Book लिख़ने की प्रेरणा
एक दिन मैं अपनी सहेली के साथ लाइब्रेरी गई थी, वहां पे मैंने एक लड़की को १५-२० बुक लाइब्रेरी में से ले जाते देखा, मैंने अपनी सहेली को कहा, यार, आजकल इंटरनेट के ज़माने में इतना कौन पढ़ता है ? सब तो मोबाइल पे आता है, तो भला कोई बुक क्यों ख़रीदेगा ? मेरी सहेली ने कहा, तू ग़लत समझ रही है, तू जैसा सोच रही है, वैसा बिल्कुल नहीं है। कुछ लोगों को मोबाइल का ज़्यादा उपयोग करना पसंद नहीं आता और कुछ बुक ऐसी भी होती है, जो इंटरनेट से भी ना मिल पाए। इसलिए लोग बुक खरीदते भी है और पढ़ते भी है और उन्हीं दिनों मैंने लिखना भी शुरू किया था, इसलिए मैंने भी सोचा, कि क्यों ना मैं भी अपनी बुक लिखुँ ?
फ़िर कुछ दिनों के बाद मैं अपने लैपटॉप पे एक कहानी लिख रही थी, जो दिन-ब-दिन लम्बी होती जा रही थी और उस कहानी का टॉपिक ही कुछ ऐसा था, कि मुझे लिखने में भी बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं उन दिनों रात को ३ या ४ बजे तक भी लिखती रहती थी, मुझे वक़्त कहाँ बीत जाता था पता ही नहीं चलता था। एक दिन मेरे फेसबुक पे मेरी एक कहानी पढ़ के किसी का मैसेज आया, कि आपकी कहानी बहुत ही दिल को छू जानेवाली है, अगर आ अपनी बुक publish करवाना चाहती है, तो हम से संपर्क कीजिएगा। तब मैंने सोचा, कि क्यों ना इसी कहानी को जो मैं लिख रही हूँ, उसे बुक बना के पब्लिश कर दूँ ? फ़िर मैंने उनसे फ़ोन पे बात की।
वह " UNIK PUBLICATION " में से बोल रहे थे, उन्होंने कहा, कि यहाँ पे book publish करवाने का कोई charge नहीं लगता। तब मैंने अपनी इस कहानी को फ़िर से लिख़ना शुरू किया, तक़रीबन ३ महीने मुझे इस कहानी को पूरा करने में लगे। कभी-कभी बहुत मुश्किल लगता था, एक तो house wife होने की वजह से घर का सारा काम करना, बच्चों को संभालना, मेरे पास अपने लिए वक़्त ही नहीं बचता था फ़िर भी मैंने अपने लिए वक़्त निकालके लिखना जारी रखा क्योंकि लिखना मुझे अच्छा भी लगता था, अपने मन की बात किसी से कह ना सके तो कोई बात नहीं, लिखने से मन relax हो जाता है, ये मैंने इन दिनों महसूस किया।
और unik publication के प्रशांतजी ने मुझे अच्छे से सब कुछ समझाया और मेरी बहुत मदद की मेरी इस बुक को publish कराने में। मैं उनकी बहुत-बहुत आभारी हूँ। और अब मैंने अपनी दूसरी कहानी लिख़ने की भी शुरुआत कर दी है। जो आप सब के सामने बहुत ज़ल्द आ जाएगी।
Bela...
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