही होता हैं दोस्तों, ज़िंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ चलती जाती हैं, कब शाम हुई ? कब सुबह ? हमें पता ही नहीं चलता, हमें बस चलते जाना हैं, रुकना नहीं, झुकना नहीं, पीछे मूड के देखना नहीं, बस आगे बढ़ते ही जाना हैं। कोई चाहे कितनी भी कोशिश कर ले मगर अपने आप को या अपनी आदत को बदलना शायद सब के लिए बहुत ही मुश्किल होता हैं, जैसे रिया पहले से ही कभी भी गुस्सा करती नहीं और अपने मन की हर बात अपने अंदर दबा के रखती हैं, वैसे ही रूही अपने मन की बात या कहूं तो उसके अंदर का गुस्सा वह ज़्यादा देर तक छुपा नहीं सकती। अपने मन में जब भी जो कुछ भी आया बिना सोचे समझे वह किसी को भी कह देती हैं और फिर कुछ देर बाद उसे अपनी गलती का एहसास होने पर अपने आप ही सॉरी भी कह देती हैं।
अब आगे...
कुछ महीने तो जैसे-तैसे कर के रूद्र और रिया ने साथ में बिता दिए, बिच-बिच में छोटे-मोटे झगड़े भी होते रहते, मगर रूद्र हर बार रूही को मनाया करता और कुछ देर बाद रूही मान जाती, क्योंकि रूही जैसी भी थी मगर रूद्र उसे बहुत प्यार करता था, इसलिए वह उसकी हर नादानी माफ़ कर दिया करता।
इस बार बात ऐसी हो गई, कि रूही प्रेग्नेंट हो गई मगर रूही को अभी बच्चा नहीं चाहिए था, उसे अपना काम बहुत प्यारा था और वह जानती थी, कि बच्चे के आने के बाद वह अपना काम नहीं कर पाएगी, मगर रूद्र को बच्चा चाहिए था। अब क्या करे ? घर में रूद्र की माँ को भी अपने पोते का चेहरा देखना था, रूद्र और रूद्र की माँ दोनों रूही को मनाने में लगे थे, कि वह बच्चा रखने के लिए मान जाए, मगर इस बार रूही ने फिर से ज़िद्द पकड़ी थी, वह मानती थी, कि बच्चा सिर्फ और सिर्फ एक ज़िम्मेदारी हैं और कुछ नहीं और इस वक्त तो वह बच्चें के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी, रूही को लगता था, कि वह उसे सँभाल नहीं पाएगी। ऐसे में अब रूद्र रूही को कैसे समझाए ? बस यही एक सवाल था। जो अब शायद फिर से रिया को सुलझाना था।
बात घूम-फिर के हर बार रिया तक आ ही जाती थी। क्योंकि रूही को कैसे मनाना हैं, वह रिया अच्छे से जानती थी, इसलिए रूद्र ने रिया पर यह बात छोड़ दी, रिया बिलकुल वैसी ही लड़की थी, जैसा रूद्र चाहता था और रूद्र भी बिलकुल वैसा ही लड़का था, जैसा रिया चाहती थी, मगर कहते हैं ना, किस्मत के आगे किसकी चलती हैं, किस्मत में आखिर जो लिखा होगा वही होता हैं।
आज रिया रूही को समझाने वाली ही थी, लेकिन ऑफिस से घर जाते वक़्त रूही का पेअर फिसल जाता हैं और वह गिर जाती हैं, उस वक़्त रिया उसके साथ ही थी। रिया ने तुरंत ही अपनी ऑफिस के दूसरे दोस्त की मदद लेकर रूही को सब से पहले अपनी कार में बिठाया और उसे अस्पताल ले गई। रास्ते में से ही रिया ने रूद्र को फ़ोन कर के बता दिया, कि वह रूही को लेकर अस्पताल जा रही हैं, अगर उसके पास वक़्त हो तो वह भी अस्पताल आ जाए। वहां अस्पताल में डॉक्टर ने रूही का चेक-अप किया, अभी रूही को सिर्फ दो महीने ही चढ़े थे। ये तो अच्छी बात हुई की बच्चे को कुछ नहीं हुआ वह रूही के पेट में सुरक्षित था। एक पल के लिए तो रिया डर गई थी, कि कहीं पैर फिसल कर गिरने की बजह से रूही का बच्चा ना चला जाए ! मगर डॉक्टर ने कहा, कि अब रूही को बहुत ज़यादा आराम की ज़रूरत हैं, इस हालत में अब वह पहले की तरह दौड़ के अपना काम नहीं कर सकेगी। क्योंकि इस बार तो बच्चा बच गया हैं, मगर हर बार ऐसा ही हो, ये ज़रूरी नहीं, रूही का बच्चा अभी तो बहुत ही कमज़ोर हैं और उसकी बजह से शायद रूही की जान को भी ख़तरा हो सकता हैं। रूही को अब अच्छे और पौष्टिक खाने की और आराम की ज़रूरत हैं और साथ-साथ उसे ख़ुश भी रहना होगा।
ऐसा सुनकर रूही के तो होश ही उड गए। एक तो उसे पहले से ये बच्चा चाहिए नहीं था और ऊपर से डॉक्टर ने अभी से उसको आराम करने को कह दिया। रूही डरती हुई, थोड़ी रोती हुई अपनी सहेली रिया को हाथ जोड़कर मिन्नत करते हुए कहने लगी, " मुझे ये बच्चा अभी नहीं चाहिए, मैं इसे सँभाल नहीं पाऊँगी और अभी मैं अपना जॉब भी छोड़ना नहीं चाहती, मैं यूँ घर बैठकर आराम नहीं कर सकती, प्लीज रिया प्लीज मुझे समझो, मैं अभी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं हूँ, तुम रूद्र को समझाओ ना ! मेरे लिए प्लीज !"
उतनी देर में रूद्र भी अस्पताल आ गया था, रूद्र कमरे के बाहर से डॉक्टर और रूही दोनों की सब बात सुन रहा था।
मगर वक़्त के आगे किस की चलती हैं, डॉक्टर ने अभी एबॉर्शन के लिए बिलकुल मना कर दिया था, अब रूही के पास बच्चा रखने के अलावा और कोई रास्ता बचा नहीं था, मगर अब भी रूही राज़ी नहीं हो रही थी।
तब रिया ने उसे बहुत समझाया, कि " देखो रूही, दुनिया में एक अकेली तू ही नहीं, जो माँ बनने वाली हैं और अपना जॉब भी करती हैं, दुनिया में ऐसी बहुत सी औरत हैं, जो अपना, काम, घर और अपना बच्चा सब साथ में संभालती हैं, तो फिर तू क्यों नहीं कर सकती ? हम सब भी हैं ना, तेरे साथ। तू अकेली थोड़ी ना हैं, रूद्र हैं, माँ है, मैं हूँ। हम सब साथ मिलके बच्चा और तुम्हें दोनों को सँभाल लेंगे। वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। तुम अब से बस अपनी और अपने बच्चे के सेहत की फिक्र करो, बाकि सब मुझ पर और रूद्र पर छोड़ दो। "
रूद्र भी वहां रिया की सब बात चुप-चाप सुने जा रहा था, रूद्र को पक्का यकीन था, कि " अगर रिया उसे समझाएगी तो रूही मान ही जाएगी।" आखिर रिया की और डॉक्टर की बात मान कर रूही बच्चे के लिए मान ही गई, मगर अब भी रूही को हर पल अपनी आज़ादी छीन जाने का डर सताए जा रहा था।
रुद्र ने कहा, " देखी, रूही अब तुम बस सिर्फ आराम करो, खुश रहा करो, मैं हूँ ना, सब सँभाल लूंगा, मैं तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे दोनों की ज़िम्मेदारी लेता हूँ, तुझे कभी कोई तकलीफ नहीं होगी, यह मेरा वादा रहा तुमसे। "
इस तरफ रूद्र की बातें सुनकर रिया की आँखें भर आती हैं, रिया रुद्र से कहती है, कि तुम दोनों बातें करो, उसे एक ज़रूरी फ़ोन करना हैं।" कहते हुए वह कमरे से बाहर चली जाती हैं और उसकी पलकों में छिपे आँसू बिना उसकी इजाज़त के बहने लगते हैं। एक तरफ रिया खुश तो हैं, अपनी दोस्त और अपने प्यार की ख़ुशी को देख कर मगर साथ-साथ रूद्र जैसा लड़का उसकी किस्मत में नहीं सोचते हुए, आज भी कभी-कभी उसकी आँखें भर आती हैं, रिया सिर्फ उन दोनों को साथ और ख़ुश देखना चाहती हैं और कुछ नहीं, अगर रिया चाहती तो रूद्र और रूही दोनों की सुलह ना करवाते हुए खुद भी रूही की जगह ले सकती थी, मगर रिया ऐसी लड़की नहीं थी, वह किसी के हिस्से का प्यार छीनना नहीं चाहती थी और अपने प्यार की ख़ुशी में ही खुश रहना जानती थी।
रूद्र ने अब रूही की देख-रेख करने की ज़िम्मेदारी रिया को दे दी, अब रिया सुबह-शाम रूही को मिलने उसके घर चली जाती, डॉक्टर ने रूही को आराम करने को कहा था, इसलिए रिया रूद्र के घर जाकर रूद्र की माँ की रसोई में और बाकि काम में भी हेल्प कर दिया करती थी। फिर ऑफिस जाकर अपना काम भी करती और शाम को घर लौटते वक़्त फिर से वह रूही के घर चली जाती। कभी साथ मिल के सब मूवी देखते, कभी गेम खेलते, कभी गाने बजाते, कभी बाहर घूमने जाते, सब रूही को बस खुश रखना चाहते थे, कि वह फिर से गुस्से में आकर कहीं उल्टा-सुलटा ना कर बैठे। रूही को वक़्त पर दवाई पिलाना, खाना खिलाना, अस्पताल चेक-अप के लिए जाना सब कुछ रिया ने बख़ूबी सँभाल लिया था।
यह सब रिया के लिए बहुत मुश्किल था, एक इम्तिहान से कम नहीं था, मगर दोस्ती के नाम पर रिया ये कड़वा घूंट भी पी जाती, क्योंकि बार-बार रूद्र के सामने रहकर वह उसे भूलना तो दूर, वह रूद्र को और भी प्यार करने लगी थी। रूद्र जैसे रूही को प्यार करता, उसकी देख-भाल करता, ऐसा शायद ही कोई करता, रूद्र की आँखो में रिया ने रूही के लिए हर पल प्यार, प्यार और सिर्फ प्यार ही देखा हैं और कुछ भी नहीं। कभी कभी रिया सोचती हैं, कि " नजाने क्यों कोई ज़िंदगी में इतना ज़रूरी कैसे और कब हो जाता हैं, हमें पता ही नहीं चलता। "
७ महीने बाद
जैसे जैसे दिन गुज़रते चले, रूही की तबियत कुछ ठिक नहीं रहती थी, रूही का प्रेसर कभी एकदम से बढ़ जाता, तो कभी एकदम से घट जाता था, कभी उसको कमर दर्द करता, तो कभी उसके पाव में सोजे आ जाते, उसका वजन भी काफ़ी बढ़ने लगा था, रूही का बच्चा ८ वे महीने में ही थोड़ा नीचे चला आया था, इसलिए डॉक्टर ने उसे फिर से आराम करने को ही कहा था, रूही अब बहुत तंग आ चुकी थी, मगर रिया रूही को हसाया करती और उसे खुश रखा करती। रूही भी ना कितनी नसीबो वाली हैं, जो उसे इतना प्यार करने वाला पति और उसकी इतनी देख-भाल करने वाली और प्यार करनेवाली दोस्त मिली हैं, ऐसा साथ तो कभी शायद सगी बहन भी नहीं देती, जैसा साथ रिया अपनी सहेली रूही का देती थी, रूही की ऐसी हालत की बजह से रूद्र ने रिया को अपने घर ही रोक लिया था और रिया ने तो अब ऑफिस से २ महीने की छुट्टी भी ले ली थी, पता नहीं कब क्या हो जाए और कब किस की ज़रूरत पड़ जाए।
तो दोस्तों, क्या रूही अपने बच्चे की ज़िम्मेदारी अच्छे से सँभाल पाएगी और क्या रूही माँ बनने के बाद बदल जाएगी ?
अब आगे क्रमश :
Bela...
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